मोनसिन्योर जानुएज उर्बनसजक,ओएससीई के लिए वाटिकन के स्थायी पर्यावेक्षक मोनसिन्योर जानुएज उर्बनसजक,ओएससीई के लिए वाटिकन के स्थायी पर्यावेक्षक 

कोविड-19 विरोधी उपायों द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता में रूकावट

यूरोप में सुरक्षा और सहयोग हेतु संगठन के लिए वाटिकन के स्थायी प्रतिनिधि (ओएससीई) ने धर्म या आस्था की स्वतंत्रता पर, 9-10 नवम्बर को वियना में आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 12 नवम्बर 2020 (वीएन) – परमधर्मपीठ के अनुसार कोरोना वायरस महामारी का सामना करने हेतु ओएससीई द्वारा लगाये गये विभिन्न उपायों का धर्म और आस्था की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर गहरा प्रभाव पड़ा है तथा धार्मिक समुदायों की धार्मिक शिक्षा एवं उदार कार्यों को सीमित कर दिया है, खासकर, मोनसिन्योर जानुएज उर्बनसजक ने ओएससीई की विधि निर्माताओं को चेतावनी दी है कि कोविड-19 महामारी के कारण लगाये गये प्रतिबंधों से धार्मिक समुदायों में गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा, "महामारी का सामना करने में स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ, ये समुदाय भी मनोबल बढ़ाते एवं एकात्मता एवं आशा का संदेश देते हैं।"    

ओएससीई जिसमें यूरोप, उत्तरी अमरीका और एशिया के 57 प्रतिभागी देश हैं, हथियार नियंत्रण, आत्मविश्वास एवं सुरक्षा-निर्माण के उपायों, मानव अधिकारों, राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों, लोकतंत्रीकरण, पुलिस की रणनीतियों, आतंकवाद और आर्थिक एवं पर्यावरणीय गतिविधियों सहित सुरक्षा संबंधी चिंताओं की एक विस्तृत श्रृंखला को संबोधित करता है।

धार्मिक समुदायों की स्वायतता

मोनसिन्योर उर्बनसजक ने अपील की है कि "राष्ट्रों को चाहिए कि वे धार्मिक समुदायों की स्वायतता का सम्मान करे, अपने आंतरिक नियमों के अनुसार अपने नेताओं का चुनाव, नियुक्ति और स्थान भरने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे।

इस बात पर गौर करते हुए कि धार्मिक स्वतंत्रता व्यक्तिगत पूर्णता की ओर बढ़ने हेतु प्रेरित करता है तथा समाज के कल्याण में सहयोग देने में मदद देता है। उन्होंने खेद प्रकट किया कि कई समाजों में धर्म को असहिष्णुता एवं शांति के लिए खतरा के मुद्दे के रूप में देखा जाता है। धर्मों या पंथों को निजी क्षेत्र में सीमित करने का प्रयास किया जाता है। उन्हें मंदिरों और पूजा स्थलों पर आरोपित किया जाता एवं सार्वजनिक क्षेत्र में उनकी वैध भूमिका से वंचित किया जाता है।

मीडिया की भूमिका

इस संबंध में मोनसिन्योर ने गौर किया कि मीडिया, जो धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का माध्यम है, सही संतुलन उत्पन्न करने में असफल रही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं धर्म मानने के अधिकार की रेखा कहाँ खींची जाए। उन्होंने कहा कि कभी-कभी, धर्मसिद्धांत, संस्थाओं या खास धर्मों के अनुयायियों के खिलाफ अपमान या भेदभाव भी किये जाते हैं। उन्होंने ओएससीए का आह्वान किया है कि मीडिया में धार्मिक सहिष्णुता एवं भेदभाव को दूर करने के लिए दिशानिर्देश विकसित करे, खासकर, "विश्वासियों और उनके समुदायों" को " "धर्मांध और कट्टरपंथी" के रूप में लेबल लगाना और बदनाम करना बंद करे।

परमधर्मपीठ के प्रतिनिधि ने धार्मिक समुदायों के लिए "अवमानना ​​के प्रसार" की भी निंदा की, जिसमें इंटरनेट और सोशल मीडिया पर धार्मिक प्रतीकों के "उत्तेजक अभ्यावेदन" के माध्यम से "घृणा के लिए बाध्यता" और अप्रासंगिकता को बढ़ावा देना भी शामिल है।

अंतरधार्मिक वार्ता, सहयोग

धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु नागरिक समाज की भूमिका के बारे बोलते हुए वाटिकन अधिकारी ने अंतरधार्मिक वार्ता और विभिन्न विश्वासी समुदायों के बीच सहिष्णुता, सम्मान और समझदारी को अधिक बढ़ावा देने के लिए सहयोग को समर्थन देने की अपील की। उन्होंने एक वार्ता का आह्वान किया है जो प्रजातांत्रिक समाज की स्थिरता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करे। जैसा कि संत पापा कहते हैं, यह "सेतु निर्माण का माध्यम" बन सकता है।

मोनसिन्योर ने आगे स्पष्ट किया कि अंतरधार्मिक वार्ता धार्मिक समुदायों का एक आंतरिक मामला है। यह उनपर छोड़ देना चाहिए कि क्या वे इसे शुरू करना चाहते हैं और कब करना चाहते हैं। इस संबंध में राज्य एक परामर्श के बहाने धार्मिक समुदायों को दखल न दे।  

वाटिकन प्रतिनिधि ने इस बात पर जोर देते हुए अपना वक्तव्य समाप्त किया कि लोगों को विश्वास दिलाये जाने की आवश्यकता है कि वे एक धर्मनिर्पेक्ष युग में, धार्मिक स्वतंत्रता और विश्वास एक महत्वपूर्ण अधिकार है जिसको बचाया जाना है।

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12 November 2020, 17:03