आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

हमारे “सोने के बछड़े”

बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस ने संहिता की आज्ञाओं पर धर्मशिक्षा के दौरान सोने के बछड़े पर प्रकाश डाला।

वाटिकन सिटी-दिलीप संजय एक्का

वाटिकन सिटी-बुधवार, 08 अगस्त 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम से सभागार में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को संहिता की आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
आज हम संहिता की आज्ञाओं पर अपना चिंतन जारी रखने के क्रम में, निर्गमन ग्रंथ में वर्णित “सोने के बछड़े”  की चर्चा करते हुए देवमूर्तियों की विषयवस्तु पर गहराई से विचार-मंथन करेंगे। इस घटना की एक विशिष्ट पृष्ठभूमि है, मरूभूमि में लोग मूसा की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं जो पर्वत पर चढ़कर याहवे से बातें करता और उनके निर्देशों को सुन रहा होता है।

देवमूर्तियों का निर्माण

संत पापा ने कहा कि मरूभूमि क्या हैॽ यह वह स्थान है जहाँ हम अनिश्चितता और असुरक्षा की स्थिति को पाते हैं, जहाँ पानी, भोजना और निवास की कमी होती है। मरूभूमि मानव जीवन की एक छवि को दिखलाती है जहाँ की परिस्थितियाँ अनिश्चित हैं और जहाँ हम अपने लिए सुरक्षा की कोई निश्चितताओं को नहीं पाते हैं। यह असुरक्षा मानव में मौलिक चिंताएं उत्पन्न करती हैं जिसका जिक्र येसु सुसमाचार में करते हैं, “हम क्या खायेंॽ क्या पीयेॽ क्या पहनेॽ” (मत्ती.6.31)
मरूभूमि में कुछ घटनाएँ होती हैं जो लोगों को मूर्ति पूजा की ओर अभिमुख करता है, क्योंॽ क्योंकि मूसा पर्वत पर चढ़कर वहाँ से उतरने में देर करता है।” वह पर्वत पर चालीस दिन व्यतीत करता और लोग अपने में अधीर हो जाते हैं। संत पापा ने कहा कि मूसा अपने लोगों का नेता और अगुवा है जो उन्हें दिशा-निर्देश देता और उनके लिए बल बनता है अतः वे अपने बीच में उसकी कमी महसूस करते हैं। वे अपने में विचलित हो जाते हैं। वे अपने लिए इस भांति एक दृश्यमान ईश्वर की मांग करते हैं जिसके साथ वे अपना संबंध स्थापित कर सकें जो उनकी अगुवाई करे, और यहाँ वे एक जाल में फांस जाते हैं। वे हारूण से कहते हैं, “हमारे लिए एक ईश्वर का प्रति रूप बना दीजिए जो हमारे साथ रहता है। हमारे लिए एक नेता दीजिए।” मानव स्वभाव जो अपनी जीवन की अनिश्चितता से हमेशा दूर भागता है अपने लिए एक धर्म का निर्माण करता है। वे कहते है कि ईश्वर हमें अपने रूप को नहीं दिखलाते तो हम अपने लिए उनके प्रतिरुप का निर्माण करेंगे। देवमूर्तियों के सामने हम अपने जीवन की निश्चितता और अपनी मांगों के प्रति आश्वस्त नहीं हो सकते हैं क्योंकि देवमूर्तियों के मुख हैं किन्तु वे नहीं बोलती हैं। देवमूर्तियाँ हमारे लिए एक बहाना बनती है जिसके द्वारा हम अपने को सच्चाई के केन्द्रविन्दु मे स्थापित करते हैं जहाँ हम अपने कार्यो की पूजा करते हैं।

हमारे सोने के बछड़े

संत पापा ने कहा कि हारूण लोगों की मांग का विरोध नहीं कर पाता है और उनके लिए सोने का बछड़ा तैयार करता है। प्राचीन पूर्वी प्रांत में बछड़े को दो अर्थों में देखा जाता था, एक ओर यह विकास और समृद्धि की निशानी थी तो दूसरी ओर ताकत और शक्ति को परिभाषित करता था। लेकिन सोने का बछड़ा तो अपने में सोना ही था जो धन, सफलता, शक्ति और समृद्धि को दिखलाता था। संत पापा ने कहा कि ये सारी चीजें-सफलता, शक्ति और धन-दौलत हमारी सबसे बड़ी देवमूतियाँ बनती हैं। ये हमारे लिए हमेशा से लुभावनी चीजें रही हैं। उन्होंने कहा कि यहां हमारे लिए सोने का बछड़ा यही है कि हमारी ये सारी चाहतें हमें स्वतंत्रता प्रदान करने की वस्तुएं प्रतीत होती हैं लेकिन ये हमें अपना गुलाम बना लेती हैं। संत पापा ने कहा कि देवमूर्तियाँ सदैव हमें गुलाम बनाती हैं। वे हमें मोहित करती और हम उनके जाल में पड़ जाते हैं उसी तरह जिस तरह कि सांप पक्षी को मोहित करता जिसके फलस्वरूप वह हिलने-डोलने में असक्षम हो जाती और अंत में वह उसे अपना शिकार बना लेता है।

ईश्वर में विश्वास, हमारी मजबूती

ऐसा इसलिए होता है कि हम ईश्वर में विश्वास करने हेतु अपने को अयोग्य पाते हैं। हम अपने को उनकी सुरक्षा और अपने हृदय को उनकी योजनाओं से परिपूर्ण होने नहीं देते हैं। यह हमें अपने जीवन में कमजोर, अनिश्चित और असुरक्षित बातों का सहयोग कराता है। ईश्वर के साथ हमारा संबंध हमें अपने जीवन की कमजोरियों, अपनी अनिश्चितता और असुरक्षित समय में भी हमें मजबूती प्रदान करती है। ईश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान नहीं देने की वजह से हम मूर्तिपूजा और झूठे आश्वासनों के शिकार हो जाते हैं। संत पापा ने कहा कि हम इस परीक्षा को धर्मग्रंथ में हमेशा पढ़ते हैं। हम इसके बारे में चिंतन करें, अपनी चुनी हुई प्रजा को मिस्र देश की गुलामी से मुक्त करने हेतु ईश्वर को कड़ी मेहनत नहीं करनी पड़ी लेकिन उन्होंने इसे अपने प्रेम की शक्ति से पूरा किया। लेकिन ईश्वर को मिस्र देश में लोगों के हृदय से मूर्तिपूजा को निकालने हेतु बड़ा कार्य करना पड़ा। ईश्वर हमारे हृदयों से भी हमारी देवमूर्तियों के निकलना जारी रखते हैं। संत पापा ने कहा कि हमारे हृदयों से “उस मिस्र” को निकालने में ईश्वर को मेहनत करना होता है जिसके हमें अपने जीवन में देवमूर्तियां स्वरुप वहन करते हैं।

मुक्ति का प्रवेश कमजोर द्वार

जब हम अपने जीवन येसु ख्रीस्त का स्वागत करते जो हमारे लिए मानव बन कर धरती पर आये तो हम अपने में इस बात का अनुभव करते हैं कि अपनी कमजोरियों को जानने औऱ पहचानने में हमें दूर्भाग्य का अनुभव नहीं होता, लेकिन इसके लिए हमें सचमुच शक्ति की जरुरत है। इस भांति ईश्वरीय मुक्ति कमजोर द्वार से हमारे जीवन में प्रवेश करती है। हम अपनी अयोग्यताओं के कारण ही अपने को ईश्वर पिता के हाथों में सुपुर्द करते हैं। मानव को सच्ची स्वतंत्रता सच्चे ईश्वर को एक मात्र ईश्वर के रुप घोषित करने में प्राप्त होती है। यह हमारे हृदय से देवमूर्तियों को निकालने और अपनी कमजोरियों को स्वीकारने में मदद करता है।

येसु के घावों में हमारी चंगाई

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तियों के रुप में हम कमजोर, घृणित और सारी चीजों से तिरस्कृत क्रूसित येसु की ओर अपनी निगाहें फेरते हैं। लेकिन हम उनमें सच्चे ईश्वर के चेहरे, महिमामय प्रेम को पाते हैं। नबी इसायस इसे कहते हैं, “हमें उनके घावों से चंगाई प्राप्त हुई है।” हमने उस कमजोर मनुष्य से चंगाई प्राप्त की है जो ईश्वर हैं। हमारी चंगाई हमारे लिए येसु से आती है जो हमारे लिए कमजोर बने, असफल को स्वीकार किया, उन्हें हमारी गुलामी को अपने ऊपर ले लिया जिससे वे हमें अपने प्रेम और शक्ति से भर सकें। वे हमारे लिए पिता के रहस्य को प्रकट करने हेतु आते हैं। येसु ख्रीस्त में हमारी कमजोरी हमारे लिए अभिशाप नहीं वरन यह पिता से हमारे मिलन और नये जीवन का स्रोत बनता है।
इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्माशिक्षा माला का समाप्त की और विभिन्न देशों से आये तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए अन्त में उनके साथ हे पिता हमारे का पाठ किया और सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
 

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08 August 2018, 16:12