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धर्माध्यक्षों ने ईश्वर की सृष्टि की रक्षा करने का संकल्प लिया

उत्तर-पूर्वी भारत के काथलिक धर्माध्यक्षों ने अपने क्षेत्र में ईश्वर की सृष्टि की देखभाल हेतु जलवायु परिवर्तन से लड़ने का संकल्प लिया है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

गुवाहाटी, मंगलवार, 27 सितम्बर 2022 (मैटर्स इंडिया) ˸ उत्तर-पूर्वी भारत के काथलिक धर्माध्यक्षों ने अपने क्षेत्र में ईश्वर की सृष्टि की देखभाल हेतु जलवायु परिवर्तन से लड़ने का संकल्प लिया है।

संकल्प, असम के गुवाहाटी स्थित सामाजिक सेवा केंद्र के जुबिली मेमोरियल हॉल में वार्षिक प्रांतीय प्रेरितिक सम्मेलन के दौरान लिया गया।

12 से 15 सितम्बर को आयोजित सेमिनार की विषयवस्तु थी, उत्तर-पूर्वी भारत में जलवायु परिवर्तन तथा ईश्वर की सृष्टि की देखभाल। उत्तर-पूर्वी भारत के प्रांतीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के महासचिव धर्माध्यक्ष जेम्स थोप्पिल ने कहा, "देश का एक हिस्सा भयंकर सूखा का सामना कर रहा है और दूसरा हिस्सा बाढ़ से जूझ रहा है। यह हमारे लालच और हमने जिस प्रकार का चुनाव किया है उसके कारण हो रहा है।"

सम्मेलन को महामारी के कारण दो साल के बाद आयोजित किया गया था। जिसमें 15 धर्मप्रांतों से करीब 150 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। धर्माध्यक्षों की कुल संख्या 13 थी।  

दुनिया और विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की गंभीर वास्तविकता से अवगत कराते हुए, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष जॉन मूलचिरा ने कहा, “एक युवा पुरोहित के रूप में, मैं अपने कुछ क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए घने जंगलों से होकर जाता था। अब 35-40 वर्षों के बाद, जब मैं उसी रास्ते से होकर गुजरता हूँ, तो पाता हूँ कि वहाँ जंगल का नामो-निशान नहीं है। बस्तियाँ बस गई हैं।”लकड़ियाँ काटी और सरकारी तंत्र की मिलीभगत या लापरवाही के कारण बेईमान तत्वों के द्वारा बाहर बेची जा रही हैं।

"इसके परिणाम स्वरूप पहाड़ी और समतल मैदान बंजर हो गये हैं एवं नाले सूख गये हैं। वर्षा या तो बहुत अधिक होती है अथवा बहुत कम। जब बारिश होती है तो उपजाऊ मिट्टी बाढ़ से बह जाती है, सभी ओर कूड़े फैले हैं, कस्बों में जीवन अस्वच्छ है, शहरों के प्रदूषित एवं कचरे हमारी नदियों एवं नहरों में मुक्त रूप से बह रहे हैं, कीट नाशक एवं रसायनिक खाद का बहुत अधिक प्रयोग हो रहा है, नदियों के जल मनुष्यों, पक्षियों, मछलियों एवं जानवरों के लिए खतरनाक हो गये हैं।"

 मुम्बई के सहायक धर्माध्यक्ष अलोएन डीसूजा ने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि पारिस्थितिक संबंधों की बहाली के माध्यम से विश्वास को सजीव किया जाए। उन्होंने कहा, "हम देख सकते हैं और मानव के एक बढ़ते संकट के समय में जी रहे हैं। उत्तर-पूर्वी भारत की सच्चाई देश में एक खतरनाक जलवायु परिवर्तन का प्रमाण दे रही है। हम इस पारिस्थितिक संकट और जलवायु परिवर्तन की अवहेलना करने की जोखिम नहीं उठा सकते।"

 सम्मेलन में वैज्ञानिक खोज की प्रस्तुति, पैनल चर्चा, सामूहिक चर्चा और विषय से संबंधित बातों पर चर्चा की रिपोर्टिंग की गई।

गुवाहाटी के असम डॉन बोस्को यूनिवर्सिटी से पी. जे. लूकोस ने इस क्षेत्र में जलवायु संकट से निपटने हेतु कलीसिया की दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया।

जलवायु परिवर्तन के कारण उठनेवाली समस्याओं का सामना करने हेतु कलीसिया की भूमिका एवं जिम्मेदारी को समझने हेतु जलवायु विशेषज्ञों द्वारा विचार प्रस्तुत किये गये।

बिहार के पटना स्थित तरू मित्र जैव-भंडार के पूर्व निदेशक जेस्विट फादर रोबर्ट अथिकल ने उत्तर पूर्वी भारत में लौदातो सी के महत्व पर प्रकाश डाला तथा बतलाया कि हमारे समय में जैव आध्यात्मिकता की आवश्यकता है। सलेशियन फादर अंड्रू जेवियर ने हरित जीवन में जल्दी आदत बनाने के लिए व्यावहारिक सुझाव दिए।

प्रतिभागियों ने सम्मेलन पर संतुष्टि व्यक्त की। शिलोंग में मिशनरियों की माता धर्मबहनों की प्रमुख सिस्टर भइयाहूलोंग नोंगलौव ने कहा, "मैं इस तरह के ज्ञानवर्धक सम्मेलन का हिस्सा बनकर बहुत खुश हूँ। मैं यह सुनिश्चित करने की कोशिश करूंगी कि इस सम्मेलन से मिली सीख हमारे समुदायों में लागू हो।"

नगालैंड में नोविस मास्टर फादर देली कपानी ने कहा, "मैं अपने कार्य क्षेत्र में एक आलोकित व्यक्ति के रूप में जा रहा हूँ। इस सम्मेलन ने मुझे सृष्टि और जलवायु परिवर्तन को एक दूसरे नजरिये से देखने के लिए प्रेरित किया है। अब यह कार्य करने का समय है।

इटानगर के धर्माध्यक्ष जॉन थॉमस ने आशा व्यक्त की कि प्रतिभागी अपने साथ उन बातों को लेकर जायेंगे जिनको उन्होंने सम्मेलन में सीखा है जो न केवल उत्तर-पूर्वी भारत के लिए प्रसांगिक है बल्कि पूरे विश्व के लिए है।  

संत पापा फ्राँसिस के शब्दों का हवाला देते हुए उन्होंने प्रतिभागियों से अपील करते हुए कहा कि "जब हम सृष्टि की रक्षा करने का संकल्प ले रहे हैं, आइये हम ईश्वर की योजना के संरक्षक बनें जो प्रकृति में अंकित है, एक दूसरे के एवं पर्यावरण के संरक्षक बनें।

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27 September 2022, 17:07