धर्मसंघीय संस्थानों की स्थापना पर संत पापा का प्रेरितिक पत्र
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार 4 नवम्बर 2020 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने बुधवार, 4 नवम्बर को स्वप्रेरणा से रचित प्रेरितिक पत्र "ऑथेनतिकुम कारिस्माटिक्स" (प्रामाणिक करिश्माई) को जारी करते हुए कहा कि "करिश्मा की प्रामाणिकता का एक स्पष्ट संकेत इसकी विलक्षणता है, सभी का भलाई के लिए ईश्वर के लोगों के जीवन में सामंजस्यपूर्ण रूप से एकीकृत करने की क्षमता है।"(एवांजेली गौदियुम, 130) धर्माध्यक्षों को यह अधिकार है कि वे विश्वासियों के करिश्मा की प्रामाणिकता और उन लोगों की विश्वसनीयता पर चेतावनी दें, जो खुद को संस्थापकों के रूप में पेश करते हैं।
प्रामाणिक करिश्मा
कलीसियाई मामलों पर चिंतन और करिश्मा की विश्वसनीयता किसी विशेष कलीसिया के धर्माध्यक्षों की प्रेरितिक जिम्मेदारी है। यह सभी प्रकार के समर्पित जीवन के लिए और विशेष रूप से धर्मसंघीय जीवन के नए संस्थानों के निर्माण की उपयुक्तता और नए समाजों के प्रेरितिक जीवन के मूल्यांकन के निर्णायक कार्य में व्यक्त किया गया है। किसी विशेष कलीसिया में पवित्र आत्मा के उन उपहारों का उदारता से उनका स्वागत करना चाहिए जिससे कलीसिया जागृत और प्रेरितिक बने। साथ ही उन संस्थानों को टाला जाना चाहिए जो "बेकार हैं या पर्याप्त बल की कमी हो" (द्वितीय वाटिकन इकोनामिकल काउंसिल, डिक्री पी.सी. 19)।
नए संस्थानों की मान्यता
संत पापा लिखते हैं कि परमधर्मपीठ विवेकाधीन प्रक्रिया में धर्माध्यक्ष का साथ देने हेतु ज़िम्मेदार है जो एक नए संस्थान या नए धर्मप्रांतीय धर्मसमाज की मान्यता को स्वीकार करते हैं। प्रेरितिक पत्र ‘समर्पित जीवन’ इस बात की पुष्टि करता है कि नए संस्थानों और धर्मसमाज की कार्यकलापों का मूल्यांकन कलीसियाई प्राधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए, जो कि समाज शुरु करने के उद्देश्य की प्रामाणिकता का परीक्षण करने और एक ही तरह के करिश्मा वाले संस्थानों को अत्यधिक न बढ़ने देने के जिम्मेदार है।"(न.12)। समर्पित जीवन के नए संस्थान और प्रेरितिक जीवन के नए धर्मसमाज, इसलिए आधिकारिक तौर पर परमधर्मपीठ द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, जिसका निर्णय अंतिम होता है।
संत पापा ने कहा कि धर्माध्यक्ष द्वारा धर्मवैधानिक निर्माण का कार्य धर्मप्रांतीय क्षेत्र को पार करता है और इसे विश्वव्यापी कलीसिया के व्यापक क्षितिज में प्रासंगिक बनाता है।
वास्तव में, समर्पित जीवन के नए संस्थान और प्रेरितिक जीवन के नए धर्मसमाज, भले ही यह किसी विशेष कलीसिया के संदर्भ में उत्पन्न हुआ हो, "कलीसिया के उपहार के रूप में, यह एक पृथक या सीमांत वास्तविकता नहीं है, लेकिन अपने मिशन के एक निर्णायक तत्व के रूप में कलीसिया के हृदय में ही है।"(समर्पितों के लिए पत्र, III, 5)।
नया मोतू प्रोप्रियो ‘प्रामाणिक करिश्माई’ स्पष्ट करता है कि धर्मप्रांत में धर्माध्यक्ष केवल समर्पित व्यक्तियों के संस्थानों को औपचारिक डिक्री द्वारा और परमधर्मपीठ द्वारा दी गई लिखित अनुमति मिलने पर ही वैध रूप से शुरु कर सकते हैं।
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