अल्पसंख्यक दिवस के दिन एकत्रित पाकिस्तानी अल्पसंख्यक अल्पसंख्यक दिवस के दिन एकत्रित पाकिस्तानी अल्पसंख्यक 

पाकिस्तान में 10 दिसंबर "मानव अधिकारों का काला दिन"

संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर को अतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के रूप में चिह्नित किया है। लेकिन उस दिन, पाकिस्तानी ईसाइयों और धार्मिक अल्पसंख्यकों ने मुसलमानों द्वारा अपनी महिलाओं और लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ विरोध करने की योजना बनाई है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

लहौर, बुधवार 09 दिसम्बर 2020 (वाटिकन न्यूज) : बढ़ती हिंसा और अपरिहार्य अधिकारों के उल्लंघन के विरोध में 10 दिसंबर को ‘अतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस’ पर पाकिस्तान में ईसाई और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ कमजोर और रक्षाहीन लोग पाकिस्तान में "मानव अधिकारों का काला दिवस" मनाना रहे हैं।

वाटिकन के फीदेस समाचार अनुसार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, अल्पसंख्यक अधिकारों के रक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, साथ ही पाकिस्तान में राजनीतिक और नागर समाज के नेता, सभी नागरिकों को देश के लिए इस "सभ्यता और लोकतंत्र की लड़ाई" में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं,

मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है, जिस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की थी। मानवाधिकारों के इतिहास में एक मील का पत्थर, पहली बार घोषित किया गया।  सभी के मौलिक अधिकार सार्वभौमिक रूप से संरक्षित होने चाहिए।

विधान और प्रवर्तन की जरूरत

लाहौर में मानव और अल्पसंख्यक अधिकारों के प्रसिद्ध कार्यकर्ता खालिद शहजाद ने कहा, "हम अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस को 'ब्लैक डे' के रूप में मनाने के लिए हमारी मांग में शामिल होने के लिए विशेष रूप से हमारे ईसाई समुदाय को प्रोत्साहित करते हैं, " मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को हर दिन रौंद दिया जाता है। हमारी बेटियों का अपहरण कर लिया जाता है और जबरन धर्मांतरित किया जाता है, साथ ही उनके अपहरणकर्ताओं से शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है, अक्सर पुलिस द्वारा समर्थित होते हैं क्योंकि वे मुस्लिम हैं, "उन्होंने फीदेस को बताया।

खालिद शहजाद विकलांग बच्चों के लिए एक संस्था भी चलाते हैं, उनहोंने बताया कि वे सभी ईसाई और हिंदू लड़की और महिला पीड़ितों की आवाज़ बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “हमें उचित कानूनों और मौजूदा कानूनों को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। हम धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की मांग करते हैं, विशेष रूप से महिलाओं और नाबालिगों को, अपराधी आसानी से अपने चंगुल में फंसा देते हैं।"

फराह शाहीन का मामला

विरोध 12 वर्ष की ईसाई लड़की, फराह शाहीन का 5 महीने बाद 5 दिसंबर को बचाव के मद्देनजर आता है। फराह शाहीन को मुस्लिम पुरुषों ने कथित तौर पर अपहरण कर लिया और उसे जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर दिया और उनमें से एक ने उससे शादी कर ली। खालिद शहजाद ने कहा कि लड़की के टखनों और पैरों में चोटों के निशान मिले हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी ने दस्तावेजों को गलत बताया, फराह की उम्र 17 वर्ष थी। पुलिस की मिलीभगत के कारण, परिवार पिछले सितंबर को शिकायत दर्ज कर पाया। उनके बचाव के बाद, पुलिस ने पिछले हफ्ते फैसलाबाद की जिला अदालत के सामने फराह शाहीन को पेश किया और अदालत ने एक आश्रय गृह में भेज दिया।

न्याय जरुरी

"पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय गठबंधन" के अध्यक्ष लाला रॉबिन दानियल ने भी सभी नागरिकों से 10 दिसंबर को "मानव अधिकारों का काला दिन" के रूप में मनाने की अपील की है। उन्होंने कहा, “फराह शाहीन का मामला अनुकरणीय है। न्याय करना अत्यावश्यक है। ”

पिछले महीने, एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि प्रधान मंत्री इमरान खान ने इस मुद्दे के कारणों का पता लगाने के लिए अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से ईसाई और हिंदू से संबंधित नाबालिग लड़कियों के जबरन धर्मांतरण की घटनाओं के मामले की जांच करने का आदेश दिया है। " लाहौर में 30 नवंबर को संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में पीएम के विशेष प्रतिनिधि ताहिर महमूद अशरफी ने कहा, “कानून और अधिकार सभी के लिए समान हैं। ईसाई, हिंदू, सिख और अल्पसंख्यकों की बेटियां हमारी भी बेटियां हैं।”

सामाजिक न्याय केंद्र के अनुसार, 2013 और नवंबर 2020 के बीच मीडिया में 162 संदिग्ध धर्मांतरण रिपोर्ट किए गए थे। 2019 में सबसे अधिक मामले (49) दर्ज किए गए। पंजाब प्रांत में लगभग 52 प्रतिशत जबरन धर्मांतरण हुआ और 44 प्रतिशत सिंध में हुआ।

पीड़ितों (लड़कियों और महिलाओं) में 54 प्रतिशत से अधिक हिंदू समुदाय के थे, जबकि 44 प्रतिशत ईसाई थे। पीड़ितों में 46 प्रतिशत से अधिक नाबालिग थे, जिनमें लगभग 33 प्रतिशत 11-15 वर्ष के थे।

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09 December 2020, 14:50