संत पापाः जीवन में सतर्कता के भाव महत्वपूर्ण

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में सदैव सतर्क रहने का आहृवान किया जिससे हम शैतान के चंगुल में न पड़ें और ईश्वर से मिली कृपाओं को बचाये रख सकें।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

हम आत्म-परीक्षण पर अपनी धर्मशिक्षा माला के अंतिम भाग में प्रवेश करते हैं। हमने संत इग्नासियुस के उदाहरण से शुरू करते हुए आत्म-परीक्षण के विभिन्न पहलूओं पर विचार मंथन किया, जैसे कि प्रार्थना, व्यक्तिगत बोध, चाह और अपने “जीवन की पुस्तिका”। हमने सांत्वना और निराशा पर गौर किया जो आत्म-परीक्षा का मुख्य भाग है और इस भांति हम अपने चुनाव की सुदृढ़ता तक पहुंचें।

सतर्कता का मनोभाव

संत पापा ने कहा कि यहाँ, मैं विश्वास करता हूँ कि हमें एक निश्चित मनोभाव पर विचार करने की आवश्यकता है जिससे आत्म-परीक्षण की प्रकिया हमें इस बात का एहसास दिलाये कि यह उचित रुप में पूरी हुई है और हम अपने निर्णय को नहीं खोते हैं- अतः संत पापा ने सतर्कता के मनोभाव पर ध्यान देने हेतु आग्रह किया। ऐसा इसलिए क्योंकि हम सदैव एक जोखिम को पाते हैं, यह जोखिम हमारे लिए “बिगाड़ने वाले” अर्थात शैतान की ओर से आता है, जो सारी चीजों को बर्बाद कर सकता है। जहाँ से हमने शुरू की थी वह हमें पुनः उसी स्थिति में लाकर खड़ा कर सकता है, यहाँ तक की उससे भी बुरी स्थिति में। यही कारण है कि हमें आवश्यक रुप से सचेत और सतर्क रहने की जरुरत है अतः आज हम विशेष रूप से इस मनोभाव की ओर ध्यान देंगे जो आत्म-परीक्षण की प्रक्रिया को सफल बनाता और उसमें अंत तक बने रहने में मदद करता है।

अच्छे शिष्य की मांग  

वास्तव में, येसु ख्रीस्त अपनी शिक्षा में इस बात पर जोर देते हैं कि एक अच्छे शिष्य को सतर्क रहने की आवश्यकता है, उसे चाहिए कि वह अपने में सोता न रहे, हम अपने को अति विश्वास से भरा हुए न देखें विशेषकर जब चीजें अच्छी तरह से चल रही हैं, बल्कि ऐसी स्थिति में सावधानी बरतते हुए अपने कार्यो को करें।

संत पापा ने कहा कि उदाहरण के लिए हम इसे संत लूकस के सुसमाचार में देख सकते हैं, जहाँ येसु कहते हैं, “तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें। तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें। धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा।” (12.35-37)

यह एक ख्रीस्तीय की मानसिक स्थिति को व्यक्त करती है जो अंतिम समय में ईश्वर के आने की प्रतीक्षा करता है। लेकिन हम इसे दैनिक जीवन के कार्यों, अपने सामान्य आचरण स्वरुप समझ सकते हैं, जिसके फलस्वरुप हम अच्छी चीजों का चुनाव करते जो हमारी अपनी आत्म-परीक्षण के अनुरूप होता है, जो हमें अपनी दृढ़ता और सुसंगत में बने रहने को मदद करता और हमारे लिए फलप्रद होता है।

सतर्कहीनता की जोखिम

संत पापा ने कहा कि यदि हम अपने में सतर्कता का अभाव पाते, तो हम एक बड़ी जोखिम में पड़ जाते हैं, जैसे कि हमने कहा कि सारी चीजें खत्म हो सकती हैं। यह एक मनोवैज्ञानिक स्तर पर होने वाला खतरा नहीं है लेकिन आध्यात्मिकता के पड़ाव में होने वाला खतरा है, जहाँ हम अपने को दुष्ट आत्मा के जाल में फंसता पाते हैं। यह वास्तव में, दुष्ट आत्मा एक समय की प्रतीक्षा करता है जहाँ हम अपने में एकदम सुनिश्चित होने का अनुभव करते हैं, जब सारी चीजें अच्छी तरह चल रही होती हैं, सभी ओर हरियाली की स्थिति बनी रहती है जैसे कि कहा जाता है, “हवा हमारे रूख में प्रवाहित हो रही है।” वास्तव में, सुसमाचार के छोटे दृष्टांन में हमने सुना कि कैसे दुष्ट आत्मा, जब अपने घर को वापस लौटता जहाँ से वह निकला था, तो वह उसे खाली, साफ-सुथरा और सजाया हुआ पाता है। सारी चीजें अपने में व्यवस्थित हैं, सब कुछ सही सलामत है, लेकिन घर का मालिक कहाँ हैॽ वह वहाँ नहीं है। यही हमारे लिए खतरा की बात है। घर का मालिक वहाँ नहीं हैॽ घर की देख-रेख करने वाला कोई नही है, वह बाहर चला गया है, वह अपने में खोया हुआ है, या वह अपने घर में है लेकिन सो रहा है और इसीलिए ऐसा लगता है मानो वह वहाँ है ही नहीं। वह अपने में सर्तक नहीं है, वह सचेत नहीं है क्योंकि वह अपने में अत्यधिक विश्वासी होने का अनुभव करता है और इस भांति वह अपने हृदय की सुरक्षा करने हेतु अपनी नम्रता को खो देता है। हमें अपने हृदय रुपी घर की रक्षा सदैव करने की जरुरत है, हमें इसे यूंही नहीं छोड़ना है।

दुष्ट आत्मा का पुनः प्रवेश खतरनाक

संत पापा ने कहा कि ऐसी स्थिति का फायदा दुष्ट आत्मा उठता और उस घर में लौट आता है। सुसमाचार हमें कहता है, वह अपने में अकेला नहीं लौटता बल्कि अपने साथ अन्य सात आत्माओं को लेकर आता है। वह दुष्टों की एक फौज को लेकर आता है। लेकिन हम अपने में आश्चर्यचकित होते हैं- लेकिन यह कैसे संभव है कि वे बिना विचलित हुए प्रवेश कर सकते हैंॽ कैसे घर के स्वामी को इसका पता नहीं चलता हैॽ क्या उसने आत्मा-परीक्षण उचित रुप में करते हुए उसे दूर नहीं किया थाॽ क्या उसे अपने साफ, सुन्दर और शानदार घर के लिए अपने दोस्तों और पड़ोसियों से शुभकामनाएं नहीं मिली थींॽ उसे जरुर मिलीं, और शायद यही कारण है कि वह अपने हृदय रूप घर के प्रति अत्याधिक प्रेम के जनजाल में फंस गया, वह अपने में खोया रहा और इस भांति ईश्वर के आने की प्रतीक्षा नहीं की, उसे दूल्हे के आने का ध्यान नहीं रहा। शायद उसे इस बात का भय था कि उसके घर की स्थिति खराब हो जायेगी अतः उनसे किसी का स्वागत नहीं किया, उसने गरीबों, आश्रयहीनों का, वे जो दुःखित थे उनका स्वागत नहीं किया...संत पापा ने कहा कि यहाँ हम एक बात को निश्चित रूप में पाते हैं जो व्यक्ति में घमंड को व्यक्त करता है, वह अपने को नेक, बेहतर समझने लगता है। उन्होंने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि बहुत बार हम अपने में ऐसा अनुभव करते हैं, “हाँ, मैं बुरा था, लेकिन अब मैं बदल गया हूँ, अब यह घर बेहतर स्थिति में है।” जब हम अपने में अत्यधिक भरोसा करने लगते और ईश्वर की कृपा पर निर्भर नहीं होते, तो दुष्ट आत्मा हमारे घरों के द्वार को खुला पाता है। अतः वह अपने कार्य की रूप रेखा तैयार करता और उस घर को अपने अधिकार में कर लेता है। इस भांति येसु यह कहते हुए अंत करते हैं कि उस व्यक्ति की स्थिति पहले की तुलना में और भी अधिक खराब हो जाती है।

शैतान के चाल को समझें

संत पापा ने कहा, “लेकिन क्या घर का मालिक इसका एहसास नहीं करताॽ” नहीं, क्योंकि ये दुष्ट आत्माएँ बहुत ही नम्र तरीके से घर में प्रवेश करते हैं, और हमारे आत्मा को अपने कब्जे में कर लेते हैं। हमें सतर्कता में ध्यान देने की जरुरत है शैतान अपने को संभ्रांत व्यक्ति स्वरुप प्रस्तुत करता है, वह हमारे द्वार से प्रवेश करता और अपने द्वार से निकल जाता है। आप अपने हृदय रुपी घर की रक्षा करें दुनियावी आध्यात्मिकता सदैव ऐसे राह का अनुसरण करती है।

प्रिय भाई एवं बहनो, संत पापा ने कहा कि हम बहुत बार में अपने जीवन में हार जाते हैं, क्योंकि हममें सतर्कता की कमी होती है। ईश्वर ने हमें अपनी असंख्य कृपाओं से भर दिया है लेकिन हम उन कृपाओं पर अडिग नहीं रह पाते और सारी चीजों को खो देते हैं। “ऐसा इसलिए क्योंकि हम अपने में सचेत नहीं रहते हैं, हम अपने हृदय द्वार की रक्षा नहीं करते हैं।” हम शैतान की नम्रता, शिष्टता द्वारा छले जाते हैं। हम अपने व्यक्तिगत जीवन इतिहास को पीछे मुड़कर देखते हुए इसकी थाह ले सकते हैं। केवल एक अच्छा आत्म-परीक्षा करना और एक अच्छा चुनाव करना अपने में काफी नहीं है। यह हमारे लिए प्रर्याप्त नहीं है बल्कि हमें अपने में सचेत रहने की जरुरत है। संत पापा ने सतर्कता में बने रहते हुए ईश्वर से मिली कृपाओं को सुरक्षित रखने का आहृवान किया। शैतान एक दूत के रुप में शिष्ट व्यवहार द्वारा हमारे जीवन में प्रवेश करता और हमारे विश्वास को जीत लेता है... हमें सावधान रहते हुए अपने हृदय की रक्षा करना है। हम अपने आप से पूछे, “मेरे हृदय में क्या हो रहा हैॽ” हम अपने हृदय से सचेत रहें क्योंकि सतर्कता विवेक की एक निशानी है उससे भी बढ़कर यह नम्रता की एक निशानी है, और हम अपने में गिरने और नम्रता को खोने का भय पाते हैं जो ख्रीस्त जीवन का मुख्य मार्ग है। 

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14 December 2022, 12:40