बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा 

संत पापाः येसु में संहिता की परिपूर्णतः

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय धर्मशिक्षा के दौरान गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर धर्मशिक्षा देते हुए संहिता और विधान के बीच अंतर स्पष्ट किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन से संत पापा पापा पौल षष्टम सभागार में सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

संहिता का उद्देश्य क्या है? (गला.3.19)। यह सवाल संत पौलुस के जेहन में बांरबार आता है, जिसकी गहराई में आज हम जाने की कोशिश करेंगे, जिससे हम पवित्र आत्मा में ख्रीस्तीय नवीन जीवन से रुबरु हो सकें। यदि पवित्र आत्मा हैं यदि येसु ख्रीस्त हैं तो उन्होंने हमें संहिता के माध्यम मुक्ति दिलाई है हमें इस पर आज चिंतन करना है। प्रेरित लिखते हैं,“यदि आप आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलते हैं, तो संहिता के अधीन नहीं हैं।” वहीं पौलुस के विरोधी इस बात पर जोर देते हैं कि मुक्ति हेतु संहिता का अनुसरण करना जरुरी है। वे पुरानी बातों की ओर लौटते हैं। प्रेरित इस बात से तनिक भी सहमत नहीं हैं। वे येरूसलेम में अन्य प्रेरितों के संग इन बातों से सहमत नहीं थे। इन बातों के संबंध में वे पेत्रुस की बातों को अच्छी तरह याद करते हैं,“जो जूआ न तो हमारे पूर्वज ढ़ोने में समर्थ थे और न हम, उसे शिष्यों के कंधों पर लाद कर आप लोग अब ईश्वर की परीक्षा क्यों लेते हैं? (प्रेरि.15.10)। येरुसलेम में “प्रथम धर्मसभा” के दौरान विचार-मंथन में आयी बातें अपने में स्पष्ट थीं। वे कहती हैं,“पवित्र आत्मा को और हमें यह उचित जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों के सिवा आप लोगों पर कोई और भार न डाला जाये। आप लोग देवमूर्तियों पर चढ़ाये हुए मांस से, रक्त, गला घोंटे हुए पशुओं के मांस और व्यभिचार में परहेज करें।” (प्रेरि.15. 28-29)।

संहिता और विधान

जब पौलुस संहिता की बात करते हैं, तो वे निश्चित रुप में मूसा की संहिता, दस आज्ञाओं के के बारे में कहते हैं। यह ईश्वर की संहिता से जुड़ा थी जिसे ईश्वर ने अपने लोगों के लिए निर्धारित किया था। प्राचीन विधान के बहुत से लेखों, इब्रानी भाषा में- तोराः हमारा ध्यान संहिता की ओर आकृष्ट कराता है- जो इस्रराएलियों के लिए नियमावलियों की एक संग्रह थी जिसे उन्हें ईश्वर के विधान अनुरूप पालन करना था। तोरा के एक संक्षेपण को हम विधि-विवरण ग्रंथ में पाते हैं, “तब प्रभु तुम्हें अपने सब कार्यों में पूरी सफलता प्रदान करेगा। वह तुम्हारी संतति की, तुम्हारे पशुओं की और तुम्हारे भूमि की उपज की वृद्धि करेगा, क्योंकि तुम्हें अपने पूर्वजों की तरह प्रभु की कृपादृष्टि प्राप्त होगी, बशर्ते तुम अपने प्रभु-ईश्वर की बात मानो, इस संहिता के ग्रंथ में लिखी हुई उसकी आज्ञाओं और नियमों का पालन करो और सारे हृदय तथा सारी आत्मा से प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ” (विधि. 30.9-10)। संहिता के नियमों का अनुपालन लोगों को ईश्वर के विधान और खास कर ईश्वर से संयुक्त रखता था। इस्रराएली जनता के संग विधान की स्थापना करते हुए ईश्वर ने उन्हें तोरा (संहिता) प्रदान की जिससे वे ईश्वरीय योजना को समझते हुए न्याय में जीवन व्यतीत कर सकें। हम इस बात पर विचार करें कि उस समय एक संहिता की जरुरत थी जो लोगों को ईश्वर से उपहार स्वरुप दिया गया था क्योंकि चारों ओर गैर-ख्रीस्तीयता का बोलबाला था, लोग सभी जगह मूर्ति पूजा में संलग्न थे और इसी कारण ईश्वर ने उन्हें संहिता स्वरूप उपहार दिया जिससे वे आगे बढ़ सकें। बहुत बार विशेष कर नबियों की पुस्तिका में हम यह देखते हैं कि संहिता के नियमों का पालन नहीं करना विधान भंग करना था जिसके फलस्वरुप ईश्वर क्रोधित होते थे। इस भांति संहिता और विधान दो सच्चाई अपने में अखंडनीय थीं। संहिता इस बात की अभिव्यक्ति थी कि एक व्यक्ति ईश्वर के संग विधान में बना रहता है।

संत पापा ने कहा कि इस संदर्भ में हम उन प्रेरितों को समझ सकते हैं जिन्होंने गलातियों के समुदायों में प्रवेश करते हुए इस बात पर बल दिया कि विधान से संयुक्त रहना मूसा के नियमों का अनुपालन करना है जैसे कि पुराने व्यवस्थान में हुआ करता था। हलांकि, इस विशेष मुद्दे पर हम संत पौलुस के आध्यात्मिक ज्ञान और बृहृद प्रकाशना को पाते हैं जिसे उन्होंने ईश्वरीय कृपा में सुसमाचार प्रचार करते हुए घोषित किया और उनमें बना रहा।

संहिता और विधान में अंतर

प्रेरित गलातियों के समुदाय से इस बात की चर्चा करते हुए, सच्चाई को समझाने की कोशिश करते हैं कि विधान और संहिता एक दूसरे के संग अभाज्य रुप में जुड़ी नहीं है। ईश्वर का आब्रहम के संग स्थापित विधान की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह विश्वास पर आधारित है जिसके फलस्वरुप वे प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं न की संहिता के अनुपालन में, क्योंकि उस समय संहिता का कोई अस्तित्व नहीं था। संहिता से पूर्व आब्रहम विश्वास में याहवे के संग यात्रा करते हैं। प्रेरित लिखते हैं कि मेरे कहने का अभिप्राय यह है, जो विधान ईश्वर के द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है, उसे चार सौ पचास वर्ष बाद की संहिता न तो रद्द कर सकती है और न उसकी प्रतिज्ञाएं उठा सकती है। संत पापा ने कहा कि यह वाक्य हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, ईश प्रजा ख्रीस्तियों के रुप में हम प्रतिज्ञा की ओर अपनी निगाहें उठाये जीवन में आगे बढते हैं, यह प्रतिज्ञा है जो हमें आकर्षित करती है जहाँ हम ईश्वर से मिलन हेतु आगे बढ़ते हैं। यदि संहिता के माध्यम से विधान प्राप्त होती, तो प्रतिज्ञा से उसका कोई संबंध नहीं, किन्तु प्रतिज्ञा द्वारा ही ईश्वर ने उसे आब्रहम को दिया है” (गला.3.17-18)। अपने इस तर्क के अनुसार संत पौलुस प्रथम मुद्दे पर पहुँचते हैं कि संहिता हमारे लिए विधान का आधार नहीं है क्योंकि यह विधान के चार सौ पचास साल बाद आयी है। यह हमारे लिए उचित और जरुरी है लेकिन इसके पहले प्रतिज्ञा में विधान की स्थापना की गई।

संहिता एक मार्ग है

संत पापा ने कहा कि यह तर्क इस बात को खारिज करता है कि मूसा की संहिता विधान का संवैधानिक अंग है। पहले विधान की स्थापना की गई और फिर आब्रहम का बुलावा हुआ। वास्तव में, तोरा, (संहिता) प्रतिज्ञा का अंग नहीं था जो आब्रहम के साथ किया गया था। यह कहते हुए कोई यह नहीं सोच सकता है कि संत पौलुस ने मूसा द्वारा दी गई संहिता की अवहेलना की। नहीं, उन्होंने उनका पालन किया। कई बार संत पौलुस ने अपने पत्र में इसकी उत्पत्ति का पक्ष लेते हुए इस बात पर बल दिया कि यह मुक्ति के इतिहास में अच्छी तरह सुनिश्चित किया गया है। यद्यपि संहिता जीवन प्रदान नहीं करती है, यह हमें प्रतिज्ञा की पूर्णत प्रदान नहीं करती क्योंकि यह उन्हें पूरा करने के योग्य नहीं है। संहिता एक मार्ग है जो हमें मिलन हेतु आगे ले चलती है। संत पौलुस इसके लिए “शिक्षा-शास्त्र” शब्द का प्रयोग करते हैं जो विश्वास में हमारे हाथों को पकड़ कर ख्रीस्त से मिलन हेतु ले चलती है। हम जो जीवन की चाह रखते हैं हमें प्रतिज्ञा की ओर निगाहें फेरने की जरुरत है जिसकी पूर्णत येसु में होती है।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि संत पौलुस का गलातियों को लिखा गया पत्र मूल रुप से नवीन ख्रीस्तीय जीवन को प्रस्तुत करता है। वे जो येसु ख्रीस्त में विश्वास करते हैं पवित्र आत्मा की प्रेरणा के अनुरूप जीवन यापन करने हेतु बुलाये जाते हैं जो हमें संहिता से मुक्त कराती है, वहीं यह प्रेमपूर्ण आज्ञा में पूरी होती है।  ईश्वर हमें नियमों के मार्ग में चलने हेतु मदद करें जहाँ हम प्रेम में उनसे मिलन की चाह रखें, क्योंकि येसु से मिलन सभी आज्ञाओं से बढ़कर है।

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11 August 2021, 16:10