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संत मार्था के प्रार्थनालय में प्रवचन देते हुए संत पापा फ्राँसिस संत मार्था के प्रार्थनालय में प्रवचन देते हुए संत पापा फ्राँसिस  (ANSA)

नम्रता अपमान रहित नहीं, संत पापा

संत मार्था के अपने प्रार्थनालय में संत पापा फ्रांसिस ने विश्वासियों को येसु और योहन का तरह अपमान सहने की राह में चलने हेतु आग्रह किया। उन्होंने कलीसिया के चरवाहों को “बढ़ती दुनियादारी” के जाल में गिरने से बचे रहने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन रेडियो, शुक्रवार, 07 फरवरी 2020 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने शुक्रवार को संत मार्था में अपने प्रातःकालीन मिस्सा बलिदान के दौरान “अपमान से भयभीत नहीं” होने का संदेश देते हुए ईश्वर से “कुछके” की मांग हेतु प्रार्थना करने की सलाह दी, जो हमें येसु ख्रीस्त का “बेहतर अनुसारण” करने में “नम्रता” के मनोभाव से वशीभूत करता है।

येसु का मार्ग

संत पापा ने संत मारकुस के सुसमाचार पर चिंतन करते हुए योहन बपतिस्ता के जीवन की चर्चा की जो ईश्वर के द्वारा “मार्ग दिखाने”, येसु का “मार्ग तैयार” करने हेतु भेजा गया था। नबियों में “सबसे आखरी” अपने में “यह ईश्वर का मसीह है” घोषित करने की कृपा को वहन करता है।

योहन बपतिस्ता अपने प्रवचन में इस बात की चर्चा नहीं करते कि येसु लोगों को तैयार करने हेतु आये हैं वरन वे येसु ख्रीस्त का साक्ष्य देते और उस साक्ष्य को अपने जीवन के द्वारा प्रस्तुत करते हैं। वे हमारी मुक्ति हेतु ईश्वर द्वारा चुने गये, तथा अपमानित होने के मार्ग का साक्ष्य देते हैं। संत पौलुस फिलिप्पियों के नाम अपने पत्र में इसकी चर्चा स्पष्ट रुप से करते हैं, “येसु ख्रीस्त ने अपने को क्रूस के काठ पर बलि अर्पित कर दिया”। क्रूस पर उनकी यह मृत्यु, अपमान का मार्ग हमारे जीवन का मार्ग है जिसे वे ख्रीस्तियों के लिए प्रकट करने हैं जिसमें हमें आगे बढ़ने की जरूरत है।

अति अपमानजनक अंत

संत पापा ने कहा कि योहन और येसु, दोनों के लिए “दिखावे, घमंड की चुनौती” मिली थी। येसु को मरूभूमि में, अपने उपवास के उपरांत शौतान द्वारा परीक्षा का सामना करना पड़ा। वहीं योहन बपतिस्ता को संहिता के ज्ञाताओं द्वारा यह पूछा गया कि क्या आप ही मसीह हैं। वे इसके उत्तर में यह कह सकते थे कि मैं उनका “सेवक” हूँ लेकिन वे “नम्रता” में बने रहे। दोनों को लोगों के “बीच अधिकार प्राप्त था” उनका उपदेश “अधिकारपूर्ण” था। दोनों ही अपने में मानवीय और आध्यात्मिक रुप से सामर्थ्यवान थे। संत पापा ने कहा येसु जैतून की वाटिका में औऱ योहन कैदखाने में “संदेह के कीड़े” का सामना करते हैं, क्या येसु ख्रीस्त सचमुच ईश्वर के मसीह हैं।  दोनों व्यक्तित्वों का अंत अति तिरस्कारपूर्ण तरीके से होता है”। येसु को क्रूस में, “अपराधियों की भांति, घोर शारीरिक यांत्रणा में यहाँ तक की नौतिक रुप में, लोगों और अपनी माता” के समाने नंगा मरना होता है। कारागार में योहन बपतिस्ता का सिर, एक व्यभिचारिणी की कटुता और नर्तकी की भ्रष्टता के कारण, राजा की आज्ञा में कलम कर दिया जाता है।

नबियों में सबसे बड़ा तथा सबसे महान जो एक नारी से उत्पन्न हुए- जैसा कि येसु ख्रीस्त योहन के विषय में कहते हैं और ईश्वर के पुत्र, दोनों ने अपने लिए अपमान का मार्ग चुना। इस तरह वे हम ख्रीस्तियों के लिए एक मार्ग दिखलाते हैं जिसमें हमें चलना है। वास्तव में, धन्य वचनों में हमें इसी नम्रता के मार्ग में चलने हेतु बल दिया गया है।

एक दुनियावी मार्ग

हम “अपमान के बिना नम्र” नहीं हो सकते हैं। संत पापा ने ईश्वर के इस “संदेश” की ओर ख्रीस्तियों का ध्यान आकर्षित कराया।

जब हम कलीसिया और समुदाय में अपने को दिखाने का प्रयास करते हैं, अपने लिए एक स्थान या कुछ दूसरी चीजें खोजते हैं, तो यह हममें दुनियावी मार्ग को व्यक्त करता है। यह येसु ख्रीस्त का नहीं वरन दुनिया का मार्ग है। ऊपर होने की राह में यह परीक्षा चरवाहों के लिए आ सकती है, “यह अन्याय है, यह एक अपमान है, मैं इसे सहन नहीं कर सकता हूँ”। लेकिन यदि एक चरवाहा इस मार्ग में नहीं चलता तो वह येसु का शिष्य नहीं है, वह याजकीय परिधान में ऊपर चढ़ने वाला व्यक्ति है। अपमान के बिना हमारे लिए नम्रता नहीं है। 

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07 February 2020, 15:37
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