वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन  

परोलिन˸ युद्ध की तबाही बहुत हो चुकी, समझौता करने में कभी देर नहीं

वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने एक साक्षात्कार में कहा है कि "हम अतीत की ओर पीछे लौट रहे हैं जबकि हमें एक अलग भविष्य की ओर कदम बढ़ाने का साहस करना चाहिए, एक शांतिमय सहाअस्तित्व के भविष्य की ओर बढ़ना चाहिए। दुर्भाग्य से, ऐसा माना जाएगा कि हम बर्लिन की दीवार के पतन के बाद भी ऐसा नहीं कर पाये।" किसी भी प्रकार की मध्यस्थता के लिए परमधर्मपीठ की पूरी उपलब्धता है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने यूक्रेन में युद्ध को देखते हुए वाटिकन मीडिया के पत्रकारों कहा, "युद्ध पागलपन है, इसे रोका जाना चाहिए।"

क्या आप चल रहे संघर्ष पर परमधर्मपीठ की स्थिति को संक्षेप में बता सकते हैं?

परमधर्मपीठ की स्थिति यही है जिसको संत पापा बार-बार दुहरा रहे हैं ˸ युद्ध बिलकुल न हो, युद्ध पागलपन है, इसे रोका जाना चाहिए। हम सभी लोगों से अपील करते हैं कि लड़ाई को तुरन्त रोका जाए। हमारे सामने यूक्रेन से आनेवाली भयंकर तस्वीरें हैं। युद्ध के शिकार आम नागरिक, महिलाएँ, बुजूर्ग, असहाय बच्चे हो रहे हैं, जिन्हें युद्ध के पागलपन की कीमत अपने जीवन से चुकानी पड़ रही है। लोग अपने घरों को ध्वस्त होते देख रहे हैं, जहाँ शून्य डिग्री में बिना बिजली रहना पड़ रहा है, न भोजन है और न दवाई। लाखों शरणार्थी जिनमें अधिकांश महिलाएँ और बच्चे हैं बम से भाग रहे हैं। पिछले दिनों मैंने यूक्रेन के एक दल से मुलाकात की जो इटली पहुँचा। वे खोयी नजरों, मुस्कानरहित चेहरों और आपार दुःख के साथ यहाँ पहुँचे हैं। उन युवा माताओं और उनके छोटे बच्चों की गलती क्या है। आपको दिल कड़ा करना पड़ेगा ताकि आप भावशून्य रह पायेंगे और यह विनाश जारी रहेगा, खून एवं आँसू की नदियाँ बहती रहेंगी। युद्ध बर्बर है। 27 फरवरी के देवदूत प्रार्थना में संत पापा फ्राँसिस द्वारा इताली संविधान के अनुच्छेद 11 का संदर्भ रखना महत्वपूर्ण होगा, जो कहता है, "इटली अन्य लोगों की स्वतंत्रता के लिए अपराध के साधन के रूप में और अंतरराष्ट्रीय विवादों को हल करने के साधन के रूप में युद्ध को अस्वीकार करता है।" जो लोग युद्ध करते हैं वे हथियार के शैतानी तर्क पर भरोसा करते एवं इंसानियत भूल जाते हैं ˸ इन शब्दों की सत्यता के कितने उदाहरण हमारे सामने हैं। हम अक्सर उन्हें भूल जाते हैं, कभी-कभी इसलिए क्योंकि वे युद्ध से संबंधित होते हैं जिनको हम "दूर" समझते जबकि वे हमारी इस आपस में जुड़ी हुई दुनिया में सचमुच दूर नहीं है।  

मॉस्को के सैनिकों द्वारा यूक्रेन में हमला शुरू करने के दो दिन बाद बेमिसाल संकेत के साथ संत पापा क्यों रूसी दूतावास गये थे?

संत पापा फ्राँसिस को एक अभूतपूर्व संकेत के रूप में परिभाषित करना उनका अधिकार है। संत पापा मॉस्को के अधिकारियों के सामने युद्ध गहराने पर अपनी चिंता प्रकट करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने खुद निर्णय लिया और परमधर्मपीठ के लिए रूस के राजनयिक प्रतिनिधि के पास पहुँचे।  

पिछले दिनों आपने रूस के विदेशमंत्री लावरोव से फोन पर बातचीत की। आपने एक दूसरे को क्या कहा?

मैंने तत्काल युद्ध विराम हेतु संत पापा की अपील दुहरायी। मैंने लड़ाई समाप्त करने और संघर्ष का समाधान समझौता द्वारा करने का आग्रह किया। मैंने आम नागरिकों एवं मानवीय गलियारे का सम्मान करने पर जोर दिया। जैसा कि संत पापा ने पिछले रविवार को देवदूत प्रार्थना के उपरांत कहा था मैंने भी वही कहा कि परमधर्मपीठ हर प्रकार की मध्यस्थता के लिए तैयार है जो यूक्रेन में शांति को बढ़ावा देगा।    

हथियारों को रोकने की अपील के बावजूद हम गहराते युद्ध का सामना कर रहे हैं जो कम होता नहीं दिखाई पड़ रहा है क्यों?

युद्ध एक कैंसर की तरह है जो बढ़ता, फैलता, अपने लिए जगह बनाता जाता है। संत पापा जॉन पौल द्वितीय के शब्दों में यह एक दुःसाहस का कार्य है जिसमें कोई वापसी नहीं। हमें इसे पहचानना चाहिए। हम एक भंवर जाल में गिर गये हैं जिसका परिणाम सभी के लिए बेजोड़ और हानिकारक हो सकता है। जब संघर्ष बढ़ता, असहाय पीड़ितों की संख्या बढ़ती, जब पीछे लौटना मुश्किल हो जाता और लगता है कि यह असंभव है, दृढ़ इच्छा रहते हुए भी, समझौता करना, समाधान तक पहुँचना, हर प्रयास के बावजूद शांति प्राप्ति मुश्किल हो जाता है, तब भी हमें हिंसा और घृणा को जगह नहीं देनी चाहिए। न ही हमें युद्ध के तर्क को स्वीकार करना चाहिए और पूरी तरह आशा समाप्त कर देना चाहिए। हम पोप की तरह एक साथ ईश्वर एवं उन लोगों से पुकारते हैं कि हथियार बंद किया जाए और शांति लौट आये।   

कुछ ही दिनों के अंदर दुनिया बदल चुकी है ˸ अब लोग फिर से हथियारबंद होने, सैनिकों के लिए पैसे खर्च करने, कोयले से चलनेवाले बिजली संयंत्रों की ओर लौटने की जरूरत, अटारी में पारिस्थितिक संक्रमण भेजने की बात जोरों से कर रहे हैं।

जी हाँ, कुछ ही दिनों के अंदर हमारी दुनिया सचमुच बदली हुई लग रही है जो पहले से ही महामारी से तबाह है। हम नवम्बर 2019 में हिरोशिमा में संत पापा के साहसिक शब्दों की याद करते हैं, जहाँ उन्होंने कहा था, "मैं विनम्रतापूर्वक उन लोगों की आवाज बनना चाहता हूँ जिनकी आवाज नहीं सुनी जाती और जो हमारे समय के बढ़ते तनाव, के कारण बेचैन एवं परेशान हैं, अस्वीकारीय असमानता और मानव अस्तित्व को भयभीत करनेवाले अन्याय, आमघर की देखभाल नहीं कर पाना, हथियारों की निरंतर वृद्धि, मानो कि विश्व की भावी शांति के लिए ये ही आवश्यक हैं।" कार्डिनल ने कहा कि "विश्वास के साथ मैं दोहराना चाहता हूँ कि युद्ध के उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग, आज कहीं अधिक हो रहा है जो एक अपराध है, न केवल व्यक्ति और उसकी प्रतिष्ठा के लिए, बल्कि हमारे आमघर के भविष्य के भी खिलाफ है। युद्ध के लिए परमाणु उर्जा का प्रयोग अनैतिक है। आज हम देख रहे हैं कि यूक्रेन में क्या हो रहा है, बहुत लोग हथियार बढ़ाने की बात कर रहे हैं, हथियारों के लिए भारी कीमत चुकाने की बात हो रही है। युद्ध का तर्क प्रबल होता नजर आ रहा है, देशों के बीच दूरियाँ बढ़ रही हैं। दुर्भाग्य से ऐसा लगता है कि हमने इतिहास की सीख भूला दी है। मैं संत पापा जॉन पौल द्वितीय के शब्दों को पुनः दोहराता हूँ जिन्होंने ईराक में युद्ध नहीं करने की अर्जी की थी। उस देश की स्थिति को आज भी देखा जा सकता है जिसका युद्ध के बाद 20 साल हो चुके हैं। हमारे सामने विनाश एवं अस्थिरता जिसको युद्ध उत्पन्न करता, उनके अनगिनत उदाहरण हैं।   

कौन सा रास्ता अपनाया जाए जो दूसरों को समाप्त नहीं करेगा?  

कलीसिया की सामाजिक धर्मसिद्धांत ने आक्रामकता के सामने सशस्त्र प्रतिरोध की वैधता को हमेशा मान्यता दी है। फिर भी जो हो रहा है इसके सामने हमें अपने आपसे पूछना है ˸ क्या हम युद्धविराम संधि तक पहुँचने के लिए सचमुच हरसंभव प्रयास कर रहे हैं? क्या हथियार ही एकमात्र रास्ता रह गया है। महिलाओं और बच्चों की हत्या, लाखों विस्थापित लोगों, ध्वस्त होते देश के सामने, मैं इन शब्दों को अच्छी तरह समझता हूँ, कहना काल्पनिक लग सकता है, लेकिन शांति काल्पनिक नहीं है, कई जीवन खतरे में हैं उन्हें तत्काल बचाया जाना है। इसके लिए वृहद स्तर पर राजनीतिक-कूटनीतिक प्रयासों की जरूरत है जिससे युद्धविराम हो सके तथा अहिंसात्मक समाधान के लिए समझौता बन सके। इस अर्थ में परमधर्मपीठ हरसंभव प्रयास करने के लिए तैयार है।   

संत पापा ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध हो रहा है न कि सैन्य कारर्वाई, क्यों?

शब्द महत्वपूर्ण हैं और यह परिभाषित करने के लिए कि यूक्रेन में एक सैन्य अभियान क्या हो रहा है, इसका अर्थ है तथ्यों की वास्तविकता को नहीं पहचानना। हम युद्ध का सामना कर रहे हैं जो दुर्भाग्य से युद्धों के समान कई नागरिकों को मार रहा है।

आपके विचार से क्या यूरोप एवं पश्चिमी देशों ने आमतौर पर युद्ध गहरा होने से रोकने के लिए हर आवश्यक कारर्वाई की है?

मैं इस तरह सोचना पसंद नहीं करता। पर निश्चय ही यह एक रोचक सवाल है। हम डोनबास की संघर्षपूर्ण स्थिति, अपर्याप्त तरीके से लागू मिन्स समझौता एवं क्रिमिया की स्थिति की याद करें। लेकिन गिरे हुए दूध के लिए नहीं रोना चाहिए बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक नए संकल्प की आवश्यकता है कि इन संकटों को सभी के सहयोग से हल किया जाए।

राजनीति इसमें किस तरह की भूमिका अदा करती है और राजनयिक इस समय किस तरह की भूमिका अदा कर सकते हैं?

राजनीतिक-कूटनीतिक पहल की आवश्यकता को पुष्ट करते हुए मैं कहना चाहूँगा कि हम अतीत की ओर पीछे लौट रहे हैं, जबकि हमें भविष्य की ओर साहसिक कदम बढ़ाना चाहिए था, एक ऐसे भविष्य की ओर जिसमें शांतिपूर्ण सहाअस्तित्व हो। दुर्भाग्य से, यह कहा जाएगा कि बर्लिन की दीवार गिरने के बाद भी हमने राष्ट्रों के बीच सहअस्तित्व की नई प्रणाली का निर्माण नहीं किया है, जो सैनिक समझौता या आर्थिक सुविधा से ऊपर हो। यूक्रेन में जारी युद्ध इस हार को स्पष्ट कर रहा है। किन्तु मैं यह कहना चाहूँगा कि अभी भी देर नहीं हुई है, शांति निर्माण में कभी देर नहीं होती, समझौता करने के लिए कदम बढ़ाने में देरी नहीं हुई है।

कलीसिया की भूमिका क्या है?

उभरते खतरे के सामने ख्रीस्तियों की भूमिका है, सबसे बढ़कर, बदलाव लाना। कल संत पापा के विशेष दूत कार्डिनल क्रजेवस्की की उपस्थिति में ख्रीस्तीय एकता प्रार्थना की गई, जिसमें हमारे दिल की कठोरता, हमारे पाप जो दुनिया की बुराई को बढ़ाते हैं उनके लिए सबसे पहले प्रभु से क्षमा याचना की गई। उसके बाद प्रार्थना की गई कि प्रभु हमें शांति प्रदान करे, उन लोगों के मन को आलोकित करे जो युद्ध कराते हैं तथा निर्दोष लोगों को पीड़ित होने से बचाये। शरणार्थियों की मदद में कलीसियाएँ एकजुटता का महान साक्ष्य दे रही हैं। मैं सोचता हूँ कि यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि वे युद्ध के अंत हेतु याचना करते रहें। युद्ध, घृणा और हिंसा को किसी तरह से भी न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता।   

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12 March 2022, 15:41