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विश्वास, धैर्य, शहादत, चमत्कार ˸ पोप करेंगे 10 नये संतों को सम्मानित

महामारी के कारण लम्बे विराम के बाद संत पापा फ्राँसिस 15 मई को 10 नये संतों की संत घोषणा कर, उन्हें काथलिक कलीसिया में सम्मानित करेंगे। संत घोषणा समारोह संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में पूर्वाहन 10.00 (भारत समय अनुसार दोपहर 1.30) बजे पावन ख्रीस्तयाग के साथ सम्पन्न करेंगे। इन संतों में पाँच इटली से, तीन फ्राँस से, एक भारत से और एक निदरलैंड से हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 14 मई 2022 (क्रूक्स) ˸ संत घोषणा समारोह इससे पहले 13 अक्टूबर 2019 को सम्पन्न हुआ था जिसमें संत पापा फ्राँसिस ने संत जॉन हेनरी न्यूमन और चार अन्यों की संत घोषणा की थी।

10 नये संतों के नाम इस प्रकार हैं- संत देवसहायम पिल्लाई, संत चेसर दी बुस, संत लुइजी मरिया पालाजोलो, संत चार्ल्स दी फौकल्ड,  संत जुस्तिनो मरिया रूसोलिलो, संत तितुस ब्रैंडस्मा, संत अन्ना मरिया रूबातो, संत मरिया दोमेनिका मंतोवानी, संत मरिया रिवियर और संत करोलिना संतोकनाले।

इन नये संतों के साथ संत पापा फ्राँसिस ने अपने प्रशासन काल में कुल 909 संतों की आधिकारिक घोषणा की है। इस आंकड़े में 813 "ओट्रेंटो के शहीद" शामिल हैं, जो 1480 में दक्षिणी इटली शहर में मारे गए थे और 2013 में संत घोषित किए गए।

संत देवसहायम पिल्लाई
संत देवसहायम पिल्लाई

संत देवसहायम पिल्लाई

संत देवसहायम पिल्लाई भारत के एक लोकधर्मी थे। उनका जन्म 1712 में एक उच्च वर्ग के एक हिन्दू परिवार में हुआ था, सन् 1745 में ख्रीस्तीय धर्म स्वीकार करने के बाद उनका नाम लाजरूस रखा गया। हिन्दू पूजा पाठ में भाग नहीं लेने एवं सभी लोगों की समानता की शिक्षा का प्रचार करने और हिन्दूओं की जाति प्रथा का बहिष्कार करने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया एवं प्रताड़ित किया गया तथा 1752 में वे शहीद हो गये। उनकी संत घोषणा के साथ ही पिल्लई संत की उपाधि प्राप्त करनेवाले पहले भारतीय लोकधर्मी हो जायेंगे।

वाटिकन ने संत देवसहायम पिल्लाई के माध्यम से हुई उस चमत्कार को स्वीकार किया है जिसमें "एक भारतीय महिला की गर्भावस्था के 20वें सप्ताह में मरे हुए भ्रूण को पुनर्जीवन मिला।"

संत चेसार दी बुस

फांस में जन्में संत चेसार दी बुस क्रिश्चियन डॉक्ट्रीन (ख्रीस्तीय धर्मसिद्धांत) धर्मसमाज के संस्थापक हैं। जो शिक्षा, प्रेरितिक कार्यों एवं धर्मशिक्षा के लिए समर्पित है। उनका जन्म 1544 में हुआ था। करीब 30 साल की उम्र में जब उनका मन परिवर्तन हुआ तब उन्होंने अपना जीवन प्रार्थना और गरीबों की सेवा में समर्पित किया। 1582 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। उन्होंने लोकधर्मियों को विश्वास में प्रशिक्षित किया तथा गाने एवं कविताएँ लिखीं। उनका निधन 1607 में हुआ।   

वाटिकन ने उनके माध्यम से 2016 में इटली के सलेरनो में एक युवा महिला के मस्तिस्क की बीमारी से (एसिनेटोबैक्टर बाउमन्नी मेनिन्जाइटिस) चंगाई को मान्यता दी है।

संत लुईजी मरिया पालाजोलो

संत लुईजी मरिया पालाजोलो एक इताली पुरोहित और गरीबों की धर्मबहनों के धर्मसंघ के संस्थापक हैं। 1827 में जन्मे फादर लईजी का पुरोहिताभिषेक 1850 में हुआ था। कहा जाता है कि उस समय बहुत सारे पुरोहित थे जिनमें से अधिकांश धनी परिवारों के थे और अपने ही घरों में रहकर उदारता पूर्वक अच्छे कार्यों को करते थे उन्हीं के समान डॉन लुईजी ने युवों के लिए अपने आपको समर्पित किया। उन्होंने एक स्कूल खोला जहाँ शाम के समय लिखने और पढ़ने के लिए क्लास दिये जाते थे। उसके बाद उन्होंने गरीबों की धर्मबहनों के धर्मसंघ की स्थापना की।    

संत लुईजी मरिया पालाजोलो को संत घोषणा के लिए मान्यता उस चमत्कार से मिली है उसमें गरीब धर्मबहनों के धर्मसंघ की एक इताली धर्मबहन शामिल है जो आंत की समस्या से पीड़ित थी। 2016 में डॉक्टरों ने उसकी मृत्यु को निश्चित बतलाया था और उसका इलाज करना बंद कर दिया था, किन्तु वह संत लुईजी मरिया पालाजोलो द्वारा विन्ती करने पर ठीक हो गई।  

संत जुस्तिनो मरिया रूसोलिलो

संत जुस्तिनो मरिया रूसोलिलो एक इताली पुरोहित थे। 1913 में अपने पुरोहिताभिषेक के दिन उन्होंने एक धर्मसंघ की स्थापना करने की प्रतिज्ञा की जो पुरोहिताई की बुलाहट को बढ़ावा देगा। यद्यपि उनकी पहली कोशिश को धर्माध्यक्ष ने रोक दिया। तथापि बाद में उन्होंने दिव्य बुलाहट के धर्मसमाज एवं वॉकेशनालिस्ट धर्मबहनों के धर्मसंघ की स्थापना की।

उनके माध्यम से 2016 में दिव्य बुलाहट के धर्मसंघ के एक युवा सदस्य को चंगाई मिली जो तीव्र श्वसन विफलता और मिरगी के दौरे के बाद कोमा में था।

संत चार्ल्स दी फौकल्ड

संत चार्ल्स दी फौकल्ड का जन्म फ्रांस में 1858 में हुआ था। वह अपने किशोरावस्था में विश्वास से दूर था लेकिन मोरोक्को में एक यात्रा के दौरान उसने मुस्लिम लोगों को अपने विश्वास में वफादार देखा, जिसने उन्हें कलीसिया की ओर वापस लाया और उसने ट्रापिस्ट धर्मसमाज में प्रवेश किया। फ्राँस और सीरिया में मठों में रहने के बाद उसने एक सन्यासी के रूप में अधिक कठोर जीवन की मांग की। 1901 में पुरोहिताभिषेक के बाद उन्होंने गरीबों के साथ जीवन व्यतीत किया और 1916 में लुटेरों द्वारा मार डाले गये। मरने के बाद उनके लेखों ने कई लोगों को प्रभावित किया।

उनके माध्यम से चार्ल नामक बढ़ाई को चंगाई मिली जो एक गिरजाघर मरम्मत करते समय 50 फीट की ऊंचाई से गिर गया था और गंभीर रूप से घायल हो गया था।      

संत अन्ना मरिया रूबातो

संत अन्ना मरिया रूबातो, मदर रूबातो की कपुचिन धर्मबहनों के धर्मसंघ की संस्थापिका थीं। उनका जन्म इटली में 1844 को हुआ था और निधन उरूग्वे में 1904 में हुआ।

उनके माध्यम से मार्च 2000 में उरूग्वे के एक युवक को चंगाई मिली जो कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित था और उसके बचने की कोई गुंजाईश नहीं थी।

संत मरिया दोमेनिका मंतोवानी

संत मरिया दोमेनिका मंतोवानी पवित्र परिवार की छोटी धर्मबहनों के धर्मसंघ की संस्थापिका एवं प्रथम सुपीरियर जेनेरल थीं। उनका जन्म 1862 में इटली में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए समर्पित किया तथा रोगियों एवं बुजूर्गों की मदद की। उनका निधन 1934 में हुआ।

संत तितुस ब्रांदस्मा

संत तितुस ब्रांदस्मा का जन्म निदरलैंड में 1881 में हुआ था। उन्होंने 1898 में कार्मेलाईट धर्मसमाज में प्रवेश किया। 1905 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, यहूदियों का बचाव करने और काथलिक अखबारों को नाजी प्रचार न छापने के लिए प्रोत्साहित करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और देशद्रोह के आरोप में डकाऊ नजरबंद शिविर भेज दिया गया जहाँ 1942 में इंजेक्शन देकर उन्हें मार डाला गया।

संत मरिया रिवियर

संत मरिया रिवियर एक फ्रांसीसी महिला थीं, जिन्होंने 1796 में फ्राँसीसी क्रांति के समय माता मरियम के समर्पण की धर्मबहनों के धर्मसंघ की स्थापना की, ऐसे समय में जब कई काथलिक कॉन्वेंट एवं धार्मिक क्रिया-कलाप बंद कर दिये गये थे। उनका जन्म 1768 में हुआ था और निधन 1838 में हुआ।

संत करोलिना संतोकनाले

संत करोलिना संतोकनाले एक इताली धर्मबहन थी जिसने लूर्द की निष्कलंक मरियम की कपुचिन धर्मबहनों के धर्मसंघ की स्थापना की। उनका जन्म 1852 को हुआ था और निधन 1923 को हुआ।

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14 May 2022, 15:03