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संत मर्था में ख्रीस्तयाग अ्रपित करते संत पापा संत मर्था में ख्रीस्तयाग अ्रपित करते संत पापा  (Vatican Media)

साक्ष्य हमारी आदत को तोड़ने की मांग करती है

संत पापा फ्रांसिस ने वाटिकन के संत मर्था प्रार्थनालय में अपने प्रातःकालीन ख्रीस्तयाग के दौरान दैनिक जीवन की कुड़कुड़ाहट को “रोज दिन की रोटी” बतलाते हुए इससे बचे रहने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

उन्होंने संत लूकस रचित सुसमाचार के आधार पर अपने प्रवचन में साक्ष्य, शिकायत, और सवाल इन तीन बातों का जिक्र किया।

साक्ष्य द्वारा कलीसिया का विकास

उन्होंने येसु के साक्ष्य की चर्चा करते हुए कहा, “यह उस समय की एक नई बात थी, क्योंकि पापियों के पास जाना कोढ़ग्रस्त व्यक्ति का स्पर्श करने के समान था।” शास्त्री इससे हमेशा दूर रहते थे। संत पापा ने कहा कि इतिहास में साक्ष्य प्रस्तुत करना अपने में सहज नहीं था- यही कारण है कि साक्ष्य देने वाले अपने में शहीद होते हैं- इसके लिए साहस की जरुरत है।

यह हमसे अपनी आदत को तोड़ने की मांग करती है। यह हमें अपने में परिवर्तन लाने का आह्वान करता है। कलीसिया अपने साक्ष्य के कारण विकास करती है। यह कलीसिया के शब्द नहीं वरन् उसके द्वारा दिया जाने वाला साक्ष्य है जो दूसरों को आकर्षित करता है। येसु हमारे लिए साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। यह हमारे लिए नई चीज है लेकिन उतनी भी नई बात नहीं क्योंकि ईश्वरीय करूणा को हम पुराने विधान में व्याप्त पाते हैं। शास्त्री येसु की इस बात को कभी नहीं समझ पाये, “मैं बलिदान नहीं बल्कि दया चाहता हूँ।”संत पापा ने कहा कि उन्होंने इसे पढ़ा लेकिन इस दया को नहीं समझा। येसु अपने कार्यों के द्वारा करूणा का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने कहा, “साक्ष्य हमारी आदत को तोड़ती” लेकिन यह हमें “जोखिम में भी डाल देती है।”

हमारे भुनभुनाने के कारण

वास्तव में, येसु का साक्ष्य भुनभुनाहट का कारण बनता है। शास्त्री, फरीसी और सदूकी कहते हैं, “यह पापियों का स्वागत करता और उनके साथ खाता-पीता है।”उन्होंने यह नहीं कहा कि देखो यह व्यक्ति अपने में कितना अच्छा है क्योंकि यह पापियों के मन को बदल देता है। उनके मनोभाव सदैव नकारात्मक हैं जो साक्ष्य को मिटा देता है। संत पापा ने कहा, “यह छोटे और बड़े दोनों रुपों में रोज दिन हमारे जीवन में होता है।” हम अपने जीवन में कठिनाइयों को सुलझाने के बदले उनके बारे में टीका-टिप्पणी करने लगते हैं, वो भी अपनी दबी आवाज में क्योंकि हममें साहस का अभाव है। यह हमारे छोटे समुदायों पल्लियों में भी होता है। उन्होंने कहा कि जब हम किसी साक्ष्य को अपने बीच देखते जिसे हम पसंद नहीं करते तो हम अपने में भुनभुनाने लगते हैं।

यह धर्मप्रांत और अंतर-धर्मप्रातों में भी होता है जिससे हम सभी वाकिफ हैं। यह राजनीति में भी होता है जो अपने में खराब है। जब कोई सरकार ईमानदार नहीं है तो वह विपक्षी दल के विरूद्ध भुनभुनाने लगती है। हम आरोप, बदनाम करने वाली बातें, बुरी बातों को सुनते हैं। एक-दूसरे की टीका-टिप्पणी करना हमारे लिए प्रतिदिन का आहार है जो हमारे व्यक्तिगत जीवन, परिवार, पल्ली, धर्मप्रांत और सामाजिक स्तर पर चलता रहता है।

येसु का सवाल

यह सच्चाई को नजरअंदाज करना है जिसके द्वारा हम लोगों के सोचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। येसु इस बात से वाकिफ हैं और वे इस फुसफुसाहट को दोष देने के बदले एक सवाल करते हैंं। जिस तरह फरीसी येसु पर दोष लगाने के उद्देश्य से उनसे सवाल पूछते हैं येसु उसकी तर्ज पर उन्हें एक सावल पूछते हैं। “तुम में से कौन है जो 99 भेड़ों को छोड कर एक खोई हुई भेड़ की खोज हेतु नहीं जायेगा, जब तक वह उसे नहीं पा ले।”

“हम उस खोई हुई को छोड़ दें, हमारे पास बाकी अन्य हैं हम उनकी चिंता करें।” यह फरीसी सोच है। शास्त्री ऐसा सोचते हैं। यही कारण है कि वे पापियों और नाकेदारों के पास नहीं जाते हैं। “हम अपने को इन लोगों से अशुद्ध न करें, यह एक जोखिम है।” हमारे पास जो हैं हम उनकी चिंता करें। “तुम में से कौन है” येसु का यह सवाल तर्कपूर्ण है, लेकिन कोई भी इसे सही नहीं कहता, वे सब इसे नकारते हैं। “मैं, ऐसा नहीं कर सकता हूँ।” यही कारण है कि वे दूसरों को क्षमा करने, दया दिखाने औऱ दूसरों का स्वागत करने हेतु असमर्थ हैं।

येसु की सोच दुनियावी सोच से भिन्न

अपने प्रवचन के अंत में संत पापा ने कहा कि “साक्ष्य”जो अपने में उत्तेजक है जो कलीसिया को विकसित करता है। “भुनभुनाहट”हमारे लिए रक्षक के समान है जो हमें आंतरिक रुप में घायल होने से बचाता है जबकि तीसरा येसु का “सवाल”है। संत पापा ने कहा कि ऐसे लोग खुशी और महोत्सव को नहीं समझते, जो फरीसियों और शास्त्रियों की राह में चलते हैं। हम प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें सुसमाचार के तर्क को अपने जीवन में समझने की कृपा दे जो दुनिया के तर्क से भिन्न है।

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08 November 2018, 16:55
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