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भारत में  समलैंगिकता की वैधता भारत में समलैंगिकता की वैधता  

समलैंगिकता की वैधता, कलीसिया को नैतिक रूप से अस्वीकार्य

सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारत में समान-सेक्स संबंधों के अपराध को खत्म करने के फैसले के बाद, भारतीय कलीसिया ने समलैंगिकता पर काथलिक सिद्धांत को दोहराया है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

नई दिल्ली, सोमवार,10 सितम्बर 2018 (वाटिकन न्यूज) :  समलैंगिकता का वैधीकरण होने पर भी नैतिक रूप से समलैंगिक व्यवहार स्वीकार्य नहीं है। उक्त बात भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के संबंध में भारतीय धर्माध्यक्षों ने कहा। 6 सितंबर को देश में समलैंगिकता के अपराध को समाप्त कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द कर दिया है, जिसके लिए 157 वर्षों से एक ही लिंग के व्यक्तियों के बीच संबंधों को जेल में दंडित किया जाता था।

समलैंगिकता नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं

भारतीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) के शांति और विकास कार्यालय के सचिव फादर स्टीफन फर्नांडीस कहते हैं, "कानून नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं है"। काथलिक सिद्धांत नैतिक रूप से समलैंगिक व्यवहार को अस्वीकार्य मानती है क्योंकि "यह मानवीय कामुकता के उद्देश्य का उल्लंघन करता है जो संतान उत्पन करना है ... यह काथलिक कलीसिया की नैतिकता है।"

कलीसिया द्वारा समलैंगिक लोगों की गरिमा का सम्मान

कलीसिया समलैंगिक व्यक्तियों और मानव अधिकारों की गरिमा का सम्मान करती है। वह बिना किसी भेदभाव के सभी के मानव अधिकारों की रक्षा और सम्मान करती है। सीबीसीआई के उपाध्यक्ष, धर्माध्यक्ष जोशुआ इग्नासियस ने कहा, "भारत में काथलिक कलीसिया समलैंगिकता को बढ़ावा या प्रसारित नहीं करती है, यह परिवार के लिए है।"

विदित हो कि सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार 6 सितम्बर को एकमत से भारतीय दंड संहिता के 158 साल पुराने धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध था। अदालत ने कहा कि यह प्रावधान संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करता है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने परस्पर सहमति से स्थापित अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे में रखने वाले, धारा 377 के हिस्से को तर्कहीन, सरासर मनमाना और बचाव नहीं करने योग्य करार दिया।

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10 September 2018, 12:32