पालियुम प्रदान करते संत पापा फ्रांसिस पालियुम प्रदान करते संत पापा फ्रांसिस 

पालियुम के वितरण में परिवर्तन से एकता समृद्ध

संत पापा के धर्मविधिक समारोहों की व्यवस्था के अध्यक्ष मोन्सिन्योर ग्वीदो मरिनी ने नये महाधर्माध्यक्षों को पालियुम प्रदान किये जाने में पोप फ्रांसिस द्वारा परिवर्तन लाये जाने का स्पष्टीकरण दिया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 29 जून 2021 (रेई)- संत पापा फ्रांसिस ने नये महाधर्माध्यक्षों को संत पेत्रुस एवं संत पौलुस के पर्व के दिन पालियुम प्रदान करने की रीति में परिवर्तन किया है।

प्रेरितिक राजदूतों को प्रेषित दिनांक 12 जनवरी 2015 के पत्र में परमधर्मपीठ के धर्मविधिक समारोहों के संचालक मोनसिन्योर ग्वीदो मरिनी ने नये महाधर्माध्यक्षों को पालियुम प्रदान किये जाने हेतु संत पापा के निर्णय की घोषणा की है। श्वेत कंधपट्ट भले चरवाहे येसु द्वारा भेड़ को अपने कंधे पर लेने का प्रतीक है। मोनसिन्योर ग्वीदो ने कहा कि उसे पहुँचा दिया जाएगा न कि परम्परा के अनुसार 29 जून को संत पेत्रुस एवं संत पौलुस के महापर्व के दिन पोप के द्वारा प्रदान किया जाएगा। पालियुम प्रदान करने का कार्यक्रम नये महाधर्माध्यक्ष के मूल महाधर्मप्रांत में स्थानीय प्रेरितिक राजदूत द्वारा सम्पन्न किया जाएगा।

मोन्सिन्योर ग्विदो मरिनी ने संत पापा के इस महत्वपूर्ण निर्णय के बारे वाटिकन रेडियो को बतलाया।   

उन्होंने कहा, "पिछले दिनों संत पापा फ्रांसिस ने चिंतन करने के बाद, वर्ष के दौरान महाधर्माध्यक्षों को पालियुम प्रदान किये जाने की परम्परा में एक छोटा बदलाव लाने का निर्णय लिया है। संशोधन इस प्रकार है ˸ पालियुम को आमतौर पर, संत पेत्रुस एवं पौलुस के महापर्व के दिन प्रदान किया जाता था। अगले 29 जून संत पेत्रुस एवं पौलुस के महापर्व के दिन से, महाधर्माध्यक्ष- परम्परा के अनुसार रोम में उपस्थित होंगे, संत पापा के साथ मिस्सा में सहअनुष्ठाता के रूप में भाग लेंगे, पालियुम की आशीष की धर्मविधि में सहभाग होंगे किन्तु वहाँ उन्हें पालियुम प्रदान नहीं किया जएगा। उन्हें अधिक साधारण एवं व्यक्तिगत रूप से पालियुम प्रदान किया जाएगा जिसको उन्हें अपने ही महाधर्मप्रांत में स्थानीय कलीसिया के विश्वासियों की उपस्थिति में प्रदान की जाएगी।

सवाल- इस बदलाव का क्या अर्थ है?

उत्तर – बदलाव लाने का अर्थ है नये महाधर्माध्यक्ष का स्थानीय कलीसिया के साथ संबंध पर प्रकाश डालना। साथ ही, इस धर्मविधि में अधिक विश्वासियों को सहभागी होने का अवसर देना कि वे इसके महत्व को समझ सकें और खासकर, महाधर्मप्रांत में आने वाले दूसरे धर्मप्रांत भी इस धर्मविधि में भाग ले सकें। इस तरह 29 जून के समारोह के अर्थ को बनाये रखा जा सकता है जो पोप एवं नये महाधर्माध्यक्ष के बीच एकता एवं पदानुक्रमिक एकजुटता के संबंध को रेखांकित किया जा सकता है, साथ ही, स्थानीय कलीसिया के साथ इस महत्वपूर्ण संबंध को प्रकट किया जा सके। इस तरह यह एकता के अर्थ को समृद्ध करेगा।   

 

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29 June 2021, 16:24