उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, मंगलवार, 24 मार्च 2020 (रेई) – कोरोना वायरस से संक्रमित होकर कुल 24 डॉक्टरों की मृत्यु हो चुकी है जबकि करीब 500 स्वास्थ्यकर्मी वारयस से संक्रमित हैं। महामारी से मरने वाले पुरोहितों की संख्या 50 हो चुकी है।
प्रवचन में संत पापा ने संत योहन रचित सुसमाचार पाठ पर चिंतन की जिसमें येसु बेथेस्दा कुण्ड के पास एक अर्धांग रोगी को चंगा करते हैं। संत पापा ने आलस्य के पाप की ओर ध्यान आकृष्ट किया। उन्होंने कहा कि आज की धर्मविधि हमें पानी पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करता है। पानी मुक्ति का प्रतीक है क्योंकि यह मुक्ति का साधन है। जल विनाश का भी साधन है किन्तु इन पाठों में यह मुक्ति का साधन है। पहले पाठ में उस पानी का जिक्र किया गया है जो जीवन देता है, समुद्र के पानी को शुद्ध करता और चंगाई प्रदान करता है।
सुसमाचार पाठ में उस कुण्ड का वर्णन है जहाँ बीमार लोग नहाने जाते और चंगे हो जाते थे। कहा जाता है कि प्रभु का दूत समय-समय पर कुण्ड में उतरकर पानी को हिला देता था। पानी के लहराने के बाद जो सबसे पहले कुण्ड में उतरता था, चाहे वह किसी भी रोग से पीड़ित क्यों न हो अच्छा हो जाता था। कुण्ड के पास एक व्यक्ति था जो 38 सालों से बीमार था। 38 सालों से वह चंगा होने का इंतजार कर रहा था।
संत पापा ने कहा कि यह हमें सोचने के लिए प्रेरित करता है कि वह व्यक्ति इतने सालों से चंगा होने हेतु दूसरों की मदद का इंतजार कर रहा था। येसु उसे देखकर कहते हैं, क्या तुम अच्छा हो जाना चाहते हो। तब बीमार व्यक्ति जवाब देता है महोदय, मेरा कोई नहीं है जो पानी के लहराते ही मुझे कुण्ड में उतार दे। मेरे पहुँचने से पहले ही उसमें कोई और उतर पड़ता है। संत पापा ने कहा कि वह व्यक्ति हमेशा देर करता था। तब येसु ने कहा, “उठकर खड़े हो जाओ और अपनी चारपाई उठाकर चलो।” यह हमें उस व्यक्ति के मनोभाव पर ध्यान देने हेतु प्रेरित करता है। वह बीमार था पर लगता है कि थोड़ा चल सकता था। वास्तव में, वह हृदय, आत्मा, निराशा, उदासी एवं आलस्य की बीमारी से ग्रसित था। यही मनुष्यों की बीमारी है। हम जीना चाहते हैं, चंगाई प्राप्त करना चाहते हैं किन्तु हमेशा दूसरों के सहारे। 38 सालों से बीमार व्यक्ति चंगा होना चाहता था किन्तु अपने आप से कुछ नहीं कर रहा था बल्कि दूसरों की शिकायत कर रहा था।
पिछले रविवार के पाठ में हमने जन्म से अंधे व्यक्ति के बारे सुना था कि वह किसी तरह खुशी एवं दृढ़ निश्चय के साथ चंगाई प्राप्त किया। उसने किसी की शिकायत नहीं की, बल्कि जिम्मेदारी के साथ संहिता के पंडितों को जवाब दिया। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए। अपने जीवन से शिकायत नहीं करनी चाहिए। संत पापा ने कहा कि कई ख्रीस्तीय इसी आलस्यपन में जीते हैं, अपने आप से कुछ भी नहीं कर सकते, केवल शिकायत करते हैं। उन्होंने कहा कि आलस्यपन एक जहर है, एक कुहासा है जो हमारी आत्मा को ढ़क लेता और जीने नहीं देता है। यह नशीली पदार्थ के समान है जिसका स्वाद अच्छा लगता किन्तु हम उदास एवं आलसी बनकर रहने की आदत बना लेते हैं। संत पापा ने कहा कि हम उस जल की याद करें जो शक्ति और जीवन का प्रतीक है जो हमें बपतिस्मा में प्राप्त होता है। उन्होंने प्रार्थना की कि प्रभु हमें पाप की बुराई एवं कुरूपता को समझने की कृपा प्रदान करे। मिस्सा के अंत में संत पापा ने पवित्र संस्कार की आशीष प्रदान की।