रोमानिया की प्रेरितिक यात्रा में अपने पोते को दिखाती एक बुजूर्ग महिला रोमानिया की प्रेरितिक यात्रा में अपने पोते को दिखाती एक बुजूर्ग महिला  

युवा, बुजूर्ग और नबी योएल की भविष्यवाणी

सात साल पहले 26 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने ब्राजील में विश्व युवा दिवस के दौरान एक अपील जारी की थी। इस अपील में उन्होंने युवाओं और बुजूर्गों को आपस में संवाद करने हेतु प्रेरित किया था।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 25 जुलाई 20 (वीएन)- सात साल पहले 26 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने ब्राजील में विश्व युवा दिवस के दौरान एक अपील जारी की थी। इस अपील में उन्होंने युवाओं और बुजूर्गों को आपस में संवाद करने हेतु प्रेरित किया था। उन्होंने इसे बाद में भी कई बार दुहराया है। कोविड-19 महामारी के समय यह और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है जब इन पीढ़ियों को शारीरिक दूरी बना कर रहना है।

विशेष रूप से, परिवार के संदर्भ में अंतर-पीड़ी आदान-प्रदान और संवाद होना कितना महत्वपूर्ण है।

26 जुलाई 2013 को संत पापा फ्राँसिस ने रियो दी जनेरियो में देवदूत प्रार्थना का पाठ करते हुए विश्वभर के हजारों युवाओं को सम्बोधित किया था। विश्व युवा दिवस के अवसर पर दुनियाभर के युवा रियो दी जनेइरो में एकत्रित थे। संत पापा फ्राँसिस की विदेश में यह पहली प्रेरितिक यात्रा थी। 26 जुलाई को कलीसिया संत अन्ना और संत ज्वाकिम का पर्व मनाती है जो येसु के नाना-नानी और कुँवारी मरियम के माता-पिता थे। 

अपारेचिदा दस्तावेज का हवाला देते हुए संत पापा ने इस अवसर पर जोर दिया था कि बच्चे और बुजूर्ग मिलकर लोगों के भविष्य का निर्माण करते हैं। बच्चे इसलिए भविष्य का निर्माण करते हैं क्योंकि वे इतिहास को आगे बढ़ाते हैं और बुजूर्ग इसलिए क्योंकि वे अपने जीवन के अनुभव एवं प्रज्ञा को हस्तांतरित करते हैं।

परस्पर निर्भरता

युवा-बुजुर्ग, दादा-दादी और पोता-पोती- जैसे द्विपद संत पापा फ्राँसिस के परमाध्यक्षीय काल में लगातार एक विशेषता बन गयी है, जिनको वे अपने व्यवहार, भाषणों, आमदर्शन समारोह एवं आकस्मिक मुलाकातों में प्रकट करते हैं, विशेषकर, प्रेरितिक यात्रा के दौरान।

संत पापा ने इस बात को दुःख के साथ गौर किया है कि युवा और बुजूर्ग ही बहुधा फेंकने की संस्कृति के शिकार बनते हैं जबकि वे एक साथ बेहतर भविष्य के लिए रास्ते की खोज कर सकते हैं यदि युवा नये द्वार खोलने के लिए बुलाये जाएँ। उन्होंने 2 परवरी 2018 को समर्पित धर्मसमाजियों के लिए ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कहा था, "बुजूर्गों के पास ही कुँजी है।" "जड़ के बिना विकास संभव नहीं है और न ही नयी कली के बिना फूल खिलना संभव है। स्मृति के बिना भविष्यवाणी नहीं हो सकती और न ही निरंतर मुलाकात।"

स्वप्न की भूमि

संत पापा के लिए युवाओं एवं बुजूर्गों के बीच मुलाकात एक स्वप्न का स्थान है। कुछ अर्थ में, यह अनुचित, आश्चर्यजनक और अभिसरण प्रतीत हो सकता है, फिर भी जैसा कि महामारी ने अनुभव दिलाया है, यह वास्तव में हमारा सपना है, कल के लिए हमारा दृष्टिकोण, जिसने दादा-दादी और पोते-पोतियों को एक साथ रखा है, जिन्हें अचानक अलग होने के कारण एकाकीपन का बोझ बढ़ गया है।

संत पापा ने स्वप्न के आयाम पर प्रकाश डाला है जिसकी जड़े बाईबल में गहरी हैं। संत पापा ने कई बार नबी योएल की शिक्षा की याद दिलायी है। "इसके बाद मैं सब शरीरधारियों पर अपना आत्मा उतारूँगा। तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे बड़े-बूढ़े स्वप्न देखेंगे और तुम्हारे नवयुवकों को दिव्य दर्शन होंगे।” (योएल 3:1).

संत पापा ने प्रश्न किया कि यदि युवा अपने बुजूर्गों के स्वप्न नहीं लेंगे और उन्हें आगे नहीं बढ़ायेंगे, तो कौन बढ़ायेगा?

प्रज्ञा बांटना

गौरतलब है कि युवा लोगों को समर्पित धर्माध्यक्षीय धर्मसभा के दौरान (अक्टूबर 2018), पोप फ्रांसिस ने पीढ़ियों के बीच, बातचीत हेतु संत अगुस्टीन पैट्रिस्टीक संस्थान में मुलाकात के एक विशेष कार्यक्रम – "समय की प्रज्ञा साझा करना" की मेजबानी की थी। कलीसिया एवं विश्व द्वारा सामना किये जा रहे मुद्दों पर युवाओं एवं बुजूर्गों के सवालों का उत्तर देते हुए संत पापा फ्राँसिस ने उनसे आग्रह किया था कि वे अपने स्वप्न को बचायें, जिस तरह बच्चे अपनी रक्षा करते हैं।" उन्होंने गौर किया था कि बंद का नहीं बल्कि स्वप्न का क्षितिज होता है।  

बुजूर्गों के प्रति बड़ी जिम्मेदारी लेने का प्रोत्साहन देते हुए संत पापा ने युवाओं को सम्बोधित कर कहा था, "आप सभी बुजूर्गों को अपने कंधों पर उठा नहीं सकते बल्कि आप उनके स्वप्नों को ले सकते हैं। आप उन्हें आगे ले सकते हैं और यह आपके लिए अच्छा होगा। उन्होंने बुजूर्गों के प्रति हमदर्दी रखने पर भी जोर दिया था जो आज महामारी के इस समय में अधिक आवश्यक प्रतीत हो रहा है। संत पापा ने कहा था, "हमदर्दी के बिना बुजूर्गों के बातचीत करना संभव नहीं हैं" किन्तु हम इसके स्रोत को कहाँ पा सकते हैं? निश्चय ही सामीप्य में।  

सामीप्य एक मूल्यवान सम्पति है जैसा कि हमने इन महीनों में अनुभव किया है जब वायरस के कारण हमारे अस्तित्व का यह मौलिक आयाम अचानक "निलंबित" हो गया था। संत पापा ने कहा था, "सामीप्य चमत्कार कर सकता है, उन लोगों के प्रति जो पीड़ित हैं, उनके प्रति जो समस्या झेल रहे हैं और बुजूगों एवं युवाओं के बीच सामीप्य में।" सामीप्य, आशा की संस्कृति को पोषित कर, विभाजन और अविश्वास के वायरस से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।

युवा और बुजूर्ग

2019 में रोमानिया की प्रेरितिक यात्रा के दौरान संत पापा फ्राँसिस ने युवाओं और परिवारों से मुलाकात में एक बुजूर्ग महिला के साथ अपनी आकस्मिक भेंट की याद की थी। संत पापा ने बतलाया था कि उनकी गोद में दो महीने का उसका पोता था। संत पापा ने कहा, "जैसे ही मैं पार हो रहा था, उसने बालक को मेरी ओर दिखाया और मुस्कुरायी, उस भाव से मानो कि वह कह रही हो, देखिये अब मैं स्वप्न देख सकती हूँ। मैं उस समय बहुत प्रभावित हुआ और मुझे वहाँ जाकर उसे लाने का साहस नहीं हुआ। यही कारण है कि मैं आप लोगों को बतलाना चाहता हूँ कि जब पोता-पाती बढ़ते हैं जब दादा-दादी स्वप्न देखते हैं और उन्हें आगे बढ़ने का साहस मिलता है जब उनकी जड़ें अपने दादा-दादी पर आधारित होती हैं।"     

कली और पत्ते

मूल और स्वप्न- इन दोनों में एक के बिना दूसरे को प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है। यह पहले की अपेक्षा अधिक सच है क्योंकि हमें एक "सर्वव्यापी दृष्टि" की सख्त जरूरत है जो किसी को पीछे नहीं छोड़ती।

संत पापा ने इस बात को यूरोप में महामारी के दौरान एक अंग्रेजी पत्रिका "द टाब्लेट एड कॉमनवील" में उजागर किया था। संत पापा ने कहा था, "युवा और बुजूर्ग के बीच इस तनाव को हमेशा एक-दूसरे के साथ मुलाकात के द्वारा दूर किया जा सकता है।"

युवा कली और पत्ते के समान हैं जो जड़ों के बिना फल नहीं ला सकते, बुजूर्ग जड़ों के समान हैं। उन्होंने नबी योएल की भविष्यवाणी की याद करते हुए बुजूर्गों से आग्रह किया था कि वे आशा बनाये रखें, चाहे वे वायरस से भयभीत क्यों न हों जो अधिक बुजूर्गों को अपना शिकार बना रहा है। संत पापा ने उन्हें स्वप्न देखने के लिए प्रेरितिक किया था।     

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25 July 2020, 14:48