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2022.06.14  सिस्टर वीरा बड़ा, पवित्र क्रूस की दया की धर्मबहन 2022.06.14 सिस्टर वीरा बड़ा, पवित्र क्रूस की दया की धर्मबहन  #SistersProject

मुझे चुना, बुलाया और अपनी दाखबारी में काम करने भेजा

इटली के सिसली द्वीप में पवित्र क्रूस की दया की धर्मबहनों के धर्मसमाज की सिस्टर वीरा बड़ा ने 2015 से 2021 तक एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देशों से आये शरणार्थियों और प्रवासियों के बीच काम किया। सिस्टर वीरा भारत के झारखंड की रहने वाली हैं। उन्होंने पाकिस्तान से आये अनेक परिवारों तथा गाम्बिया, सेनेगल, माली, अफगनिस्तान और कोस्टा द-वोरियो से आये लड़के लड़कियों की हर तरह से मदद किया।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, गुरुवार 16 जून 2022 :  अगस्त 2019 में मुझे सिस्टर वीरा के साथ सिसली के कल्तानीसेत्ता में छुट्टियाँ बिताने का अवसर मिला। उनके साथ मैं कुछ पाकिस्तानी परिवारों से मिलने गई। कलतानीसेत्ता की सड़कों पर राह चलते प्रवासी खुशी से दूर से ही “मम्मा” कहते हुए हमारा अभिवादन करते थे। मेरे पूछने पर कि इस चुनौती भरे कार्य को करने का साहस उसे कहाँ से मिलता है, सिस्टर वीरा ने कहा, “हमारे संस्थापक कपुचिन फादर थेओदोसियुस फ्लोरेंटिनी का आदर्श वाक्य है, "समय की पुकार ही ईश्वर की इच्छा है" संस्थापक के इस प्रेरक शब्द मुझे धार्मिक और सांस्कृतिक बाधाओं से ऊपर उठाया और उत्साहपूर्वक दूसरों की मदद में आगे बढ़ने का साहस देता है। हमारे धर्मसमाज की सह-संस्थपिका धन्य मदर मरिया तेरेसा शेरर कहा करती थीं, "ईश्वर के साथ और ईश्वर के लिए हर बात संभव है।" मदर तेरेसा मुझे मेरे दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मुझे हमेशा प्रोत्साहित करती हैं।”

मिशनरी बनने का बीजारोपन

सिस्टर वीरा का जन्म 13 जुलाई 1957 को छत्तीसगढ़ जिले के फरसाबहार, नीमटोली गांव में हुआ। उनके पिता स्वर्गीय लुईस बड़ा अपने दो भाइयों के साथ बिहार(अब झारखंड) के रेंगारीह कुदारटोली से खेत की खोज में छत्तीसगढ़ पलायन किया। वहीं उन्होंने मरियम एक्का से शादी कर ली और अपना अपना घर बसा लिया। सिस्टर वीरा के जन्म के 6 महीने बाद ही 2 दिसम्बर 1957 को पिताजी चल बसे। दो बड़े भाइयों और एक दीदी के साथ उनका बचपन हँसते-खेलते बीता। घर में रोज संध्या प्रार्थना होती थी। उनकी माँ महिला संघ और दीदी मरिया संगत में भाग लेते थे। सिस्टर वीरा भी बचपन में क्रूसवीर में सक्रीय भाग लेती थी। विभिन्न अवसरों पर गाँव के माँ मरियम के ग्रोटो में बाईबिल गाना और प्रार्थना की अगुवाई करने में सदा आगे रहती थी। यहीं से धर्मसंघीय जीवन अपनाने और एक मिशनरी बनने की इच्छा जगी।

सिस्टर वीरा बड़े भाई बेहतर जीवन की खोज में फिर से ओड़िसा के बीरमित्रापुर नामक स्थान पर चले गए, जहाँ उनके कई चचेरे भाई पहले से ही बसे हुए थे। वहीं उनके भाई बस गये। सिस्टर वीरा भी वहीं अपने भतीजों के पास कुछ दिन के लिए छुट्टियां बिताने जाती हैं। 

सिस्टर वीरा अपने भतीजे, भतीजी और पोते-पोतियों के साथ
सिस्टर वीरा अपने भतीजे, भतीजी और पोते-पोतियों के साथ

सिस्टर वीरा छत्तीसगढ़ के तमामुन्डा पल्ली स्कूल से प्रथमिक शिक्षा और संत अन्ना हाई स्कूल, तपकरा से मैट्रिक की परीक्षा दी। इसी बीच धर्मसंघी जीवन की ओर रुझान को देखते हुए प्रधानाध्यपिका ने अपने धर्म समाज में प्रवेश करने के लिए आमंत्रित किया। धर्मबहन बनने की इच्छा तो थी पर इतनी जल्दी धर्मसमाज में प्रवेश करने के लिए वह खुद को तैयार न कर सकी। मैट्रिक के बाद प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षण की पढ़ाई के लिए पत्थलगाँव छत्तीसगढ़ गई। यह पवित्र क्रूस की दया की धर्मबहनों (होली क्रॉस) द्वारा चलाई जाती है। प्रशिक्षण के दौरान प्रिंसिपल सिस्टर ब्रिजीट की मदद से उसने बुलाहट को स्वीकार कर होली क्रॉस धर्मसमाज में प्रवेश करने का निर्णय लिया। सन् 1978 में होली क्रॉस धर्मसमाज, हजारीबाग में प्रवेश किया। वर्षों के प्रशिक्षण के बाद 8 दिसम्बर 1982 को उसने पहला मन्नत लिया। धर्मबहन बनने के बाद उसे झारखंड के छेछारी, महुआड़ाँड पल्ली में प्रेरिताई कार्यो को करने के लिए भेजा गया। संत जोसेफ पल्ली महुआडाँड़, में हजारीबाग प्रोविंस के येसु समाजी पुरोहित काम करते हैं। पल्ली पुरोहित के संरक्षण में सिस्टर वीरा पल्ली के गावों का दौरा कर परिवारों के बुजुर्गों महिलाओं युवाओं बच्चों से मुलाकात करती, उनके आध्यत्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर तरह से मदद करती थी। प्रचारकों के प्रशिक्षण और गाँव-गाँव सलाना विन्ती उपवास की व्यवस्था करती थी। काम करने की खुशी के साथ-साथ उसे अनेक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा, विशेषकर राष्ट्रीय स्वंय सेवकों (आरएसएस) द्वारा। उस समय छेछारी में बोनीराम आंदोलन चल रहा था। हिन्दू कट्टरवादियों द्वारा 1986 में उसे मार डालने का प्रयास किया गयाः एक गाँव में जहर मिलाकर भोजन परोसा गया था, सड़क दुर्घटना कराने का प्रयास किया गया, परंतु ईश्वर ने उनकी रक्षा की। उनके लिए ईश्वर की विशेष योजना थी। सिस्टर वीरा को “ईशशास्त्र” की पढ़ाई के लिए बंगलोर भेजा गया। दो वर्ष पढ़ाई करने के बाद उसने अम्बिकापूर (छत्तीसगढ़) धर्मप्रांतीय धर्मप्रशिक्षण केंद्र में पूरे जोश के साथ काम करना शुरु किया। यहीं उसने मिशनरी बनकर दूसरे देश में काम करने की बुलाहट को पहचाना।

युगांडा में मिशनरी जीवन

धर्मसमाज की ओर से युगान्डा (अफ्रीका) में मिशनरी बनकर काम करने के आमंत्रण को स्वीकार कर तीन अन्य धर्मबहनों के साथ 6 अक्टूबर 1993 को नये मिशन के लिए रवाना हुई। सिस्टर वीरा के निर्णय से भतीजे भतीजियाँ खुश नहीं थे। परंतु उसके बड़े भाई का कहना था कि उसे ईश्वर की इच्छा पूरी करनी है और अपने अधिकारियों की आज्ञाओं का पालन करना है। नये परिवेश, भाषा, संस्कृति और लोगों के बीच अपने आप को ढालना एक चुनौती था। समय ने उसे धीरज धरने,साहस के साथ खुद को देना सिखाया। वहाँ उसने धर्मप्रांत में प्रेरितिक और समाजिक कार्यकर्ता, बुलाहट प्रोमोटर के रुप में काम किया। युगांडा की युवत्तियाँ धर्मसमाज में प्रवेश करने लगी। उनके प्रशिक्षण में सिस्टर वीरा ने अपना योगदान दिया। समुदाय की सुपीरियर और सलाहकार रुप में भी अपनी सेवा दी। उन्हें पल्ली के विश्वासियों, स्थानीय लोगों, धर्मबहनों और प्रशिक्षणार्थियों से पूरा प्यार और सहयोग मिला। सिस्टर वीरा ने 22 वर्षों तक युगांडा में मिशनरी सेवा कार्य किया। अतः वे अफ्रीका के लोगों और उनकी संस्कृति से वाकिफ हैं।

इटली में मिशनरी जीवन

संत पापा फ्राँसिस ने 2013 में लाम्पादूसा का दौरा कर प्रवासियों का करुण क्रंदन सुना था और उनकी दयनीय स्थिति देखी थी। संत पापा फ्राँसिस की इच्छा थी कि धर्मबहनें प्रवासियों के बीच काम करें। उन्होंने अपनी इच्छा अंतरराष्ट्रीय सुपीरियर जनरल संघ (यूआइएसजी) के सामने प्रकट की। 2015 में  यूआइएसजी की स्थापना के 50 वर्षीय जुबली के अवसर पर संत पापा फ्राँसिस की इच्छा को साकार करते हुए सुपीरियर जनरलों ने एशिया और अफ्रीका से आने वाले शरणार्थियों और प्रवासियों की मदद करने के लिए इटली के सिसली द्वीप में 2 केंद्र खोलने का निर्णय लिया और विभिन्न धर्मसमाजों से धर्मबहनों को काम करने के लिए आमंत्रित किया गया। 9 देशों से और 8 विभिन्न धर्मसमाज से कुल 10 धर्मबहनों का चयन किया गया। इटली के सिसली में धर्मबहनों के साथ मिलकर प्रवासियों के बीच काम करने का बुलावा आया। इसी आमंत्रण को स्वीकार करते हुए सिस्टर वीरा 5 सितम्बर 2015 को रोम पहुँची। यहाँ उन्हें इताली भाषा का बेसिक ज्ञान दिया गया। देश की संस्कृति, प्रवासियों और उनके बीच काम करने का प्रशिक्षण मिला।

यूआइएसजी महासचिव सिस्टर पत्रिसिया के साथ 10 धर्मबहनें
यूआइएसजी महासचिव सिस्टर पत्रिसिया के साथ 10 धर्मबहनें

2 दिसम्बर 2015 को वाटिकन के संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में आम दर्शन समारोह के दौरान दस धर्मबहनों को संत पापा फ्राँसिस के साथ हाथ मिलाने और उनका आशीर्वाद लेने का सुनहरा अवसर मिला। 10 दिसम्बर 50 वर्षीय जुबली मिस्सा समारोह में उन्हें सिसली मिशन के लिए भेजा गया। 14 दिसम्बर को यूआइएसजी महासचिव सिस्टर पत्रिसिया, प्रोजेक्ट समन्वयक सिस्टर एलिजबेद और सिस्टर कारमेन के साथ धर्मबहनें सिसली के लिए रवाना हुईं। सिसली के रामाक्का और अग्रीजेंतो में दो केन्द्र खोले गये।

अग्रीजेन्तों केंद्र में सिस्टर वीरा ने अन्य 4 धर्मबहनों के साथ नये मिशन की शुरुआत की। अपने टूटे-फूटे इताली भाषा में पल्ली के लोगों और अन्य लोगों से बातें करना शुरु किया। वहाँ की स्थिति और लोगों को जानने के लिए उन्होंने पल्ली के बुजुर्ग लोगों के घर जाकर उनसे मुलाकात करना शुरु किया। उनके साथ रोजरी प्रार्थना करते और बातें करते हुए भाषा सीखा। 

अगस्त 2016 में कतानिया की डिवाइन प्रोविडेंस धर्मबहनों ने नाइजीरिया से आई 20 लड़कियों की देखभाल करने के लिए सिस्टर वीरा को बुलाया। ये सभी लड़कियाँ मानव तस्करी का शिकार थीं उनमें से हर एक की जीवन यात्रा बहुत ही दर्दनाक थी। जंगलों में अनेक दिनों की यात्रा के बाद लीबिया के समूद्री तट से नाव द्वारा अनेक दिनों समूद्री यात्रा कर सिसली पहुँची थी। उनके साथ एक महीना रहकर उसे मानव तस्करी के बारे में जानने को मिला।

इसी दौरान धर्माध्यक्ष मारियो ने कल्तानीसेत्ता में और एक केंद्र खोलने के लिए आमंत्रित किया। सिस्टर वीरा और सिस्टर फ्राँसिस्का (इटालियन) ने 24 अक्टूबर 2016 को नये केंद्र की शुरुआत की। नया परिवेश और नई चुनौतियाँ अब सिस्टर वीरा के जीवन का हिस्सा बन गई थी। हर नई चुनौतियों का सामना करना सीखा। पल्ली पुरोहित फादर अलेसांद्रो जाम्ब्रा उन्हें हर तरह से सहयोग देने के लए तैयार थे। गरीबों और प्रवासियों के लिए उनके हृदय में प्यार था। वे हर तरह से उनकी मदद करने को सदा तैयार रहते थे।

कल्तानीसेत्ता में धर्माध्यक्ष मारियो, पल्ली पुरोहित फादर अलेसांद्रो जाम्ब्रा सिस्टर वीरा और सिस्टर फ्राँसिस्का और अन्य
कल्तानीसेत्ता में धर्माध्यक्ष मारियो, पल्ली पुरोहित फादर अलेसांद्रो जाम्ब्रा सिस्टर वीरा और सिस्टर फ्राँसिस्का और अन्य

कल्तानीसेत्ता का मिशन

कल्तानीसेत्ता में यह देखकर सिस्टर वीरा हैरान थी कि करीब 170 प्रवासी खुली हवा में, कुछ प्लास्टिक के टेंट बनाकर और कुछ पुल के नीचे रात बिताते थे। उनके खाने-पीने और रहने की कोई व्यवस्था नहीं थी। वे पाकिस्तान,गाम्बिया, सेनेगल, माली, अफगनिस्तान और कोस्टा द-वोरियो से थे उनमें ज्यादातर मुसलमान थे। हर दूसरे दिन दोनों धर्मबहनें उनलोगों के पास जाती, उनकी बातें सुनती और उनकी आवश्कता की वस्तुएँ गर्म कपड़े, दवाइयाँ, भोजन वगैरह पहुँचाती थीं। धीरे-धीरे वे भी खुलने लगे। एक दूसरे के लिए आदर सम्मान प्रेम बढ़ता गया। उनके वहाँ जाने से मीडिया की नजर उनपर पड़ी। मीडिया उनकी सेवा कार्यों और पुल के नीचे रहने वाले प्रवासियों के बारे लिखना शुरु किया। स्थानीय स्वंय सेवी और कारितास के सदस्य भी मदद हेतु आगे आने लगे। वे दोनों प्रवासियों से मिलने अस्पतालों और प्रवासी कैंप जाने लगीं। कलतानीसेत्ता की गलियों, सुपर मार्केट में भी प्रवासी उन्हें रोककर बातें करना शुरु कर देते थे। उन्हें इटालियन भाषा सिखाने से लेकर आवश्यक दस्तावेज पाने और स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने में मदद करती थी।

अपैल 2017 से सिस्टर वीरा ने पल्ली हॉल में प्रवासी मुस्लिम बच्चों के लिए इताली भाषा का क्लास देना शुरु किया। देखते ही देखते बच्चों के साथ-साथ युवाओं और महिलाओं की संख्या बढ़ती गई। वे अंग्रेजी और उर्दू में इताली व्याकरण समझाती हैं। इसतरह वे बहुत जल्द समझ जाते हैं। अब बच्चों, युवाओं और महिलाओं के लिए अलग अलग क्लास होते हैं। प्रवासी कैंप से भी अफ्रीका के लड़के लड़कियाँ इटालियन क्लास करने आने लगे। पढ़ने वालों की संख्या को देखते हुए, उन्हें पढ़ाने के लिए अब कारितास के कुछ स्वंय सेवी,मोरमोन समुदाय और एवांजेलिस्ट कलीसिया के स्वंयसेवी भी आते हैं। आर्थिक रुप से भी उनकी मदद की जाती है। अफ्रीका में 22 वर्षों का अनुभव और उर्दू जानने के कारण कलतानीसेत्ता में वे प्रवासियों और सरकारी अधिकारियों, कलीसिया के अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों के बीच पुल या मध्यस्थ का काम करती हैं।

सिस्टर वीरा अपने बड़े भाई की बातें हमेशा याद करती हैं, वे कहा करते थे, “तुमने अपना घर-परिवार छोड़ा है तुम्हें बहुत सारा घर और प्यार करने वाले लोग मिलेंगे।” सिस्टर वीरा ने अपनी खुशी साझा करते हुए कहा, “मुझे खुशी होती है जब प्रवासी अपने दुःख और खुशी में मुझे शामिल करते हैं, मुझे अपने परिवार का सदस्य मानते हैं। प्रवासी बच्चे, युवक युवतियाँ, महिलायें मुझे नाम से नहीं पर मम्मा कहकर पुकारते हैं। इस संबोधन में उनका अपनापन झलकता है।”

सिस्टर वीरा और सिस्टर फ्राँसिस्का प्रवासी महिलाओं और बच्चों के साथ
सिस्टर वीरा और सिस्टर फ्राँसिस्का प्रवासी महिलाओं और बच्चों के साथ

सिस्टर वीरा के काम और मिशनरी उत्साह को देखते हुए यूआईएसजी के वरिष्ठ अधिकारियों ने धर्मसमाज की सुपीरयर जेनरल सिस्टर मरिया ब्रिजार से 2018 में और तीन साल के लिए सिस्टर वीरा की सेवा के अनुबंध को नवीनीकृत करने का अनुरोध किया। सिस्टर वीरा ने इस परियोजना में कुछ नए सदस्यों के साथ काम किया।

सिस्टर वीरा को महुआडाँड़ के पल्ली पुरोहित फादर कमिल कुजूर एस.जे की बात बहुत अच्छी तरह से याद है जिन्होंने 1986 में महुआडाँड़ पल्ली से विदाई लेते वक्त कहा था, "प्रभु आपको अज्ञात स्थान में ले जाएँगे और अनमोल साधन के रूप में आपका उपयोग करेंगे।" यह उनके जीवन में बहुत सच साबित हो गया है।

सिस्टर वीरा मदर जेनरल सिस्टर मरिया ब्रिज़ार और उनके सहयोगियों के प्रति आभारी हैं, जिन्होंने मिशन को करने का अवसर दिया। इन सबसे ऊपर वे अपने प्यारे प्रभु का शुक्रिया अदा करती हैं, इन वर्षों के मिशनरी यात्रा में वे उनके हमसफर थे। 2021 में सिसली का मिशन समाप्त करके सिस्टर वीरा अपने पुराने मिशन को पूरा करने वापस यूगांडा लौट गई। अतः वे निश्चित रुप से कह सकती हें कि ईश्वर ने जन्म के पहले से ही अपने मिशन के लिए उसे "चुना, बुलाया और भेजा है।" (सीएफ एफे 1.3-4)

 

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16 June 2022, 09:07