सहोदरतापूर्ण जीवनदर्शन में विश्व मुक्ति
अन्द्रेया तोरनेल्ली
हम सभी “काले बादलों की एक बंद दुनिया” से घिर हैं। यद्यपि कुछ लोग हैं जो इस अंधेरे से हार नहीं मानेंगे वरन सपने देखते हुए, आशा में भ्रातृत्व और सामाजिक मित्रता हेतु अपने को समार्पित कर अपने हाथों को मैला करेंगे। टुकड़ों में तृतीय विश्वयुद्ध की शुरूआत हो चुकी है, जहाँ अच्छी राजनीति के बदले हम मुनाफा कमाने, फेंकने की संस्कृति को बढ़ता और भूखों की कराह को अनसुनी होता पाते हैं। लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी कोई एक है जो मानवता की दुनिया हेतु एक स्पष्ट मार्ग की ओर इशारा करता है।
पांच वर्ष पूर्व संत पापा फ्रांसिस ने लौदासो सी प्रेरितिक प्रबोधन प्रकाशित किया जहाँ उन्होंने पर्यावरण संकट, सामाजिक संकट, युद्ध, प्रवास और गरीबी के बीच मौजूद संबंधों को स्पष्ट रूप से चित्रित किया। उन्होंने हमारा ध्यान एक लक्ष्य की ओर इंगित कराया- एक न्यायपूर्ण सामाजिक और आर्थिक प्रणाली, जो सृष्टि का सम्मान करें, जो मानव को धरती माता के केन्द्र विन्दु में एक अभिभावक स्वरुप व्यवस्थित करे न की धन को जो उसे सर्वोच्च भगवान का रुप प्रदान करता है।
आज, नये सामाजिक प्रबोधन फातेल्ली तूती (हम सभी भाई-बहनें हैं) में संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु हमारे लिए ठोस मार्ग दिखलाते हैं- हम अपने को भाई-बहनों के रुप में देखें क्योंकि हम सभी ईश्वर की संतान हैं, हम एक दूसरे के शुभचिंतक बनें, क्योंकि हम सब एक ही नाव में सहयात्री हैं जैसे कि महामारी ने इसे हमारे लिए और भी सुस्पष्ट किया है। यह हमें होमो होमिनी ल्यूपस (दूसरों के संग भेड़ियों के माफिक पेश आने) जिसके फलस्वरुप नये दीवारों का निर्माण कर अपने को दूसरों से पृथक करने के प्रलोभन से मुक्त करता है। इस भांति हम सुसमाचार में चर्चित भले समारी की निशानी बनते हैं।
संत पापा फ्रांसिस येसु ख्रीस्त के उस मार्ग की ओर इंगित कराते हैं जो दूसरों से अपरिचित होने की भावना को खत्म करता है। वास्तव में, हर ख्रीस्तीय का बुलावा “प्रत्येक मानव में येसु ख्रीस्त को खोजने, दुःखितों और दुनिया में भूला दिये गये लोगों में क्रूसित येसु को पहचाने और प्रत्येक भाई-बहन में पुनर्जीवित प्रभु को देखने की मांग करता है जो अपने पैरों पर खड़े होते हैं। भ्रातृत्व वह संदेश है जिसे हम स्वीकारते, समझते तथा दूसरे विश्वासी नर और नारियों के संग साझा करते हैं, और उनके साथ भी जो अविश्वास हैं।
नया प्रेरितिक प्रबोधन संत पापा फ्रांसिस की सामाजिक धर्मशिक्षा को संक्षेपित करता है। यह उनके सात वर्षींय धर्माध्यक्षीय कार्यकल के प्रवचनों, संबोधनों और विचारों की मुख्य बिन्दुओं को एक व्यवस्थित स्वरुप प्रदान करता है। उनमें से एक की उत्प्रेरण निसंदेह “विश्व शांति और सहिष्णुता के जीवन हेतु भ्रातृत्व का दस्तावेज” से होती है जिस पर उन्होंने 4 फरवरी 2019 को अब्बुधाबी में गैंड इम्माम अल-अजहर एल-तैयीब के संग हस्ताक्षर किये। उस साझे उद्घोषणा द्वारा, जो वार्ता को धर्मों की एक अहम ईकाई निरूपित करती है, संत पापा अपनी इस अपील को पुनः दुहराते हैं कि वार्ता हमारे सहयोगपूर्ण कार्यो का मापदंड हो, जहाँ हम एक-दूसरे को पारस्परिक रुप से समझ सकें।
यह, यद्यपि नये प्रेरितिक प्रबोधन को केवल अन्तरधार्मिक वार्ता के आयाम तक ही सीमित करता है। फ्रतेल्ली तूती का संदेश वास्तव में, सभों को अपने में समाहित करता है। इसके पन्ने सामाजिक और राजनौतिक दोनों पक्षों पर भी प्रकाश डालते हैं। यह हमारे लिए विरोधाभास प्रतीक होता है कि रोम के धर्माध्यक्ष, मरूभूमि में एक आवाज की भांति, बेहतर राजनीति हेतु आज एक परियोजना की पहल कर रहे हैं, क्योंकि राजनीति में अभी भी एक विशेष भूमिका अदा करने की योग्यता है, इसके पहले हमने लम्बी अवधि तक इस बात पर विश्वास किया कि अर्थव्यवस्था का लाभ और बाजार की पौराणिकता प्रबंधन की आवश्यकता के बिना ही सभों के लिए हितकर होंगे।
प्रेरितिक प्रबोधन का एक सम्पूर्ण अध्याय सेवा के दृष्टिकोण और दया के साक्ष्य से राजनीति का जिक्र करता है जो वृहृद आदर्शों से भरा है, जो अल्प-कालीन लाभ के बदले भविष्य हेतु एक योजना निर्देशित करता है जिसमें सबों की भलाई हो, एक ऐसा भविष्य जो युवा पीढ़ी का विशेष ध्यान रखता है। एक ऐसी परिस्थिति जहाँ बहुत से देश अपने को बंद करने में लगे हैं संत पापा विशेष रुप से पुनः इस बात हेतु निमंत्रण देते हैं कि हम अन्तराष्ट्रीय संघों पर अपना विश्वास न खोयें हालांकि इसे नवीन करें जिससे केवल ताकतवार को ही महत्व न मिलें।
प्रेरितिक प्रबोधन के सबसे शक्तिशाली पन्ने वे हैं जहाँ हम युद्ध और मृत्युदंड की आलोचना को पाते हैं। संत पापा जोन 23वें के कदमों में पाचेम इन तेर्रीस जिसकी शुरूआत विगत सालों में हुए विनाशाकरी युद्धों से प्रभावित लाखों निर्दोषों के वास्तविक मूलांकन से होती है, संत पापा फ्रांसिस इस बात की याद दिलाते हैं कि पिछली शताब्दियों के परिपक्व तर्कसंगत मानदंडों को "सिर्फ युद्ध" की संभावना को कम करके बनाये रखना कठिन है। उसी प्रकार अन्यायपूर्ण और बेवजह मौत की सजा को पूरी दुनिया में समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
यह सत्य है, जैसे कि संत पापा रेखाकिंत करते हैं कि “वर्तमान दुनिया में एक परिवार के अंग स्वरुप संयुक्त रहने की विचारधारा धूमिल होती जा रहा है और न्याय तथा शांति हेतु एक साथ काम करने का सपना देखना अपने में पिछड़ी सोच लगती गई है”। लेकिन यह जरुरी है कि हम इसके लिए पुनः सपने देखना शुरू करें और उससे भी बढ़कर इस सपने को सकार करें। इसके पहले की यह बहुत देर हो जाये।
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