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महामारी के दौरान चार धर्मसमाज की धर्मबहनों दवारा लड़कियों के अधिकारों पर एक अध्ययन

रोम में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सुपरियर्स जनरल (यूआईएसजी) के मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में 6 देशों में कोविड-19 महामारी के दौरान लड़कियों के अधिकारों के संबंध में चार धर्मसमाज की धर्मबहनों ने एक अध्ययन प्रस्तुत किया। (सिस्टर बर्नाडेट रीस एफएसपी द्वारा)

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरुवार 15 दिसंबर 2022 : “द सिस्टर्स ऑफ अवर लेडी ऑफ चैरिटी ऑफ द गुड शेफर्ड”, “सलेसियन सिस्टर्स ऑफ डॉन बॉस्को”, “कोम्बोनी मिशनरी सिस्टर्स” और “सिस्टर्स ऑफ अवर लेडी ऑफ द मिशन्स” धर्मसमाज की धर्मबहनें एक अध्ययन पर सहयोग कर रही हैं जिसका शीर्षक है “लड़कियाँ कैसी हैं?”

अध्ययन से पता चलता है कि कैसे कोविड ने 6 अलग-अलग देशों इक्वाडोर, पेरू, दक्षिण सूडान, केन्या, भारत और नेपाल में लड़कियों के जीवन और अधिकारों को प्रभावित किया। इन धर्मसमाज की धर्मबहनों ने मिलकर बुधवार को रोम में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ सुपीरियर जनरल (यूआईएसजी) के मुख्यालय में अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए। दुनिया भर से अन्य लोग इस कार्यक्रम में ऑनलाइन शामिल हुए। काथलिक न्यूज सर्विस के वरिष्ठ संवाददाता कैरल ग्लैट्ज इस कार्यक्रम को मॉडरेट करने के लिए मौजूद थे।

यूआईएसजी के कार्यकारी सचिव, सिस्टर पेट्रीसिया मर्रे ने अध्ययन के महत्व को समझाते हुए कहा कि यह हमें भविष्य दिखाता है और हमें कैसे प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता है। लड़कियों द्वारा कोविड के दौरान अपने अनुभव के बारे में बताई गई जानकारी से "हमें दुनिया का एक स्नैपशॉट मिल रहा है।" उन्होंने कहा, “हालांकि, कोविड ने सभी को प्रभावित किया है, इसका युवा लोगों, विशेष रूप से युवा लड़कियों पर अधिक प्रभाव पड़ा है।”

अध्ययन की पृष्ठभूमि

प्रोजेक्ट कोर टीम की सदस्य और गुड शेफर्ड इंटरनेशनल फाउंडेशन की निदेशक क्रिस्टीना डुरांटी ने चार धर्मसमाजों के मिशन के बारे में कुछ संदर्भ प्रदान किया। उन्होंने बताया कि कोविड के दौरान ङी उनका कार्य बंद नहीं हआ, बल्कि, कई परियोजनाओं को बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बनाया गया, कभी-कभी उन बाधाओं पर काबू पाने के बारे में जिसे उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। इसमें न केवल कुछ परियोजनाओं को ऑनलाइन स्थानांतरित करना शामिल था, बल्कि अन्य सेवा, जैसे भोजन वितरण के लिए वे घर-घर गई।

उसने समझाया कि चारों धर्मसमाजों ने तब एक साथ मिलकर एक "अभूतपूर्व" अध्ययन करने का फैसला किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि लड़कियों के अधिकारों को कैसे बाधित किया गया था। उन्होंने 6 देशों को चुना और परिमाण संबंधी और गुणात्मक दोनों डेटा प्राप्त करने के लिए एक शोध दल का गठन किया।

प्रोजेक्ट कोर टीम और कॉम्बोनी वर्ल्ड-वाइड फाउंडेशन की सदस्य, सिस्टर ओरिएटा पोज़ी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे अध्ययन में भाग लेने वाली लड़कियों की आवाज़ नीति निर्माताओं से संपर्क करने और प्रतिक्रिया देने के लिए उचित तरीके खोजने हेतु बहुत महत्वपूर्ण है। वे आशा करती हैं कि विशेष रूप से चार धर्मसमाजों के तालमेल द्वारा किया गया यह अध्ययन वास्तव में मूर्त फल प्रदान करेगा।

इक्वाडोर, केन्या, भारत, नेपाल, पेरू और दक्षिण सूडान के प्रतिभागियों की आवाजें

शैक्षणिक अनुसंधान दल

रिसर्च कोऑर्डिनेशन टीम की सदस्य रमा दासी मारियानी और रोम के इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी "टोर वेर्गाता" और सेंटर फॉर इकोनॉमिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीईआईएस), इटली में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्चर ने अध्ययन के कुछ नतीजे पेश किए। उन्होंने कहा कि अध्ययन में शिक्षा के संबंध में एक उल्लेखनीय वास्तविकता सामने आई है, जिसमें दिखाया गया है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों की ऑनलाइन शिक्षा तक कम पहुंच है और उनका कार्यभार अधिक बढ़ गया है। उसने कहा, कि 35% लड़कियों ने महामारी के दौरान "गंभीर कठिनाई" का अनुभव करने की सूचना दी। हालांकि, उन लड़कियों द्वारा रिपोर्ट की गई "कठिनाई" की घटनाएं कम थीं, जो लगातार स्कूल जाने में सक्षम थीं, जो स्कूल में शिक्षा तक पहुंच और समग्र कल्याण के बीच संबंध प्रदर्शित करती हैं।

अनुसंधान समन्वय टीम के सदस्य और लिंग और बच्चों के अधिकारों में वरिष्ठ विशेषज्ञ, मथिल्डे गुटज़ेनबर्गर, ने भी चर्चा शुरू की। अध्ययन में सामने आए विशिष्ट क्षेत्रों में से थे: सीखने की कठिनाई, गरीबी और खाद्य संकट, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे, बढ़ी हुई हिंसा (यौन और घरेलू सहित) और बाल विवाह और किशोर गर्भावस्था के उच्च स्तर। सुश्री गुटज़ेनबर्गर ने यह भी संकेत दिया कि वेश्यावृत्ति और यौन शोषण के अन्य रूप एक मुद्दा बन गया, मुख्य रूप से उन मामलों में जहां माता-पिता ने अपनी नौकरी खो दी। कई लड़कियों ने दुख और चिंता की भावनाओं, मानसिक और आर्थिक तनाव में वृद्धि की सूचना दी, जिसका स्थायी प्रभाव होगा। अब यह सवाल उठाता है कि उन्हें सहायता कैसे प्रदान की जाए, खासकर जब इस प्रकार के आँकड़े अक्सर नीति निर्माताओं के हाथों में नहीं होते हैं। "स्कूल लौटना कई लड़कियों के लिए राहत की बात थी।" "हमने जो पाया है वह यह है कि शिक्षा सुरक्षा है। लड़कियों ने हमें यही बताया है।” कुल मिलाकर, कुछ भी नया नहीं खोजा गया है, सुश्री गुटज़ेनबर्गर ने निष्कर्ष निकाला। लेकिन पहले से मौजूद समस्याओं और असमानताओं को बढ़ा दिया गया था, इस प्रकार एक लड़की ने खुद को जो भी स्थिति में पाया, वह बिगड़ गई। इसलिए, यह अध्ययन भविष्य की महामारियों में क्या हो सकता है, यह जानने में मददगार होगा।

रोम विश्वविद्यालय "ला सपिएंज़ा" में आर्थिक नीति के प्रोफेसर और इटली में अर्थशास्त्र में पीएचडी विभाग की निदेशिका मॉरीज़ियो फ़्रांज़िनी, ने जोर देकर कहा कि अध्ययन के दौरान उभरने वाली असमानताओं में से एक है लड़कियों का तकनीक तक पहुंच कम है। उन्होंने कहा कि अन्य कारक उभरे हैं, जैसे बाल विवाह में वृद्धि, अन्य योगदान कारकों के संकेतक हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है। उन्होंने समझाया, "एक महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें एक से अधिक अभिनेताओं की आवश्यकता है ... जो आपस में सहयोग कर सकते हैं। हमें यह जानने की जरूरत है कि क्या हो रहा है जब यह हो रहा है और यह संकेत दें कि भविष्य में, "एक निगरानी प्रणाली अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।"

वकालत

मारिया डी'ओनोफ्रियो, वकालत अधिकारी आईआईएमए और वीआईडीईएस मानवाधिकार कार्यालय, जिनेवा ने मानवाधिकार के दृष्टिकोण से रिपोर्ट के बारे में बात की। उन्होंने कहा, "कोई भी समर्थन कार्रवाई तब तक सार्थक नहीं हो सकती जब तक कि यह स्थानीय वास्तविकता पर आधारित न हो।" अध्ययन के कुछ परिणाम कई देशों में राजनीतिक स्तर पर प्रस्तुत किए गए हैं जहां अध्ययन हुआ, जिसके कारण कई उपायों को अपनाया गया है। सुश्री डी'ओनोफ्रियो ने कहा कि अध्ययन ने "बेहतर मानव अधिकारों के कार्यान्वयन, भागीदारी और स्थानीय अभिनेताओं के सशक्तिकरण सहित नई खिड़कियां और अवसर खोले।"

सिस्टर विनिफ्रेड डोहर्टी, संयुक्त राष्ट्र के मुख्य प्रतिनिधि, गुड शेफर्ड इंटरनेशनल जस्टिस एंड पीस ऑफिस, न्यूयॉर्क ने लड़कियों के सर्वेक्षण से प्राप्त सिफारिशों को आवाज दी। इन सिफारिशों में यौन शिक्षा और गर्भवती किशोरों की देखभाल शामिल है। उन्होंने समझाया कि "समय पर" रिपोर्ट प्रदान करने वाला गुणात्मक और मात्रात्मक विश्लेषण नीति निर्माताओं से संपर्क करने में मददगार होगा। रिपोर्ट ने "अदृश्य" लड़कियों को दृश्यमान बना दिया है। उसने कहा कि लड़कियां अच्छी तरह से सूचित हैं और उस समय की प्रतीक्षा कर रही हैं जब उनके कुछ साथियों के लिए उपलब्ध सभी लड़कियों के लिए उपलब्ध होगा। सस्टरर विनीफ्रेड ने यह भी कहा कि जहां लड़कियों की हिमायत करना महत्वपूर्ण है, वहीं लड़कियों को खुद का प्रतिनिधित्व करने के लिए सशक्त बनाना भी महत्वपूर्ण है। अंत में, उन्होंने अपना व्यक्तिगत विचार साझा किया, "एक बड़ा परिणाम दिखाता है कि हस्तक्षेप और सामाजिक सेवाओं के माध्यम से लड़कियों के साथ जमीनी स्तर पर हस्तक्षेप से फर्क पड़ता है।"

अदृश्य को दृश्य बनाना

समग्र मानव विकास को बढ़ावा देने के लिए गठित परमधर्मपीठीय विभाग के सचिव, सिस्टर एलेसांद्रा स्मेरिली, एफएमए, ने आभासी रूप से जुड़ते हुए कहा कि प्रस्तुत शोध उनके विभाग के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। उसने इस बात पर भी जोर दिया कि नेटवर्किंग बहुत बार कुछ सार बनकर रह जाती हैं। उन्होंने कहा, वास्तविक आंकड़ों से हटकर, न केवल यह समझना आवश्यक है कि क्या हो रहा है, बल्कि यह भी देखना आवश्यक है कि अन्यथा क्या अदृश्य रह जाएगा।

अगला कदम

कार्यक्रम का समापन करते हुए, प्रोजेक्ट कोर टीम के सदस्य और नाआईडीइएस प्रोग्राम मैनेजर एलिसबेत मुर्गिया ने साझा किया कि अध्ययन में पहचानी गई दो विशेष रूप से प्रासंगिक ज़रूरतें प्रौद्योगिकी और मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों तक पहुंच की कमी हैं। इसलिए, चारों धर्मसमाजों ने इन दो जरूरतों को पूरा करने के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग जारी रखने का फैसला किया है। उन्हीं 6 देशों में पहचान किए गए अगले कदमों में से हैं: डिजिटल डिवाइड पर नया गुणात्मक अध्ययन, तकनीकी उपकरणों का उन्नयन, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के सुरक्षित उपयोग पर प्रशिक्षण प्रदान करना और लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक कार्यक्रम तैयार करना।

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15 December 2022, 11:50