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भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की आम सभा, तस्वीरः 2019 (प्रतीकात्मक तस्वीर) भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की आम सभा, तस्वीरः 2019 (प्रतीकात्मक तस्वीर) 

धन्य देवासहायम की सन्त घोषणा के लिये भारतीय कलीसिया की पहलें

भारतीय कलीसिया ने भारत के प्रथम शहीद धन्य देवसहायम की सन्त घोषणा समारोह के उपलक्ष्य में अनेक पहलें शुरु की हैं। भारत के प्रथम शहीद एवं विवाहित लोकधर्मी विश्वासी देवसहायम की सन्त घोषणा 15 मई को वाटिकन में सम्पन्न होगी।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

नई दिल्ली, शुक्रवार, 18 फरवरी 2022 (रेई,वाटिकन रेडियो): भारतीय कलीसिया ने भारत के प्रथम शहीद धन्य देवसहायम की सन्त घोषणा समारोह के उपलक्ष्य में अनेक पहलें शुरु की हैं। भारत के प्रथम शहीद एवं विवाहित लोकधर्मी विश्वासी देवसहायम की सन्त घोषणा 15 मई को वाटिकन में सम्पन्न होगी।  

तमिल नाड के निवासी धन्य देवसहायम 18 वीं शताब्दी के एक लोकधर्मी विश्वासी हैं जिन्होंने हिन्दू धर्म का परित्याग कर ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था तथा सन् 1752 ई. में शहीद हो गये थे। धन्य देवसहायम उन सात धन्य आत्माओं में से एक हैं जिन्हें आगामी 15 मई  को सन्त पापा फ्राँसिस सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान करेंगे।     

युवाओं का आदर्श  

बुधवार को जारी एक वकतव्य में भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने कहा, "हमारे पास यहां हमारे शहीद की वीरता की कहानी को, विशेष रूप से, हमारे युवा लोगों को बताने का एक शानदार अवसर है, जिन्हें वर्तमान युग में ख्रीस्तीय जीवन और साक्ष्य की कठिनाइयों का साहसपूर्वक सामना करने में मदद मिलेगी।" धर्माध्यक्षों ने कहा, "शहीद देवसहायम पहले भारतीय हैं जिन्होंने भारतीय धरती पर शहादत का ताज़ जीता है।"

वकतव्य पर हस्ताक्षर करनेवाले धर्माध्यक्षों में भारतीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष गोवा और दियु-दमन के महाधर्माध्यक्ष फिलिप नेरी फेर्राओ, उपाध्यक्ष मद्रास-मैलापुर के जॉर्ज एन्थोनी स्वामी तथा महासचिव देहली के महाधर्माध्यक्ष अनील कूटो शामिल हैं।

धन्य देवसहायम

नीलकंठ पिलै नाम से 23 अप्रैल सन् 1712 को धन्य देवसहायम का जन्म तमिल नाड में हुआ था। दक्षिण भारत के ट्रावनकोर स्थित हिन्दू राज्य के प्रासाद में आप सेवारत थे। सन् 1745 ई. को आपने ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था तथा देवसहायम नाम ग्रहण कर लिया था। आपके खिलाफ राजद्रोह और जासूसी के झूठे आरोप लगाए गए और शाही प्रशासन के पद से हटा दिया गया था। कारावास में आपने घोर उत्पीड़न सहा। सात वर्षों के बाद उत्पीडन के बाद 14 जनवरी, 1752 ई. को अरालवाइमोझी जंगल में देवसहायम की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय उनकी उम्र केवल 39 वर्ष की थी।

धन्य देवसहायम के संत घोषणा समारोह के लिए लातीनी रीति के धर्माध्यक्षों ने उनके आदर में एक प्रार्थना तथा उनके उत्कृष्ट सदगुणों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके जीवन की एक संक्षिप्त रूपरेखा जारी की है।

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18 February 2022, 11:36