संत पापाः मरियम हमारे विश्वास की आदर्श हैं

संत पापा फ्रांसिस ने शशटिन तीर्थ में सात दुःखों की माता के पर्व दिवस पर ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए माता मरियम की करूणामय जीवन पर प्रकाश डाला।

दिलीप संजय  एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 15 सितम्बर 21 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने स्लोवाकिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के अंतिम दिन शशटिन के मरियम सात दुःखों की माता तीर्थस्थल पर ख्रीस्तीयाग अर्पित किया।

संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि येरुसलेम के मंदिर में मरियम येसु को बुजुर्ग सिमेयोन को देती हैं जो उन्हें अपनी बाहों में लेकर इस बात की घोषणा करते हैं कि मुक्तिदाता इस्रराएल की मुक्ति हेतु भेजा गया है। यहाँ हम मरियम को उसी रूप में पाते हैं जो वे वास्तव में हैं- एक माता जो अपने बेटे येसु को हमारे लिए देती हैं। यही कारण है हम उन्हें प्रेम करते और उनकी आराधना करते हैं। शशटिन के इस राष्ट्रीय तीर्थस्थल में स्लोवाकी अपने विश्वास और भक्ति के साथ आते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि मरियम उनके लिए येसु को लाती हैं। इस प्रेरितिक यात्रा का स्मृति चिन्ह हृदय के धुमावदार मार्ग को व्यक्त करता है जो क्रूस से घिरा है- जहाँ मरिमय येसु के हृदय तक पहुंचने हेतु हमारी मार्ग-दर्शिका बनती हैं जो अपने प्रेम के खातिर अपने जीवन को हमारे लिए अर्पित करते हैं।

सुसमाचार के प्रकाश में हम मरियम हमारे विश्वास के आदर्श पर चिंतन कर सकते हैं। हम विश्वास के तीन आयाम यात्रा, भविष्यवाणी और करूणा पर चिंतन कर सकते हैं।

मरियम अपने विश्वास के कारण एक यात्रा हेतु निकलती हैं। नाजरेत की युवा नारी, स्वर्गदूत के संदेश को सुनने के बात अतिशीघ्रता से पहाड़ी प्रदेश के लिए निकल पड़ती हैं (लूका. 1.39) और अपनी कुटुबिंनी एलिजबेद से भेंट उसकी सेवा करने हेतु जाती हैं। मुक्तिदाता की माता बनने हेतु चुने जाने पर वह इसे विशेषाधिकार स्वरुप में नहीं देखती हैं। वह अपनी नम्रता में मिलने वाली सधारण खुशी को नहीं खोती हैं। वह अपने को अपने घर के चाहरदीवारी के अंतर घिरा नहीं रखती हैं। बल्कि वह अपने को मिली प्रेरिताई के उपहार को दूसरों से साझा करने का अनुभव करती हैं। वह अपने द्वार को खोलते हुए बाहर निकलने को प्रेरित होती हैं मानो ईश्वर प्रेम के कारण अपने लोगों के संग अपने को पूर्णरूपेण साझा करने में अति उत्सुक हों। यही कारण है मरियम अपनी यात्रा में निकल पड़ती हैं। वह अपने दैनिक जीवन की सुविधाजनक दिनचर्चा को छोड़कर अनजान मार्ग का चुनाव करती हैं जो विश्वास की जोखिम को दिखलाता है जो हमारे जीवन को दूसरों के लिए प्रेममय उपहार बनता है।  

आज का सुसमाचार भी हमारे लिए येरूसलेम की ओर, मरियम की यात्रा को प्रस्तुत करता है जहाँ वे येसु को मंदिर में अर्पित करती हैं। हम उन्हें प्रथम शिष्या की भांति अपने बेटे येसु ख्रीस्त के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए पायेंगे, यहाँ तक की कलवारी क्रूस काठ के तलहट पर भी। वह यात्रा करना कभी खत्म नहीं करती हैं।  

मरियम विश्वास की आर्दश 

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि आप स्लोवकी लोगों के लिए धन्य कुंवारी मरियम विश्वास की आदर्श हैं, एक विश्वास जो यात्रा को अपने में सम्माहित करता है, जिसमें हम साधारण और सच्ची भक्ति, ईश्वर की खोज हेतु निरंतर तीर्थ को पाते हैं। इस यात्रा में हमारे निष्क्रिय विश्वास की परीक्षा होती है और हम पुराने रीजि-रिवाजों में विजयी होते हैं। इस भांति हमें अपने आतीत की बातों को पीछे छोड़ते हुए अपने भाई-बहनों के लिए ईश्वरीय प्रेम का तीर्थ करते हैं। संत पापा ने स्लोवाकियों को उनके साक्ष्य हेतु कृतज्ञता के भाव प्रकट किये और उन्हें विश्वास की यात्रा को बनाये रखने हेतु प्रोत्साहित किया।

मरियम भविष्यवाणी की निशानी

मरियम का विश्वास अपने में भविष्यवाणी भी हैं। नाजरेत की युवा नारी अपने में भविष्यवाणी की निशानी हैं जो हमारे लिए मानव इतिहास में ईश्वरीय उपस्थिति को व्यक्त करती है, जिसके फलस्वरुप हम ईश्वर की करूणामय हस्तक्षेप को विश्व में पाते जो दीन-हीनों और गिरे हुए लोगों को उठाते और शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा देते हैं (लूका.1.25)। मरियम “ईश्वर के दीन-हीनों” का प्रतिनिधित्व करती जो उन्हें पुकारते और मुक्तिदाता के आने की प्रतीक्षा करते हैं। वह येरूसलेम की पुत्री है जिसके बारे में इस्रराएल के नबियों ने भविष्यवाणी की (जेफा.3.14-18), कुंवारी जो मुक्तिदाता एम्मनुएल, ईश्वर हमारे साथ हैं, को अपने गर्भ में धारण करने वाली थी (इसा.7.14)। निष्कलंक कुंवारी के रूप मरियम हमारी बुलाहट का प्रतीक है क्योंकि हम सभी उनकी तरह ही ईश्वर के प्रेम में शुद्ध और निर्मल होने हेतु बुलाये गये हैं (एफे. 1.4)।

इस्रराएली की भविष्यवाणी मरियम में अपनी चरमसीमा को प्राप्त करती है क्योंकि वे अपने गर्भ में येसु को वहन करती हैं जो दिव्य वचन ईश्वर के मुक्तिविधान योजना को फलहित करता है। येसु के बारे में सिमेयोन मरियम से कहते हैं,“इस बालक के कारण इस्रराएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा...एक चिन्ह जिसका विरोध किया जायेगा” (लूका. 2.34)।

येसु विरोध की निशानी

संत पापा ने कहा कि हम इस बात को न भूले कि विश्वास को हम जीवन मीठा बनाने की चीज जैसे न लें। येसु हमारे लिए विरोध की एक निशानी हैं। वे दुनिया में आये जिससे अंधकार में ज्योति का उदय हो। इस कारण अंधकार सदैव उनके विद्ध युद्ध करता है। वे जो येसु को अपने जीवन में ग्रहण करते हैं वे अपने जीवन में ऊपर उठेंगे वहीं जो उनका तिरस्कार करते हैं वे अपने को अंधाकर में पायेंगे, जो उनका स्वयं का विनाश है। येसु ने इस बात का जिक्र अपने शिष्यों के किया कि वे दुनिया में शांति लेकर नहीं बल्कि तलवार लेकर आये हैं(मत्ती.10.34)। वास्तव में, उनके वचन हमारे लिए दुधारी तलवार की भांति है जो हमारे जीवन को बेधित करते हुए अंधकार और प्रकाश को अलग करता और हमें एक निर्णय लेने को प्रेरित करता है। हम येसु के संबंध में कुनकुने नहीं रह सकते हैं, हमारे पैर दो नावों में नहीं हो सकते। संत पापा ने कहा कि जब मैं उन्हें स्वीकार करता हूँ तो वे मेरी तुष्टियों, बुराइयों और मेरे प्रलोभनों को प्रकट करते हैं। वे मेरे लिए पुनरूत्थान बनते हैं, जो गिरने पर मुझे सदैव उठाते और मेरा हाथ पकड़कर नई शुरूआत होते आगे ले चलते हैं।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि स्लोवाकिया को आज ऐसे नबियों की जरुरत है। उसका संबंध दुनिया की शत्रुता से नहीं है परन्तु दुनिया में व्याप्त “विरोधाभास की निशानियों” से है। ख्रीस्तीय अपने जीवन के द्वारा सुसमाचार की सुन्दरता को प्रकट करते हैं। वे उस परिस्थिति में वार्ता के शिल्पकार बनते हैं जहाँ शत्रुता बढ़ रही होती है, भ्रातृत्व के नायक होते जहाँ तनाव और वैमनस्य उत्पन्न हो गया है, वे उन परिस्थिति में आतिथ्य और एकता की खुशबू बिखेरते हैं जहाँ व्यक्तिगत और सामुदायिक तौर पर स्वार्थपन की स्थिति उत्पन्न हो गई है ,वे वहाँ जीवन के रक्षक और दर्शक बनते जहाँ मृत्यु की संस्कृति राज करती है।

मरियम करूणा की माता

मरियम करूणा की माता हैं। उनका विश्वास अपने में करूणामय है। वह ईश्वर की दासी है (लूका.1.38) जो अपनी मातृत्वमय चिंता के कारण इस बात को निश्चित करती हैं कि विवाह भोज में अंगूरी प्रार्याप्त रहे (यो.2.1-12), वह अपने बेटे के मुक्तदायी प्रेरिताई में हाथ बंटाते हुए क्रूस के नीचे खड़ी रहती है। कलवारी के अपने घोर पीड़ा में वह सिमेयोन की भविष्यवाणी को समझती है, “और एक तलवार आप के हृदय को आर-पार बेधेगी” (लूका.2.35)। अपने मरते हुए पुत्र का दुःख, जिसने अपने ऊपर सारी मानवता के पापों और कमजोरियों को ले लिया, उनके हृदय को बेधित कर देता है। येसु शारीरिक रुप में दुःख सहते और बुराई के कारण कुरूप हो जाते हैं (इसा.53.3)। मरियम हृदय में दुःख झेलती हैं, वह एक ममतमयी मताता के रुप में हमारे आंसूओं को पोंछती हैं हमें सांत्वना देती और येसु के निश्चित विजय की ओर इंगित कराती हैं।

मरियम, दुःखों की माता, क्रूस के नीचे खड़ी रहती हैं। वह वहाँ बनी रहती है। वह वहां से नहीं भागती, न ही अपने को बचाने की कोशिश करती है और न ही किसी रुप में अपने दुःखों को कम करने का प्रयास करती है। क्रूस के नीचे खड़ा रहना हमारे लिए उनकी सच्ची करूणा का प्रमाण देता है। आंसूओं में वहाँ बना रहना, अपने में ज्ञान और विश्वास के साथ कि उनका पुत्र दुःख-तकलीपों और मृत्यु को विजय में बदल देगा।

विश्वास में  हृदय खोलें

एक दुखित माता पर चिंतन करते हुए हम भी अपने हृदयों को विश्वास के लिए खोलें जो हमें करूणावान बनता है, एक विश्वास जो हमें दुखियों, कष्ट में पड़े और क्रूस के बोझ को ढ़ोने हेतु बाध्य किये जाने वालों के साथ संयुक्त करता है। एक विश्वास जो अपने में अमूर्त नहीं होता बल्कि यह जरुरतमंदो के साथ शारीरिक रुप में एक बनता है। विश्वास ईश्वर के कार्य करने के तरीक का अनुसरण करता है यह चुपचाप हमारी दुनिया के दुःखों को सहता और इतिहास की भूमि को मुक्ति के जल से सींचता है।

संत पापा फ्रांसिसि ने अपने प्रवचन के अंत में कहा कि ईश्वर आप में विश्वास के इस उपहार को आश्चर्यजनक और कृतज्ञता के रुप में सदैव सुरक्षित रखे। माता मरियम हमारे लिए विश्वास की कृपा दें जो हमारी करूणा और भविष्यवाणी की प्ररेताई को गहराई प्रदान करता है।

 

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स्लोवाकिया प्रेरितिक यात्रा का अंतिम पड़ाव-मरियम तीर्थ
15 September 2021, 15:13