संत पेत्रुस की प्रतिमा के सामने प्रार्थना करते संत पापा फ्राँसिस संत पेत्रुस की प्रतिमा के सामने प्रार्थना करते संत पापा फ्राँसिस 

प्रधानता और अचूकता: प्रथम वाटिकन महासभा के 150 साल बाद

एक लम्बी बहस के बाद, विश्वव्यापी कलीसिया पर पोप की प्रधानता के सिद्धांत (डोगमा) एवं संत पापा की धर्मशिक्षा की अचूकता को प्रथम वाटिकन महासभा में अनुमोदन दिया गया था। कलीसिया में इन डोगमाओं का क्या महत्व है?

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 18 जुलाई 2020 (वीएन)- 150 साल पहले 18 जुलाई 1870 को संविधान पास्तोर आएतेरनुस को प्रकाशित किया गया था जिसमें इन दोनों डोगमाओं का जिक्र है।

लम्बी और जोरदार बहस

संत पापा पौल षष्ठम ने 1969 के एक आमदर्शन समारोह में कहा था, सैद्धांतिक संविधान को अनुमोदन, 535 गुमनाम कौंसिल धर्माचार्यों के द्वारा, "एक लम्बी और जोरदार बहस" के बाद दिया गया था। उन्होंने इसे कलीसिया के जीवन में एक नाटकीय पृष्ट कहा था। इस सभा में समिति के 83 धर्माचार्यों ने वोट नहीं दिया था। दस्तावेज पर अनुमोदन प्रथम वाटिकन महासभा के अंतिम दिन दिया गया था जिसको फ्रेंको-प्रशिया युद्ध शुरू होने के कारण स्थगित कर दिया गया था।

20 सितंबर 1870 को इतालवी सैनिकों द्वारा रोम पर कब्जा करने के बाद - जो प्रभावी रूप से परमधर्मपीठीय राज्य के अंत को चिह्नित करता है – समिति अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गयी थी। परिषद के दौरान उभरे संघर्षों ने तथाकथित पुराने काथलिकों की विद्वता को जन्म दिया।

विश्वास की तर्कसंगतता और अलौकिक चरित्र के विषय में डोगमा

प्रथम वाटिकन महासभा के डोगमा देई फिलियुस जिनमें तर्कसंगतता एवं विश्वास की आलौकिक प्रकृति पर निहित है, 24 अप्रैल 1870 को प्रकाशित किये जाने के बाद, पास्तोर आएतेरनुस की दो डोगमाओं की घोषणा की गई। दस्तावेज में इस प्रकार कहा गया है, "संसार की सृष्टि से पहले से ही ईश्वर के अदृश्य स्वरूप को, उनकी शास्वत शक्तिमता और उनके ईशअवरत्व को बुद्धि की आँखों के द्वारा उनके कार्यों में देखा जा सकता है।   (रोम. 1:20).”

संत पापा पौल षष्ठम ने 1969 के आमदर्शन समारोह में कहा था कि यह डोगमा मान्यता देता है कि बुद्धि केवल अपनी शक्ति से सृष्टिकर्ता का ज्ञान सृष्ट चीजों के द्वारा कुछ हद तक प्राप्त कर सकता है। इस तरह कलीसिया ने तर्कवाद के युग में तर्क के मूल्य की रक्षा की है, एक ओर, "प्रकाशना की श्रेष्ठता तथा तर्क एवं उसकी क्षमता पर विश्वास की श्रेष्ठता को बनाये रखते हुए" लेकिन दूसरी ओर, यह घोषणा करते हुए कि "विश्वास की सच्चाई और तर्क की सच्चाई के बीच कोई विरोध नहीं हो सकता है, क्योंकि ईश्वर दोनों के स्रोत हैं।"

विश्व पत्र "फिदेश एत रातियो" जो सन् 1998 में प्रकाशित किया गया था, संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने पुष्टि किया था कि विश्वास एवं तर्क दो पंखों के समान हैं जिनके द्वारा मानव भावना सच्चाई पर चिंतन करने के लिए उठता है और ईश्वर ने मानव के हृदय में सच्चाई को जानने की चाह रखी है, एक शब्द में, अपने आप को जानना, जिससे कि अपने आपको जानने एवं ईश्वर को प्यार करने के द्वारा, स्त्री और पुरूष अपने आपके लिए भी सच्चाई की परिपूर्णता प्राप्त कर सकें।   

श्रेष्ठता का डोगमा

पास्तोर आएतेरनुस में संत पापा पीयुस 9वें ने श्रेष्ठता पर डोगमा की घोषणा करने से पहले पिता से येसु की प्रार्थना की याद की कि सब शिष्य एक हो जाए। पेत्रुस एवं उनके उत्ताधिकारी कलीसिया की एकता के स्थायी सिद्धांत एवं दृश्यमान नींव हैं।    

संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने कहा था कि "हम शिक्षा देते और घोषित करते हैं कि सुसमाचार के अनुसार, ईश्वर की समस्त कलीसिया पर शासन करने का अधिकार प्रेरित पेत्रुस के लिए तत्काल एवं सीधे प्रतिज्ञा की गई थी और येसु ख्रीस्त द्वारा हस्तंतारित किया गया था। येसु ख्रीस्त जो चरवाहों के राजकुमार हैं तथा भेड़ों के महान चरवाहे हैं प्रेरित संत पेत्रुस में मुक्ति जारी रखने का कार्य एवं कलीसिया के स्थायी लाभ के लिए कलीसिया स्थापित की, ख्रीस्त के अधिकार द्वारा, कलीसिया में, जो एक चट्टान पर स्थापित है, हमेशा के लिए समय के अंत तक दृढ़ रहेगा।"

"इसलिए, ख्रीस्त द्वारा स्थापित, पेत्रुस के सिहांसन का जो भी उत्ताधिकारी होगा वह पूरी कलीसिया ...याजक और लोकधर्मी दोनों का प्रमुख होगा, चाहे वह विधि और प्रतिष्ठा, एकल अथवा सामुहिक हो, उत्ताधिकार एवं सच्चे आज्ञापालन के कारण उनके अधीन होगा, न केवल विश्वास और नैतिकता की बात बल्कि पूरे विश्व में कलीसिया के अनुशासन एवं प्रशासन के लिए भी। यही कारण है कि रोम के परमाधिकारी के साथ एकता में और एक ही विश्वास की अभिव्यक्ति में ख्रीस्त की कलीसिया एक सर्वोच्च चरवाहे के नीचे एक झुण्ड बन जाती है।"   

संत पापा की अचूक धर्मशिक्षा

संत पापा पीयुस 9वें ने लिखा है कि संत पापा की प्रधानता में धर्मशिक्षा देने की सर्वोच्च शक्ति भी निहित है। यह शक्ति पेत्रुस एवं उनके उतराधिकारियों को सभी की मुक्ति के लिए दी गई है जिसको कलीसिया की परम्परा लगातार पुष्ट करती है।

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18 July 2020, 14:09