संत पापाः अपने आदर्श को दुनिया में जीये
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने फ्रांसिस्कन परिवार के सदस्यों को प्रेषित एक पत्र में इस बात के लिए आग्रह किया कि वे अपने संस्थापक के आदर्श-भातृत्व, विनम्रता औऱ निर्धनता में बने रहते हुए दुनिया में सुसमाचार का सच्चा साक्ष्य प्रस्तुत करें।
1223 का रेगोला बुलटा
संत पापा ने फ्रांसिस ने, संत पापा होनोरियस III द्वारा असीसी के संतट फ्रांसिस के धर्म सिद्धातों की औपचारिक पुष्टि की 800वीं शताब्दी के अवसर पर फ्रांसिस्कन धर्मसमाज के सदस्यों को प्रेषित अपने पत्र में कहा कि आप का दुनिया भर में यात्रा करने का अर्थ है “भाईचारे और शांतिपूर्ण जीवन शैली में अपनी यात्रा को साकार करना” और यह सभी ख्रीस्तीयों को अपने में सम्माहित करता है कि वे “बाहर जाने वाली कलीसिया बनें।”
नियम (रेगोला बुलटा) को औपचारिक रूप से आज से 800 साल पहले 29 नवंबर 1223 को निर्देशित किया गया था जिसे बुल “सोलेरे एनुएरे” में मान्यता दी गई थी।
संत पापा फ्रांसिस का पत्र रोम के संत जॉन लातारेन के महागिरजाघऱ में बुधवार को आयोजित एक पवित्र धर्मविधि के दौरान पढ़ी गयी, जिसकी अध्यक्षता रोम धर्माप्रांत के विकर जेनेरल कार्डिनल एंजेलो दो डोनातिस ने की। इस उत्सव में संत फ्रांसिस द्वारा स्थापित तीन धर्मसंघों के धर्मबंधु, धर्मबहनों औऱ लोकधर्मियों ने ख्रीस्तीय समारोह में भाग लिया।
धर्मग्रंथ से जुडे रहें
अपने संदेश में, संत पापा ने कहा कि शताब्दी “एक शुभ अवसर” है न केवल एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को याद करने का, बल्कि उससे भी बढ़कर, "उस भावना को पुनर्जीवित करने का जिससे असीसी के संत फ्रांसिस प्रेरित हुए और अपना सब कुछ त्याग दिया। उन्होंने एक आकर्षक जीवन को जन्म दिया जो सुसमाचार में आधारित है।
“यह जयंती हर किसी के लिए ...कलीसिया के लिए नये प्रेरिताई का समय हो जो हमें उस दुनिया से मिलने के लिए बाहर जाने को कहती है जहां कई भाई-बहन सांत्वना, प्यार और देखभाल की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
इसलिए, संत फ्रांसिस के नियम से प्रेरणा लेते हुए, आप सबसे पहले "गरीबी, विनम्रता और सुसमाचार का पालन करे”, “आज्ञाकारिता में, बिना किसी चीज के प्रति असक्त हुए शुद्धता में जीवन व्यतीत करें।”
यह याद करते हुए कि संत फ्रांसिस ने "सुसमाचार को अपने अस्तित्व के केंद्र में रखा”, संत पापा ने अपने पत्र में “एक ईसाई और बपतिस्मा संबंधी प्रतिबद्धता की नींव पर लौटने के महत्व पर जोर दिया, जो हर विकल्प में, प्रभु के वचन से प्रेरित होने में सक्षम है।” “मसीह आपकी आध्यात्मिकता का केंद्र बिंदु है। अतः आप ऐसे पुरुष और महिला बनें जो वास्तव में उसके स्कूल में "शासन और जीवन" सीखते हैं।”
कलीसिया के प्रति आज्ञाकारिता
संत पापा ने धर्मसंघ के नियमों के आधार पर आज्ञाकारिता पर बल दिया जो धर्म समाज का आवरण है। आसीसी के संत फ्रांसिस ने कलीसिया के प्रति आज्ञाकारिता और शुद्धता के उस बंधन में जो उसे वैश्विक कलीसिया से संयुक्त करत था, अपनी बुलाहट के प्रति निष्ठा और यूख्ररीस्तीय में मसीह को प्राप्त करने की एक अनिवार्य विशेषता को पहचाना और यही कारण है कि उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के घोषणा की कलीसिया से उसका सम्मोहक संबंध है। “कलीसिया का समर्थन करने में दृढ़ रहें, उदाहरण और गवाही के साथ इसकी मरम्मत करें, तब भी जब आप को ऐसा लगता हो कि इसका मूल्य अधिक है।”
दुनिया में जाना
अपने संदेश पत्र के अंत में, संत पापा फ्रांसिस ने फ्रांसिस्कन धर्मबंधुओं और धर्मबहनों से “संकोच न करने” का आह्वान किया गया। वे दुनिया में जाकर “गरीबी का आनंद साझा करें, एक शानदार सुसमाचार प्रचार का संकेत बनें, और हमारे युग को दिखाएं, जो युद्धों और संघर्षों से चिह्नित है, स्वार्थ, पर्यावरण को दोहन और गरीबों के शोषण से भरा है, कि सुसमाचार वास्तव में मनुष्य के लिए शुभ संदेश है।
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि उन्हें धर्मसंघ भर भरोसा है जो आदर्श में साहसपूर्वक और ईमानदारी से जवाब देने के सही तरीके की पहचान करने की क्षमता ऱखता है। उन्होंने धर्मसंघ से सभी सदस्यों को माता मरिया संत फ्रांसिस और क्लेयर ऑफ असीसी की मध्यस्थता का आह्वान किया।
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