भीड़ द्वारा हत्या का विरोध करते लोग भीड़ द्वारा हत्या का विरोध करते लोग 

भारत की कलीसिया ने भीड़ द्वारा हत्याओं की निंदा की

मानव अधिकार संगठनों का कहना है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक हमले 2014 में सत्ता पर हिन्दू समर्थक मोदी सरकार के आने के बाद बढ़े हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

भारत, मंगलवार, 30 जुलाई 2019 (ऊकान)˸ काथलिक कलीसिया ने देश के 49 प्रमुख लोगों द्वारा धर्म के नाम पर हो रही हिंसा को रोकने पर कार्रवाई किये जाने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र का समर्थन किया है।

49 फिल्म निर्माताओं, कार्यकर्ताओं एवं विशेषज्ञों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि क्रूर हमले देश पर भारी पड़ रहे थे और खासकर "जय श्री राम" के नारे को युद्ध-घोष के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।  

मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि हिन्दू चरमपंथियों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले किये हैं और उन्हें हिन्दू धर्म एवं संस्कृति स्वीकार करने पर दबाव डालते हुए नारे लगाने को मजबूर किया है। इस तरह हाल के दिनों में भीड़ के हाथों कई लोगों की जानें गई हैं।  

पत्र में हिन्दू धर्म को राजनीति का प्रमुख मुद्दा बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार की निंदा की गयी है जिन्होंने अयोध्या में राम मंदिर बनाने का वादा किया है। पार्टी ने भारत में "राम राज की वापसी" या हिन्दू शासन की प्रतिज्ञा की है जिसके कारण इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं।  

कहा गया है कि मुस्लिम, दलित और अन्य अल्पसंख्यकों के भीड़ के हाथों मारे जाने को तत्काल रोका जाए।

अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संगठनों का कहना है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक हमले 2014 में सत्ता पर हिन्दू समर्थक मोदी सरकार के आने के बाद बढ़े हैं।  

जर्नालिज्म वेबसाईट के अनुसार 2015 से अब तक कुल 47 लोगों को भीड़ ने गाय के मामलों में मार डाला है। 300 लोगों पर किये गये हमलों में 70 प्रतिशत मुस्लिम हैं और बाकी दलित अथवा ख्रीस्तीय हैं।

भीड़ द्वारा लोगों पर हमले अकसर गाय के सम्मान में किये जाते हैं जिनपर गाय के मांस का सेवन करने, उसे एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने, गाय की हत्या करने अथवा उसका व्यापार करने का आरोप लगाया जाता है।  

मशहूर हस्तियों ने कहा है कि वे सरकारी आंकड़ों से "जानकर हैरान" थे कि वर्ष 2016 में दलितों पर अत्याचार के करीब 840 उदाहरण मिले हैं।

दिल्ली महाधर्मप्रांत ने पत्र लिखने के इस प्रयास का समर्थन किया है तथा कहा है कि यह एक महत्वपूर्ण उपाय है।

दिल्ली महाधर्मप्रांत के प्रवक्ता फादर सावरिमुतु संकर ने कहा, "कमजोर समूहों और समुदायों के खिलाफ लक्षित भीड़ हिंसा के ऐसे कामों के खिलाफ आवाज उठाना बेहद जरूरी है।"

मुम्बई महाधर्मप्रांत के प्रवक्ता फादर निगेल बैरट ने ऊका समाचार को बतलाया कि “धर्म के नाम पर हिंसा का कोई भी कार्य किसी भी देश के हित में नहीं होता।"

उन्होंने कहा “यह सही समय है जब बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के नेता आगे आये हैं और हिंदू धर्म के वास्तविक सिद्धांतों के बारे में बहुत स्पष्ट रूप से बात की है।"

नई दिल्ली के मानव अधिकार कार्यकर्ता अल्लेन फ्राँसिस ने ऊका समाचार से कहा कि यह पत्र आँख खोलने के समान है ताकि सरकार महसूस कर सके कि इस देश में कुछ चीज़ बहुत गलत चल रहा है।”

उन्होंने कहा, "आप किसी धर्म को मान सकते हैं या धर्म को नहीं भी मान सकते हैं किन्तु यह किसी व्यक्ति को जान से मार डालने का कारण नहीं होना चाहिए। यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण हो गया है कि आज भारत में मनुष्यों की अपेक्षा गाय अधिक सुरक्षित है। किसी को इसके लिए खड़ा होकर आवाज उठाने की जरूरत है।"

फ्राँसिस ने कहा कि सरकार को "गरीब मुसलमानों, ख्रीस्तियों और (सामाजिक रूप से गरीब) दलितों को निशाना बनाने वाली "भीड़ की महामारी" को रोकने वाले कानूनों को लागू करना चाहिए।"

हिन्दू प्रभुत्व वाले राष्ट्र के निर्माण की इच्छा रखने वाले चरमपंथी हिंदू समूहों का दावा है कि भारत उनकी भूमि है और धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों को हिंदू वर्चस्व स्वीकार करना चाहिए, अगर वे देश में बने रहना चाहते हैं।

भारत में हिन्दूओं की कुल संख्या 80 प्रतिशत है जबकि मुसलमानों की संख्या 14 प्रतिशत एवं ख्रीस्तियों की संख्या 2.3 प्रतिशत।

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30 July 2019, 17:19