इराक के काराकोश शहर में स्थित गिरजाघर में ख्रीस्तयाग में भाग लेते विश्वासी इराक के काराकोश शहर में स्थित गिरजाघर में ख्रीस्तयाग में भाग लेते विश्वासी 

इराक: कलीसिया और देश के ख्रीस्तीय समुदायों का अवलोकन

संत पापा फ्राँसिस 5 से 8 मार्च तक इराक की पहली प्रेरितिक यात्रा करेंगे। हम यहाँ देश के प्राचीन विभिन्न ख्रीस्तीय समुदायों, उनकी दुर्दशा और उनकी चुनौतियों का अवलोकन प्रस्तुत कर रहे हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

इराक, मंगलवार, 2 मार्च 2021 (रेई)- ख्रीस्तीय धर्म अपने शुरूआती समय से ही यहाँ मौजूद है जैसा कि प्रेरित चरित हमें बतलाता है। इसका उदगम पहली शताब्दी में प्रेरित संत थॉमस एवं उनके शिष्य अद्दाई और मारी के सुसमाचार प्रचार में हुआ जो पूर्वी एशिया तक फैला है। अतः इराक बाईबिल एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सभी ख्रीस्तियों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसने इसके इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

अत्याचार एवं भेदभाव का इतिहास

इराकी ख्रीस्तीय समुदाय, जो आज खलदेई, अस्सेरियाई, अर्मेनियाई, लातीनी, मेलकाईट, ऑर्थोडॉक्स और प्रोटेस्टंट समुदायों से बना है उन्हें इस्लाम के आगमन एवं इराक की आजादी के समय तक अत्याचार का सामना करना पड़ा है। सद्दाम हुसैन के धर्मनिरपेक्ष शासन के तहत, ख्रीस्तियों को कुछ समय के लिए समझौता का अवसर मिला। जिसने ख्रीस्तियों को कुछ समय के लिए अपनी धार्मिक गतिविधियों और उदार कार्यों को जारी रखने दिया, विशेषकर, अस्सी के दशक में युद्धों के बाद, इराकी ख्रीस्तियों ने विदेशों में कई समुदायों की स्थापना शुरू की।

घटती संख्या, 2003 के बाद और 2014 से 2017 के बीच पलायन

भारी संख्या में पलायन 2003 में, अमेरिका के नेतृत्व में सैन्य हस्तक्षेप से शुरू हुई (जब वहाँ असुरक्षा, हिंसा की स्थिति थी) तथा 2014 और 2017 के बीच हुई जब देश के उत्तरी भाग में तथाकथित "इस्लामिक स्टेट" की स्थापना की गई।     

द्वितीय खाड़ी युद्ध के ठीक पहले इराक में ख्रीस्तियों की कुल संख्या करीब 1 से 1.4 मिलियन के बीच (कुल आबादी का 6 प्रतिशत) थी। जबकि चर्च इन नीड फाऊँडेशन के आधार पर इनकी संख्या बमुश्किल 3,00,000- 4,00,000 रह गई है।

2003 और मार्च 2015 तक करीब 1,200 ख्रीस्तियों की हत्या हुई है जिनमें मोसुल के खलदेई महाधर्माध्यक्ष पौलुस राह्हो भी शामिल हैं। उनकी हत्या 2008 में हुई थी। 31 अक्टूबर 2010 को जिहादियों ने "माता मरियम हमारी सहायिका", सीरियाई काथलिक गिरजाघर में हमला कर, 5 अन्य पुरोहितों एवं 48 लोकधर्मियों की हत्या की थी और 62 गिरजाघरों को ध्वस्त अथवा क्षतिग्रस्त कर दिया था।  

निन्हवे प्रांत पर आईएस का आधिपत्य, जो मेसोपोटामिया के ख्रीस्तीय धर्म का केंद्र था, ख्रीस्तियों को उस प्रांत से पूरी तरह खाली कर दिया। 1,00,000 से अधिक ख्रीस्तीय, अन्य अल्पसंख्कों (याजिदी) के साथ अपना घर छोड़कर भागने लगे। उनमें से कई परिवारों ने इराक के कुरदिस्तान में शरण ली, खासकर अंकावा में। एरबिल के ख्रीस्तीयों ने जॉर्डन, सीरिया, तुर्की और लेबनान के शरणार्थी शिविरों में या यूरोप एवं अन्य देशों में शरण मांगी। हाल के वर्षों में इराक के कुर्दिस्तान से भी करीब 55,000 इराकी ख्रीस्तीय निर्वासित हुए हैं। कई गिरजाघरों एवं ख्रीस्तीय सम्पति को नष्ट अथवा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त किया गया है। ख्रीस्तीय ऐतिहासिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मोसुल के खलदेई महाधर्माध्यक्ष नाजिब मिखाएल मूसा के द्वारा बचा लिया गया है जिन्होंने करीब 800 ऐतिहासिक पांडुलिपि के दस्तावेजों को बचा लिया है और उसके लिए उन्हें 2020 में यूरोपीय संघ द्वारा सखारोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

असुरक्षा और संप्रदायवाद इराकी ईसाइयों के लिए खतरा

2017 में इराक के खलीफा की सैन्य हार के बाद, ख्रीस्तीय विश्वव्यापी कलीसिया (एड टू द चर्च इन नीड) की मदद से धीरे-धीरे निन्हवे प्रांत में लौट रहे हैं। आज करीब 45 प्रतिशत निन्हवे प्रांत के ख्रीस्तीय अपने घर लौट चुके हैं जबकि प्रांत के 80 प्रतिशत गरजाघरों का पुनःनिर्माण किया जा रहा है।    

एड टू द चर्च इन नीड की मदद से प्रांत में ख्रीस्तियों के करीब 57 प्रतिशत क्षतिग्रस्त घरों की मरम्मत की जा रही है जो ख्रीस्तियों को अपने समुदायों में वापस लौटने का प्रोत्साहन दे रहे हैं।

फिर भी, सुरक्षा की कमी और स्थानीय सेना एवं विद्रोही दलों के द्वारा उत्पीड़न, डराना और मांग, इराक के ख्रीस्तीय समुदाय के लिए खतरा का कारण बना हुआ है। इस बात की पुष्टि 2020 में प्रकाशित "आईएसआईएस के बाद जीवन ˸ इराक में ख्रीस्तियों की नई चुनौतियाँ" की रिपोर्ट में मिलती है। "ऑपन डोर्स" ने भी इसकी पुष्टि दी है जो एक ख्रीस्तीय संगठन है और विश्वभर में प्रताड़ित ख्रीस्तियों की मदद करता है। इसने इराक में "आशा केंद्र" की पहल को बढ़ावा दिया है।   

एक शांतिपूर्ण और बहुलवादी इराक में पूर्ण नागरिकता की आकांक्षा

असुरक्षा, राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिकता किन्तु भ्रष्टाचार एवं आर्थिक संकट ने भी कोविड-19 महामारी के समय स्थिति को बदतर कर दिया है, जो ख्रीस्तियों को देश में रहने अथवा अपने घर लौटने के लिए निरूत्साहित कर रहा है। एकजुट और जिहादी मुक्त इराक में अपने भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए, उन्हें अपनी पूर्ण नागरिकता के सभी मान्यताओं से ऊपर उठने की आवश्यकता है। यही कारण है कि ख्रीस्तीय कलीसियाओं को लम्बे समय से धर्मनिरपेक्ष संविधान के लिए जोर देना पड़ रहा है ताकि वे इराक की राजनीति एवं सामाजिक जीवन में अधिक सक्रिय भूमिका अदा कर सकें। 2005 में स्वीकृत संवैधानिक अध्याय, औपचारिक रूप से धार्मिक स्वतंत्रता के लिए सम्मान की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 2 वास्तव में इस्लाम को आधिकारिक राष्ट्रीय धर्म और कानून के प्राथमिक स्रोत के रूप में स्थापित करता है। इस्लाम, इराकी प्रणाली में अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए एक विशेषाधिकार प्राप्त धर्म है।

खलदेई प्राधिधर्माध्यक्ष लुईस रफाएल साको ने एक मजबूत और बहुलतावादी राज्य का निर्माण करने के लिए सभी पक्षों के बीच एक खुले संवाद के महत्व पर जोर देते हुए, इस मुद्दे को बार-बार उठाया है, जिसमें सभी नागरिकों का सम्मान हो, चाहे उनका धर्म और जातीयता कुछ भी हो। इसको अगस्त 2019 में खलदेई कलीसिया के अंतिम धर्माध्यक्षीय धर्मसभा में भी दोहराया गया था, जिसने "समानता, न्याय, कानून" पर आधारित एक राज्य का आह्वान किया था, जो सरकारी संस्थानों में ईसाइयों के लिए उचित प्रतिनिधित्व को मान्यता देता है।

इराकी कलीसियाओं ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मुस्ताफा अल कदिमी का समर्थन प्राप्त किया है। 7 मई 2020 में जब अल कदिमी ने कार्यभार संभाला, तब से उन्होंने ख्रीस्तियों के पलायन को रोकने एवं उन्हें देश के निर्माण में सहभागी बनाने की इच्छा जाहिर की है। उन्होंने जोर देकर कहा है कि वे इराकी समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं। इस शब्दों को कार्य रूप में परिणत किया जाना है। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण कुछ दिनों पूर्व सामने आया है जब इराकी संसद ने ख्रीस्त जयन्ती को देशभर में एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में मान्यता दी। यहां तक कि शिया नेता मुक़्तदा अल सदर, शक्तिशाली सद्रिस्ट पार्टी के प्रमुख, ने इराकी ईसाई समुदाय के साथ बातचीत करने की इच्छा दिखाई है, जो पिछले वर्षों में चोरी की गई सम्पति को उनके वैध मालिकों को वापस कर रहे हैं।

इराकी ख्रीस्तियों के लिए परमधर्मपीठ की चिंता

इराक में ख्रीस्तियों की दुर्दशा पर परमधर्मपीठ की हमेशा चिंता रही है, खासकर, 2003 में जब द्वितीय खाड़ी युद्ध शुरू हुआ, जिसका संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने जमकर विरोध किया था। जैसा कि उन्होंने 1991 में चेतावनी दी थी, कहा था कि "इराक की जनता के लिए और मध्य पूर्व क्षेत्र के संतुलन के लिए एवं इससे उत्पन्न होनेवाले चरमपंथी समूह के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सैन्य अभियान का जबरदस्त परिणाम होगा।" (देवदूत प्रार्थना, मार्च 16,2003) पोप जॉन पौल द्वितीय इसके नतीजों से पूरी तरह सचेत थे कि द्वितीय खाड़ी युद्ध का इराक के ख्रीस्तीय समुदाय एवं वहाँ के पूरे क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा।

2014 में इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट की स्थापना ने उनकी स्थिति को बदतर कर दिया। इस संदर्भ में, पोप फ्रांसिस ने भी "प्रिय इराकी लोगों के प्रति" अपनी निकटता को लगातार व्यक्त की है। दिसंबर 2018 में इराक की अपनी यात्रा के दौरान वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो पेरोलिन ने परमधर्मपीठ की चिंता की पुष्टि की थी। उन्होंने नफरत पर काबू पाने के महत्व पर जोर दिया था और इराकी ख्रीस्तीय साक्ष्य के लिए कलीसिया की ओर से कृतज्ञता व्यक्त की थी - जिसमें उन्होंने कहा था - दुनिया में सभी ख्रीस्तियों के लिए वे एक जीवित उदाहरण बन गये हैं।

पोप फ्रांसिस ने जब 2020 में इराक की यात्रा करने की इच्छा व्यक्त की था तब उन्होंने आशा व्यक्त की थी कि 10 जून 2019 को पूर्वी कलीसियाओं के लिए सहायता एजेंसियों के पुनर्मिलन के दौरान, "धार्मिक सहित समाज के सभी तत्वों की ओर से आमहित के शांतिपूर्ण और साझा खोज के माध्यम से इराक, भविष्य का सामना कर पायेगा।"

राष्ट्रपति बेरहम सलीह के वाटिकन में 25 जनवरी 2020 को दूसरी आधिकारिक यात्रा के दौरान संत पापा ने देश में ख्रीस्तियों की ऐतिहासिक उपस्थिति को संरक्षित करने के महत्व और उनकी सुरक्षा की गारंटी देने की आवश्यकता एवं इराक के भविष्य पर बातें की थीं। जिसमें देश के सामने मौजूद चुनौतियों और स्थिरता को बढ़ावा देने एवं पुनर्निर्माण की प्रक्रिया के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

पोप फ्रांसिस ने 10 दिसम्बर 2020 को सीरियाई और इराकी मानवीय संकट पर समग्र मानव विकास हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन बैठक के दौरान इराक और पूरे क्षेत्र में "ख्रीस्तीय उपस्थिति" की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। उन्होंने वीडियो संदेश में कहा था कि "हमें इन भूमियों पर ख्रीस्तियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना चाहिए ताकि यह शांति, प्रगति, तरक्की और लोगों के बीच मेल-मिलाप का चिन्ह बना रहे," और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की थी कि वह युद्ध से विस्थापित समुदायों को वापस लौटने के लिए प्रोत्साहित करे।  

इसी पृष्टभूमि पर 7 दिसम्बर 2020 को घोषित संत पापा फ्राँसिस की प्रेरितिक यात्रा का इराकी कलीसिया ने सहर्ष स्वागत किया है। संत पापा फ्राँसिस की इराक में यह प्रेरितिक यात्रा, संत पापा जॉन पौल द्वितीय की "सपने की यात्रा" के 21 वर्षों बाद आयोजित किया गया है। संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने येसु ख्रीस्त जयन्ती वर्ष 2000 में अब्राहम, मूसा, येसु और संत पौलुस के पदचिन्हों पर तीर्थयात्रा करने की योजना बनायी थी जिसे इराक की राजनीतिक स्थिति के कारण रद्द कर दिया गया था।  

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02 March 2021, 18:45