उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 26 मार्च 2020 (रेई)- संत पापा ने पावन ख्रीस्तयाग के शुरू में कहा, “इन दिनों बहुत दुःख है। बहुत अधिक डर है। बुजूर्गों का भय जो चिकित्सा केंद्रों, अस्पतालों या अपने ही घरों में अकेले हैं और नहीं जानते कि क्या होगा। उन लोगों का भय जिनकी नौकरी पक्की नहीं है और वे अपने बच्चों को खिलाने के लिए चिंता कर रहे हैं। वे सोच रहे हैं कि उन्हें भूखे रहना होगा। नागरिक सेवा में नौकरी करनेवालों का भय, इस समय वे समाज को सुचारू रखने के लिए कार्य कर रहे हैं और वे बीमार हो सकते हैं। हम प्रत्येक जन भयभीत हैं और हरेक जन जानते हैं कि हमें किस बात का डर है। हम प्रभु से प्रार्थना करें कि वे हमें भरोसा रखने, सहन करने एवं डर पर विजय पाने में मदद करें।”
अपने उपदेश में संत पापा ने निर्गमन ग्रंथ से लिए गये पाठ (32.7-14) पर चिंतन किया जिसमें उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि मूर्ति पूजा किस तरह हम सभी के जीवन को प्रभावित करता है।
जीवित ईश्वर से मूर्ति की ओर
संत पापा ने गौर किया कि किस तरह चुनी हुई प्रजा मूर्तिपूजक बन गयी। उन्होंने मूसा के पर्वत से लौटने का इंतजार करना छोड़ दिया। वे ऊब गये और उन्हें मूर्ति पूजा की याद सताने लगी। संत पापा ने कहा, “यह धर्म का असली त्याग था। जीवित ईश्वर से देवमूर्ति की ओर जाना था ...नहीं जानते हुए कि जीवन्त ईश्वर का इंतजार किस तरह किया जाए। यह विषाद एक बीमारी है जो हममें भी है। चुनी हुई प्रजा मुक्ति की राह पर उत्साह से बढ़ने लगती है किन्तु शिकायतें शुरू हो जाती हैं – यह सचमुच कठिन है, यह मरूस्थल है, मैं प्यासा हूँ। मुझे पानी चाहिए। मैं मांस खाना चाहता हूँ ...मिस्र में हमने अच्छी चीजें खायीं। यहाँ तो कुछ भी नहीं है, इत्यादि।”
मूर्तिपूजा चयनात्मक
इसके बाद संत पापा ने बतलाया कि किस तरह मूर्तिपूजा चयनात्मक होता है। “यह आपको अच्छी चीजों को याद करने के लिए प्रेरित करता है किन्तु बुरी चीजों को देखने नहीं देता। चुनी हुई प्रजा ने सभी अच्छी चीजों की याद की जिनको वे मिस्र में रहते समय खाया था किन्तु भूल गये कि वे गुलामी की मेज पर खाते थे।”
मूर्तिपूजा सबकुछ ले लेता है
संत पापा ने कहा कि मूर्तिपूजक सब कुछ खो देता है। चुनी हुई प्रजा ने अपने सभी सोने और चांदी के अभूषणों को सोने का बछड़ा बनाने के लिए जमा कर दिया। उन्होंने ईश्वर से मिले वरदानों का प्रयोग सोने का बछड़ा बनाने के लिए किया। मिस्र से पलायन करने के पूर्व ईश्वर ने ही उन्हें मिस्रियों से सोना ले लेने को कहा था।
यही बात हमारे साथ भी होती है। जब हम उन चीजों को करते हैं जो हमें मूर्ति पूजा के लिए प्रेरित करता है तब हम उन चीजों से आसक्त हो जाते हैं जबकि वे चीजें हमें ईश्वर से दूर कर देते हैं। प्रभु ने जो वरदान हमें दिये हैं अपनी बुद्धि, इच्छा, प्रेम और हृदय, हम उनसे दूसरी देवमूर्ति बनाते हैं।”
हमारे हृदय में देवमूर्ति
पवित्र क्रूस अथवा माता मरियम की प्रतिमा जो हमारे घरों में होते हैं वे देवमूर्तियाँ नहीं हैं। देवमूर्तियाँ हमारे हृदयों में हैं। हम प्रत्येक को अपने आप से पूछने की जरूरत है कि हमारी देवमूर्ति क्या है। किन देवमूर्तियों को हमने अपने हृदय में छिपा कर रखा है। मूर्तिपूजा हमारी प्रार्थना को भी प्रभावित करती है। आखिरकार, चुनी हुई प्रजा अपने ही द्वारा बनायी गयी देवमूर्ति की पूजा करने का चुनाव करती है। संत पापा ने कहा कि हम इस तरह तभी करते हैं जब हम संस्कार के अनुष्ठान को दुनिया के समारोहों में बदल देते हैं।
आज के सवाल
संत पापा ने चिंतन करने हेतु प्रेरित करते हुए कहा, “मेरी देवमूर्तियाँ क्या हैं? मैं उन्हें कहां छिपाता हूँ? आज हमें अपने आप से ये ही सवाल करना है।
संत पापा ने प्रार्थना की कि “प्रभु हमें जीवन के अंत में यह न कहे, ‘तुम धर्म विरोधी, तुम उस रास्ते से भटक गये जिसको मैंने चिन्हित किया था। तुमने देवमूर्ति के सामने दण्डवत किया। प्रभु से हम कृपा की याचना करें ताकि हम अपनी देवमूर्तियों को पहचान सकें।”