बुडापेस्ट में अंतरराष्ट्रीय यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस के दौरान धर्माध्यक्षों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस बुडापेस्ट में अंतरराष्ट्रीय यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस के दौरान धर्माध्यक्षों से मुलाकात करते संत पापा फ्राँसिस 

हंगरी के धर्माध्यक्षों से पोप ˸ ईश्वर एवं अपने झुण्ड के नजदीक रहें

संत पापा फ्रांसिस ने रविवार 12 सितम्बर को बुडापेस्ट में अपनी प्रेरितिक यात्रा के कार्यक्रमों की शुरूआत करते हुए, वहाँ के ललित कला संग्रहालय में हंगरी के धर्माध्यक्षों से मुलाकात की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

बुडापेस्ट, रविवार, 12 सितम्बर 2021 (रेई)- संत पापा ने कहा, "मैं 52वें अंतरराष्ट्रीय यूखरीस्तीय सम्मेलन के समापन पर आपके साथ सहभागी होकर अत्यन्त खुश हूँ।"

रोटी और दाखरस में ख्रीस्त

मैं यूखरीस्तीय क्रियाकलाप से प्रेरित अपने कुछ विचारों को साझा करना चाहता हूँ। बलि-परिवर्तन की रोटी और दाखरस में हम ख्रीस्त को देखते हैं जो अपने शरीर और रक्त को हमारे लिए अर्पित करते हैं, खासकर, हंगरी की कलीसिया, अपने अटूट विश्वास, अत्याचार और शहीदों के खून के लम्बे इतिहास से ख्रीस्त के बलिदान से जुड़ी है। हमारे कितने भाइयों और बहनों, धर्माध्यक्षों और पुरोहितों ने वेदी में जो चढ़ाया, उसे अपने जीवन में अनुभव किया। वे गेहूँ के दाने के समान रौंदे गये ताकि दूसरों को ख्रीस्त के प्रेम से पोषित कर सकें। वे अंगूर की तरह निचोड़े गये जिससे कि ख्रीस्त का रक्त नये जीवन का स्रोत बन जाए। वे तोड़े गये किन्तु उनका प्रेम बलिदान इतिहास में बोये गये सुसमाचारी बीज का पुनर्जन्म था।

शहीदों एवं उनके बलिदानों का इतिहास

शहीदों एवं उनके बलिदानों के इतिहास की याद करते हुए हम भविष्य को भी देख सकते हैं। हम भी उदार बनकर तथा सुसमाचार का साक्ष्य देते हुए शहीदों की चाह को अपना सकते हैं। कलीसिया के जीवन में दो चीजें एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकतीं ˸ अतीत की रक्षा एवं भविष्य को देखना। हमारे धार्मिक मूल और अतीत के इतिहास की रक्षा करना है जबकि अपनी नजर को अतीत की ओर लगाये नहीं रखना है बल्कि सुसमाचार के प्रचार हेतु नये रास्तों की ओर आगे बढ़ना है।    

संत पापा ने कहा, "मैं येसु के धर्मसमाज की हंगेरियाई धर्मबहनों को अच्छी तरह याद करता हूँ, जिन्हें धार्मिक अत्याचार के कारण अपनी मातृभूमि छोड़ना पड़ा था।"

उन्होंने अपनी बुलाहट में निष्ठावान रहकर, चरित्र की विशिष्ट ताकत के साथ बोयनोस आइरेस के प्लाटानोस शहर में मरिया वाड कॉलेज की स्थापना की। उनकी शक्ति, साहस, धीरज और मातृभूमि के प्रति प्रेम से मैंने बहुत कुछ सीखा। मेरे लिए वे एक शक्तिशाली साक्षी थीं। संत पापा ने निर्वासन के लिए मजबूर सभी लोगों की याद करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने अपने देश एवं अपने विश्वास के लिए अपना जीवन अर्पित किया।

कलीसिया का मिशन

संत पापा ने धर्माध्यक्षों से कहा, "धर्माध्यक्षों के रूप में, आप पहले स्थान पर, अपने लोगों को याद दिलाने के लिए बुलाये गये हैं जैसा कि संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने कहा है, "ख्रीस्तीय परम्परा, बॉक्स में रखी गयी सामग्री की तरह चीजों या शब्दों का संग्रह नहीं है। परम्परा नये जीवन की एक नदी है जो उदगम, ख्रीस्त से हमारे पास तक बहती है और हमें मानवता के साथ ईश्वर के इतिहास में सहभागी बनाती है।"

यूखरिस्तीय सम्मेलन की विषयवस्तु की याद करते हुए संत पापा ने कहा, "मेरे सभी स्रोत आपमें हैं।" उन्होंने कहा, निश्चय ही, कलीसिया खुद ख्रीस्त रूपी झरने से बहती है और वह भेजी गई है ताकि सुसमाचार, एक जीवित झरने की तरह हमारे विश्व में मौजूद मरूस्थल को हराभरा बना सके तथा मानव हृदय को शुद्ध करे एवं उसकी प्यास बुझाये। एक धर्माध्यक्ष के रूप में आपकी प्रेरिताई अतीत के संदेश को दुहराना नहीं है बल्कि नबी की आवाज बनकर बुलंद आवाज में ईश्वर की पवित्र प्रजा एवं आज की दुनिया के लिए सुसमाचार की घोषणा करना है।   

संत पापा ने उनके मिशन के लिए सुझाव के कुछ विन्दु प्रस्तुत किये-

सुसामाचार के संदेशवाहक बनें

संत पापा ने कहा, "आइये, हम न भूलें कि कलीसिया के जीवन का केंद्र ख्रीस्त के साथ हमारी मुलाकात है।" उन्होंने सचेत किया कि कई बार हम अपनी संस्थाओं और संरचनाओं की सुरक्षा के प्रलोभन में पड़ते हैं। आजादी में वृद्धि ने दुनियादारी एवं ईश्वर के प्रति प्यास की कमी जैसी नई चुनौतियोँ को उत्पन्न किया है। किन्तु हम न भूलें कि ख्रीस्त निरंतर बहनेवाले जलस्रोत हैं जो सभी की प्यास बुझाते हैं। समाज में संस्थाएँ, संरचनाएँ एवं कलीसिया की उपस्थिति लोगों में ईश्वर की प्यास जगाने के लिए तथा उन्हें सुसमाचार का जीवन जल देने के लिए है। संत पापा ने धर्माध्यक्षों को सचेत किया कि वे नौकरशाही और व्यवस्थापक अथवा लाभ की खोज करनेवाले न बनें बल्कि सुसमाचार के लिए प्रज्वलित उत्साह दिखायें। सुसमाचार के साक्षी एवं प्रचारक बनें। पिता तुल्य हृदय से अपने पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों के करीब रहें, उन्हें सुनने के लिए तत्पर रहें। ईश वचन को प्राथमिकता देने एवं लोकधर्मियों को शामिल करने से न डरें क्योंकि उनके विश्वास की नदी से हंगरी पुनः सिंचित होगा।  

भ्रातृत्व के साक्षी बनें

संत पापा ने कहा कि उनका देश एक ऐसा स्थान है जहाँ विभिन्न जाति, धर्म, समुदायों के लोगों और अप्रवासियों ने लम्बे समय तक एक साथ जीया है। "यह नई बात है" जो शुरू में कठिन हो सकती है, विविधता डर पैदा कर सकती है क्योंकि यह हमारी सुरक्षा एवं स्थिति को चुनौती देता है। किन्तु यह हमारे हृदय को सुसमाचार के संदेश के लिए खोलने का बहुमूल्य समय है। "एक-दूसरे को प्यार करो जैसा मैंने तुन्हे प्यार किया है।" (यो.15,12) विविधताओं के बीच या तो हम अपनी पहचान को बनाये रखने के लिए रूढ़ीवादी बनकर रह सकते हैं अथवा खुला होकर दूसरों से मुलाकात कर सकते हैं एवं सभी मिलकर एक भ्रातृत्वमय समाज का निर्माण कर सकते हैं। संत पापा ने उन्हें लोगों के बीच आने एवं भाईचारा तथा एकात्मतापूर्ण समाज के निर्माण की सलाह देते हुए, कलीसिया को वार्ता हेतु नये सेतु के निर्माण का परामर्श दिया। उन्होंने धर्माध्यक्षों से कहा, "मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि अपने पुरोहितों और प्रेरिताई कार्यों से जुड़े लोगों के साथ कलीसिया के सच्चे चेहर को दिखायें। एक ऐसा चेहरा जो सभी का स्वागत करता एवं वार्ता के लिए खुला है। एक ऐसा चरवाहा बनें जिसमें भ्रातृत्व हो और जो भेड़ों पर भार नहीं डालता बल्कि पिता और भाई के रूप में कार्य करता है। इस तरह लोकधर्मी, उनके जीवन का हर आयाम, परिवारों का जीवन, समाज का जीवन और कार्य स्थल, सुसमाचारी भातृत्व का खमीर बने।

आशा के निर्माता बनें

संत पापा ने धर्माध्यक्षों से कहा कि वे आशा के निर्माता बनें। यदि हम सुसमाचार को केंद्र में रखते हैं और भ्रातृ-प्रेम के द्वारा इसका साक्ष्य देते हैं तब हम भविष्य को आशा के साथ देख सकते हैं। कलीसिया की बड़ी जिम्मेदारी है कि वह ईश्वर की दया को प्रकट करे कि वे हमारे जीवन के हरेक क्षण हमें प्यार करते हैं एवं हमेशा क्षमा करते हुए हमें ऊपर उठाने के लिए तैयार है। संत पापा ने कहा कि निराशा का प्रलोभन ईश्वर से नहीं आता बल्कि दुश्मन से आता है। सुसमाचार का प्रचार आशा को फिर से जीवंत करता है क्योंकि यह हमें याद दिलाता है कि हर चीज में ईश्वर मौजूद हैं; वे हमारा साथ देते हैं और हमें साहस एवं रचनात्मकता प्रदान करते है जिसकी हमें हमेशा नए सिरे से शुरुआत करने की आवश्यकता होती है।

हंगरी को भी सुसमाचार के एक नए प्रचार की जरूरत है, एक नई सामाजिक और धार्मिक भाईचारा की, एक दैनिक-नवीनीकृत आशा की जो हमें भविष्य को खुशी के साथ देखने में सक्षम बनाती है। "धर्माध्यक्ष के रूप में, आपको इस ऐतिहासिक प्रक्रिया, इस अद्भुत साहसिक कार्य में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए बुलाया गया है। ईश्वर आपको मिशन की खुशी प्रदान करें!" संत पापा ने उनके कार्यों के लिए धन्यवाद देते हुए उन्हें अपनी आशीष प्रदान की।  

बुडापेस्ट के धर्माध्यक्षों से मुलाकात

    

 

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12 September 2021, 14:22