खोज

संत पापा फ्राँसिस के साथ कार्डिनल ब्लेस जोसेफ कुपिच संत पापा फ्राँसिस के साथ कार्डिनल ब्लेस जोसेफ कुपिच 

"परंपरा के संरक्षक” समान प्रार्थना के माध्यम से एकता व्यक्त करना

'प्रे टेल' ब्लॉग के लिए लिखते हुए, शिकागो के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल ब्लेज़ कपिच ने 1970 के सुधार से पहले रोमन धर्मविधि के उपयोग पर" संत पापा फ्राँसिस के मोतू प्रोप्रियो "परंपरा के संरक्षक” प्राप्त करने और लागू करने के लिए तीन "मार्गदर्शक सिद्धांतों" की जांच की।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

शिकागो, बुधवार 10 नवम्बर 2021 (वाटिकन न्यूज) -  कार्डिनल ब्लेज़ कूपिच कहते हैं कि संत पापा फ्राँसिस अपने मोतु प्रोप्रियो "ट्रडिश्योनिस कुस्टोडेस" (परंपरा के संरक्षक) द्वारा कलीसिया में रोमन धर्मविधि में एकल और समान प्रार्थना को फिर से स्थापित चाहते हैं जो इसकी एकता को व्यक्त करता है और द्वितीय वाटिकन महासभा के बाद प्रख्यापित धर्मविधि किताबों के अनुसार है।"

"प्रे टेल" ब्लॉग पर प्रकाशित एक लेख में शिकागो के महाधर्माध्यक्ष कहते हैं, "रोमन धर्मविधि के दो रूप नहीं हैं, क्योंकि 'सुधार' शब्द का अर्थ कुछ और है, अर्थात् हम धर्मविधियों को मनाने के पुराने तरीके को पीछे छोड़ दें और एक नया रूप अपनाएं।"    

कार्डिनल कूपिच बताते हैं कि संत पापा फ्राँसिस ने "परंपराओं के संरक्षण को प्राप्त करने और लागू करने के लिए तीन महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांतों की पेशकश की है: कलीसिया की एकता; कलीसिया की परंपरा के साथ द्वितीय वाटिकन के सुधारों की निरंतरता और धर्माध्यक्ष की भूमिका "एकमात्र मध्यस्थ, प्रवर्तक और अपने धर्मप्रांत में सभी धर्मविधियों के संरक्षक" के रूप में। 

कलीसिया की एकता

कार्डिनल का कहना है कि जब संत पापा जॉन पॉल द्वितीय और संत पापा बेनेडिक्ट ने द्वितीय महासभा के पूर्व मिस्सा समारोह अनुष्ठान करने की संभावना का विस्तार किया, तो उनका लक्ष्य "संत पियुस दसवें की सोसायटी के सदस्यों के बीच दरार को ठीक करना था," जिन्होंने द्वितीय वाटिकन महासभा के सुधारों पर सवाल उठाया था।

कार्डिनल कुपिच कहते हैं, "दुख की बात है,कि यह हासिल नहीं किया जा सका।"                  

पवित्र आत्मा की एक प्रामाणिक क्रिया

परंपरा के संरक्षण द्वारा संत पापा फ्राँसिस यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सभी काथलिकों द्वारा "एक ठोस स्पष्ट मान्यता" है, कि "द्वितीय वाटिकन महासभा और इसमें सुधार न केवल पवित्र आत्मा की एक प्रामाणिक कार्रवाई हैं, बल्कि कलीसिया की परंपरा में निरंतरता भी हैं।” अर्थात संत पापा का कहना है कि द्वितीय वाटिकन महासभा के पहले के परमाध्यक्षों द्वारा प्रख्यापित धर्मविधि संस्कारों की पूर्ण स्वीकृति है।

धर्मविधि के संरक्षक

अंत में, कार्डिनल कुपिच कहते हैं, कि संत पापा फ्राँसिस इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि, प्रत्येक धर्मप्रांत में, स्थानीय कलीसिया के धार्मिक जीवन की जिम्मेदारी केवल धर्माध्यक्ष के पास है।

इसका मतलब यह है कि केवल धर्माध्यक्ष ही यह तय कर सकता है कि पुरानी धर्मविधि के अनुसार पूजा-पाठ की अनुमति कब दी जाए और यह कि धर्माध्यक्ष "अपना निर्णय लेने के लिए बाध्य हैं जो उसके धर्मप्रांत में एकात्मक उत्सव के रूप में वापसी को बढ़ावा देता है।"

प्रेरितिक साथ

संत पापा फ्राँसिस के मोतू प्रोप्रियो पर अपने विचार को समाप्त करते हुए, कार्डिनल कूपिच कहते हैं कि "जिस तरह से हम पूजा अर्चना करते हैं और जो हम विश्वास करते हैं, के बीच की कड़ी को समझने हेतु पुरोहितों को मदद देना चाहिए।" इस बात पर बल देते हुए अंततः संत पापा "केवल सुधार किये गये धर्मविधि किताबें ही एकात्मक पूजा पद्धति में उपयोग करना चाहते हैं।”

कार्डिनल कूपिच का सुझाव है कि पुरानी धर्मविधियों से जुड़े विश्वासियों के पास जाकर उन्हें परिषद द्वारा नवीनीकरण के सिद्धांतों को समझने में मदद करना चाहिए। उन्हें इस बात की सराहना करने में मदद करना है कि कैसे नई धर्मविधि उन्हें धर्मग्रंथों के प्रयोग और पारंपरिक प्रार्थनाओं के अधिक से अधिक उपयोग करने में मददगार है।

उन्होंने "रचनात्मकता" की संभावना का भी सुझाव दिया। जिसमें पवित्र मिस्सा समारोह की नई धर्मविधि में पिछले तरीके धर्मविधि के तत्वों को शामिल किया गया है जो पहले से ही विकल्पों के रूप में स्वीकार्य हैं - उदाहरण के लिए, धर्मविधि में लैटिन, ग्रेगोरियन संगीत  का उपयोग और धर्मविधि में मौन की विस्तारित अवधि।

कार्डिनल कपिच कहते हैं, "मुझे विश्वास है कि हम इस अवसर का उपयोग अपने सभी लोगों को उस महान उपहार की पूरी समझ में आने में मदद करने के लिए कर सकते हैं जो परिषद ने हमें पूजा अर्चना करने के तरीके में सुधार के लिए दिया है।"

 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

10 November 2021, 15:30