पोप बेनेडिक्ट १६वें पोप बेनेडिक्ट १६वें   (ANSA)

पोप बेनेडिक्ट सोलहवें, उनके कार्यकाल की विस्तृत जानकारी

“ईश्वर को केन्द्र” में लाने हेतु संत पापा बेनेडिक्ट १६वें का गहन प्रयास ।

माग्रेट सुनिता मिंज-वाटिकन सिटी

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें का परमाध्यक्षीय काल 19 अप्रैल 2005 को शुरु हआ और 11 फरवरी 2013 को अपना पद त्यागने के आश्चर्यजनक घोषणा के बाद 28 फरवरी, 2013 को समाप्त हुआ। इस तरह उनका परमाध्यक्षीय काल सात साल, दस महीने और नौ दिन का था जो इतिहास में दूसरा सबसे लम्बे समय तक रहे संत जॉन पॉल द्वितीय की तुलना में बहुत कम होने के बावजूद कम महत्वपूर्ण नहीं है।  इन वर्षों के दौरान संत पापा ने बेनेडिक्ट सोलहवें ने दैनिक कार्यकलापों के अलावा विदेशों में 24 प्रेरितिक यात्राएँ की हैं, तीन विश्व युवा दिवसों और एक परिवारों की विश्व बैठक में भाग लिया, तीन विश्वपत्र लिखे, एक प्रेरितिक संविधान, तीन प्रेरितिक उद्बोधन, चार धर्मसभा (2 साधारण और 2 विशेष) की अगुवाई की, कलीसिया की सेवा हेतु 84 कार्डिनलों को प्रतिष्ठापित किया, संत पापा जॉन पॉल द्वितीय सहित 45 संत घोषणा और 855 को धन्य घोषित किया है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने पहले विश्वपत्र "देउस कारितास एस्त" द्वारा दुनिया में जहां "विश्वास" खतरे में है, मसीह के प्रेम के सुसमाचार "ईश्वर को केंद्र" में रखा। 10 मार्च 2009 को पूरी दुनिया के धर्माध्यक्षों को प्रेषित पत्र में उन्होंने लिखा कि विश्वासियों को जागरुक होने, कलीसिया के अंदर शुद्धिकरण और संरचनाओं के रूपांतरण की आवश्यकता है।

‘विश्वास और विवेक’ पर संत पापा की वार्ता

अपने पूर्ववर्तियों संत पापा जॉन तेईसवें से लेकर संत पापा जॉन पॉल द्वितीय के बाद और "देउस कारितास एस्त" में बताये गये कार्यक्रमों को इंगित करने के बाद, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें अंतर-धार्मिक और अंतर-सांस्कृतिक वार्ता के प्रति चौकस थे। ये वार्ता-यहूदी धर्म और अन्य धर्मों के साथ, अलग हुए ख्रीस्तीय भाइयों, विज्ञान और धर्मनिरपेक्ष विचारों और संत पियुस दसवें के बंधुता के रूप में काथलिक कलीसिया से अलग हुए भाइयों के बीच थी। कई कठिनाइयों, गलतफहमियों और अचानक बीच में ही रोक दिये गये संवाद को, हालांकि धर्माचार्य संत पापा ने दृढ़ता के साथ विश्वास और विवेक को संयोजित करते हुए दया और सत्य पर अपनी शिक्षा को केंद्रित किया। कई विचारों और लेखों में पाया जाने वाला मूल विचार यह था कि "विवेक स्वयं को विश्वास की सामग्री में खोलकर कुछ नहीं खोता है", जबकि 'विश्वास विवेक का अनुमान लगाता है और इसे प्रभावित करता है'। सन् 2006 के रेगेन्सबर्ग के मशहूर व्याख्यान के बारे में सोचें, सन् 2008 में पेरिस के डेस बर्नार्डिन्स कॉलेज में दुनिया की संस्कृति के प्रतिनिधियों को दिया व्याख्यान, सन् 2010 में वेस्टमिंस्टर हॉल में ऐतिहासिक व्याख्यान और सन् 2011 में जर्मनी के बुंडेस्टाग में ऐतिहासिक व्याख्यानों को उनके मजिस्ट्रेट दस्तावेज से जोड़ दिया जाना चाहिए।

एक तूफानी नाव की पतवार संभालने वाले संत पापा

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष के रुप में अपना पद संभाला तो कलीसिया कठिन दौर से गुजर रही थी। बाल यौनशोषण घोटाले और वाटिलिक्स मामले सभी जगह चर्चा में थी। जर्मन संत पापा ने सन् 2005 में पवित्र शुक्रवार को क्रूस रास्ता धर्मविधि के दौरान कलीसिया के अंदर और बाहर व्याप्त "गंदगी" की स्पष्टता और दृढ़ संकल्प के साथ निंदा की थी। उन्होंने इनके सुधार के लिए जमीन तैयार की जिसे संत पापा फ्राँसिस सामना करने में कामयाब रहे और महत्वपूर्ण कदम उठाया। संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने भी बाल यौनशोषण के मुद्दे को अकेले ही नियंत्रण करना शुरु किया। हालांकि उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा था। सन् 2011 और 2012 में 400 पुरोहितों की निलंबित करने की उल्लेखनीय पुष्टि हुई, क्योंकि वे दुर्व्यवहार के मामलों में शामिल थे। साथ ही अनेक धर्माध्यक्षों को उनके खराब प्रबंधन के लिए पद से हटा दिया गया।

इतने बड़े आंकड़ों को देखते हुए उन्होंने सुधार के लिए ठोस कदम लेने हेतु "दे ग्रेवियोरिबुस डेलिक्टिस" नियम बनाया। वाटिकन से जुड़े वित्तीय घोटालों को सामने लाने की शुरुआत संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने ही की थी जिसे संत पापा फ्रांसिस ने आगे बढ़ाया। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें वाटिकन का वित्तीय प्रबंधन अधिक पारदर्शी बनाने के लिए ठोस कदम उठाया। 30 दिसंबर 2010 को ‘मोतु प्रोप्रियो’ के साथ “आपराधिक गतिविधियों का मुकाबला करना और आतंकवाद के वित्तपोषण से आये काले धन पर रोक लगाना शुरु किया।”

योजनाबद्ध इतिहास

2005

19 अप्रैल 2005 को विश्वास एवं धर्म सिद्धांत के लिए बनी परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष 78 वर्षीय कार्डिनल जोसेफ रात्ज़िंगर, दो दिन के निर्वाचिका सम्मेलन के बाद काथलिक कलीसिया के 265 वें परमाध्यक्ष चुने गए और संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के नाम से जाने गये। परमाध्यक्ष चुने जाने से एक दिन पहले, कार्डिनल मंडल के डीन के रूप में पवित्र मिस्सा का अनुष्ठान किया। उन्होंने प्रवचन के दौरान अपने भविष्य के मैजिस्टेरियम के प्रमुख बिंदुओं को प्रकट किया था। उन्होंने अपना प्रवचन प्रसिद्ध अवलोकन के साथ शुरु किया, "कई ख्रीस्तियों के विचारों की छोटी नाव अक्सर मार्क्सवाद से उदारवाद और स्वतंत्रतावाद, साम्यवाद से कट्टरपंथी व्यक्तित्व, नास्तिकता से धार्मिक रहस्यवाद, अज्ञेयवाद से समन्वयता" जैसे विचारों के एक चरम बिन्दु दूसरे चरम बिन्दुओं से टकरा रही है। "कलीसिया के विश्वास के अनुसार, अपने विश्वास को जीने वाले को अक्सर ऑरथोडोक्स के रूप में लेबल लगाया जाता है। जबकि आज के समय में सापेक्षवाद एकमात्र दृष्टिकोण प्रतीत होता है। हम सापेक्षवाद की तानाशाही स्थापित कर रहे हैं जिसमें कोई निश्चितता नहीं होती और जो केवल अहंकार और इच्छाओं पर अपने को छोड़ देता है।"

13 मई, 2005

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने पांच धर्मवैधानिक वर्षों की प्रतीक्षा किए बिना पापा जॉन पॉल द्वितीय के धन्य घोषणा की कार्यविधि शुरू करने की अनुमति दी।

18 से 21 अगस्त 2005

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें कोलोन में विश्व युवा दिवस में भाग लेने के लिए जर्मनी की प्ररितिक यात्रा की। यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों में से एक 19 अगस्त को कोलोन सिनागोग का दौरा था।

29 अगस्त 2005

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने कास्टेल गंडोल्फो में संत पियुस दसवें समुदाय के सुपीरियर जनरल मोन्सिन्योर बर्नार्ड फेल्ले से मुलाकात की। मोन्सिनेयोर मार्सेल लेफेब्रे द्वारा स्थापित परंपरावादी समुदाय के प्रतिपादक के साथ संत पापा की पहली बैठक थी। इस समुदाय को सन् 1988 में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय द्वारा काथलिक कलीसिया से बहिष्कृत किया गया था।

2-23 अक्टूबर 2005

धर्माध्यक्षों की ग्यारहवीं धर्मसभा विषयः “यूखारिस्त, जीवन का स्रोत और आधार और कलीसिया का मिशन”

                                         2006

25 जनवरी, 2006

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपना पहला विश्व पत्र "देउस कारितास एस्त" ("ईश्वर प्रेम है") प्रकाशित किया।

19 मई, 2006:

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने मार्शल मासील डीगोलाडो को हर सार्वजनिक कार्यकलापों का त्याग करने और व्यक्तिगत रुप से त्याग एवं तपस्या का जीवन बिताने की सजा सुनायी। मसीह की सेनाओं के संस्थापक मासील डीगोलाडो को बालयौन शोषण के दोषी और पत्नी एवं बच्चों के साथ एक डबल जीवन जीने के अपराध में केवल उसकी उम्र को देखते हुए कलीसिया के कानूनी प्रक्रिया से बरी कर दिया गया।

25-28 मई 2006

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने पोलैंड की प्रेरितिक यात्रा की।

यह अपने महान पूर्ववर्ती उतराधिकारी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक अवसर था। यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों में से हृदय को छूने वाले क्षण, "स्मृति और होलोकॉस्ट की जगह" ऑशविट्ज़-बिरकेनौ की यात्रा थी। संत पापा ने  यहां इन महत्वपूर्ण वाक्यों का उच्चारण किया: "ईश्वर के खिलाफ अपराधों का संचय और व्यक्ति के खिलाफ ऐसी डरावनी जगह, जिसकी इतिहास में कोई तुलना नहीं है, यह लगभग असंभव है - और यह एक ख्रीस्तीय के लिए, विशेष रूप से जर्मनी से आने वाले संत पापा के लिए कठिन और दमनकारी है। इस तरह की जगह में शब्द असफल हो जाते हैं, अंत में केवल मौन रह जाती है - एक मौन जो ईश्वर के लिए एक आंतरिक क्रंदन है: ईश्वर क्यों आपने मौन साध लिया? यह सब आपने क्यों सहन किया? इसी मौन में हम उन असंख्य दुख सहने वाले पीड़ितों के सामने नतमस्तक होते हैं जिन्हें यहाँ मार डाला गया। फिर भी, जीवित ईश्वर के सामने यह मौन क्षमा और सुलह का जोरदार क्रंदन बन गया,“ईश्वर कभी ऐसी चीज को फिर से अनुमति न दें।”

8-9 जुलाई 2006

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की तीसरी प्रेरितिक यात्रा।

संत पापा स्पेन के वलेंसिया में परिवारों की 5वीं विश्व बैठक में भाग लिया।

9-14 सितंबर 2006

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की चतुर्थ प्रेरितिक यात्रा -जर्मनी

संत पापा जर्मनी में, अपने जन्म स्थान  मार्केट-ए-इन और रेगेन्सबर्ग विश्वविद्यालय का दौरा किया। यहां उन्होंने प्रसिद्ध लेक्सियो मजिस्ट्रेटिस का उच्चारण किया जिसमें बैजांन्टिन सम्राट मानुअल द्वितीय पालेओलोगस द्वारा पवित्र युद्ध पर लिखे गये लेखन का उद्धरण करने के कारण मुस्लिम दुनिया की कठोर प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा। उनके संबोधन के विषय थे : विश्वास और विवेक के बीच संबंध, ईश्वर और मनुष्य के बीच समानता और भिन्नता, धर्म और सभ्यता के बीच संबंध, आधुनिक वैज्ञानिकता और इसका मूल्य, 'प्रबोधन को विकसित करने' की जरूरत। संत पापा ने इस बात की पुष्टि की कि विवेक के अनुसार हिंसा के माध्यम से किसी का मनपरिवर्तन नहीं किया जा सकता और यह ईश्वर की प्रकृति के विपरीत है।

28 अक्टूबर 2006

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरिश धर्माध्यक्षों को वेटिकन में अद्लीमिना पारम्परिक मुलाकात के दौरान बहुत कठोर भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कलीसिया में हो रहे ‘असामान्य अपराधों’ में नाबालिगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया।

28 नवम्बर - 1 दिसम्बर 2006

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की पांचवीं प्रेरितिक यात्रा - तुर्की  

संत पापा ने कॉन्स्टांटिनोपल के प्रधिधर्माध्यक्ष बार्थोलोम प्रथम से मुलाकात की और इस्तांबुल के ब्लू मस्जिद में प्रार्थना की।

2007

16 अप्रैल 2007

"जेसु दी नाजरेथ" (नाजरेथ के येसु) श्रृंखला की पहली पुस्तक का प्रकाशन किया गया।

मई 9-14, 2007

संत पापा की छठी प्रेरितिक यात्रा - ब्राजील

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपारासिदा में लैटिन-अमेरिकी धर्माध्यक्षों(सीईएलएएम) की 5 वीं आम सभा में भाग लेने हेतु ब्राजील की यात्रा की। संत पापा ने फ्राँसिसकन धर्मसंघी पुरोहित संत अन्ना गैल्वाओ के अंतोनी को ब्राजील में पैदा हुए पहले संत के रुप में घोषित किया।

30 जून 2007

'चीनी काथलिकों के लिए पत्र' का प्रकाशन जिसमें संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने बीजिंग अधिकारियों को देश में "प्रामाणिक धार्मिक स्वतंत्रता" की गारंटी देने के लिए आमंत्रित किया।

7 जुलाई 2007

संत पापा द्वारा मोतु प्रोपियो (स्वतः प्रेरित) ‘सुम्मोरुम पोन्तिफिचुम’ का प्रकाशन। जिसमें ट्राइडेंटिन मिस्सा या संत पियुस पांचवें के रोमन मिस्सल के अनुसार समारोह के न्यायिक और धर्मविधियों के संकेत हैं।

7-9 सितंबर 2007

संत पापा की सातवीं प्रेरितिक यात्रा। संत पापा ने ऑस्ट्रिया में मारियाज़ेल के मरियम तीर्थालय और अन्य स्थानों का दौरा किया।

30 नवंबर 2007

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने "ख्रीस्तीय आशा" को समर्पित अपना दूसरा विश्व पत्र "स्पे साल्वी" प्रकाशित किया।

2008

15-21 अप्रैल 2008

संत पापा की आठवीं प्रेरितिक यात्रा - संयुक्त राज्य अमेरिका।

न्यूयॉर्क में, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया। इस मंच से संत पापा पॉल छठे और संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने भी बातें की थी। संत पापा ने सापेक्षता, धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान की नैतिक सीमाएं, हस्तक्षेप का कर्तव्य, संयुक्त राष्ट्र की सीमाएं आदि मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किये। उनके अनुसार मनुष्य की गरिमा, जो "ईश्वर के प्रतिरुप" की पुष्टि करता है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की कार्रवाई के केंद्र में होना चाहिए।

17 अप्रैल को वाशिंगटन में उन्होंने पहली बार पुरोहितों द्वारा यौन उत्पीड़न के पीड़ितों से मुलाकात की। उसी दिन वाशिंगटन में राष्ट्रीय स्टेडियम में युखारिस्तीय समारोह में उन्होंने टिप्पणी की, "मेरा कोई भी शब्द नाबालिगों के यौन शोषण की पीड़ा और क्षति का वर्णन नहीं कर सकता। बच्चों की रक्षा करें।" और फिर, 19 अप्रैल को न्यूयॉर्क में संत पैट्रिक महागिरजाघर में मिस्सा के दौरान चेतावनी दी, "पुरोहितों ने नाबालिगों पर यौन शोषण कर बहुत पीड़ा पहुँचाया है। यह शुद्धि का समय है, यह उपचार का समय है।" उन्होंने 15 अप्रैल को प्रेरितिक यात्रा हेतु उड़ान भरते समय स्पष्ट रूप से कहा था:"हम नाबालिगों के यौन शोषण करने वाले पुरोहितों को सख्ती से उनके धार्मिक पूजन विधियों से बाहर कर देंगे: यह पूरी तरह से असंगत है और जो नाबालिगों पर यौन शोषण करते हैं वे पुरोहित नहीं हो सकते हैं।" 16 अप्रैल को अमेरिकी धर्माध्यक्षों से मुलाकात कर अपने भाषण में पुनः इस बात को दोहराया कि "सुसमाचारी जीवन के विपरीत संकेतों में से एक है नाबालिगों का यौन शोषण, जो गहरी शर्मिंदगी का कारण है।”

12-21 जुलाई 2008

 सिडनी में विश्व युवा दिवस हेतु ऑस्ट्रेलिया में नवीं प्रेरितिक यात्रा।

 यहां भी, 21 जून को, संत पापा ने यौन शोषण के पीड़ितों के एक दल से मुलाकात की। ऑस्ट्रेलिया से वापसी की उड़ान पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में संत पापा ने बाल यौन शोषण करने वाले पुरोहितो के बारे में चेतावनी दी: "हमें हाल ही के दशकों में हमारे प्रशिक्षण में, हमारी शिक्षा में जो कुछ कमी आ रही है, उस पर ध्यान देना होगा। सिडनी के मरिया महागिरजाघर में दिये गये अपने प्रवचन को दोहराया, "पुरोहितों द्वारा नाबालिगों का यौन शोषण गलत हैं जिन्हें स्पष्ट रूप से निंदा की जानी चाहिए। मुझे बहुत खेद है।"

2-15 सितंबर 2008

 संत पापा की दसवीं प्रेरितिक यात्रा फ्रांस में।

संत पापा ने पेरिस के कोलेजो डेस बर्नार्डिन्स में संस्कृति की दुनिया के प्रतिनिधियों को एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। उन्होंने कहा, "एक प्रत्यक्षवादी संस्कृति जो ईश्वर पर उठे प्रश्न को व्यक्ति के गैर-वैज्ञानिक क्षेत्र के अंदर मानते हुए हटा देती है, इससे मानवता के पतन की उच्चतम संभावना हो सकती है, जिसका परिणाम केवल गंभीर हो सकता है"। लूर्द में,  उन्होंने माता मरियम के दर्शन देने के 150 वीं वर्षगांठ फ्रांस के धर्माध्यक्षों के साथ पवित्र मिस्सा समारोह की अध्यक्षता की।

5-26 अक्टूबर 2008

"कलीसिया के जीवन और मिशन में ईश्वर का वचन" विषय पर धर्माध्यक्षों की बारहवीं धर्मसभा

2009

24 जनवरी 2009

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने संत पियूस समुदाय के चार धर्माध्यक्षों को बहिष्कृत किया,जिनका धर्माध्यक्षीय अभिषेक विद्वान धर्माध्यक्ष मार्सेल लेफेव्रे ने किया था। इनमें से, बृटेन के धर्माध्यक्ष रिचर्ड विलियमसन ने बहिष्कार को स्वीकार नहीं किया। 10 मार्च 2009 को काथलिक धर्माध्यक्षों को लिखे एक पत्र में संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपना "अफसोस" व्यक्त किया कि विलियमसन मामले ने "बहिष्कार की छूट पर खुद को आरोपित किया"।

17-23 मार्च 2009

संत पापा की ग्यारहवीं प्रेरितिक यात्रा - कैमरून और अंगोला।

यात्रा का मुख्य उद्देश्य अक्टूबर 2009 को वाटिकन में अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की दूसरी विशेष धर्मसभा के लिए "इंस्ट्रूमेंटम लबोरिस" को प्रदान करना था। उड़ान भरते समय प्रेस कान्फ्रेस के दौरान एड्स के खिलाफ लड़ाई में कंडोम के उपयोग पर कहे गये एक वाक्य का मीडिया पर अनेक प्रतिक्रिया देखने को मिली। (वह वाक्य था,"एड्स की समस्या कंडोम के वितरण के साथ समाप्त नहीं होती है, जो वास्तव में समस्या को बदतर करती है।")

31 मार्च 2009

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने ‘ख्रीस्त की सेनाओं के संगठन’ को एक प्रेरितिक यात्रा का आदेश दिया।

8-15 मई 2009

संत पापा की बारहवीं प्रेरितिक यात्रा - जॉर्डन, इजरायल और फिलिस्तीन।

संत पापा इन देशों में "शांति में योगदान" करने और ख्रीस्तियों के प्रति अपना समर्थन दिया। 12 मई को येरूसालेम में पश्चिमी दीवार के सामने प्रार्थना खड़े होकर प्रार्थना की।  

16 जून 2009

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने पुरोहितों के वर्ष में पुरोहितों के नाम पत्र में लिखते हैं: "दुर्भाग्य से, कलीसिया में ऐसी परिस्थितियां भी हैं, जहाँ कलीसिया अपने कुछ पुरोहितों की बेवफाई के कारण खुद पीड़ा सहती है। दूसरों के लिए ठोकर और अस्वीकृति का कारण बनती है।"

7 जुलाई 2009

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने प्रेम और सत्य में समग्र मानव विकास को समर्पित अपने तीसरे प्रेरितिक विश्वपत्र "कारिता इन वेरिताते" को प्रकाशित किया।

8 जुलाई 2009

संत पियुस दसवें के समुदाय के साथ सैद्धांतिक संवाद शुरू करने के लिए (मोतू प्रोप्रियो) स्वप्रेरणा से लिखित प्रेरितिक पत्र "उनीतातेम एक्लेसियाये" का प्रकाशन।

26-28 सितंबर 2009

संत पापा की तेरहवीं प्रेरितिक यात्रा - चेक गणराज्य

संत पापा ने सभी चेक गणराज्य के नागरिकों को अपनी संस्कृति को आकार देने वाले ख्रीस्तीय परंपराओं को बनाये रखने का आह्वान किया, जो अतीत के कम्युनिस्ट शासन द्वारा धुंधली हो गई है और राष्ट्र की नई चुनौतियों के सामने ख्रीस्तीय समुदाय को अपनी आवाज़ें बुलंद रखने हेतु प्रेरित किया।

4-25 अक्टूबर 2009

अफ्रीका के धर्माध्यक्षों की दूसरी विशेष धर्मसभा।

विषयः “अफ्रीका की कलीसिया सुलह, न्याय और शांति की सेवा में”

26 अक्टूबर 2009

परमधर्मपीठीय आयोग "एक्लेसिया देई" और संत पियुस दसवें के पुरोहितिक समुदाय के विशेषज्ञों से बनी ‘अध्ययन आयोग’ की पहली बैठक, ताकि समुदाय के सिद्धांतीय कठिनाइयों के बारे में जांच की जा सके जो अभी भी समुदाय और परमधर्मपीठ के बीच हैं।

14 नवंबर 2009

 प्रेरितिक संविधान "एंग्लिकनोरम कोएटीबस" "एंग्लिकन के समूह" का प्रकाशन,  एंग्लिकनों के लिए व्यक्तिगत अध्यादेशों की स्थापना, जो काथलिक कलीसिया का सदस्य बनते हैं।

19 दिसंबर 2009

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने पूर्ववर्ती जॉन पॉल द्वितीय और संत पापा पियुस बारहवें के "वीर गुणों" की घोषणा की, यह उनकी धन्य घोषणा से पहले का एक निर्णायक कदम था।

2010

17 जनवरी 2010

रोम के यहूदी मंदिर (सीनागोग) में संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें का दौरा।

13 अप्रैल 1986

 संत पापा जॉन पॉल द्वितीय की ऐतिहासिक यात्रा के बाद, इटली की राजधानी के यहूदी मंदिर में एक परमाध्यक्ष की यह दूसरी यात्रा है, जो सदियों की गलतफहमी और उत्पीड़न के बाद ख्रीस्तियों के बड़े भाईयो के साथ "निकटता और आध्यात्मिक बंधुत्व" की पुष्टि करने का अवसर है।

20 मार्च 2010

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने आयरलैंड के सभी काथलिकों के लिए एक प्रेरितिक पत्र भेजा जिसमें उन्होंने पुरोहितों और धर्मसंघियों द्वारा अतीत में की गई गलतियों और जिस तरह से इन स्थितियों से निपटा गया, उनपर गहरा दुःख और खेद व्यक्त किया। इसके अलावा, उन्होंने आयरलैंड में कुछ धर्मप्रांतों के साथ-साथ आयरिश सेमिनरी और धर्मसंघी संस्थानों में प्रेरितिक दौरा करने की भी घोषणा की है, जिसमें रोम भी शामिल है। दो महीने बाद, 31 मई, 2010 को, परमधर्मपीठ ने नौ प्रतिनिधियों को निर्धारित कर प्रेरितिक दौरा के विवरण को प्रसारित किया।

मार्च 2010 - जून 2010

बाल यौन शोषण पर संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के खिलाफ एक हिंसक मीडिया अभियान फैलाया गया। सबसे आक्रामक मीडिया में न्यूयॉर्क टाइम्स डेर स्पीगेल और उससे जुड़े प्रेस हैं। यह पूरी तरह से निराधार है कि कार्डिनल बाल यौन शोषण पुरोहितों के कवरेज में शामिल हो सकते हैं जो 2001 से पहले हुए थे। उन दिनों वे मोनाको महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष थे और उन्होंने एक पुरोहित को अपने महाधर्मप्रांत में स्थानांतरित किया था।

17-18 अप्रैल, 2010

संत पापा की चौदहवीं प्रेरितिक यात्रा - माल्टा

 संत पापा 18 अप्रैल को, फिर से कलीसिया द्वारा यौन शोषण के कुछ पीड़ितों से मिले। माल्टा से वापसी उड़ान पर, संत पापा ने दुराचार के विषय पर पुष्टि की, "मुझे पता है कि माल्टा मसीह से प्यार करता है और उसकी कलीसिया से प्यार करता है जो उसका शरीर है और जानता है कि भले ही यह शरीर हमारे पापों से आहत हो गया है, लेकिन प्रभु अभी भी इस कलीसिया से प्यार करते हैं और उनका सुसमाचार वह सच्चा बल है जो कलीसिया को शुद्ध और चंगा करता है।”

11-14 मई 2010

संत पापा की पंद्रहवीं प्रेरितिक यात्रा - पुर्तगाल

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने फातिमा की माता मरियम को मानवता और कलीसिया की "आशाओं और पीड़ाओं" को समर्पित किया। बाल यौन शोषण के संकट के बारे में लिस्बन की उड़ान के दौरान, संत पापा ने खुलासा किया: "कलीसिया का सबसे बड़ा उत्पीड़न बाहरी दुश्मनों से नहीं होता है, लेकिन कलीसिया के अंदर हुए पाप से उत्पन्न होता है और इसलिए कलीसिया को फिर से तपस्या सीखने की गहन आवश्यकता है शुद्धि को स्वीकार करने और क्षमा करना सीखने की जरुरत है।  लेकिन इसके साथ न्याय भी जरुरी है : क्षमा न्याय का स्थान नहीं लेती।  

4-6 जून 2010

संत पापा की सोलहवीं प्रेरितिक यात्रा - साइप्रस

संत पापा ने मध्य पूर्व के लिए धर्माध्यक्षों की धर्मसभा के “इंस्ट्रूमेंटुम लबोरिस” को प्रदान किया।

11 जून 2010

 पुरोहितों के लिए वर्ष के समापन पर संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने प्रवचन में पुष्टि करते है: "हम ईश्वर और दुराचार पीडितों से क्षमा मांगते हैं और हम हर संभव प्रयास करने का वादा करते हैं ताकि इस तरह के दुर्व्यवहार फिर कभी न हो सके।"

9 जुलाई 2010

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने परमधर्मपीठ के प्रतिनिधि मोन्सिन्योर वेलासियो डी पॉलिस को “लिजोनारी दी क्रिस्तो” धर्मसमाज का प्रभारी नियुक्त किया। उन्हें धर्मसमाज संस्थापक मार्शल मशीएल द्वारा किए गए "अपराधों" के बाद, धर्मसंघ के नियमों के संशोधन की गहन प्रक्रिया में धर्मसमाज का साथ देना था।

15 जुलाई 2010

विश्वास के सिद्धांत के लिए बनी धर्मसंघ ने "नॉरमे डे ग्रेविओरिबस डेलिक्टिस" (सबसे गंभीर अपराधों के विषय में मानदंड) की पुष्टी, जो संत पापा जॉन पॉल दवितीय के समय 2001 में पुरोहितों और कलीसिया के सदस्यों द्वारा किए गए बाल दुराचार सहित अन्य गंभीर अपराधों के आवेदन संबंधी और प्रक्रियात्मक मानदंड पारित किए गए थे।

 नए कानून में महत्वपूर्ण नई विशेषताएं शामिल हैं: दस से बीस साल तक सीमा अवधि का विस्तार; मानसिक रूप से अक्षम लोगों के साथ बच्चों की समता और बाल पोर्नोग्राफी के नए मामले की शुरुआत। इसके अलावा, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और सरलीकृत किया गया है और सबसे गंभीर मामलों में, संत पापा याजकीय कार्यों से इस्तीफा देने के लिए कह सकते है। यह भी पुष्टि की जाती है कि "नागरिक कानूनों के प्रावधानों का हमेशा सक्षम अधिकारियों के अपराधों के संदर्भ में पालन किया जाना चाहिए।"

16-19 सितंबर, 2010

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की सतरहवीं प्रेरितिक यात्रा - स्कॉटलैंड और इंग्लैंड

 संत पापा ने अंग्रेजी कार्डिनल जॉन हेनरी न्यूमैन (1801-1890), की धन्य घोषणा समारोह में भाग लिया। उन्नीसवीं शताबदी में कार्डिनल अंगलिकन से काथलिक बने। संत पापा ने वेस्टमिंस्टर हॉल में, (अंग्रेजी संसद का सबसे पुराना हॉल) समानता, सार्वजनिक जीवन में धर्म की भूमिका, तर्कसंगत नैतिक सिद्धांतों पर एक राजनीतिक आधार की आवश्यकता और विश्वास एवं तर्क की पूरकता पर एक बहुत ही सराहनीय भाषण दिया। इस दौरे में भी, 18 सितंबर को उन्होंने दुर्व्यवहार के शिकार लोगों के एक समूह से मुलाकात की। उसी दिन, संत पापा ने ‘अति मूल्यवान रक्त महागिरजाघर में पवित्र मिस्सा के दौरान अपने प्रवचन में कहा, "मैं स्वीकार करता हूँ कि हम सभी को इन पापों के कारण शर्म और अपमान भुगतना पड़ा। पेशेवरों और स्वयंसेवकों के एक समूह के साथ बैठक में उन्होंने कहा, "यह अफसोस की बात है कि बच्चों की देखभाल करने वाली कलीसिया की लंबी परंपरा के विपरीत बच्चों को कुछ पुरोहितों और धर्मसंघियों के दुर्व्यवहार और यातनाओं का सामना करना पड़ा है। 19 सितंबर को ग्रेट ब्रिटेन के धर्माध्यक्षों को संत पापा ने याद दिलाते हुए कहा, "एक अन्य विषय जिसने पिछले कुछ महीनों में बहुत अधिक ध्यान आकर्षित किया है और गंभीरता से कलीसिया के धर्मगुरुओं की नैतिक विश्वसनीयता को कमजोर किया है, वह है पुरोहितों और धर्मसंघियों द्वारा लड़कों और युवाओं का शर्मनाक दुरुपयोग।

12 अक्टूबर 2010

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने नवीन सुसमाचार प्रचार को बढ़ावा देने के लिए परमधर्मपीठीय आयोग की स्थापना की।

18 अक्टूबर 2010

पुरोहितों को समर्पित वर्ष के अंत में एक असाधारण पत्र में, संत पापा ने लिखा, "हमें बहुत अफसोस के साथ हाल ही में पता चला कि कुछ पुरोहितों ने बच्चों और युवाओं का यौन शोषण करके अपने याजकीय कार्यों को कलंकित कर दिया। बच्चों और युवाओं को परिपक्व मानव बनाने हेतु एक उदाहरण बनने के बजाय उन्होंने अपने दुर्व्यवहार द्वारा हानि पहुँचायी है, इसपर हम अफसोस महसूस करते हैं और बहुत दुखी हैं।”

10-24 अक्टूबर 2010

 मध्य पूर्व के धर्माध्यक्षों के लिए विशेष धर्मसभा।

विषयः"मध्य पूर्व में काथलिक कलीसिया : संवाद और साक्ष्य"

उद्देश्य:धर्मसभा पूर्व की कलीसियाओं की ओर विश्वव्यापी कलीसिया का ध्यान आकर्षित करना चाहती है।

6-7 नवंबर 2010

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की अठारहवीं प्रेरितिक यात्रा - स्पेन

 संत पापा का पड़ाव संतयागो डे कॉम्पोस्तेला और बार्सिलोना में था। यात्रा के दौरान संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने यूरोप को "ईश्वर के लिए खुलने" हेतु आमंत्रित किया। बार्सिलोना में सागरदा फमिलिया महागिरजाघर का दर्शन किया।

11 नवंबर 2010

 2008 में ‘ईश्वर के वचन’ पर हुए धर्माध्यक्षों की धर्मसभा का प्रेरितिक उद्बोधन "वर्बुम दोमिनी" का प्रकाशन।

30 दिसंबर, 2010

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने वित्तीय और मौद्रिक क्षेत्रों में अवैध गतिविधियों की रोकथाम के लिए मोतू प्रोप्रियो प्रकाशित किया। नया कानून परमधर्मपीठ के सभी विभागों पर लागू होता है, आर्थिक अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय नयमों और धन शोधन तथा आतंकवादी वित्तपोषण के खिलाफ लड़ाई के लिए वित्तीय सूचना प्राधिकरण (एआईएफ) की स्थापना करता है।

2011

13 जनवरी 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने कारपी के महाधर्माध्य़क्ष लियोपोल्डो गिरेली को वियतनाम के लिए परमधर्मपीठ का अनिवासी प्रतिनिधि नियुक्त किया। यह 1975 में बाधित साइगॉन के कब्जे के बाद वाटिकन और हनोई के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की दिशा में पहला कदम है, जहां वाटिकन के प्रतिनिधि को हनोई से जाना पड़ा था।

15 जनवरी, 2011

विश्वास के सिद्धांत के लिए बना धर्मसंघ, प्रेरितिक संविधान “अंग्लीकानोरुम कोएतिबुस” 2009 के अनुसार, काथलिक कलीसिया के साथ "पूर्ण और दृश्यमान सहभागिता में प्रवेश करने के इच्छुक" अंगलिकन समुदाय से आने वाले पादरी और लोक धर्मियों के लिए एक व्यक्तिगत अध्यादेश की स्थापना करता है।

10 मार्च, 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें द्वारा मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान पर लिखे गये "नाजरेत के येसु" के दूसरे खंड का प्रकाशन।

25 अप्रैल 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें रविवार को स्वर्गीय रानी प्रार्थना के बाद मेटेर एसोसिएशन को बधाई दी और हिंसा, शोषण और उदासीनता के शिकार बच्चों के लिए प्रार्थना की।

1 मई 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने संत पापा जॉन पॉल द्वितीय को उनकी मृत्यु के छह साल बाद धन्य घोषित किया।

16 मई 2011

विश्वास के सिद्धांत के लिए बने धर्मसंघ द्वारा तैयार किया गया परिपत्र धर्माध्यक्षीय सम्मेलन को याजकों और धर्मसंघियों द्वारा बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के मामलों के उपचार के लिए दिशानिर्देश तैयार करने में मदद करने के लिए प्रकाशित किया गया है।

4-5 जून 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की उन्नीसवीं प्रेरितिक यात्रा - क्रोएशिया

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें क्रोएशिया के जाग्रिब में "ईसा मसीह में एक साथ" विषय पर आयोजित    क्रोएशियाई राष्ट्रीय काथलिक परिवार दिवस में भाग लिया और क्रासिच में धन्य आलोज्जी विक्टर स्टेपिनाक (1898-1960) की कब्र पर प्रार्थना की।

6 जून, 2011

पेडोफिलिया के मामलों में आयरलैंड में प्रेरितिक यात्रा के पहले चरण की समाप्ति

1 जुलाई 2011

एक मुस्लिम बहुमत वाले देश मलेशिया और परमधर्मपीठ के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना।

18-21 अगस्त 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की बीसवीं प्रेरितिक यात्रा - स्पेन

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने मैड्रिड में छब्बीसवें विश्व युवा दिवस के अवसर पर स्पेन की प्रेरितिक यात्रा की।

14 सितंबर 2011

विश्वास के सिद्धांत के लिए बने धर्मसंघ और संत पियुस दसवें के संध के नेताओं के बीच सुनवाई के अंत में, परमधर्मपीठ ने घोषणा की कि उसने संत पियुस दसवें के धर्मसंघ के लिए द्वितीय वाटिकन महासभा की "सिद्धांतवादी प्रस्तावना" और मजिस्टेरियम के अनुवर्ती को प्रस्तुत किया है। इस प्रस्तावना की संभावित स्वीकृति संघ की विहित मान्यता द्वितीय वाटिकन महासभा के ग्रंथों के कुछ भावों के निरूपण के लिए एक शर्त होगी।

22-25 सितंबर 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की बीसवीं प्रेरितिक यात्रा - जर्मनी

परमाध्यक्ष के रुप में संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की अपनी मातृभूमि की तीसरी प्रेरितिक यात्रा है। बर्लिन के बुंडेस्टाग में संत पापा ने एक ऐतिहासिक भाषण में, फिर से, "प्रत्यक्षवादी तर्क" के बारे में चेतावनी दी, जो अपने आप को एक विशेष तरीके से प्रस्तुत करता है और उससे परे कुछ भी अनुभव करने में असमर्थ है। 23 सितंबर को, एरफर्ट में, वह एक बार फिर पुरोहितों द्वारा बाल यौन पीडितों और लूथरन कलीसिया के प्रतिनिधियों से मिले। 22 सितंबर को, बर्लिन के लिए उड़ान भरते वक्त बालयौन दुराचार पर उन्होंने कहा, “शायद हम उन अपराधों से घबराहट महसूस करते हैं, जो हाल के दिनों में सामने आए हैं। इस तरह की जानकारी के प्रकाश में, विशेष रूप से जब यह लोगों के जानकारी में आता है, तो वो कह सकता है, “यह अब मेरी कलीसिया नहीं है। कलीसिया मेरे मानवीय और नैतिक जीवन जीने के लिए बल प्रदान करती थी। यदि कलीसिया के प्रतिनिधि इसके विपरीत व्यवहार करते हैं, तो मैं अब इस कलीसिया के साथ नहीं रह सकता।” फ्रीबुर्ग में संत पापा ने कहा, "एक कलीसिया जो सांसारिक तत्वों से स्वतंत्र है, वह पीड़ित लोगों और उनकी मदद करने वालों के साथ संवाद करने में सक्षम है और ख्रीस्तीय विश्वास को मजबूत करते हुए सामाजिक और उदारता के कार्यों में लोगों की मदद करती है।

19 अक्टूबर 2011

संत पापा के प्रतिनिधि, कार्डिनल डे पाओलुस, प्रेरितिक यात्रा के बाद रेन्युम क्रिस्टी के समर्पित सदस्यों के कार्य कलापों पर पहला निष्कर्ष निकाला।

23 अक्टूबर, 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने तीन नए संतों को वेदी का सम्मान दिया। अबतक उनके द्वारा 37 संत घोषित किए गए। उनके कार्यकाल के अंत तक कुल 45 संत घोषित होंगे।

27 अक्टूबर 2011

संत पापा जॉन पॉल द्वितीय द्वारा असीसी में बुलाई गई शांति के लिए पहली प्रार्थना सभा के 25 साल बाद, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने संत फ्राँसिस के शहर असीसी की यात्रा की और दुनिया के प्रमुख धर्मों और गैर-विश्वासियों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाया।

18-20 नवंबर 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की बाइसवीं प्रेरितिक यात्रा - बेनिन

पश्चिम अफ्रीका के सुसामाचार प्रचार की 150 वीं वर्षगांठ के अवसर पर और धर्माध्यक्षों की धर्मसभा के बाद प्रेरितिक उद्बोधन "अफ्रीका मुनुस" को सौंपने के लिए बेनिन की यात्रा की।

21 नवंबर 2011

कार्डिनल डे पाओलिस का पत्र, जिसमें परमधर्मपीठ के प्रतिनिधि ने उन ठोस नियमों को दिया जिसपर "रेग्नुम क्रिस्टी" के समर्पित सदस्यों को चलना चाहिए।

26 नवंबर, 2011

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने संयुक्त राज्य अमेरिका के धर्माध्यक्षों से मुलाकात की। अन्य बातों के अलावा, उन्होंने कहा, “मैं व्यक्तिगत रूप से यौन पीड़ितों की पीड़ा और बच्चों की सुरक्षा की गारंटी के लिए किए गए ईमानदार प्रयासों को जानना चाहता था और सामना करना चाहता था। मुझे आशा है कि इस वास्तविकता का सामना करने के लिए कलीसिया के ईमानदार प्रयास पूरे समुदाय को यौन शोषण के कारणों और विनाशकारी परिणामों को पहचानने और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने में मदद करेंगे। यह प्लेग समाज के सभी स्तरों को प्रभावित करता है। इसी कारण से, जैसे कलीसिया इस संबंध में सटीक मापदंडों का पालन करती है, वैसे ही बिना किसी अपवाद के, अन्य सभी संस्थानों को समान मानदंडों का पालन करना चाहिए।

2012

18 फरवरी 2012

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने चौथे साधारण कार्डिनल मंडल के लिए 24 नए सदस्यों को कार्डिनल के पद पर प्रतिष्ठापित किया, कलीसिया के नए सिद्धांतों के तहत उनकी संख्या 84 हो गई।

20 मार्च 2012

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के प्रेरितिक यात्रा के बाद परमधर्मपीठ ने स्थानीय पुरोहितों द्वारा बालयौन शोषण घोटालों के बाद आयरिश काथलिकों के लिए अंतिम दस्तावेज के रुप में एक पत्र प्रकाशित किया।

23-28 मार्च 2012

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की तेईस्वीं प्रेरितिक यात्राः मैक्सिको और क्यूबा

 हवाना में संत पापा की मुलाकात फिदेल कास्त्रो से हुई।

23 मई, 2012

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के सहायक, पावलो गाब्रियल को वाटिकन जेंदारमरिया द्वारा वाटिलिक्स स्कैंडल के तहत गोपनीय दस्तावेजों की चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया, अर्थात् संत पापा से संबंधित गोपनीय जानकारी और कुछ वाटिकन सिटी के आंतरिक मामले की जानकारी देना।

24 मई 2012

आईओआर के "ले" काउंसिल ऑफ सुप्रिटेंडेन्स द्वारा हतोत्साहित किए जाने पर धर्म संघों के लिए काम करने वाले संस्थान के अध्यक्ष ईटोर गोट्टी तेदेस्की ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा वाटिलिक्स घोटाले का हिस्सा था।

13 जून, 2012

संत पियुस दसवें धर्मसंघ के सुपीरियर जनरल बर्नार्ड फेल्लाय को वाटिकन में बुलाया गया, जहां उन्हें संघ द्वारा अप्रैल में प्रस्तुत किये गये "सिद्धांतवादी प्रस्तावना" पर प्रतिक्रिया का मूल्यांकन दिया गया, जो परमधर्मपीठ द्वारा संत पियुस दसवें धर्मसंघ को उसपर प्रतिक्रिया करने हेतु दिया गया था। बाद के महीनों में, मतभेद समुदाय का रोम के साथ पूर्ण सहभागिता में वापसी की संभावना अनिश्चित ही रहेगी।

17 जून, 2012

डबलिन (आयरलैंड) में 50 वीं अंतर्राष्ट्रीय यूखरीस्तीय कांग्रेस के समापन के अवसर पर वीडियो संदेश में, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें  ने अन्य बातों के अलावा यह कहा, "विश्वास और प्रेम के इतने बड़े इतिहास के लिए धन्यवाद, जो हाल ही में पुरोहितों और धर्मसंघियों द्वारा किए गए पापों के रहस्योद्घाटन से एक भयानक तरीके से हिल गई। उन्होंने नाबालिगों को मसीह का रास्ता दिखाने और उनकी भलाई करने के बदले उनके साथ दुर्व्यवहार किया। कलीसिया के संदेश की विश्वसनीयता को कम कर दिया है। हम इस तथ्य को कैसे समझा सकते हैं कि जिन लोगों ने नियमित रूप से प्रभु के शरीर को ग्रहण किया है और पापस्वीकार संस्कार में अपने पापों को कबूल किया है वे इस तरह का दुर्व्यवहार कर सकते हैं? यह एक रहस्य है। वे प्रभु के साथ मुलाकात करने के बाद भी पोषित नहीं होते, बस वे अपने कार्य को पूरा करते है जो एक आदत बन गई है।”

18 जुलाई 2012

यूरोपीय परिषद का मनीवाल समिति, जो वित्तीय प्रणालियों के मनी लॉन्ड्रिंग के नियमों का मूल्यांकन करता है, वाटिकन पर अपनी पहली रिपोर्ट प्रकाशित किया, जिसमें उसने "अपने पर्यवेक्षी शासन को मजबूत करने के लिए" वाटिकन को आमंत्रित किया। वाटिकन प्रणाली 16 केंद्रीय सिफारिशों में से 9 मामले में," मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ लड़ाई, जब्ती के उपाय, गोपनीयता कानून, प्रलेखन, पारस्परिक कानूनी सहायता, आतंकवादी वित्तपोषण के आपराधिक उपचार, अंतरराष्ट्रीय और अन्य सहयोग जैसे पहलुओं पर, किसी भी मामले में, या "बड़े पैमाने पर अनुपालन" में है। मनीवाल में वाटिकन के मुख्य प्रतिनिधि मोनसिन्योर एट्टोरे बेलस्ट्रेरो ने "अभी तक जो किया जाना है, उसके बारे में जागरूकता से प्रभावित परिणामों के साथ संतुष्टि" व्यक्त की है।

14-16 सितंबर 2012

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें की चौबीसवीं प्रेरितिक यात्रा - लेबनान

संत पापा ने मध्य-पूर्व के लिए धर्मसभा के बाद उसके परिणाम प्रेरितिक उद्बोधन को प्रसतुत किया।

29 सितंबर - 6 अक्टूबर 2012

पावलो गेब्रियल के कोर्ट केस का सुनवाई। अविश्वासी बटलर पावलो गेब्रियल को वाटिकन सिटी राज्य कोर्ट ने 18 महीने जेल की सजा सुनाई। 22 दिसंबर को संत पापा उन्हें क्षमा प्रदान करेंगे। इसी केस में शामिल, आरोपी कंप्यूटर वैज्ञानिक क्लाउदियो साइपरपेल्लेट्टी की एक महीने बाद, 5 नवंबर, 2012 को केस की सुनाई होगी और उसे 4 महीने की सजा होगी जिसे 2 महीने तक कम कर दिया जाएगा और वे 5 साल के लिए निलंबित किये जायेंगे।

7-28 अक्टूबर 2012

सिनॉड के धर्माध्यक्षों की तेरहवीं साधारण आम सभा।

सभा का विषय-वस्तुः "ख्रीस्तीय विश्वास के प्रसारण के लिए नवीन सुसमाचार प्रचार।"

11 अक्टूबर 2012

“विश्वास वर्ष” के उद्घाटन के दिन शाम को मशाल जुलुस आयोजित किया गया था। जुलुस के अंत में संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने कहा, "इन पचास वर्षों में हमने सीखा है और अनुभव किया है कि आदि पाप मौजूद है और हमेशा व्यक्तिगत पापों में नये तौर पर अनुवादित है, जो पाप की संरचना भी बन सकता है। हमने देखा है कि प्रभु के समय में फसल के खेतों में जंगली पौधे भी हमेशा रहते थे। हमने देखा है कि पेत्रुस की जाल में भी खराब मछलियाँ रहती थीं। हमने देखा है कि मानवीय दुर्बलताएँ भी कलीसिया में मौजूद है। कलीसिया रुपी जहाज भी हवा के विपरीत दिशा में और तूफानों के बीच समुद्र में बढ़ रही है और कभी-कभी हम सोचने लगते हैं कि प्रभु सो रहे हैं और हमें भूल गये हैं।"

21 नवंबर 2012

"इनफैंसी ऑफ जीसस"(येसु का बचपन) का प्रकाशन, जोसेफ रात्सिंगर – संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें द्वारा हस्ताक्षरित येसु का तीसरा और अंतिम खंड।

2013

4 जनवरी 2013

 परमधर्मपीठ द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के परमाध्यक्ष बनने के बाद से आज की तारिक में 20 मिलियन से अधिक लोगों ने उनके साथ आम दर्शन समारोह, देवदूत प्रार्थना और पवित्र मिस्सा समारोह और अन्य धर्मविधि समारोह में भाग लिया। 

16 जनवरी 2013

 संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने मोतू प्रोप्रियो "फ़ीदेस फ़ॉर डॉक्ट्रिनम" प्रकाशित किया, इसमें प्रेरितिक संविधान "पासटर बोनुस" को संशोधित किया है और इसे नवीन सुसमाचार प्रचार को बढ़ावा देने के लिए पुरोहितों के धर्मसंध के धर्मशिक्षा की क्षमता से निकाल कर नवीन सुसामाचार हेतु बने परमधर्मपीठीय संगठन को दिया गया है।

11 फरवरी 2013

संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने वाटिकन कार्डिनल मंडल के सामने घोषणा की कि वे परमाध्यक्ष मंत्रालय का त्याग करते है जो 28 तारीख को समाप्त हो जाएगा। (जेन्गारीनी)

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04 January 2023, 11:42