भारत के ख्रीस्तियों द्वारा दलितों के लिए न्याय की मांग
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
भारत, मंगलवार, 13 नवम्बर 2018 (वाटिकन न्यूज)˸ भारत के काथलिक तथा प्रोटेस्टंट ख्रीस्तियों ने रविवार 11 नवम्बर को दलित मुक्ति रविवार मनाया तथा कलीसिया एवं समाज में पिछड़ी जाति के ख्रीस्तियों के प्रति भेदभाव के अंत की मांग की।
भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन में अनुसूचित एवं पिछड़ी जाति विभाग के अध्यक्ष, बेरहमपुर के धर्माध्यक्ष सरात चंद्रा नायक ने लोगों से कहा कि वे उन 100 शहीदों की याद करें जो ओडिशा में ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के कारण 10 वर्षों पहले मार डाले गये।
उन्होंने अपने संदेश में कहा कि दलित मुक्ति रविवार मनाया जाना "समस्त ख्रीस्तीय समुदाय के लिए एक बुलावा है कि वह अपने विश्वास को नवीकृत करे, अंतःकरण को जगाये, आवाजहीनों की आवाज बने तथा समाज में दुर्बल दलितों के लिए खड़ा हो।"
2007 से ही कलीसियाओं की राष्ट्रीय परिषद जिसमें प्रोटेस्टंट और ऑर्थोडॉक्स कलीसियाएं आती हैं, सीबीसीआई ने संयुक्त रूप से नवम्बर के दूसरे रविवार को, दलित मुक्ति रविवार मनाया है।
कंधमाल में 2008 की याद
2018 में दलित मुक्ति रविवार की विषयवस्तु थी, "मेरे और मेरे परिवार के लिए, हम ईश्वर की सेवा करेंगे।" यह पद योशुवा के ग्रंथ से लिया गया था।
धर्माध्यक्ष नायक एवं सीबीसीआई के महासचिव धर्माध्यक्ष थेओदोर मसकरेनहास ने कई अन्य धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों के साथ नई दिल्ली में ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा दलितों के लिए प्रार्थना की।
धर्माध्यक्ष नायक ने कहा कि कंधमाल में 2008 में ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा दलितों के सशक्तिकरण के प्रति सामाजिक असहिष्णुता की अभिव्यक्ति थी। वे अत्यन्त गरीब थे जिन्हें सीधे मार डाला गया। हम उनके विश्वास के साक्ष्य को भूल नहीं सकते।
दलित एवं आदिवासियों के लिए धर्माध्यक्षों के कार्यालय के सचिव फादर देवासागायाराज जकारियस ने उका समाचार से कहा कि पूरे भारत की पल्लियों में दलितों के अधिकारों तथा उनके प्रति भेदभाव नहीं किये जाने हेतु प्रार्थना अर्पित की गयी।
सीबीसीआई के महासचिव धर्माध्यक्ष थेओदोर मसकरेनहास ने कहा कि यह दिन हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हम साल में कम से कम एक बार दलितों की याद विशेष रूप से करते हैं। यह यादगारी सालभर बनी रहे।
एनसीसीआई के दलित एवं आदिवासी कार्यालय के महासचिव प्रदीप बन्सरियर ने कहा कि दलित लोगों की चिंता करना सुसमाचार एवं हमारे विश्वास के केंद्र में एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा है।
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