संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  

देवदूत प्रार्थना : शरीरधारण दूसरों में येसु को पहचानने का आह्वान करता है

रविवार को देवदूत प्रार्थना के दौरान संत पापा फ्राँसिस ने ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण के ठोकर पर चिंतन किया तथा ख्रीस्तीयों से अपील की कि वे यूखरिस्त के माध्यम से ख्रीस्त के निकट आयें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, रविवार, 22 अगस्त 2021 (रेई)- वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 22 अगस्त को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया जिसके पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

आज का सुसमाचार पाठ (यो.6,60-69) रोटियों के चमत्कार के बाद येसु की शिक्षा पर भीड़ एवं शिष्यों की प्रतिक्रिया को प्रस्तुत करता है। येसु ने उस चिन्ह की व्याख्या करने और उनपर विश्वास करने हेतु निमंत्रण दिया कि वे ही सच्ची रोटी हैं जो स्वर्ग से उतरे हैं, जीवन की रोटी हैं और प्रकट किया था कि जो रोटी वे प्रदान करेंगे वह उनका शरीर और उनका रक्त है। ये शब्द लोगों के कान के लिए कठोर और समझ से परे लगे, इतना कठोर कि सुसमाचार बतलाता है कि उस समय से उनके शिष्यों में से कई वापस लौटना चाहते हैं अर्थात् प्रभु का अनुसरण करना छोड़ देते हैं। (पद. 60.66) तब येसु बारहों से कहते हैं, क्या तुम भी चले जाना चाहते हो? (67) और पेत्रुस दल के नाम से उनके साथ रहने के निर्णय को पुष्ट करता है : प्रभु हम किसके पास जायें? आप ही के शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है और हमने जाना एवं विश्वास किया है कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरूष हैं। (यो. 6,68-69) यह विश्वास की एक सुन्दर अभिव्यक्ति है।

देवदूत प्रार्थना में संत पापा का संदेश

स्वर्ग की रोटी

संत पापा ने वापस चले जानेवाले शिष्यों के मनोभाव पर ध्यान देते हुए कहा, “आइये हम संक्षेप में उन लोगों के मनोभाव पर गौर करें जिन्होंने येसु का अनुसरण नहीं करने का निर्णय लिया।“ संत पापा ने कहा, “यह अविश्वास कहाँ से आया। इस इंकार का कारण क्या था?”

येसु के शब्द से उन्हें ठोकर लगी। वे कह रहे थे कि ईश्वर अपने आपको प्रकट करना एवं मानव शरीर की कमजोरी में मुक्ति के कार्य को पूरा करना चाहते हैं। ईश्वर का शरीरधारण उनके लिए ठोकर का कारण बना और उनके लिए बाधक बन गया। संत पापा ने कहा, “परन्तु यह हमारे लिए भी ठोकर बनता है। वास्तव में येसु ने पुष्ट किया कि वे ही मुक्ति की सच्ची रोटी हैं और उन्हीं का शरीर अनन्त जीवन प्रदान करता है, अर्थात् ईश्वर की संगति में प्रवेश कराता है। सहिन्ता को पूरा करने एवं धार्मिक नियमों का पालन करने में यह आवश्यक है कि उनके साथ सच्चा और ठोस संबंध स्थापित किया जाए। क्योंकि उन्हीं के द्वारा, उनके शरीरधारण में मुक्ति आयी। इसका अर्थ है कि ईश्वर के पीछे कल्पना से नहीं और न ही भव्यता एवं शक्ति के लिए चलना है बल्कि उन्हें येसु की विनम्रता में पहचानना है, यानी उन भाई-बहनों में उन्हें पहचानना है जिनसे हम जीवन के रास्ते पर मुलाकात करते हैं। ईश्वर ने अपने आपको मांस और रक्त बनाया। उन्होंने अपने आपको इतना नीचा किया कि हमारे समान मानव बन गये। और जब हम प्रेरितों के धर्मसार में, ख्रीस्त जयन्ती के दिन, मरियम को दूत संवाद के दिन इसे दुहराते हैं तब हम शरीरधारण के इस रहस्य की घुटनी टेककर आराधना करते हैं। ईश्वर ने शरीरधारण किया। उन्होंने अपने आपको इतना दीन बनाया कि हमारी पीड़ा और पाप को अपने ऊपर ले लिया। इसलिए वे हमें उनकी खोज जीवन और इतिहास के बाहर नहीं बल्कि ख्रीस्त और भाई-बहनों के साथ संबंध में करने के लिए कहते हैं। उन्हें जीवन में, इतिहास में, अपने प्रतिदिन के जीवन में खोजना है। ये भाई-बहनें ही ईश्वर के साथ मुलाकात करने के रास्ते हैं।

शरीरधारण का ठोकर

आज भी, येसु की मानवता में ईश्वर की प्रकाशना ठोकर बन सकती है और इसे स्वीकार करना आसान नहीं है। यही कारण है कि संत पौलुस उन लोगों के लिए सुसमाचार को मूर्खता कहते हैं जो चमत्कार या सांसारिक प्रज्ञा की खोज करते हैं। (1 कोरि. 1,18-25) इस ठोकर को यूखरिस्तीय संस्कार प्रस्तुत करता है : एक रोटी के टुकड़े के सामने घुटनी टेकने पर दुनिया इसे क्या समझेगी? क्यों इस पृथ्वी पर व्यक्ति को इस रोटी से पोषित होना है? इस तरह दुनिया इससे ठोकर खाती है।

यूखरीस्तीय चिन्ह

येसु के इस चमत्कारिक कार्य, जिन्होंने पाँच रोटियों और दो मछलियों के साथ हजारों लोगों को खिलाया, सभी लोगों ने उनका जय-जयकार किया, उनका विजयोल्लास मनाना, और वे उन्हें राजा बनाना चाहते थे। किन्तु जब स्वयं उन्होंने बतलाया कि यह चिन्ह उनके बलिदान का प्रतीक है अर्थात् उनके जीवन का अर्पण है, उनके शरीर एवं रक्त का दान है और जो उनका अनुसरण करना चाहते हैं उन्हें उनके समान बनना है, अपने जीवन को ईश्वर एवं लोगों के लिए अर्पित करना है तब वे उस येसु को पसंद नहीं करने लगे जो संकट में डालता है।

विश्वास का संकट

वास्तव में हमें तब चिंतित होना चाहिए जब वे हमें संकट में नहीं डालते हैं, क्योंकि हो सकता है कि हमने उसके संदेश को कम कर दिया हो! आइये हम कृपा की याचना करें ताकि हम उनके शब्दों, “अनन्त जीवन के शब्दों” से प्रेरित एवं परिवर्तित हों।

अति पवित्र माता धन्य कुँवारी मरियम जिन्होंने अपने पुत्र येसु को अपने शरीर में धारण किया और उनके दुःखभोग में भाग लिया, हमें हमेशा अपने विश्वास का साक्ष्य अपने वास्तविक जीवन में देने में मदद करे।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

22 अगस्त को देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा क संदेश

 

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22 August 2021, 16:30