भारत के तिरस्कृत ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति सिस्टर अमिता की प्रतिबद्धता
गुदरून सेलर
वाटिकन सिटी, मंगलवार 11 जुलाई 2023 (रेई, वाटिकन न्यूज) : वे भीख मांगकर और वेश्यावृत्ति करके जीवन यापन करते हैं और हर कोई, यहां तक कि उनके माता-पिता भी, "अलग" होने के कारण उनका तिरस्कार करते हैं। कौन हैं ये? भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के ट्रांसजेंडर या हिजड़ा लोग। साल्वातोरियन सिस्टर अमिता पोलिमेटला इस स्पष्ट रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदाय के सदस्यों के साथ हैं और उनके सम्मानित जीवन जीने के अधिकार लिए काम करती हैं।
"आंध्र प्रदेश में ट्रांसजेंडर लोग समाज में सबसे अधिक भेदभाव वाले समूह हैं," 39 वर्षीय सिस्टर अमिता बताती हैं, जिन्होंने इस समुदाय के साथ कई वर्षों तक काम किया है। "मुझे नहीं लगता कि ऐसे लोगों का कोई अन्य समूह है जो अपने माता-पिता द्वारा बहिष्कृत हैं, भाई-बहनों द्वारा उपहास किया जाता है, पड़ोसियों द्वारा दुर्व्यवहार किया जाता है और अपने खुद के परिवारों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।"
अनुमानतः पाँच लाख से अधिक हिजड़े उपमहाद्वीप में रहते हैं। भारत की बहुआयामी संस्कृति में उनका अस्तित्व कई शताब्दियों से प्रमाणित है। इन्हें हिजड़ा कहा जाता है। शारीरिक रूप से लड़के, परंतु लड़कियों की तरह महसूस करते हैं और व्यवहार करते हैं।
सिस्टर अमिता बताती हैं, "किशोरावस्था में, उन्हें महिला व्यवहार के पैटर्न का पता चलता है। कभी-कभी परिवार के सदस्य या दोस्त इस पर सबसे पहले ध्यान देते हैं।" फिर उनकी जिंदगी बदल जाती है। बहिष्करण तुरंत शुरू होता है, यहां तक कि स्कूल भी उन ट्रांसजेंडर युवाओं के लिए कुछ नहीं करता, जिन्हें हर कोई परेशान करता है। सिस्टर अमिता बताती हैं, "अपने परिवारों द्वारा अस्वीकार किए जाने पर, वे अपनी पहचान की तलाश में अपने घर से भाग जाते हैं, मुख्य रूप से वे शहरों की ओर पलायन करते हैं जहां वे भीख मांगना और वेश्यावृत्ति करना शुरू करते हैं। क्योंकि भारतीय समाज में ट्रांसजेंडर संस्कृति में यही तरीका है। उनके पास जीविकोपार्जन का कोई दूसरा तरीका नहीं है।"
सिस्टर अमिता ने आंध्र प्रदेश में ट्रांसजेंडर समुदायों पर अपनी पीएचडी थीसिस लिखा। लेकिन कुछ साल पहले तक उसे इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि वे कौन थे। एक दिन बेंगलुरु जाने वाली ट्रेन में उसने देखा कि पुरुष महिलाओं के कपड़े पहने हुए, मेकअप किए हुए और सजावटी सामान पहने हुए भीख मांग रहे थे और आक्रामक हो रहे थे। "हर किसी ने अपना सिर घुमा लिया। कोई भी उन्हें देखना, उनसे बात करना या यहां तक कि उन्हें पैसे देना नहीं चाहता था। फिर उन्होंने पुरुषों को छुआ ताकि वे उन्हें कुछ पैसे दे सकें।" उनके उत्तेजक रूप और व्यवहार ने उसे परेशान कर दिया।
उसके बाद, सिस्टर ने छात्रों को यह पता लगाने के लिए भेजा कि वास्तव में क्या हो रहा था। उन्हें बताया गया कि वे हिजड़े हैं, जो जीवित रहने के लिए भीख मांगते हैं और वेश्यावृत्ति करते हैं। "मैं हैरान थी। मैंने उनके बारे में पढ़ना शुरू किया। एक दिन, जब मैं अपने हॉस्टल से बाहर आ रही थी, एक हिजड़ा महिला सीधे मेरी ओर चली आई। मैं घबरा गयी, समझ नहीं पा रहा था कि क्या प्रतिक्रिया दूँ। डर के मारे, मैं बस मुस्कुरायी और पूछी, 'आप कैसी हैं?' महिला रोने लगी और उसने अपनी कहानी मेरे साथ साझा की। यह पहली बार था जब मुझे वास्तव में समझ आया कि इन लोग के साथ कितना भेदभाव किया जाता हैं, और वे कितनी बेसब्री से स्वीकार किए जाने को चाहते हैं।"
एक साल्वातोरियन धर्मबहन के रूप में, अमिता पोलिमेटला यह सोचने की आदी है कि वह लोगों को कैसे बचा सकती है और उनका उत्थान कर सकती है। "मसीह हमेशा समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के पक्ष में हैं: पापी, चुंगी लेने वाले, वेश्याएं, अछूत, गरीब।" वे इस बात से आश्वस्त है कि येसु हिजड़ों से दूर नहीं भागेंगे क्योंकि वे चरम अस्तित्व की परिधि में रहते हैं। बंदरगाह शहर विशाखापटनम में उसने और उसकी धर्मबहनों ने नी थोडू सोसाइटी की स्थापना की, जो हिजड़ों के लिए एक संपर्क केंद्र है। सिस्टर अमिता भी, “यह पता लगाने की कोशिश करती हैं कि वे कहाँ रहते हैं और फिर वे वहाँ जाती हैं। वे बताती हैं, “मैं उनसे बात करती हूँ और उनकी कहानियां रिकॉर्ड करती हूँ।' मैं उनके, सरकार और उनके रिश्तेदारों के बीच एक पुल बनने की कोशिश करती हूँ। हम हिजड़ा समुदाय, माता-पिता और आम जनता के लिए प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।" भविष्य की योजनाओं में एक ट्रांस हेल्पलाइन स्थापित करना और आश्रय प्रदान करना शामिल है।
भारत ने 2014 में ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी। 2020 में, सरकार ने आईडी कार्ड जारी करना शुरू किया। राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर प्रमाणपत्र और पहचान पत्र प्राप्त करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ट्रांस महिलाओं को राज्य स्वास्थ्य प्रणाली में नामांकन करने और अन्य सभी सरकारी सहायता जैसे कि खाद्य राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पेंशन भत्ता आदि प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। लेकिन राह कठिन है। सिस्टर अमिता कहती हैं, ''90 प्रतिशत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र नहीं है क्योंकि वे अपने साथियों से परेशान होकर स्कूल पूरा नहीं कर पाते हैं।'' बहुत से लोग अशिक्षित हैं और अपने नागरिक अधिकारों के बारे में अनभिज्ञ हैं। "हम उन्हें उनके पहचान पत्र के लिए आवेदन करने में मदद करते हैं, जो जटिल है। हम उनके साथ नोटरी तक जाते हैं जहां वे अपनी ट्रांसजेंडर पहचान घोषित करते हैं।"
साल्वातोरियन सिस्टर का मानना है कि ट्रांस महिलाओं को उनके गैर-अनुरूप व्यवहार के लिए निंदा करना गलत दृष्टिकोण है। उन्होंने अपना प्राकृतिक रुझान नहीं चुना, लेकिन इसके लिए उन्हें गंभीर सामाजिक कलंक स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सिस्टर अमिता स्वीकार करती है, निश्चित रूप से, तीसरे लिंग का प्रश्न भी कलीसिया के लिए प्रश्न खड़ा करता है। "लेकिन सच तो यह है कि कुछ बच्चे इसी तरह पैदा होते हैं। हमें उन्हें बदलने की कोशिश किए बिना, उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसे वे हैं, उनकी मदद करनी चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए।"
साथ ही, सिस्टर अमिता का कहना है कि समाज में ट्रांस लोगों की गैर-भागीदारी ख्रीस्तीय दृष्टिकोण से बेहद अन्यायपूर्ण है। "इस तरह के रुझान वाले लोग हैं, इस तरह के हार्मोनल असंतुलन या क्रोमोसोम असंतुलन के साथ लोग हैं। सदियों से, इस वजह से उनके विकास में बाधा उत्पन्न हुई है। हम और कितने वर्षों तक उन्हें इस तरह से नजरअंदाज कर सकते हैं? अब समय आ गया है कि हम स्वीकार करें ये लोग जैसे हैं वैसे ही हैं और हम अपने संसाधनों से उनकी मदद करें, ताकि वे इस समाज में एक सम्मानजनक जीवन जी सकें।"
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