वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पियेत्रो पारोलीन वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पियेत्रो पारोलीन 

आवश्यकता है "देखभाल की संस्कृति" की, कार्डिनल पारोलीन

परमधर्मपीठ के लिये रोम स्थित फ्राँस, यू.के. एवं इटली के राजदूतावासों के तत्वाधान में गुरुवार को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित एक ऑनलाईन विचार गोष्ठी में वाटिकन राज्य के सचिव कार्डिनल पियेत्रो पारोलीन ने कहा कि हमें "देखभाल की संस्कृति" की नितान्त आवश्यकता है।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 11 दिसम्बर 2020 (रेई, वाटिकन रेडियो): परमधर्मपीठ के लिये रोम स्थित फ्राँस, यू.के. एवं इटली के राजदूतावासों के तत्वाधान में गुरुवार को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित एक ऑनलाईन विचार गोष्ठी में वाटिकन राज्य के सचिव कार्डिनल पियेत्रो पारोलीन ने कहा कि हमें "देखभाल की संस्कृति" की नितान्त आवश्यकता है।

प्रतिबद्धताएँ लक्ष्यों से बहुत दूर

जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी 2015 के पेरिस समझौते तथा 2021, ग्लासगो में होनेवाले COP-26 सम्मेलन की पृष्ठभूमि में उक्त ऑनलाईन विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था। विचार गोष्ठी में भाग लेनेवाले राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को प्रेषित सन्देश में कार्डिनल पारोलीन ने कहा कि पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के बाद से पांच साल बीत चुके हैं किन्तु इसका कार्यान्वयन अभी भी एक "श्रमसाध्य" यात्रा ही रही है।

कई अध्ययनों का उल्लेख करते हुए कार्डिनल पारोलीन ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि "जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए राष्ट्रों द्वारा की गई वर्तमान प्रतिबद्धताएं पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने से बहुत अधिक दूर रहीं हैं।"

सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौती

जलवायु परिवर्तन से गर्म होते तापमान और कोविद-महामारी के सन्दर्भ में कार्डिनल महोदय ने कहा कि इस समय विश्व एक यथार्थ सामाजिक एवं सांस्कृतिक चुनौती का सामना कर रहा है। इस चुनौती के प्रत्युत्तर में, उन्होंने कहा, "हमें एक नये सांस्कृतिक मॉडल अर्थात् प्रतिमान या मानक को विकसित करने की आवश्यकता है, और वह है  "देखभाल की संस्कृति।"

देखभाल की संस्कृति का मर्म समझाते हुए कार्डिनल पारोलीन ने कहा, इसका अर्थ है, "स्वयं की, दूसरों की और पर्यावरण की देखभाल करना। साथ ही मनुष्यों तथा पर्यावरण को नुकसान पहुँचानेवाली तथा एक ओर फेंक देनेवाली उदासीनता, क्षय और बर्बादी की संस्कृति के स्थान पर देखभाल की संस्कृति को प्रोत्साहित करना।"

जागरूकता, ज्ञान, इच्छाशक्ति

कार्डिनल महोदय ने स्पष्ट किया कि इस "नवीन सांस्कृतिक प्रतिमान में, तीन अवधारणाओं को संचित किया जाना चाहियेः जो हैं, "जागरूकता, ज्ञान और इच्छा", क्योंकि ये ही पेरिस समझौते में प्राणवायु फूँकने में सक्षम हैं।"   

इसके लिये ज़रूरी है शारीरिक विज्ञानों एवं मानव विज्ञानों में अनुसन्धान को बढ़ावा देना, ताकि विभिन्न विषयों के बीच सम्वाद एवं विचार-विमर्श को मंच मिले तथा जागरुकता एवं ज्ञान में वृद्धि हो। ज्ञान को प्रोत्साहित करने के सन्दर्भ में कार्डिनल महोदय ने कलीसिया की सामाजिक धर्मशिक्षा तथा सन्त पापा फ्राँसिस के "लाओदातो सी" विश्व पत्र से मार्गदर्शन प्राप्त करने का अनुरोध किया ताकि प्रत्येक अनुसन्धान एवं प्रयोग में नैतिक मूल्यों को अक्षुण रखा जा सके।  

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11 December 2020, 11:58