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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर  (©khanchit - stock.adobe.com)

भारत के ख्रीस्तियों पर हिंसक हमले, अनेक घायल, बेघर

तथ्य की खोज करनेवाली टीम का कहना है कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी ख्रीस्तियों को पीटा गया, उन्हें दक्षिणपंथी हिंदुओं के अभियान में धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटकिन सिटी

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में हजारों ख्रीस्तियों के लिए हमलों की एक श्रृंखला के कारण मायूस क्रिसमस के बाद, अब नए साल की शुरूआत भी हमलों  के साथ हुई जिसमें 1,000 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा और कई घायल हो गये हैं।हमला करनेवालों ने २ जनवरी को भी गिरजाघर में तोड़ -फोड़ की और लोगों को पीटा। 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों की एक तथ्यान्वेषी टीम ने 22 दिसंबर से तीन दिनों के लिए दो प्रभावित जिलों नारायणपुर और कोंडागांव का दौरा किया।

सामाजिक बहिष्कार और हिंसा ने सैकड़ों आदिवासी ईसाइयों को अपने घरों से भागने पर मजबूर कर दिया है, जिसकी शुरूआत दिसंबर के दूसरे सप्ताह में हुई है।

जब लोगों ने ख्रीस्तीय धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया, तब नारायणपुर के करीब 18 और कोंडागांव के 15 गांवों पर संदिग्ध दक्षिणपंथी हिंदुओं ने हमला किया, लोगों की खुलेआम पिटाई की गई, जिससे कई लोग घायल हो गए हैं।

टीम के अनुसार "विकलांग लोगों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को भी निशाना बनाया गया।"

तथ्य की खोज करनेवाली टीम ने राजधानी नई दिल्ली में एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि पीड़ितों की उनके गांवों में वापसी की सुविधा के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए।

सामाजिक समरसता के लिए काम करनेवाले सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म के निदेशक इरफान इंजीनियर के नेतृत्व में तथ्यान्वेषी दल ने कहा कि ख्रीस्तीय धर्म के कारण लोगों पर हमला किया गया और उन्हें विस्थापित किया गया।

टीम के मुताबिक विकलांग लोगों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को भी निशाना बनाया गया।

जिस दल के सदस्यों को ऑल-इंडिया पीपुल्स फोरम, ऑल-इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम से लिया गया था, उन्होंने उन राहत शिविरों का दौरा किया जहां विस्थापित ख्रीस्तियों को रखा गया है।

इसने अधिकारियों से कहा कि जब तक पीड़ित अपने-अपने गांव लौटने की स्थिति में नहीं हो जाते, तब तक शिविरों में बुनियादी सुविधाओं में सुधार किया जाए।

भारत के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) के जनजातीय मामलों के आयोग के सचिव फादर निकोलस बारला ने 29 दिसंबर को ऊका न्यूज को बताया कि "9 दिसंबर से 18 दिसंबर तक आदिवासियों पर हमलों की एक श्रृंखला की खबरें हैं।"

तथ्य की खोज करनेवाले टीम के सदस्य बरला ने कहा, "विस्थापित लोगों से कहा गया था कि वे अपने ख्रीस्तीय धर्म की निंदा करें और हिंदू धर्म में परिवर्तित हो जाएँ, ऐसा न करने पर उन्हें अपना गांव छोड़ना होगा या गंभीर परिणाम भुगतने होंगे, यहां तक ​​कि मौत भी।"

18 दिसंबर को अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए नारायणपुर में जिला कलेक्टर के कार्यालय के बाहर लगभग 1,000 पीड़ित ख्रीस्तीय इकट्ठे हुए। माना जाता है कि वे उग्र राष्ट्रवादी हिंदू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) संगठन से संबंधित हैं, जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का भी संरक्षक है।

बरला ने कहा, “कई लोगों पर बुरी तरह से हमला किया गया और बांस के डंडों, टायरों और छड़ों से पीटा गया। कॉलर बोन फ्रैक्चर जैसी चोटों के लिए कम से कम दो दर्जन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।”

तथ्य-खोज दल ने पुष्टि दी कि आदिवासी ख्रीस्तीयों के हिंदू धर्म में जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएँ हुई हैं।

आरएसएस ने अपने हिंदू धर्म को त्यागने के बाद अन्य धर्मों को अपनानेवाले लोगों को वापस लाने के लिए घर वापसी नामक एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है।

इरफान इंजीनियर ने कहा, "आदिवासी ख्रीस्तियों के जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।"

तथ्यान्वेषी दल ने नारायणपुर जिले के मदमनार गांव के निवासी मंगलु कोरम के हवाले से कहा कि उसे और 21 ख्रीस्तीय परिवारों के सदस्यों को एक मंदिर में ले जाया गया जहां पुजारी ने उन्हें जबरन हिंदू घोषित करने के लिए अनुष्ठान किया।

टीम ने बताया कि इसी तरह उदीदगांव के 18 परिवारों और फुलहदगांव और पुटनचंदागांव के तीन-तीन परिवारों का जबरन धर्मांतरण कराया गया।

टीम ने कहा कि उनके घरों पर छापेमारी के दौरान बाइबल की प्रतियाँ जब्त की गईं।

2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ की 30 मिलियन आबादी में ख्रीस्तियों की संख्या 2 प्रतिशत से भी कम है। लेकिन दक्षिणपंथी हिंदू समूहों का दावा है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।

आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ उन कई भारतीय राज्यों में से एक है जिसने धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया है। राज्य ने 2021 में ईसाइयों पर दूसरे सबसे अधिक दर्ज किए गए हमलों को भी देखा है।

इंजीनियर ने बताया कि ख्रीस्तियों को जबरन धर्मांतरित करने की योजना अक्टूबर 2022 में शुरू हुई। हालांकि, जिला प्रशासन ने शुरुआती चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया।

9 दिसंबर को हिंसक अभियान शुरू होने के बाद भी जिला प्रशासन ने कुछ नहीं किया। इंजीनियर ने कहा कि नारायणपुर जिले में पुलिस पीड़ितों की शिकायतों के बावजूद कार्रवाई करने में विफल रही।

महासमुंद जिले के टेमरूगांव में तीन ख्रीस्तियों को पीटा गया जबकि 15 से अधिक पुलिसकर्मी खड़े रहे।

इंजीनियर ने चेतावनी देते हुए कहा कि अपराधियों के दण्डमुक्ति का आनन्द लेने से, आदिवासी ख्रीस्तियों के खिलाफ हिंसा बढ़ती रहेगी।

टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पीड़ितों के खिलाफ पुलिस की ज्यादती के भी उदाहरण हैं।

यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष माइकल विलियम्स, जो भारत में ख्रीस्तियों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करता है, प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यह उच्च अधिकारियों के मौन समर्थन से आदिवासी ख्रीस्तियों को जबरन धर्मांतरित करने का एक निरंतर और संगठित अभियान था।

यह तुरंत बंद होना चाहिए। विलियम्स ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार भारत के संविधान में निहित है।

हमने 23 दिसंबर को राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है, विलियम्स ने कहा।

उन्होंने कहा, “आदिवासी ख्रीस्तियों के खिलाफ अपराधों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया जाना चाहिए, तथा घरों और प्रार्थना सभागार सहित क्षतिग्रस्त संपत्तियों के लिए मुआवजे की मांग की।”

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03 January 2023, 17:33