खोज

एशिया महाद्वीप का सिनॉड दस्तावेज एशिया महाद्वीप का सिनॉड दस्तावेज 

एशिया की कलीसिया: 'अपने जूते उतारना' सिनॉडल यात्रा की अभिव्यक्ति

एशिया की कलीसिया ने सिनॉड (धर्माध्यक्षीय धर्मसमभा) के महाद्वीपीय स्तर पर लोगों की आवाज एवं उनके प्रत्युत्तर के अंतिम दस्तावेज को प्रकाशित किया है।एशिया की कलीसिया के लिए : “अपने जूते उतारना... विनम्रता और आशा में एक साथ यात्रा करते हुए कलीसिया के हमारे अनुभव को संबंधपरक, प्रासंगिक और मिशनरी के रूप में व्यक्त करना है।”

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

एशिया की कलीसिया ने सिनॉड (धर्माध्यक्षीय धर्मसमभा) के महाद्वीपीय स्तर पर लोगों की आवाज एवं उनके प्रत्युत्तर के अंतिम दस्तावेज को प्रकाशित किया है, जिसकी विशेषता एक प्राचीन पारंपरिक एशियाई प्रथा के माध्यम से व्यक्त होती है।

एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के संघ (एफएबीसी) ने 16 मार्च को धर्मसभा पर एशियाई महाद्वीपीय सभा का अंतिम दस्तावेज जारी किया।

दस्तावेज, 17 धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों और पूर्वी कलीसिया के दो धर्मसभाओं की प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण का फल है, साथ ही 24-26 फरवरी को बैंकॉक में हुई महाद्विपीय सभा में धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों के अध्यक्षों और प्रतिनिधियों के विचार-विमार्श का परिणाम है।

महाद्विपीय दस्तावेज के लिए एशिया का जवाब

4.6 बिलियन लोगों और दुनिया के कई अरबपतियों का घर एशिया, लगभग 150 मिलियन या कुल आबादी का लगभग 3.31% काथलिक आबादी की मेजबानी करता है।

अंतिम दस्तावेज में कहा गया है, हालांकि काथलिक कलीसिया अल्पसंख्यक है,  किन्तु "शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक कल्याण और समाज में गरीब और हाशिए पर जीवनयापन करनेवाले समूहों तक पहुंचने के क्षेत्र में इसका बहुत बड़ा योगदान देता है।"

एशिया में सिनॉडल प्रक्रिया, ईश्वर की कृपा से, ऐसे समय में सम्पन्न हुआ जब एशियाई काथलिक धर्माध्यक्षीय संघ ने अपना 50वाँ सम्मेलन आयोजित किया था, जिसको अक्टूबर 2022 को सम्पन्न किया गया। दस्तावेज में गौर किया गया है कि कुछ देश "जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से कई लोगों को शामिल करने में सक्षम रहे, जबकि अन्य केवल लोगों के छोटे समूहों को इकट्ठा कर पाये।"

इसमें योगदान करनेवाली एक सीमा यह थी कि "महाद्वीपीय चरण (डीसीएस) के लिए दस्तावेज को एशिया में बोली जानेवाली कई स्थानीय भाषाओं में अनुवाद नहीं किया जा सका।

महाद्विपीय चरण के लिए एशियाई प्रतिक्रया

महाद्विपीय चरण के द्वारा पहली गूंज के रूप में "कलीसिया के प्रति गहरे प्रेम" को "खुशी, उदासी, दुर्बलता और चोट जैसी विभिन्न भावनाओं" के माध्यम से व्यक्त किया गया।

सिनॉडल प्रक्रिया ने एशिया की स्थानीय कलीसिया को अपनी विशिष्ठ पृष्टभूमि एवं समृद्ध संस्कृति के बारे जागरूक किया, साथ ही इस बात को भी सामने रखा कि एशिया में अनेक ख्रीस्तीय अपने विश्वास के लिए कई प्रकार के भय में जीते हैं, उन्हें इसके लिए दुःख सहना पड़ता है जो एक “नये प्रकार की शहादत है।”  

एशिया की कलीसिया में कई प्रकार के घाव हैं, जैसे : "वित्तीय, अधिकार क्षेत्र, विवेक, अधिकार और यौन दुर्व्यवहार," "शासन और निर्णय लेने में महिलाओं के पर्याप्त समावेश की कमी," "समझ की कमी और लोगों के कुछ समूह को पर्याप्त प्रेरितिक देखभाल प्रदान करने में कलीसिया की विफलता जो अक्सर स्वीकृत महसूस किये जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, "व्यक्तिवाद, उपभोक्तावाद और भौतिकतावाद जैसी विचारधाराओं की घुसपैठ," और "दमनकारी शासन" द्वारा कलीसिया की आवाज को शांत करना आदि।

नया रास्ता

अंतिम दस्तावेज में कहा गया है कि “आनन्द और पीड़ा” ही एक सिनॉडल कलीसिया के प्रेरितिक दृष्टिकोण में एक नये दृष्टिकोण की ओर बढ़ने हेतु “अवसर” प्रदान कर सकता है।

“कलीसिया को समावेश की भावना से शुरू होना चाहिए जहाँ तम्बु के अंदर हर व्यक्ति स्वागत किया गया एवं अपनेपन का एहसास कर सके। ईश प्रजा के रूप में किसी का बहिष्कार नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे कमजोर और दुर्बल ही क्यों न हों, सिनॉडल कलीसिया के लिए कलीसिया के अंदर समावेश की भावना होना अति आवश्यक है।”

एशिया में कई विविधता में धर्मों की पृथकता कलीसिया को वार्ता, शांति निर्माण, मेलमिलाप और सौहार्द लाने में सहभागी होने के लिए मजबूर करता है। वास्तव में, कुछ स्थलों में वार्ता के लिए पहल काथलिक कलीसिया की ओर से की गई है और ऐसे भी समय होते हैं जब आपसी बातचीत आगे नहीं बढ़ती हैं।

दस्तावेज में संवाद के संबंध में एशिया की कलीसियाओं में व्यक्त कुछ आपत्तियों पर भी गौर किया गया है। बहरहाल, एशिया में "अंतर्मुखी कलीसिया" की तुलना में "अधिक मिशनरी, समुदायवादी और एकीकृत दृष्टिकोण" के माध्यम से "मिशन एड-एक्स्ट्रा" की ओर बढ़ने की एक "मजबूत भावना" है।

एशिया में एक आम तनाव

अंतिम दस्तावेज इस बात की ओर भी ध्यान आकृष्ट करता है कि कलीसिया का निर्माण करनेवाली विभिन्न वास्तविकताओं के बीच एक "विभाजन" है जो अक्सर "नेतृत्व शैलियों से प्रोत्साहित है जो दूसरों को उनके बपतिस्मा के बुलावे को सच्चे शिष्य के रूप में जीने देने से रोक देता है।”

इस समस्या से ऊपर उठने के लिए लोकधर्मियों की प्रेरिताई को विस्तृत किया जाना, प्रचारकों की प्रेरिताई को लागू करना, पद के प्रयोग में पारदर्शिता एवं जवाबदेही होना, पुरोहिताई के लिए बुलाहट में कमी और गिरजाघरों में युवाओं की कमी के कारणों की पुनः जाँच की जानी और कलीसिया के जीवन और मिशन में विभिन्न "गरीबी" का अनुभव करनेवाले लोगों को शामिल किया जाना चाहिए। अंतिम दस्तावेज में धर्मसमाजियों के बीच तनाव एवं याजकवाद की समस्या का भी जिक्र किया गया है।

नवीन सुसमाचार प्रचार हेतु एशिया का सहयोग

यह स्वीकार करते हुए कि एशिया में बड़ी संख्या में लोग शरणार्थी या विस्थापित रूप में हैं, दस्तावेज स्वीकार करता है कि उनमें से कई "सुसमाचार के मिशनरी बन गए हैं जो न केवल अपने जीवन के अनुभवों बल्कि अपने विश्वास का भी प्रचार करते हैं।"

इस प्रकार, कलीसिया द्वारा उन्हें शामिल करने का एक तरीका है "नए प्रचारकों के रूप में इस यात्रा पर उन्हें एकीकृत करना और उनका साथ देना।"    

एशिया महाद्वीप के लिए सिनॉड में प्रस्तुत अंतिम दस्तावेज में छह प्राथमिकताओं की पहचान की गई है: प्रशिक्षण, समावेशिता और आतिथ्य, मिशनरी शिष्य, जवाबदेही और पारदर्शिता, प्रार्थना और उपासना एवं पर्यावरण।

इनमें से प्रत्येक क्षेत्र सिनॉडल कलीसिया के लिए आवश्यक पहलू की पहचान करता है जो "पृथ्वी के चेहरे को नवीनीकृत करना चाहते हैं" येसु का अनुसरण करते हुए जो "सब कुछ को मुक्त करने और सब कुछ में सामंजस्य स्थापित करने के लिए आये थे।"

अपने जूते उतारना

एशिया में सिनॉडल प्रक्रिया का सार प्रस्तुत करते हुए, अंतिम दस्तावेज एशिया में एक घर या मंदिर में प्रवेश करने से पहले जूते उतारने की सांस्कृतिक प्रथा का संकेत देता है। यह "सम्मान का संकेत" है और "उन लोगों के बारे में जागरूकता है जिनके जीवन में हम प्रवेश कर रहे हैं।"

मूसा द्वारा ईश दर्शन का गहरा अनुभव, हमें याद दिलाता है कि हम "पवित्र भूमि पर खड़े हैं," इस प्रकार हमें "पृथ्वी के बारे में जागरूक" बनाता है कि "हम रक्षा और देखभाल करने के लिए बुलाये गये हैं।" एशिया के लिए, यह सिनॉडल यात्रा का एक "सुंदर प्रतीक" है जिसका वे अनुभव कर रहे हैं। यह उन्हें बिना किसी पूर्वाग्रह के सुनने के लिए आवश्यक सम्मान, एकता के बजाय विभाजन पैदा करनेवाले प्रतीकों को हटाने की आवश्यकता की याद दिलाता है। इस प्रकार एशिया की कलीसिया के लिए : “अपने जूते उतारना... विनम्रता और आशा में एक साथ यात्रा करते हुए कलीसिया के हमारे अनुभव को संबंधपरक, प्रासंगिक और मिशनरी के रूप में व्यक्त करना है।”

 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

28 March 2023, 16:07