नाज़ी मौत शिविर से बची, बेलारूस मूल की लीडिया मैक्सिमोविज़ से मुलाकात करते संत पापा फ्रांसिस नाज़ी मौत शिविर से बची, बेलारूस मूल की लीडिया मैक्सिमोविज़ से मुलाकात करते संत पापा फ्रांसिस 

संत पापा फ्राँसिस ने होलोकॉस्ट से बची लीडिया से मुलाकात की

नाज़ी मौत शिविर से बची, बेलारूस मूल की लीडिया मैक्सिमोविज़ ने बुधवार को आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा फ्राँसिस को अपने हाथ में टैटू से लिखे नम्बर दिखाया और संत पापा को स्मृति, आशा और प्रार्थना के चिन्ह स्वरूप तीन उपहार भेंट किये। लीडिया ने कहा, "संत पिता के साथ कोई शब्द नहीं थे। हमने नजरों से ही एक दूसरे को समझा।"

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 26 मई 2021 (रेई)- नाज़ी मौत शिविर से बची, बेलारूस मूल की लीडिया मैक्सिमोविज़ ने बुधवार को आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा फ्राँसिस को अपने हाथ में टैटू से लिखे नम्बर दिखाया और संत पापा को स्मृति, आशा और प्रार्थना के चिन्ह स्वरूप तीन उपहार भेंट किये। 

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लीडिया मैक्सिमोविज़ बेलारूस मूल की एक पोलिश महिला हैं जो नाजी नजरबंद शिविर से बच गईं थीं। उन्होंने बुधवार 26 मई को आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा को अपना हाथ खोलकर दिखाया जहाँ ऑस्विज़ के पूर्व कैदी के रूप में टैटू से नम्बर लगा हुआ है। संत पापा क्षण भर के लिए उन्हें देखते रहे, उसके बाद झुके और नम्बर को चूम लिया। यही वह नम्बर है जिसने 76 वर्षों तक हर दिन उन्हें उस डरावनी अनुभूति की याद दिलायी है। जब 2016 में संत पापा फ्रांसिस ने शिविर का दौरा किया उनके पास शब्द नहीं थे, सिर्फ एक सहज, स्नेही भाव थे। लीडिया ने वाटिकन न्यूज को बतलाया कि इसी भाव ने "मुझे मजबूत किया और मैंने दुनिया के साथ मेल-मिलाप किया।"   

साक्ष्य साझा करते हुए

लीडिया ने कहा, "संत पापा के साथ हमने नजरों से एक दूसरे को समझा, हमें एक दूसरे को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी, वहाँ शब्दों की आवश्यकता नहीं थी।" क्रकॉव में रहने वाली लीडिया यूरोप में, हॉलोकोस्ट से बचनेवाली एक मात्र व्यक्ति रह गई हैं और इस समय वे युवाओं के बीच अपनी कहानी बांटने के लिए कास्टेलामोंटे (तूरिन) के "लिविंग मेमोरी एसोसिएशन" (जीवित स्मृति संघ) के अतिथि के रूप में इटली का दौरा कर रही हैं। अपने जीवन पर उनके साक्ष्य को एक डॉक्यूमेंटरी में रिकोर्ड किया गया है जिसका शीर्षक हैं "ला बम्बिना के नोन सापेभा ओडियारे" (एक छोटी बच्ची जो घृणा करना नहीं जानती थी)

लीडिया ने इटली में अपनी यात्रा का लाभ उठाना चाहा जिसको महामारी के कारण कई बार स्थगित किया जा चुका था – वे रोम आना और पोप से मुलाकात करना चाहतीं थीं जिन्हें वे बेहद प्यार करती हैं। उन्होंने कहा, "संत पापा जॉन पौल द्वितीय के बाद मैं संत पापा फ्राँसिस को प्यार करती हूँ।" मैं टेलिविजन पर उनके समारोहों को देखती हूँ। हर दिन उनके लिए प्रार्थना करती हूँ, मैं उनके प्रति विश्वस्त एवं स्नेही हूँ।"

दो माताएँ

बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही इस प्रतिष्ठित, बुजूर्ग महिला के लिए यह मुलाकात एक विशेष दिन में हुई : पोलैंड में बुधवार माता दिवस है। उन्होंने कहा, "मेरे लिए यह एक खास अवसर है क्योंकि मेरी दो माताएँ हैं : एक जिसने मुझे जन्म दिया और जब मैं तीन साल की थी तभी नजरबंद शिविर से उन्हें मुझसे छीन लिया और दूसरी पोलिश माँ जिसने मुझे गोद लिया जब मैं मुक्त हुई और उसी ने मुझे बचा लिया।"

संत पापा के लिए तीन उपहार : स्मृति, आशा और प्रार्थना

मुलाकात के दौरान लीडिया पोप से अपनी कहानी साझा नहीं कर पायीं किन्तु उन्हें तीन उपहार : स्मृति, आशा एवं प्रार्थना भेंट की जो प्रतीकात्मक हैं जिन्हें वे अपने जीवन के कोने का पत्थर मानती हैं। स्मृति, के रूप में एक नीले और श्वेत रंग का रूमाल है, जिसमें "पी" अक्षर लिखा हुआ था जो पोलैंड को दर्शाता है और जिसमें एक लाल त्रिकोणीय पृष्ठभूमि है, जिसे सभी पोलिश कैदी यादगारी समारोहों में प्रयोग करते हैं।

आशा को एक चित्र के द्वारा दर्शाया गया है जिसको उनकी सहायक रेनाता रेकलिक ने पेंट किया है। यह उन्हें एक बच्ची के रूप में अपनी माता के साथ प्रस्तुत करता है। वे दूर से उस सड़क को देखती हैं जो उन्हें बीरकेनाव शिविर के प्रवेश द्वार की ओर ले जाती है जो लाखों यहूदियों एवं कैदियों के मौत की शुरूआत थी।

प्रार्थना के रूप में लीडिया ने संत पापा को रोजरी भेंट की जिसमें संत पापा जॉन पौल द्वितीय की तस्वीर है। उन्होंने ने कहा, "मैं हर दिन प्रार्थना करने के लिए इसी को प्रयोग करती हूँ।"

3 साल की उम्र में निर्वासित

लीडिया ने ईश्वर पर विश्वास करना कभी नहीं छोड़ा, यद्यपि बुराई ने उनपर वार किया जब वे सिर्फ 3 साल की थीं। 1941 में अपनी माता और दादी के साथ अपने घर को छोड़कर वे निर्वासित की गईं क्योंकि उनपर पार्सियों के साथ सहयोग करने का शक था।

वे बतलाती हैं, "मैं छोटी थी, मेरा कुछ ही साल हुआ था किन्तु मैंने पूर्व सोवियत संघ में युद्ध के दृश्यों को देखकर बहुत कुछ अनुभव कर लिया था। मैं एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति को दिये गये दुःख को सहने के लिए तैयार थी किन्तु ऑस्विज में मैंने जो अनुभव किया, उसकी उम्मीद नहीं की थी।"

उन्होंने आतंकित घटनाओं के बारे बतलाया : "मैं एक ट्रेन पर चढ़ाई गई जो सिर्फ जानवरों के लायक था, शायद जावनरों के लिए भी उचित नहीं था। जब दरवाजा खुला, मैंने एक विभत्सकारी दृश्य देखा। मेरे दादा-दादी हमसे अलग कर दिये गये, फिर उन्हें एक चिमनी के साथ एक बैरक (सैन्यगार) में भेज दिया गया, जहाँ से एक भयंकर बदबू के साथ धुआँ निकला। मेरी माँ और मैंने – गंदे, भूखे और भयभीत- सैनिकों के आदेश का पालन किया जो समझ से परे शब्दों का प्रयोग करते हुए चिल्ला रहे थे जबकि कुत्ते भी भौंक रहे थे। हम कुछ भी नहीं समझ सके, हमने वह सब कुछ किया जो हमें करने के लिए कहा गया, हम अत्यन्त भयभीत थे।"

मेंजेल का प्रयोग

शिविर में पोलिश कैदियों के रूप में पहचान के लिए, उनकी धारीदार वर्दी पर "पी" सिलने के साथ, लिडिया की मां को श्रमिकों के बैरक में स्थानांतरित कर दिया गया, जबकि लिडिया को "विभिन्न उम्र और देशों के बच्चों से भरे घर" में भेज दिया गया। इसी बैरक में जोसेफ मेंजेल काम करता था, जो मौत के दूत के नाम से भी जाना जाता था। वह घर एक कुण्ड था जहाँ मेंजेल अपने प्रयोगों के शिकार : गर्भवती महिलाओं, जुड़वां बच्चों, विकृति वाले लोगों को आकर्षित करता था। लीडिया को उनके पास एक सुन्दर और स्वस्थ बच्ची के रूप में भेजा गया था। करीब 80 साल के बाद वे याद नहीं करती हैं कि मेंजर ने उसके नन्हे शरीर के साथ क्या किया किन्तु दर्द और उसकी नजर को अब भी याद करती हैं। वह एक अत्याचारी व्यक्ति था, जिसकी कोई सीमा नहीं थी। हर दिन अनेक लोग उसके हाथों अपनी जान गवाँ देते थे। युद्ध के बाद टैटू वाली संख्याओं के संदर्भ में उनकी कुछ किताबें मिलीं, जिनमें मेरी भी संख्या शामिल है।"

17 साल के बाद अपनी मां से मुलाकात

मौत के शिविर से मुक्त होने के बाद लीडिया ने एक अविश्वसनीय जीवन जीया। वे पोलैंड की एक महिला के द्वारा गोद ली गईं जिसको वे अपना सच्चा परिवार मानती हैं। बाद में वे रूस के मास्को ली गईं, जहाँ सोवित अधिकारी उनकी कहानी को राजनीतिक मकसद के लिए प्रयोग करना चाहते थे उसके बाद वे क्रकॉव लौटीं। 1962 में रेड क्रोस के द्वारा वे अपनी जन्म देनेवाली माँ से मिलीं। लीडिया बतलाती हैं, "मैं उन्हें ढूँढ़ती रहती थी यद्यपि मुझे लगता था कि वह मर चुकी हैं। हम 17 साल के बाद फिर मिले। उनके बीच का लगाव बहुत सालों तक अलग रहने के कारण कम हो गया था क्योंकि वे तीन साल ही एक साथ रह पाये थे। उसके बाद जेल के सुरक्षा बल ने उनके संबंध को तोड़ दिया था। कई सालों के बाद लीडिया के लिए अपनी जन्म देने वाली माँ जिसने अपना नया परिवार बसा लिया था, अतीत की एक छवि थी जिनके प्रति उन्हें बड़ा सम्मान था। उन्होंने एक-दूसरे का आलिंगन किया, रोया, बातें की ... लेकिन लीडिया ने अपने गोद लिये परिवार के साथ ही रहने का निर्णय लिया, जबकि उन्हें हमेशा अपनी पहली माँ के रूप में स्वीकारा।     

युवाओं के लिए एक अपील ˸ “उस जुल्म को कभी वापस न आने दें”

आज लीडिया कहती हैं कि वे थक चुकी हैं किन्तु अपनी पूरी शक्ति से जीवन से चिपकी हुई हैं क्योंकि उन्हें एक मिशन को पूरा करना है, नई पीढ़ियों के लिए होलोकॉस्ट की भयावाह स्मृति को जीवित रखना है, जो एक ऐसे युग में बढ़ रहे हैं जब नस्लवाद और राष्ट्रवाद के भूत फिर से पनपते दिख रहे हैं। वाटिकन न्यूज और वाटिकन रेडियो के माध्यम से लीडिया ने आज के युवाओं से अपील करते हुए कहा, "आपके युवा हाथों में दुनिया का भविष्य है। मेरे शब्दों को सुनिए, ऑस्विज और बिरकेनाव जाइये और देखिये कि ऐसा जुल्म फिर कभी न हो। उस इतिहास को कभी न दुहराया जाए।"

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27 May 2021, 16:11