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2023.11.06  खूंटपानी, जमशेदपुर। 2023.11.06 खूंटपानी, जमशेदपुर।  

छोटानागपुर में प्रथम बपतिस्मा की 150वीं संक्षिप्त इतिहास

छोटानागपुर की काथलिक कलीसिया 8 नवम्बर 2023 को अपने इतिहास की उस महान घटना की याद करेगी, जब उसके विश्वासियों ने 150 साल पहले, पहली बार बपतिस्मा ग्रहण किया था। छोटानागपुर में प्रथम बपतिस्मा की 150वीं जयन्ती समारोह में वाटिकन के प्रेरितिक राजदूत महाधर्माध्यक्ष लेओपोल्दो जिरेली सिनॉडल कलीसिया एवं 150वीं जयन्ती के स्मारक का उद्घाटन भी करेंगे।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

जमशेदपुर, सोमवार, 6 नवंबर 2023 (वीएन हिन्दी) : छोटानागपुर जिसमें आज पश्चिम बंगाल, बिहार (जिसमें वर्तमान झारखंड शामिल था) और उड़ीसा के क्षेत्र आते हैं, उसके पूर्वजों ने पहली बार चाईबासा के खूंटपानी में बपतिस्मा संस्कार ग्रहण कर, काथलिक धर्म स्वीकार किया था।

हजारीबाग के धर्माध्यक्ष आनन्द जोजो ने बतलाया कि यह छोटानागपुर की कलीसिया के लिए एक बहुत बड़ी घटना है। कार्यक्रम के अनुसार 8 नवम्बर को जयन्ती महोत्सव पवित्र मिस्सा के साथ सम्पन्न होगा। पवित्र मिस्सा सुबह 9 बजे शुरू होगा, जिसके पूर्व प्रेरितिक राजदूत लेओपोल्दो जिरेल्ली अपने कर -कमलों से सिनॉडल कलीसिया एवं 150वीं जयन्ती के स्मारक का उद्घाटन करेंगे।

छोटानागपुर काथलिक मिशन की स्थापना का श्रेय जेस्विट मिशनरी फादर अगुस्तुस स्टॉकमैन को जाता है, जिन्होंने सन् 1869 ई. में चाईबासा की भूमि में सबसे पहले अपना पाँव रखा था। उसके बाद 8 नवम्बर 1873 को कलकत्ता के धर्माध्यक्ष वालतेरूस स्टेन्स एस. जे. ने खूँटपानी में 28 लोगों को पहला बपतिस्मा संस्कार दिया, जो छोटानागपुर के पहले काथलिक बने।

जिस स्थान पर प्रथम ख्रीस्तियों ने बपतिस्मा ग्रहण किया, वहाँ आज एक तीर्थस्थल स्थापित है, जिसमें एक ग्रोटो, स्कूल, हॉस्टेल, कानूनी सहायता केंद्र, अर्ध पैरिश भी बन चुके हैं।

छोटानागपुर में आज 7 धर्मप्रांत हैं। कोलहान क्षेत्र की कलीसिया में कुल 16 पल्लियाँ, 5 जूनियर कॉलेज, 12 उच्च विद्यालय, 13 मध्यमिक विद्यालय, 5 समाज सेवा केंद्र, 9 अस्पताल एवं स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और 18 धर्मसंघ हैं।

काथलिकों की कुल संख्या 8,61,761 है जो झारखंड की कुल आबादी का 3.86 प्रतिशत है।

जमशेदपुर धर्मप्रांत में विश्वास यात्रा

1845 में राँची और छोटानागपुर के आसपास के क्षेत्रों में गोस्सनर एवंजेलिकल लूथरन कलीसिया ने सुसमाचार का प्रचार शुरू किया। 9 जून 1850 को रांची में चार उराँवों ने लूथरन कलीसिया में पहला बपतिस्मा लिया।

1859 में इस पृष्ठभूमि में बंगाल मिशन को बेल्जियम के येसु समाजियों को सौंपा गया। मिशन क्षेत्र में पश्चिम बंगाल, बिहार (जिसमें वर्तमान झारखंड शामिल था) और उड़ीसा थे।

24 नवंबर 1868 को फादर अगुस्तुस स्टॉकमैन, एस.जे. बंगाल (मिशन) के मिदनापुर से छोटानागपुर के पश्चिमी भाग चाईबासा आये ताकि आदिवासियों के बीच मिशन कार्य शुरू करने की संभावना पर अध्ययन कर सकें।

10 जुलाई 1869 को फादर स्टॉकमैन, एस.जे. को चाईबासा में एक पल्ली शुरू करने का काम सौंपा गया

और उन्होंने चाईबासा में संपत्ति खरीदी, जहाँ वर्तमान में "दिव्य भारती" है।

8 नवंबर 1873 को, चार साल की लगातार मेहनत के बाद 28 लोगों ने झारखंड के चाईबासा के पास खूंटपानी में मुंडा जनजाति से काथलिक बपतिस्मा प्राप्त किया। यह पूरे छोटानागपुर में पहला बपतिस्मा था। वे बुरूडी-कोचांग से आजीविका की तलाश में आये थे।

3 मई 1874 को क्रूस की पुत्रियों (एफ.सी.) की दो धर्मबहनें मिशन में मदद करने चाईबासा आईँ।

12 जून 1874 को सभी नव बपतिस्मा प्राप्त मुंडा आदिवासी वापस बुरूडी-कोचांग​​ चले गये। क्रूस की पुत्रियाँ धर्मबहनें और फादर अगुस्तुस भी उनके साथ आये।

1875 में येसुसमाजी रांची चले गए, क्योंकि 'नया विश्वास' चाईबासा क्षेत्र के सबसे स्थानीय "होस" लोगों को पसंद नहीं आया। जबकि रांची में आदिवासियों के बीच धर्म प्रचार अधिक उज्ज्वल था।

चाईबासा पल्ली की देखभाल पश्चिम बंगाल और रांची मिशन से की गई और चाईबासा में मिशन 1909 से 1932 तक बंद रहा।

1832 में चाईबासा मिशन को जेसुइट पुरोहितों ने फिर खोला।

1935 में बंगाल मिशन को 'कलकत्ता' और 'रांची' मिशन में विभाजित किया गया।

1947 में नया जमशेदपुर मिशन को कलकत्ता से अलग कर दिया गया। रांची जेस्विट मिशनरियों ने इसे अमरीका के मेरी लैंड प्रोंविस को सौंप दिया।

मेरी लैंड येसुसमाजियों ने पहले से ही स्थापित मिशन को अपनाया और बंगाल फिर गोलमुरी, बिस्टुपुर, परसुडीह, बंदगांव, चाईबासा, चक्रधरपुर, राज आनंदपुर और धनबाद आदि पल्लियों की स्थापना की। यह जमशेदपुर मिशन के विस्तार और विकास का समय था।

जमशेदपुर मिशन की एक उल्लेखनीय बात है कि जेसुइट मिशनरियों ने ईश वचन, धर्मशिक्षा और अन्य प्रेरितिक मार्गदर्शन को हो भाषा में सिखाया। प्रतिष्ठित मिशनरी, फादर जॉन डीनी, एस.जे., जिन्हें स्थानीय 'होस' लोगों के प्रेरित मानते थे, ने निस्वार्थ सेवा की।

12 जुलाई 1962 को जमशेदपुर धर्मप्रांत की स्थापना हुई। अति माननीय लॉरेंस ट्रेवर पिकाची, एस.जे., (सेंट जेवियर्स कॉलेज, कलकत्ता के तत्कालीन रेक्टर) प्रथम धर्माध्यक्ष नियुक्त हुए। 1964 तक वहाँ कोई धर्मप्रांतीय पुरोहित नहीं थे। उसके बाद रांची के फादर जॉन बोदरा, ने नये धर्मप्रांत में प्रवेश किया और उसके बाद फादर सी.आर. प्रभु और फादर. टी.जे. कुरुविला ने 1966 में धर्मप्रांत में प्रवेश किया।

आज अनेक धर्मप्रांतीय पुरोहितों, येसु समाजी पुरोहितों और अन्य पुरुष एवं महिला धर्मसमाजीियों ने अपना जीवन समर्पित कर, खूंटपानी में प्रथम मिशनरी फादर अगुस्टीन स्टॉकमैन, एस.जे. द्वारा बोये गये बीज को बढ़ने और फलने फूलने में मदद दे रहे हैं।

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06 November 2023, 16:22