खोज

ईराक के मोसुल शहर में सन्त थॉमस गिरजाघर में ख्रीस्तयाग समारोह, तस्वीरः 28.02.2019 ईराक के मोसुल शहर में सन्त थॉमस गिरजाघर में ख्रीस्तयाग समारोह, तस्वीरः 28.02.2019 

सिरिया और ईराक में उत्पीड़ित ख्रीस्तीयों के लिये प्रार्थना दिवस

जर्मन काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की वेब साईट प्रकाशित किया गया कि जर्मनी के काथलिक धर्माध्यक्षों ने 26 दिसम्बर के लिये निर्धारित अपने प्रार्थना दिवस को इस वर्ष सिरिया एवं ईराक के उत्पीड़ित ख्रीस्तीयों के लिये समर्पित रखा है।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

जर्मनी, शुक्रवार, 27 नवम्बर 2020 (वाटिकन न्यूज़): जर्मन काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की वेब साईट प्रकाशित किया गया कि जर्मनी के काथलिक धर्माध्यक्षों ने 26 दिसम्बर के लिये निर्धारित अपने प्रार्थना दिवस को इस वर्ष सिरिया एवं ईराक के उत्पीड़ित ख्रीस्तीयों के लिये समर्पित रखा है।

26 दिसम्बर प्रार्थना दिवस

"हमारे समय में उत्पीड़ित और दमन के शिकार ईसाइयों के प्रति एकात्मता" शीर्षक से 2003 में शुरू जर्मन काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की पहल पर प्रतिवर्ष प्रथम ख्रीस्तीय शहीद सन्त स्तेफन के पर्व दिवस 26 दिसम्बर को, प्रार्थना दिवस घोषित किया गया है, जो इस वर्ष सिरिया एवं ईराक के उत्पीड़ित ख्रीस्तीयों को समर्पित है।

महाधर्माध्यक्ष लूडविग शिक

धर्माध्यक्षीय सम्मेलन में वैश्विक मामलों के आयोग के अध्यक्ष बामबेर्ग के महाधर्माध्यक्ष लूडविग शिक ने कहा, "सीरिया और इराक में ईसाइयों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। दरअसल, इस्लामिक स्टेट पर सैन्य जीत के बाद भी, ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों पर अभी भी कई प्रकार के उत्पीड़न का ख़तरा बना हुआ है।" उन्होंने कहा, "इस्लामिक स्टेट के आतंक और क्रूर हिंसा ने इस क्षेत्र को दीर्घकालिक तरीके से अस्थिर कर दिया है तथा कई ख्रीस्तीयों के पलायन के लिये बाध्य किया है।"

महाधर्माध्यक्ष लूडविग शिक ने कहा, जातीय, धार्मिक और राजनीतिक तनावों के बीच, ख्रीस्तीय समुदाय "गृहयुद्ध में नष्ट सीरिया में अपनी जगह पाने की बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है,  जबकि ईराक  निरंतर अस्थिरता ,की स्थित से चिह्नित है।"

दृढ़ता, उदारता, साहस

सिरिया तथा ईराक की हाल में यात्रा कर लौटे महाधर्माध्यक्ष शिक ने कहा कि ख़तरों एवं उत्पीड़न के बीच भी इन देशों के ख्रीस्तीयों के दृढ़ संकल्प, उदारता एवं साहस ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि वस्तुतः, ख्रीस्तीय धर्म का सार अपने आपमें सिमटना नहीं है बल्कि ज़रूरत के समय में सबकी, भौतिक एवं आध्यत्मिक, मदद करना तथा उनमें आशा एवं विश्वास का संचार करना है।  

ईराकी एवं सिरियाई ख्रीस्तीयों के दृढ़ संकल्प के बारे में उन्होंने कहा, "हालांकि, इस्लामिक चरमपंथियों के अत्याचारों ने, स्थायी रूप से, कई ईसाइयों को परेशान और आतंकित किया है, सीरिया और ईराक की कलीसियाएं मध्य पूर्व में अपने सदियों पुराने अस्तित्व के महत्व के बारे में आश्वस्त हैं"।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

27 November 2020, 11:45