2021.06.23 Udienza Generale 2021.06.23 Udienza Generale 

संत पापाः पवित्र आत्मा सुसमाचार प्रचारक

संत पापा ने अपने बुधवारीय धर्मशिक्षा माला में गलातियों के नाम संत पौलुस के पत्र पर अपनी धर्मशिक्षा शुरू की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 23 जून 2021 (रेई)  संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन के संत दमासुस प्रांगण में उपस्थित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

प्रार्थना पर अपनी एक लम्बी धर्मशिक्षा माला के उपरांत आज हम धर्मशिक्षा की एक नयी श्रृंखला की शुरूआत करेंगे। संत पापा ने कहा कि मैं गलातियों के नाम लिखे गये संत पौलुस के पत्र में जिक्र कुछ विषयों पर चिंतन करना चाहूंगा। यह एक महत्वपूर्ण पत्र है। हम न केवल इस प्रेरितिक पत्र के बारे में जाने बल्कि कुछ विषयों के बारे में खास रुप से चिंतन करें जिसकी चर्चा गहराई से की गई है जो सुसमाचार की सुन्दरता को प्रस्तुत करता है। संत पौलुस इस पत्र में अपने जीवन की कई बातों का जिक्र करते हैं जो हमें उनके मन परिवर्तन और येसु ख्रीस्त की सेवा हेतु उनके जीवन निर्णय की जानकारी प्रस्तुत करता है। वे कुछ महत्वपूर्ण विषयवस्तुओं खास कर विश्वास, स्वतंत्रता, कृपा और ख्रीस्तीय जीवन पर प्रकाश डालते हैं जो वर्तमान कलीसियाई जीवन के बहुत सारे वास्तविक पक्षों का स्पर्श करता है। एक पत्र जो ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे समय के लिए लिखा गया हो।

प्रेरिताई पवित्र आत्मा द्वारा

सर्वप्रथम इस पत्र में हमारे लिए प्रेरित द्वारा गलातियों के समुदाय में सुसमाचार प्रचार की बातें उभर कर आती हैं जिसकी प्रेरितिक यात्रा उन्होंने दो बार की। पौलुस वहाँ लोगों को संबोधित करते हैं। हम स्पष्ट रुप से यह पता नहीं चलता है कि वे किस भौगोलिक प्रांत की चर्चा करते हैं और न ही हम यह कह सकते हैं कि यह इस तिथि में लिखा गया है। हम इस बात से वाकिफ हैं कि गलाती अपने में एक प्राचीन समुदाय था जो बहुत ही साहसिक जीवन व्यतीत करते हुए अनातोलिया प्रांत में बस गया जो आज अंकारा शहर, तुर्की की राजधानी तुर्की है। पौलुस इस बात की चर्चा करते हैं की अपनी बीमारी के कारण उन्हें उस प्रांत में रुकने को बाध्य होना पड़ा (गला.4.13)। लेकिन प्रेरित चरित में संत लुकस इसके एक आध्यात्मिक प्रेरणा से पुष्ट पाते हैं। वे कहते हैं, “जब पवित्र आत्मा ने उन्हें एशिया में वचन का प्रचार करने से मना किया तो उन्होंने फ्रुगिया तथा गलातिया का दौरा किया” (16.6)। ये दोनों तथ्य अपने में विरोधाभास नहीं हैं वरन ये इस बात की ओर इंगित कराते हैं कि सुसमाचार प्रचार सदैव हमारी इच्छा और योजनाओं पर निर्भर नहीं करता है बल्कि यह हमें अपने को उन योजनाओं के अनुरूप बना लेने की मांग करता है जिसकी परिकल्पना हमने कभी नहीं की थी। संत पापा ने कहा कि पवित्र आत्मा आज भी इस कार्य को जारी रखते हैं बहुत से प्रेरित हैं जो अपनी मातृभूमि का परित्याग कर दूसरे स्थानों में प्रेरिताई कार्य हेतु जाते हैं। उन्होंने कहा कि हम यहाँ इस बात का साक्ष्य पाते हैं कि अपने अथक प्रेरितिक कार्य के दौरान प्रेरित ने बहुत से छोटे समुदायों को पाया जो गलातिया प्रांत में फैले थे। एक शहर में, लोगों के बीच पहुँचने पर, वे वहां तुरंत बड़ा गिरजाघर का निर्माण नहीं करते हैं। उन्होंने छोटे समुदायों को तैयार किया जो आज की ख्रीस्तीय संस्कृति में खमीर के समान है। उन छोटे समुदायों का विकास हुआ वे बड़े हुए और आगे बढ़े। आज भी प्रेरितिक प्रांतों में प्रेरिताई इसी भांति होती है। पिछले सप्ताह प्रेरिताई में संलग्न एक प्रेरित का पत्र मुझे पापुआ न्यू गिनी से मिला जो कहते हैं कि मैं जंगलों में सुसमाचार का प्रचार कर रहा हूँ यहाँ लोग येसु ख्रीस्त को नहीं जानते कि वे कौन हैं। यह अपने में कितना सुन्दर है, छोटे समुदाय का निर्माण किया जाना जो आज भी पहले के समान सुसमाचार प्रचार का स्वरूप बनता है।

प्रेरित माता-पिता की भांति

संत पापा ने कहा कि हम पौलुस में प्रेरिताई की एक आग को पाते हैं जो कलीसियों की स्थापना के बाद एक खतरे का अनुभव करते हैं। उनके विश्वास की बढ़ोत्तरी हेतु कौन कार्य करेगा। एक प्रेरित माता-पिता की भांति होता है जो बच्चों पर आने वाली विपत्ति को जान जाते हैं। खतरे हमारे लिए आते और जाते हैं जैसे कि किसी ने कहा है, “गिद्धें समुदाय में हमला करने आते हैं”। वास्तव में, यहूदियों के बीच से आये कुछ ख्रीस्तियों ने घुसपैठी की और चालाकी से प्रेरित की शिक्षा के विरूद् कार्यो करना शुरू किया यहाँ तक कि उन्हें बदनाम करना भी चालू कर दिया। उन्होंने प्रेरित पौलुस के अधिकार को छीनने का प्रयास किया। जैसे हम एक प्राचीन प्रथा को देखते हैं जो समय से चली आ रही है कि किसी अवसर पर कोई व्यक्ति अपने को सत्य के धारक स्वरुप प्रस्तुत करता और दूसरों के द्वारा किये गये कार्यों को और यहाँ तक कि व्यक्ति को नीचा दिखलाने की कोशिश करता है। पौलुस के विरोधियों ने गैर-ख्रीस्तियों से यह वाद-विवाद किया कि उन्हें भी खतना कराते हुए मूसा की संहिता का अनुसरण करने की जरुरत है। वे पीछे जाते हुए पुरानी बातों को पुनः लाने की कोशिश करते हैं। इस भांति गलातियों ने अपनी संस्कृति का परित्याग करते हुए यहूदी संहिता के अनुरूप निर्देशित नियमों का अनुसरण किया होगा। इतना ही नहीं उन विरोधियों ने यह तर्क दिया कि पौलुस एक सच्चा प्रेरित नहीं है अतः उसे सुसामचार प्रचार करने का अधिकार नहीं है। हम बहुत बार ऐसी चीजों को देखते हैं। हम कुछ ख्रीस्तीय समुदाय या धर्मप्रांत के बारे में सोचें जहाँ ऐसी घटनाएं घटती हैं और उसके समाधान हेतु पल्ली पुरोहित, धर्माध्यक्ष के पास लाया जाता है। यह विशिष्ट रूप से बुरे लोगों का मार्ग है जो लोगों को बांटते हैं वे निर्माण का कार्य नहीं करते हैं। गलातियों के पत्र में हम इन बातों को पाते हैं।

दुविधा की स्थिति भ्रमक

गलाती समुदाय अपने को एक विकट परिस्थिति में पाते हैं। उन्हें क्या करना चाहिए था? पौलुस की शिक्षा को सुनते हुए उनका अनुसण करना या नये प्रचरकों को सुनना जिन्होंने उन्हें दोषी करार दिया? हम उनके भ्रमित मन की स्थिति का अनुमान सहज ही लगा सकते हैं जो उनके हृदय को प्रभावित करता है। उनके लिए, येसु को जानना और उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान से मिलने वाली मुक्ति में विश्वास करना, वास्तव में एक नए जीवन, स्वतंत्रता जीवन की शुरुआत थी। उन्होंने हिंसात्मक गुलामी में भी उस मार्ग में चलना शुरू किया था जो मुक्ति की ओर ले चलती है। अतः नये प्रचारकों की आलोचना के कारण वे दुविधा और अनिश्चिता में पड़ गये कि किस तरह का व्यवहार करें। “लेकिन कौन सही है? यह? पौलुस? ये लोग जिन्होंने अभी आकर शिक्षा दी? हम किस की सुनें। संक्षेप में हम कह सकते हैं यह उनके लिए बड़ी चुनौती थी।

कठोरता की पहचान

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि ऐसी परिस्थिति हम ख्रीस्तीय जीवन के लिए नई नहीं है। आज भी वास्तव में, उन उपदेशकों की कमी नहीं हो जो विशेष रुप से संचार माध्यमों के द्वारा समुदायों को भ्रमित, विचलित कर देते हैं। वे अपने को ईश वचन के उद्घोषक स्वरुप प्रस्तुत नहीं करते जो येसु ख्रीस्त में मानव के लिए प्रेम को व्यक्त करता हो, जो क्रूस पर मर कर जी उठे बल्कि वे अपने को “सत्य के संरक्षक” स्वरुप प्रस्तुत करते हैं अतः वे सही ख्रीस्तीय होने का मार्ग बतलाते हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि वे सच्ची ख्रीस्तीयता के प्रवर्तक हैं। आज भी, पहले की तरह ही एक तरह का प्रलोभन है जहाँ हम अपने को प्राचीन रीतियों में बंद कर लेते हैं। हम कैसे उन लोगों की पहचान कर सकते हैं? इसका उदाहरण हम अपने लिए कड़ापन स्वरुप पाते हैं। सुसमाचार की घोषणा हमें स्वतंत्र करती, खुशी से भर देती है लेकिन कड़ापन में हम लोगों को सदैव कठोर पाते हैं। आप को ऐसा करना चाहिए... ऐसा करना चाहिए...कड़ापन उन लोगों की पहचान है। प्रेरित पौलुस का गलातियों के नाम लिखा गया पत्र हमें इस मार्ग को समझने हेतु मदद करता है। उनके द्वारा दिखलाया गया मार्ग हमें स्वतंत्र करता है जो हमें येसु के क्रूस और पुनरूत्थान के नये मार्ग में ले चलता है। यह उद्घोषणा का मार्ग है जो नम्रता और भ्रातृत्व में प्राप्त किया जा सकता है। नये प्रचारक नम्रता के मार्ग, भ्रातृत्व को नहीं जानते हैं। यह विनम्रता और विश्वास में आज्ञाकारिता का मार्ग है नये प्रचारक दोनों में से किसी को नहीं जाते हैं। ये दो मार्ग पवित्र आत्मा के कार्यों को कलीसिया में सदैव आगे ले चलते हैं। कलीसिया में उपस्थित पवित्र आत्मा में हमारा विश्वास हमें आगे ले चल जिसमें हमें मुक्ति मिली है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों के संग हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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23 June 2021, 16:01