खोज

क्रिश्चयन डॉक्ट्रीन धर्मसमाज की स्थापना संत चेसार दे बुस क्रिश्चयन डॉक्ट्रीन धर्मसमाज की स्थापना संत चेसार दे बुस  

संत चेसार दे बुस, एक महान धर्मशिक्षक

संत चेसार दे बुस उन 10 महान संतों में से एक हैं जिन्हें संत पापा फ्रांसिस ने 15 मई 2022 को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में संत घोषित किया। उन्होंने कलीसिया में धर्मशिक्षा दिये जाने की आवश्यकता महसूस करते हुए, क्रिश्चयन डॉक्ट्रीन धर्मसमाज की स्थापना की है। संत पापा पौल षष्ठम ने फादर चेसार की धर्मशिक्षा की शैली की मौलिकता से प्रभावित होकर उन्हें कलीसिया में धर्मशिक्षकों के लिए एक आदर्श के रूप में पेश किया था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन रेडियो के साथ एक साक्षात्कार में झारखण्ड राज्य के खूंटी जिले के अन्तर्गत तोरपा के फादर विनय गुड़िया ने क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन धर्मसमाज और इसके संस्थापक संत चेसार दे बुस की जीवनी पर प्रकाश डाला। फादर गुड़िया वर्तमान में उत्तरी इटली के तूरीन नामक स्थान में एक सहायक पल्ली पुरोहित तथा युवा संचालक का कार्यभार संभाल रहे हैं।

आपका समाज किस तरह कलीसिया एवं विश्व को अपना योगदान दे

रहा है?

हमारे धर्मसमाज का नाम क्रिश्चियन डॉक्ट्रिन फादर्स है जिसकी स्थापना 29 सितम्बर 1592 ई. को दक्षिण फ्रांस में आवियों महाधर्मप्रान्त के अन्तर्गत इल सुर ला सोर्ग द्वीप पर हुआ है। इसके संस्थापक संत चेसार दे बुस हैं। स्थापना के बाद इतिहास में धर्मसमाज को सुख और दुःख दोनों प्रकार के अनुभवों, परन्तु फ्रांस की क्रांति के बाद काफी कष्टदायक ऐतिहासिक घटनाओं से उबरना पड़ा है। आज हमारा धर्मसमाज इटली, फ्रांस, ब्राजील, भारत और बुरुंडी में कार्यरत है।

यह विशेष कर ईश वचन को दूसरों तक सुनाने के लिए धर्मशिक्षा के क्षेत्र में अपना प्रमुख योगदान दे रहा है तथा मानवता से जुड़े अन्य प्रेरितिक कार्य जैसे पल्ली, स्कूल, युवा, परिवार संचालन, पुस्तक प्रकाशन तथा परोपकार के विभिन्न कार्यों में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।

भारत में आपका धर्मसमाज किस तरह कार्यरत है?

भारत में विशेषकर राँची महाधर्मप्रान्त में हम 1999 ई. से कार्यरत हैं। कुछ खास गतिविधियों की बात करें तो, सुदूर इलाके में हमारे किंडरगार्डन, प्राथमिक और उच्च विद्यालय के स्कूल हैं, जहां लगभग पचास गांवों के बच्चे पढ़ने आते हैं जिनके पास शिक्षा पाने के कम साधन हैं। ये स्कूल, पर्यावरण और आर्थिक संपोषण के मद्देनजर, छात्रों और उनके परिवारों को लघु उद्यमिता के उदाहरण देने की कोशिश भी करते हैं। यहां, हमारा डिस्पेंसरी एक नर्स की निरंतर उपस्थिति और सप्ताह में एक बार एक डॉक्टर की उपस्थिति के साथ लघु चिकित्सा केंद्र के रूप में आसपास के गांवों के जरूरतमंद लोगों को स्वतंत्र रूप से सेवा देता है। दवा और इलाज निःशुल्क है। इसके अलावा, एक छोटी स्वास्थ्य टीम आसपास के गाँवों में प्रतिदिन बारी-बारी से दौरा करते हुए परामर्श और दवाइयाँ पहुंचाती है और इस प्रकार यह टीम लोगों तक डिस्पेंसरी की सेवा मुहैया करती है।

जबकि रांची शहर में उन बच्चों के लिए हमारा एक ऐसा स्कूल है जो शुरुआती वर्षों में अपनी सामान्य पढ़ाई छोड़ चुके हैं या फिर वैसे बच्चे जिन्हें परिवार की आर्थिक परिस्थितियों के कारण पढाई करने का अवसर नहीं मिलता है। वैसे बच्चों को पहली साक्षरता दिलाने के बाद, इन्हें शहर के सबसे योग्य स्कूलों में दाखिला दिलाया जाता है, अध्ययन में इनकी देखरेख की जाती है, स्कूल के खर्चों का वहन किया जाता है और दैनिक गर्म भोजन प्रदान किया जाता है। शहर में ही, चेसार सिलाई सेंटर नामक हमारा एक सिलाई और कढ़ाई का स्कूल है जिसका उद्देश्य गरीब बेरोजगार महिलाओं को पेशेवर बनाना है।

एक कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र है जो रोजगार की तैयारी में युवाओं को बुनियादी कौशल के साथ कंप्यूटर सीखने का अवसर प्रदान करता है। युवाओं के लिए एक पुस्तकालय सह अध्ययन कक्ष है जो विश्वविद्यालय की परीक्षाओं और प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए अध्ययन करने की निरंतर सेवा प्रदान करता है। फिर, युवाओं को नौकरी की प्रतियोगिताओं हेतु तैयारी करने के लिए एक प्रशिक्षण केन्द्र है।

आपके धर्मसमाज के संस्थापक संत चेसार दे बुस की संक्षिप्त जीवनी बतलायें जिनकी संत घोषण कुछ ही दिनों पहले हुई है?

चेसार दे बुस का जन्म फ्रांस में आवियों के नजदीक कावाइयों नामक शहर में 3 फरवरी 1544 को हुआ था। वे “स्वाभाविक रूप से” ख्रीस्तीय परिवार और सामाजिक परिवेश में पले-बढ़े, किशोरावस्था में संकट के दौर से गुजरे, अपनी युवावस्था पर गहरा चिन्ह छोड़ा परन्तु गलत मित्रता और आसान मनोरंजन के जरिए अपने जीवन को लापरवाह बना डाला था। जिससे वे विश्वास के जीवन से दूर हो चले थे।

तब अन्तोनिएत्ता रेवाईयाद और लुईस गुयोत जैसे दो विनम्र लोगों ने पाप के मार्ग को त्यागने और एक प्रामाणिक ख्रीस्तीय विश्वास के जीवन को जीने के लिए मदद किया करते थे। दे बुस परिवार में ये दोनों भले चिर परिचित व्यक्ति प्रार्थना और पश्चाताप के द्वारा ईश्वर से इनका मन-परिवर्तन के लिए निवेदन किया करते थे।

वह 1575 का पवित्र वर्ष था। चेसार ने अपनी जयंती मनाई और एक जेसुइट पुरोहित फादर पेके के मार्गदर्शन में प्रभु के पास लौट आए। उन्होंने अपना जीवन बदल डाला, अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी जो किशोरावस्था में बाधित हो गया था और पुरोहिताई की ओर अग्रसर हो चले। वे 1582 में पुरोहित अभिषिक्त होकर, एक अति उत्साही धर्मशिक्षक बन गए और “भंजित रोटी” के सदृश अपने लोगों को एक सरल, तत्काल, प्रतीकात्मक और बोधगम्य शैली के साथ धर्मशिक्षा प्रदान किया जो धर्मसमाज का एक प्रमुख प्रेरितिक कार्य है।

मिलान के महाधर्माध्यक्ष संत चार्ल्स बोरोमेयो की धर्मशिक्षा से प्रभावित होकर, जिसके कार्य के विषय में वे परोक्ष रूप से जानते थे, कुछ पुरोहितों का एक समूह एकत्रित कर सामुदायिक जीवन शैली की रचना की। इस प्रकार “ख्रीस्तीय धर्मसिद्धान्त का अभ्यास करने के” लिए कलीसिया में 29 सितम्बर 1592 में धर्मसमाज की स्थापना होती है। वर्षों तक फलदायी धर्मशिक्षा देने का कार्य चला, लेकिन उनके साथ कुछ शारीरिक और मानसिक कष्टों की भी कमी नहीं रही। उनके कुछ प्रारम्भिक साथी भी उन्हें छोड़ चुके थे तथा वे धीरे-धीरे दृष्टिहीन होते चले जा रहे थे, फिर जीवन के अन्तिम वर्षों में क्रूस पर येसु की नग्नावस्था की भाँति, उनकी मृत्यु पास्का के दिन 15 अप्रैल 1607 को आवियों के सेंट जॉन द ओल्ड समुदाय में हो गई। पोप पौलुस षष्ठम् ने 1975 ई. के पवित्र वर्ष के अवसर पर 27 अप्रैल को उनकी धर्मशिक्षा की शैली की मौलिकता से प्रभावित होकर फादर चेसार को कलीसिया में धर्मशिक्षकों के लिए एक आदर्श के रूप में पेश करते हुए उन्हें धन्य घोषित किया।

फिर संत पिता फ्राँसिस ने 15 मई 2022 ई. को उन्हें संत घोषित किया जो हमारे लिए 400 साल के बाद मिले इस वरदान के लिए अत्यन्त खुशी की बात है।

वे किस चीज के लिए अधिक प्रसिद्ध माने जाते हैं?

सर्वप्रथम चेसार दे बुस एक अग्रवर्ती धर्मशिक्षक रहे थे। उन्होंने ट्रेंट कौंसिल द्वारा रचित “पल्ली पुरोहितों की धर्मशिक्षा” जो केवल पुरोहितों के लिए सुलभ साधन थी, दो स्तंभों के ऊपर धर्मशिक्षा के एक मॉडल की कल्पना की; पहला लघु धर्मसिद्धांत, यह उन लोगों के लिए था जो विश्वास की सच्चाइयों से दूर होते थे, जैसे कि बच्चे और निराक्षर। इन्हें क्रूस का चिन्ह बनाना, दस नियम और सात संस्कारों की जानकारी देना, इत्यादि को आपसी बातचीत और रटकर याद करने की विधि द्वारा प्रार्थना करना सिखलाया जाता था।

दूसरा, वृहत् धर्मसिद्धांत, इसे रविवार और समारोही दिनों में उपदेश-मंच से दिया जाता था। इसके अन्तर्गत प्रेरितों का धर्मसार, हे पिता हमारे, दस आज्ञा, कलीसिया के छः नियम, और संस्कारों की एक व्यापक, परन्तु बहुत ही सरल तरीके से व्याख्या दी जाती थी। डॉक्ट्रिनरी परंपरा ने फिर बाद में एक मध्यम धर्मसिद्धांत को जोड़ा, जो संस्थापक के द्वारा कार्यान्वित दोनों धर्मसिद्धान्तों के बीच का प्रारूप था। इसे ठोस भाषा और जुड़ी वास्तविकता के साथ किसी लंबे एकलाप से बचते हुए पवित्र ग्रन्थ और कलीसिया के धर्माचार्यों के लेखों के प्रचुर संदर्भ के साथ प्रस्तुत किया जाता था। फिर मौजूद लोगों की भागीदारी को संयुक्त करने के लिए प्रश्नोत्तरी की विधि का उपयोग कर, किसी ठोस उदाहरण के द्वारा, बताए गए सभी विषय-वस्तु का एक सारांश पेश किया जाता था।

उनके जीवन से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

उनका जीवन आसान नहीं रहा था। वे विश्वास के जीवन को बनाए रखने के लिए हमेशा प्रार्थना किया करते थे तथा दूसरों के प्रति काफी संवेदनशील थे। अतः परोपकार के कार्य किया करते थे तथा लोगों को ईश्वर तक पहुँचाने के लिए धर्मशिक्षा दिया करते थे, अतः ये मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।

उनके माध्यम से लोगों को किस प्रकार की चंगाई मिली है?

वैसे विश्वासी जो संत चेसार दे बुस को जानते हैं, उनके जीवन में काफी गहरा असर पड़ा है। उनका जीवन परिवर्तित हुआ है। चेसार दे बुस की आध्यात्मिकता तथा विश्वास के जीवन को जीने के लिए अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हमारा एक एसोशिएशन है जिनके माध्यम से लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं और चेसार दे बुस के माध्यम से ईश्वर से मिले सभी वरदानों को साझा करते हैं। परन्तु हाल फिलहाल में मिले उन तीन चंगाईयों के विषय में चर्चा करना चाहूँगाा जिनके माध्यम से उन्हें संत घोषित किया गया है। पहला, मध्य इटली में सलेर्नो की एक युवती को 2016 में चंगाई मिली। वह एक मस्तिष्क संबंधी विस्तृत रक्तस्राव के कारण गंभीर चिकित्सकीय स्थिति में थी, कि अचानक उसे बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस का आघात हुआ था जिससे परिस्थिति काफी जटिल हो गई थी, परन्तु चेसार दे बुस के माध्यम से उसे चंगाई मिली। दूसरा, कार्डियो-रेस्पिरेटरी की अपर्याप्तता के साथ एक्यूट पल्मोनरी सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त चंगाई मिली तथा तीसरा, थायराइड कैंसर से पीड़ित एक युवती को चंगाई प्राप्त हुआ।

वाटिकन रेडियो के श्रोताओं को आप क्या कहना चाहेंगे?

वाटिकन रेडियो के श्रोताओं को मैं यही कहना चाहूँगा कि कलीसिया की खबरों को आप तक पहुँचाने में यह (वाटिकन रेडियो) हमेशा प्रयासरत रहती है। आप इससे जुड़े रहें तथा ख्रीस्तीय जीवन की हर गतिविधियों से वाकिफ होते रहें। आप सबों को मेरी शुभकामनाएँ।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

17 June 2022, 14:46