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"फ्रातेल्ली तूत्ती", संत पापा फ्राँसिस का सामाजिक विश्व पत्र

भाईचारा और सामाजिक मित्रता वे रास्ते हैं जिनको संत पापा बेहतर, अधिक न्यायपूर्ण एवं शांतिमय विश्व के निर्माण के लिए, सभी लोगों एवं संस्थाओं के सहयोग हेतु प्रस्तुत करते हैं, युद्ध एवं वैश्विक उदासीनता को "नहीं" की जोरदार पुष्टि के साथ।

इसाबेला पिरो – वाटिकन सिटी

कौन से महान विचारधारा हैं बल्कि ठोस रास्ते हैं जिनपर चलकर, लोग अपने आम संबंधों में, सामाजिक जीवन में, राजनीति एवं संस्थाओं में अधिक न्याय एवं भाईचारापूर्ण विश्व का निर्माण करना चाहते हैं? यही मुख्य सवाल है जिसका उत्तर "फ्रातेल्ली तुत्ती" देना चाहता है ˸ संत पापा ने इसे "सामाजिक विश्व पत्र" (6) कहा है जिसने अपना शीर्षक संत फ्राँसिस अस्सीसी की "चेतावनी" से लिया है जिन्होंने इस शब्द का प्रयोग "अपने भाइयो और बहनों को सम्बोधित करने एवं उन्हें सुसमाचार की सुगंध से सुगंधित जीवन के रास्ते का प्रस्ताव रखने के लिए किया था।"(1) संत पापा ने लिखा है कि पोवेरेल्लो (दरिद्र, संत फ्राँसिस) ने "सिद्धांतों को थोपने के उद्देश्य से शब्दों के द्वारा युद्ध नहीं किया, उन्होंने सिर्फ ईश्वर के प्रेम को फैलाया और वे सभी के पिता बन गये तथा भाईचारापूर्ण समाज के दर्शन को प्रेरित किया।" (2-4) विश्व पत्र का उद्देश्य है भाईचारा एवं सामाजिक मित्रता की ओर सार्वभौमिक आकांक्षा जगाना। मानव परिवार में हमारी आम सदस्यता, एक-दूसरे को भाई और बहन स्वीकार करने से शुरू होती  है क्योंकि हम सभी सृष्टिकर्ता की संतान हैं, सभी एक ही नाव पर सवार हैं, हमें सचेत रहने की जरूरत है कि एक वैश्विक और परस्पर जुड़ी दुनिया में हम केवल एक साथ ही बच सकते हैं। मानव भाईचारा पर दस्तावेज जिसको संत पापा फ्राँसिस एवं अल अजहर के ग्रैंड ईमाम ने फरवरी 2019 को हस्ताक्षर किया था, कई बार उद्धृत एक प्रेरणादायक प्रभाव है।

भाईचारा को बढ़ावा दिया जाना है न केवल शब्दों से बल्कि कार्यों से भी। कार्य को "बेहतर राजनीति द्वारा" मूर्त रूप दिया जाता है जो वित्तीय हितों के अधीन नहीं है किन्तु सार्वजनिक भलाई की सेवा है, हरेक मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा को केंद्र में रखना और सभी के लिए कार्य सुनिश्चित करना ताकि हर व्यक्ति अपनी क्षमताओं का विकास कर सके। एक राजनीति जो लोकप्रियतावाद से रहित है वह मौलिक मानव अधिकार पर हमला करनेवाले का समाधान खोजने में सक्षम है और इसका उद्देश्य निश्चित रूप से भूख एवं मानव तस्करी दूर करना है। साथ ही साथ, संत पापा फ्राँसिस ने बल दिया है कि शांति को बढ़ावा देकर हम एक अधिक न्यायपूर्ण विश्व हासिल कर सकते हैं जो युद्ध की कमी मात्र नहीं है, यह शिल्पकारिता की मांग करता है, एक नौकरी की जो सभी को शामिल करता। सच्चाई से जुड़कर, शांति और मेल-मिलाप सक्रिय हो जाता है जिन्हें आपसी विकास के नाम पर वार्ता द्वारा न्याय हेतु कार्य करना चाहिए।

यहीं से संत पापा द्वारा "सभी अधिकारों के लिए नकारात्मक" युद्ध की निंदा का जन्म होता है और अब काल्पनिक रूप से भी "न्यायसंगत" रूप में बोधगम्य नहीं है क्योंकि परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियार के नतीजे पहले से ही निर्दोष नागरिकों पर भारी हैं। इसमें मृत्युदण्ड को अस्वीकार्य परिभाषित कर इसका कड़ा विरोध किया गया है और क्षमा, स्मरण एवं न्याय की अवधारणाओं पर एक चिंतन प्रस्तुत किया गया है कि क्षमाशीलता का अर्थ भूल जाना नहीं है और न ही अपनी मानव प्रतिष्ठा जो ईश्वर का दान है उसके अधिकार की रक्षा करना छोड़ देना है। विश्व पत्र की पृष्ठभूमि में कोविड-19 महामारी है क्योंकि जब वे विश्व पत्र को लिख रहे थे यह अप्रत्याशित रूप से फैल गया किन्तु विश्व स्वास्थ्य आपालकाल ने यह उजागर करने में मदद किया है कि कोई भी अकेला जीवन का सामना नहीं कर सकता और सचमुच समय के साथ यह सच साबित हुआ है, अब हम एक ही मानव परिवार बन गया हैं जहाँ हम "भाई-बहनें हैं।" (7-8).

वैश्विक समस्याएँ वैश्विक कार्रवार्ई की मांग, दीवार की संस्कृति "नहीं"

छोटी भूमिका से शुरू होकर और 8 अध्यायों में विभक्त विश्व पत्र, उन सभी को एक साथ लाता है, जैसा कि संत पापा स्वयं लिखते हैं – भाईचारा एवं सामाजिक मित्रता पर उनके कई वक्तव्य सजाये गये हैं अर्थात् चिंतन एवं मनन-चिंतन के वृहद संदर्भ में, कई पत्रों और दस्तावेजों जिनको संत पापा ने विश्व के विभिन्न लोगों एवं दलों के लिए प्रेषित किया है, सम्माहित हैं। (5)

पहले अध्याय, "बंद विश्व के ऊपर काले बादल" में दस्तावेज समकालीन युग की कई विकृतियों पर चिंतन करता हैः लोकतंत्र जैसी अवधारणाओं का हेरफेर और विरूपण, स्वतंत्रता, न्याय, सामाजिक समुदाय एवं इतिहास के अर्थ को खो देना, सार्वजनिक भलाई की ओर उदासीनता एवं स्वार्थ, लाभ पर आधारित बाजार का प्रभाव, नष्ट करने की संस्कृति, बेरोजगारी, जातिवाद, गरीबी, अधिकारों का असमान वितरण एवं पतन उदाहरण के लिए गुलामी, मानव तस्करी, गुलाम महिलाएँ और गर्भपात के लिए दबाव, अंग तस्करी इत्यादि। (10-24)

संत पापा ने जोर दिया है कि यह वैश्विक समस्याओं पर चर्चा करता है जिसके लिए वैश्विक कार्रवार्ई की जरूरत है, साथ ही "दीवार की संस्कृति" के खिलाफ खतरे की घंटी बजानी है जो भय एवं अकेलापन के ईंधन द्वारा पोषित व्यवस्थित अपराध को जन्म देता है। (27-28) आज हम बिगड़ी हुई नैतिकता का पालन कर रहे हैं। (29) जिसको कुछ हद तक संचार माध्यमों द्वारा सहयोग मिल रहा है जो दूसरों के प्रति सम्मान को तोड़ रहा है, विवेक को नष्ट कर रहा है, एकाकी एवं स्वयं-संदर्भित वर्चुअल सर्कल उत्पन्न कर रहा है जिसमें स्वतंत्रता एक कल्पना मात्र है और वार्ता निर्माणत्मक नहीं है। (42-50).

प्रेम सेतु का निर्माण करता है ˸ भले समारी का उदाहरण

कई छायाओं पर विश्व पत्र एक प्रकाशयुक्त उदाहरण से उत्तर देता है, एक आशा का संदेशः भले समारी का उदाहरण प्रस्तुत करता है। दूसरे अध्याय में, "रास्ते पर एक अजनबी" इस छवि के लिए समर्पित है। इसमें संत पापा ने जोर दिया है कि एक अस्वस्थ समाज जो पीड़ित लोगों से अपना मुँह फेर लेता और कमजोर एवं दुर्बल लोगों की देखभाल करने में अशिक्षित है, (64-65) हम सभी भले समारी बनने हेतु बुलाये गये हैं कि हम दूसरों के पड़ोसी बनें (81), पूर्वाग्रह से बाहर निकलें, व्यक्तिगत स्वार्थ, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक घेरे से बाहर आ सकें। वास्तव में, एक ऐसे समाज के निर्माण हेतु हम सभी जिम्मेदार हैं जो सभी को शामिल कर सके, एकीकृत कर सके एवं जो गिरे अथवा पीड़ित हैं उन्हें उठा सके। (77) हम प्रेम सेतु का निर्माण करने और प्रेम के लिए बनाये गये हैं। (88) संत पापा ने ख्रीस्तियों का विशेष रूप से आह्वान किया है कि बहिष्कृत व्यक्ति में हम ख्रीस्त के चेहरे को पहचान सकें। (85) "एक सार्वभौमिक आयाम" के अनुसार प्यार करने की क्षमता का सिद्धांत तीसरे अध्याय में है।(83) यह एक खुली दुनिया की परिकल्पना और विस्तार करता है। इस अध्याय में संत पापा हमारा आह्वान करते हैं कि हम अपने आप से बाहर निकलें जिससे हम दूसरे व्यक्ति में अपनी पूर्ण उपस्थिति पा सकें। (88) उदारता के आयाम पर दूसरों के लिए अपने को खोलना हमें सार्वभौमिक पूर्ति की ओर प्रेरित करता है। (95) पृष्टभूमि पर, विश्व पत्र हमें याद दिलाता है कि व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन की संरचना प्रेम से मापी जाती है - जो हममें प्रथम स्थान लेता तथा स्वार्थ को हम से बहुत दूर कर, दूसरों के जीवन की बेहतरी की खोज हेतु प्रेरित करता है। (92-93).

अधिकारों की कोई सीमा नहीं, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नीति की मांग

अतः एक भाईचारापूर्ण समाज वह है जो "कट्टरपंथी व्यक्तिवाद" (105) के वायरस से जीतने के लिए, संवाद की शिक्षा को बढ़ावा देता तथा सभी को अपना बेहतर अर्पित करने के लिए प्रेरित करता है। परिवार की सुरक्षा तथा "शिक्षा के प्राथमिक एवं विस्तृत मिशन" के लिए सम्मान से शुरू होकर। (114) इस तरह के समाज को प्राप्त करने के लिए दो उपाय हैं- सदभाव, या दूसरों के लिए सचमुच अच्छाई की कामना करना। (112) और कमजोर लोगों की मदद करने वालों के प्रति सहानुभूति, जो सेवा में प्रकट होती है न कि विचारधारा से, गरीबी और असमानता के खिलाफ संघर्ष। (115) सम्मान के साथ जीने का अधिकार किसी से छीना नहीं जाना चाहिए। चूँकि अधिकारों की कोई सीमा नहीं है किसी को भी वंचित नहीं होना चाहिए, चाहे व्यक्ति का जन्म कहीं भी क्यों न हो। (121)

इस परिप्रेक्ष्य में संत पापा हमारा आह्वान करते हैं कि हम एक अंतरराष्ट्रीय संबंध के नियम पर ध्यान दें। (126), क्योंकि हरेक देश विदेशियों के लिए भी है एवं अपने क्षेत्र की सम्पति से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है यद्यपि उन्हें इसकी जरूरत हो और वे दूसरे स्थान से आये हों। इस तरह निजी सम्पति का स्वभाविक अधिकार, सृष्ट वस्तुओं के सार्वभौमिक गंतव्य के सिद्धांत पर गौण हो जायेगा। (120) विश्व पत्र विदेशी ऋण के मुद्दे पर भी विशेष जोर देता है कि इसका भुगतान किया जाना चाहिए, फिर भी, आशा की जाती है कि यह सबसे गरीब देशों के विकास और निर्वाह से समझौता नहीं कर सकता। (126).

आप्रवासी ˸ दीर्घकालिक नियोजन के लिए वैश्विक शासन

इस दौरान, दूसरे अध्याय का एक भाग एवं चौथा अध्याय का पूरा भाग आप्रवासी की विषयवस्तु के लिए समर्पित है। इसका शीर्षक है, "एक हृदय पूरे विश्व के लिए खुला"। अपने जीवन को “दांव पर रखकर (37) युद्ध, अत्याचार, प्राकृतिक आपदा से भागते हुए, उन्हें अपने ही देश के लोगों से विवेकहीन मानव तस्करी एवं बलत्कार का सामना करना पड़ता है, आप्रवासियों का स्वागत, उनकी सुरक्षा, समर्थन और एकीकरण किया जाना चाहिए। संत पापा ने जोर दिया है कि अपने ही देशों में सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अवसर बनाने के द्वारा अनावश्यक विस्थापन को रोका जाना चाहिए। किन्तु साथ ही, हमें दूसरी जगह बेहतर जिंदगी की तलाश करने का सम्मान करना चाहिए। राष्ट्रों का स्वागत करने में, नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा और प्रवासियों के लिए स्वागत एवं सहायता की गारंटी के बीच सही संतुलन होना चाहिए। (38-40) संत पापा ने कई आवश्यक कदम बतलाये हैं, खासकर, उन लोगों के लिए जो गंभीर मानवीय संकट से भागने का प्रयास करते हैं- वीजा देने में वृद्धि एवं सरलता लाना, मानवीय कोरिडोर को खोलना, अस्थायी आवास,सुरक्षा और आवश्यक सेवाएं सुनिश्चित करना, रोजगार व प्रशिक्षण का अवसर देना, पारिवारिक एकता को मदद देना, नाबालिगों की रक्षा करना, धार्मिक स्वतंत्रता की गारांटी देना और सामाजिक समावेशी को बढ़ावा देना। संत पापा ने समाज में "पूर्ण नागरिकता" के विचार को भी स्थापित करने तथा "अल्पसंख्यक" के नाम पर भेदभाव का बहिष्कार करने का आह्वान किया है। (129-131) दस्तावेज में कहा गया है कि उन सबसे बढ़कर – एक ऐसी वैश्विक प्रशासन की, आप्रवासियों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है, जो एकल आपात स्थिति से परे, एक लंबी अवधि की योजना को (132) आभार के सिद्धांत के आधार पर सभी लोगों के विकास के निमित लागू किया जाना चाहिए। इस तरह देशों को मानव परिवार के रूप में सोचा जाएगा। (139-141) संत पापा ने लिखा है कि दूसरे जो हमसे अलग हैं वे हमारे लिए उपहार हैं और सबकी समृद्धि के लिए हैं क्योंकि विविधताएँ विकास के लिए एक अवसर प्रदान करती हैं। (133-135) एक स्वस्थ संस्कृति स्वागत की संस्कृति है जो अपने आपको छोड़े बिना दूसरों के लिए खोल सकती है, उनके लिए कुछ विश्वसनीय चीज दे सकती है। जैसा कि बहुतल में –जो संत पापा के लिए एक प्रिय वस्तु है इसके एक भाग से, बढ़कर पूरा भाग है किन्तु प्रत्येक के मूल्य को सम्मान किया जाता है।(145-146)            

राजनीति, उदारता का एक सबसे दुर्बल रूप

पाँचवें अध्याय की विषयवस्तु है "एक बेहतर तरीके की राजनीति" जो उदारता का एक सबसे कमजोर रूप है क्योंकि यह सार्वजनिक भलाई की सेवा के स्थान पर रखा गया है (180) और लोगों के महत्व को पहचानती है, जिसे एक खुली श्रेणी के रूप में समझा जाता है, चर्चा और संवाद के लिए उपलब्ध है (160) कुछ हद तक यह लोकलुभावनवाद है जिसका संकेत फ्राँसिस ने दिया है कि लोकलुभावनवाद का सामना अपनी खुद की सेवा के लिए दूसरों का शोषण करने हेतु आकर्षित करता और लोगों के विचारों की वैधता को अनदेखी करता है तथा अपने स्वार्थ को बढ़ाता है ताकि अधिक लोकप्रिय हो सके।(159) लेकिन एक बेहतर राजनीति वह है जो काम की रक्षा करती है, "सामाजिक जीवन का एक आवश्यक आयाम", और हर किसी को अपनी क्षमताओं को विकसित करने का अवसर सुनिश्चित करती है। (162) संत पापा ने कहा है कि गरीब व्यक्ति की बेहतर सेवा न केवल रूपये से की जा सकती है जो एक अस्थायी समाधान है बल्कि काम के द्वारा व्यक्ति को प्रतिष्ठित जीवन जीने का अवसर देकर की जा सकती है। एक सच्ची गरीबी-विरोधी रणनीति का उद्देश्य अप्रत्यक्ष रूप से गरीब व्यक्ति को रोकना या प्रस्तुत करना नहीं है बल्कि उन्हें एकात्मता एवं पूरकता में बढ़ाना है (187) राजनीति का कर्तव्य सबसे बढ़कर, उन सभी का हल ढूंढना है जो मौलिक मानवाधिकारों पर हमला करते हैं, जैसा कि सामाजिक बहिष्कार, अंग, उत्तक, हथियार और नशीली पदार्थों की तस्करी, यौन शोषण, बंधुवा मजदूरी, आतंकवाद और व्यवस्थित अपराध। संत पापा ने मानव तस्करी को दूर करने के लिए एक जोरदार अपील की है, जो मानवता के लिए शर्म का कारण है और भूख जो अपराध है क्योंकि भोजन अविच्छेद्य अधिकार है। (188-189)

बाजार, अपने आप सभी समस्याओं का हल नहीं कर सकता।  यूएन में सुधार की जरूरत 

जो राजनीति हमें चाहिए, संत पापा फ्राँसिस रेखांकित करते हैं, वह है जो भ्रष्टाचार को, अक्षमता को, सत्ता के दुष्प्रयोग को, कानून के प्रति सम्मान की कमी को "न" कहती हो। (177) यह राजनीति मानव प्रतिष्ठा पर केंद्रित है और वित्त का गुलाम नहीं है क्योंकि बाजार, अपने आप में, सभी समस्याओं हल नहीं कर सकता”: वित्तीय अटकलों से आहत "कहर" ने यह प्रदर्शन किया है। (168) इसलिए, लोकप्रिय आंदोलनों ने विशेष प्रासंगिकता ली है: जैसा कि "नैतिक ऊर्जा के धार" के साथ "सामाजिक कवियों" की सच्चाई है, उन्हें सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सहभागिता में संलग्न होना चाहिए हालांकि, उन्हें अधिक समन्वय का विषय होना चाहिए। इस तरह, संत पापा का कहना है कि एक नीति के परे गरीबों के "साथ" एवं "उनके लिए" जाना संभव है। (169)

विश्व पत्र में दूसरी उम्मीद यूएन को सुधारने की बात पर ध्यान देता है: आर्थिक आयाम की प्रभुता के सामने जो किसी राष्ट्र की शक्ति को कम कर देती है, वास्तव में, संयुक्त राष्ट्र की जिम्मेदारी है "राष्ट्रों के परिवार" के विचार को आधार देना, सार्वजनिक भलाई के लिए कार्य करना तथा मानव अधिकार की रक्षा करना। दस्तावेज में कहा गया है कि समझौता करने, चिंतन करने एवं मध्यस्थता करने के अथक स्रोत संयुक्त राष्ट्र को, बहुपक्षीय समझौतों का पक्ष लेने के द्वारा जो कमजोर राज्यों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं, कानून की शक्ति को बढ़ावा देना चाहिए न कि शक्ति के कानून को। (173-175)

दयालुता का चमत्कार

6वें अध्याय, "समाज में संवाद और मित्रता", से आगे जीवन की संकल्पना, "मुलाकात की कला" के रूप में उत्पन्न होती है, हरेक के साथ, चाहे वह दुनिया के सुदूर क्षेत्रों से क्यों न हो और मूलवासी क्यों न हो क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के साथ हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं। कोई भी बेकार और उपभोजित नहीं है।(215)

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04 October 2020, 14:40