संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में संत पापा फ्रांसिस आमदर्शन समारोह में 

संत पापाः ईश्वर की कृपा हमें बदल देती है

संत पापा ने गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर अपनी धर्मशिक्षा माला देते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा ने प्रेरित पौलुस को गैर-यहूदियों के बीच सुसमाचार प्रचार हेतु तैयार किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासुस प्रांगण में उपस्थित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

हम गलातियों के पत्र में प्रवेश करते हैं। हमने देखा कि ख्रीस्तियों का समुदाय अपने विश्वास को जीने में संघर्ष का अनुभव करता है। प्रेरित पौलुस अपने पत्र की शुरूआत उन्हें आतीत में अपने संबंधों की याद दिलाते हुए करते हैं। वे उनसे दूर रहने के कारण होने वाली उनकी चिंता और अपने प्रेम का जिक्र करते हैं जो उन्हें एक बनाये रखता है। वे गलातियों के समुदाय की देख-रेख में असफल नहीं होते बल्कि उन्हें सही मार्ग में चलने की सलाह देते हैं- यह एक पितातुल्य चिंता है, जिसके द्वारा समुदायों में विश्वास को प्रस्फुटित हुआ। उनके विचार स्पष्ट हैं सुसमाचार की नवीनता को दुरहराना जरुरी है जिसे गलातियों ने उनके प्रवचन के आधार पर ग्रहण किया है जो उन्हें अपने जीवन के अस्तित्व को असली पहचान बनाने में मदद करे।

समस्या के समाधान हेतु गहराई तक जायें

हम इस बात को शीघ्र पाते हैं कि पौलुस को ख्रीस्त के रहस्य का एक गूढ़ ज्ञान है। वे अपने पत्र के शुरू से ही अपने विरोधियों के तुच्छ तर्कों का अनुसरण नहीं करते हैं। प्रेरित अपनी “ऊंची उड़ान” भरते और इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि जब समुदाय में टकरावों की स्थिति उत्पन्न होती तो वैसे परिस्थितियों में हमें कैसे व्यवहार करना चाहिए। केवल पत्र के अंत में हम वास्तव में, खातने से संबंधित सवाल का एक स्पष्ट जिक्र पाते हैं जो यहूदी परंपरा का मुख्य अंग है। पौलुस गहराई में जाने का चुनाव करते हैं क्योंकि वे सुसमाचार की सच्चाई और ख्रीस्तियों की स्वतंत्रता को खतरे में पाते हैं जो पत्र का एक मुख्य भाग है। वे समस्याओं की सतह पर नहीं रूकते जैसे कि हमारे साथ बहुधा होता है जहाँ हम तुरंत निदान खोजते हुए सहमति में आ जाते और एक तोलमोल कर लेते हैं। सुसमाचार का कार्य ऐसे नहीं है और प्रेरित एक अधिक चुनौती भरा मार्ग लेने का चुनाव करते हैं। वे लिखते हैं,“मैं अब किसका कृपापात्र बनने की कोशिश कर रहा हूँ मनुष्यों का या ईश्वर का? या मैं लोगों को खुश करने की कोशिश करता हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को खुश करने की सोचता हूँ तो मैं मसीह का एक सेवक नहीं होता” (गला.1.10)।

हमारा बुलावा ईश्वरीय योजना

संत पापा ने कहा कि पौलुस इस बात का अनुभव करते हैं कि उनका पहला कर्तव्य गलातियों को इस बात की याद दिलाना है कि उनका प्रेरितिक बुलावा ईश्वर की योजना से है न कि स्वयं की योग्यता से। वे अपने बुलाये जाने और मन परिवर्तन की घटनाओं को याद करते हैं जो दमिश्क की यात्रा के दौरान पुनर्जीवित मसीह के प्रकट होने के साथ मेल खाता है ( प्रेरि.9.1-9)। यह देखना दिलचस्प है कि उस घटना से पहले वह अपने जीवन के बारे में इस बात की पुष्टि करते हैं, “मैं ईश्वर की कलीसिया पर घोर अत्याचार और उसके सर्वनाश का प्रयत्न करता था। मैं अपने पूर्वजों की परम्पराओं का कट्टर समर्थक था और अपने समय के बहुत-से यहूदियों की अपेक्षा अपने राष्ट्रीय धर्म के पालन में अधिक उत्साह दिखलाता था” (गला.1. 13-14)। पौलुस इस बात को स्वीकार करने का साहस करते हैं कि यहूदीवाद के तहत वे अन्य सभों का दमन करते थे, वे एक उत्साही फरीसी थे, “मेरा धर्मोत्साह ऐसा था कि मैंने कलीसिया पर अत्याचार किया। संहिता पर आधारित धार्मिकता की दृष्टि में मैं निर्दोष था” (फिलि.3.6)। वे दो बार इस बात पर बल देते हैं कि वे “पूर्वजों की पराम्परा” और “नियमों के कट्टर समर्थक” थे।

सच्चाई हमें स्वतंत्र करती है

एक ओर वे इस बात पर जोर देते हैं कि उन्होंने घोर रुप में कलीसिया को सताया और वे ईशनिंदक एक अत्याचारी तथा हिंसा के व्यक्ति थे” (1 तिम.1.13)। वहीं दूसरी ओर वे अपने ऊपर ईश्वर की करूणा के बारे में कहते हैं जो उन्हें मूल रुप से परिवर्तन की अनुभूति लाती है जिसे हम सभी जानते हैं। वे लिखते हैं, “उस समय यहूदिया की मसीही कलीसिया मुझे व्यक्तिगत रुप से नहीं जानती थी। उन्होंने इतना ही सुना था कि जो व्यक्ति हम पर अत्याचार करता था वह अब उस विश्वास का प्रचार कर रहा है जिसका वह सर्वनाश करने का प्रयत्न करता था” (गला.1.22-23)। पौलुस इस भांति अपने बुलाहट की सच्चाई का जिक्र करते हैं जो उनमें जीवन का कारण बनती हैः परंपराओं और कानून का पालन न करने के लिए ईसाइयों को प्रताड़ित करने वाले, वे येसु मसीह के सुसमाचार की घोषणा करने हेतु एक प्रेरित स्वरुप बुलाये गये। पौलुस मुक्ति प्राप्त करते हैं जो उन्हें सुसमाचार प्रचार करने और अपने को पापी घोषित करते हेतु स्वतंत्र करता है। “मैं ऐसा था”, सच्चाई उनके हृदय को स्वतंत्र करती है यह मुक्ति ईश्वर की ओर से आती है।

अपने जीवन इतिहास की याद करते हुए पौलुस अपने को आश्चर्य और कृतज्ञता से भरा पाते हैं। यह ऐसा प्रतीत होता है कि वे गलातियों को यह बतलाना चाहते हैं कि वे और कुछ नहीं बल्कि प्रेरित होने हेतु बुलाये गये हैं। एक युवा के रुप में उनकी शिक्षा-दीक्षा पूर्णरूपेण मूसा की संहिता के अनुरूप जीवनयापन करने हेतु हुई थी और कई परिस्थितियों में उन्होंने येसु के शिष्यों से युद्ध किया था। यद्यपि अपने में कुछ आश्चर्यजनक घटना घटी, ईश्वर अपनी कृपा से उनके ऊपर अपने पुत्र की मृत्यु और पुनरूत्थान को प्रकट करते हैं जिससे वह गैर-यहूदियों के बीच उनके सुसमाचार का वाहक बन सकें (गला.1.15-16)।

ईश्वरीय कृपा का प्रभाव 

ईश्वर के मार्ग कितने अगम्य हैं। हम इसे अपने जीवन में रोज दिन अनुभव करते हैं और विशेष रुप से यदि हम अपने आतीत की याद करते जब ईश्वर ने हमें बुलाया। हम उस समय को और ईश्वर के कार्यो को कभी न भूलें जब उन्होंने हमारे जीवन में प्रवेश किया। हम अपने मन और हृदय को ईश्वर की कृपा पर गढ़ाये रखें जहाँ ईश्वर से मिलन ने हमारे जीवन को ही बदल दिया। कितनी बार, ईश्वर के महान कार्यों में हमारे लिए यह सवाल उभर कर आता है, यह कैसे संभव है कि ईश्वर एक पापी, कमजोर व्यक्ति को अपनी इच्छा पूरी करने हेतु प्रयोग में लाते हैं? फिर भी, सारी चीजें अनायास घटित नहीं होती हैं क्योंकि सारी चीजें ईश्वर की ओर से सुनियोजित की गई हैं। यदि हम विश्वास में उनकी मुक्ति योजना में सहभागी होते हैं तो वे हमारे इतिहास को बुनते हैं, हम इसका अनुभव करते हैं। हमारी बुलाहट प्रेरिताई को सम्माहित करती है जो हमें दिया गया है, और यही कारण है कि हमें इसके लिए गम्भीरता से तैयारी करने की आवश्यकता है, यह अनुभव करते हुए कि ईश्वर स्वयं हमें भेजते और अपनी कृपा से हमारी सहायता करते हैं। हम अपने को इस चेतना में निर्देशित होने दें- अनुग्रह की प्रधानता अस्तित्व को बदल देती है और हम सुसमाचार की सेवा के योग्य बनाते हैं। कृपा हमारे पापों को ढ़ग लेती हमारा हृदय, हमारे जीवन को बदल देती और हम नयी राहों को देखते हैं, हम इस बात को न भूलें। 

 

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30 June 2021, 14:30