संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  (AFP or licensors)

देवदूत प्रार्थना में पोप : उपहार और क्षमाशीलता है ईश्वर की महिमा की खुशबू

चालीसा के पाँचवें रविवार को देवदूत प्रार्थाना के दौरान संत पापा फ्राँसिस ने सुसमाचार पाठ पर चितंन किया।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, रविवार, 17 मार्च 2024 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 17 मार्च को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वियों को सम्बोधित किया।

संत पापा ने कहा, “आज, चालीसा काल का पाँचवाँ रविवार, जब हम पवित्र सप्ताह के करीब पहुँच रहे हैं, सुसमाचार पाठ (यो.12:20-33) में येसु हमें कुछ महत्वपूर्ण बात बताते हैं: क्रूस पर हम उनकी और पिता की महिमा देखेंगे।(23.28)

संत पापा ने कहा, “लेकिन यह कैसे संभव है कि ईश्वर की महिमा क्रूस पर ही प्रकट हो? कोई सोचेगा कि यह पुनरुत्थान में प्रकट होता है, क्रूस पर नहीं, जो एक हार है, एक विफलता है! इसके बजाय आज येसु, अपने दुःखभोग के बारे बात करते हुए कहते हैं: "मनुष्य के पुत्र के महिमान्वित होने का समय आ गया है।" (23) संत पापा ने कहा, “वे हमें क्या बताना चाहते हैं?”

ईश्वर की महिमा

वे हमें बताना चाहते हैं कि ईश्वर के लिए महिमा, मानवीय सफलता, प्रसिद्धि या लोकप्रियता नहीं है; ईश्वर के लिए महिमा में आत्म-संदर्भित कुछ भी नहीं है, यह जनता की तालियों के बाद शक्ति का भव्य प्रदर्शन भी नहीं है। ईश्वर के लिए, महिमा इस हद तक प्रेम करना है कि अपना जीवन दे दिया जाए। उनके लिए स्वयं को महिमान्वित करने का अर्थ है स्वयं को समर्पित करना, अपने आपको सुलभ बनाना, अपना प्रेम अर्पित करना। और यह क्रूस पर चरम रूप में प्रकट हुआ, वहीं, जहाँ येसु ने ईश्वर के प्रेम को अधिकतम दर्शाया, दया के उनके चेहरे को पूरी तरह से प्रकट किया, हमें जीवन दिया और अपने क्रूस पर चढ़ानेवालों को माफ कर दिया।

संत पापा ने कहा कि क्रूस से जो "ईश्वर का सिंहासन" है, प्रभु हमें सिखाते हैं कि सच्ची महिमा, जो कभी फीकी नहीं पड़ती और हमें खुशी देती है, वह है उपहार और क्षमाशीलता। उपहार और क्षमाशीलता ईश्वर की महिमा के सार हैं। और वे हमारे लिए जीवन के मार्ग हैं। उपहार और क्षमाशीलता: हम अपने आस-पास या अपने अंदर जो देखते हैं, उससे बहुत अलग मानदंड है, जहाँ हम महिमा को देने के बजाय प्राप्त करने की चीज के रूप में सोचते हैं; पेश करने के बजाय अपने पास रखने की चीज के रूप में। परन्तु, सांसारिक महिमा बीत जाती है और हृदय में कोई खुशी नहीं रह जाती; इससे किसी का भला भी नहीं होता, बल्कि विभाजन, कलह, ईर्ष्या होती है।

चिंतन

और अब हम खुद से पूछें: वह कौन सा गौरव है जो मैं अपने लिए, अपने जीवन के लिए चाहता हूँ, जिसका मैं अपने भविष्य के लिए सपना देखता हूँ? अपने कौशल, अपनी योग्यताओं या अपनी चीज़ों से दूसरों को प्रभावित करना चाहता हूँ? या क्या यह एक उपहार एवं क्षमा का मार्ग है, क्रूस पर चढ़ाए गए येसु का मार्ग, उन लोगों का मार्ग जो प्रेम करने से कभी नहीं थकते, निष्ठापूर्वक दुनिया में ईश्वर की गवाही देते हैं और जीवन की सुंदरता को चमकने देते हैं? मैं अपने लिए क्या गौरव चाहता हूँ? वास्तव में, जब हम देते और क्षमा करते हैं, तो ईश्वर की महिमा हमारे अंदर चमकती है।

तब माता मरियम से प्रार्थना करते हुए पोप ने कहा, “कुँवारी मरियम, जिन्होंने दुखभोग की घड़ी में ईमानदारी से येसु का अनुसरण किया, हमें येसु के प्रेम का जीवंत प्रतिबिंब बनने में मदद करें।”

इतना कहने के बाद, संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आथीर्वाद दिया।

चालीसा काल के 5वें रविवार को संत पापा फ्रांँसिस का संदेश, देवदूत प्रार्थना के पूर्व।

                 

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17 March 2024, 14:10

दूत-संवाद की प्रार्थना एक ऐसी प्रार्थना है जिसको शरीरधारण के रहस्य की स्मृति में दिन में तीन बार की जाती है : सुबह 6.00 बजे, मध्याह्न एवं संध्या 6.00 बजे, और इस समय देवदूत प्रार्थना की घंटी बजायी जाती है। दूत-संवाद शब्द "प्रभु के दूत ने मरियम को संदेश दिया" से आता है जिसमें तीन छोटे पाठ होते हैं जो प्रभु येसु के शरीरधारण पर प्रकाश डालते हैं और साथ ही साथ तीन प्रणाम मरियम की विन्ती दुहरायी जाती है।

यह प्रार्थना संत पापा द्वारा रविवारों एवं महापर्वों के अवसरों पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में किया जाता है। देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा एक छोटा संदेश प्रस्तुत करते हैं जो उस दिन के पाठ पर आधारित होता है, जिसके बाद वे तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हैं। पास्का से लेकर पेंतेकोस्त तक देवदूत प्रार्थना के स्थान पर "स्वर्ग की रानी" प्रार्थना की जाती है जो येसु ख्रीस्त के पुनरूत्थान की यादगारी में की जाने वाली प्रार्थना है। इसके अंत में "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा की महिमा हो..." तीन बार की जाती है।

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