संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

हमारे बीच येसु की निरंतर उपस्थिति की याद दिलाता है स्वर्गारोहन

संत पापा फ्राँसिस ने स्वर्गारोहन महापर्व के अवसर पर रविवार 24 मई को स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया तथा ख्रीस्तियों को स्मरण दिलाया कि येसु हमारे बीच हमारी शक्ति एवं आनन्द के स्रोत के रूप में उपस्थित हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 25 मई 2020 (रेई)- वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास की लाइब्रेरी से रविवार 24 मई को संत पापा फ्राँसिस ने लाईव प्रसारण के माध्यम से विश्वासियों के साथ स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया। स्वर्ग की रानी प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, अति प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात।

आज इटली और अन्य देशों में प्रभु के स्वर्गारोहन का महापर्व मनाया जाता है। सुसमाचार पाठ (मती.28,16-20) दिखलाता है कि शिष्य गलीलिया की उस पहाड़ी के पास एकत्रित हैं जहाँ येसु ने उन्हें बुलाया था। (पद.16) वहाँ पुनर्जीवित प्रभु ने अपने चेलों के साथ अंतिम बार मुलकात की।

पुनर्जीवित प्रभु की अंतिम विदाई

संत पापा ने कहा कि पर्वत का एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है। पर्वत पर येसु ने धन्यताओं की घोषणा की (मती.5,1-12), वे पर्वत पर प्रार्थना करने जाते थे। (मती. 14,23) वे वहाँ भीड़ का स्वागत करते थे और रोगियों को चंगा करते थे। (मती. 15,29) किन्तु इस बार पर्वत पर पुनर्जीवित प्रभु न तो कार्य कर रहे हैं और न ही शिक्षा दे रहे हैं बल्कि शिष्यों को अपना काम सौंपते हुए उन्हें उसे जारी रखने एवं सुसमाचार प्रचार करने का आदेश दे रहे हैं।  

वे उन्हें सभी लोगों के बीच जाकर मिशन को आगे बढ़ाने का निमंत्रण दे रहे हैं। "इसलिए तुमलोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हें जो जो आदेश दिये हैं तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो- मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।" (पद.19-20)

येसु द्वारा शिष्यों को मिशन सौंपे गये

संत पापा ने कहा, "शिष्यों को निम्नलिखित मिशन सौंपे गये : घोषणा करने, बपतिस्मा देने, शिक्षा देने और गुरू के दिखाये मार्ग पर चलने का मिशन, यही जीवित सुसमाचार है। मुक्ति के संदेश का अर्थ है सबसे बढ़कर साक्ष्य देना। साक्ष्य के बिना इसकी घोषणा नहीं की जा सकती है। जिसके लिए हम आज के शिष्य भी, हमारे विश्वास द्वारा बुलाये जाते हैं।" इस महान कार्य को करते हुए और हमारी दुर्बलताओं को समझते हुए हम अपने आपमें अयोग्यता महसूस करते हैं जैसा कि शिष्यों ने महसूस किया था किन्तु हमें येसु के शब्दों को याद करते हुए हतोत्साहित नहीं होना है, जिसको उन्होंने स्वर्गारोहन के पूर्व अपने शिष्यों से कहा था- "मैं संसार के अंत तक तुम्हारे साथ हूँ।" (पद. 20)

येसु की उपस्थिति को किस तरह महसूस कर सकते हैं?

यह प्रतिज्ञा हमारे बीच येसु की निरंतर एवं सांत्वना पूर्ण उपस्थिति सुनिश्चत करता है। संत पापा ने कहा किन्तु इस उपस्थिति को किस तरह से महसूस किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि इसे उनकी आत्मा द्वारा महसूस किया जा सकता है जो मनुष्यों के हमराही की तरह इतिहास में चलने के लिए कलीसिया का संचालन करते हैं। पवित्र आत्मा जो ख्रीस्त एवं पिता द्वारा भेजे गये हैं पापों की क्षमा के लिए कार्य करते हैं तथा उनके वरदानों पर भरोसा रखकर अपने आपको खोलने एवं पश्चताप करनेवालों को क्षमा प्रदान करते हैं। इस तरह हमारे साथ अनन्तकाल तक रहने की प्रतिज्ञा के साथ येसु इस दुनिया में, पुनर्जीवित रूप में अपनी उपस्थिति की शुरूआत करते हैं।

शक्ति, धैर्य और आनन्द की शुरूआत

येसु दुनिया में उपस्थित हैं पर दूसरे रूप में, पुनर्जीवित रूप में जो ईश वचन, संस्कारों एवं पवित्र आत्मा के निरंतर एवं आंतरिक कार्यों से प्रकट होता है। येसु के पुनरूत्थान का पर्व हमें बतलाता है कि यद्यपि येसु पिता के दाहिने, महिमा के साथ विराजमान होने के लिए स्वर्ग चले गये, तथापि वे अब भी हमारे साथ हैं और हमेशा रहेंगे। यहीं से हमारी शक्ति, धैर्य और हमारे आनन्द की शुरूआत होती है, खासकर, येसु की उपस्थिति, जो पवित्र आत्मा की शक्ति के द्वारा हमारे बीच है।   

संत पापा ने प्रार्थना की कि धन्य कुँवारी मरियम हमारी यात्रा में अपनी ममतामय सुरक्षा द्वारा साथ दे, उनके द्वारा हम, दुनिया को, जी उठे ख्रीस्त के स्नेह एवं साहस से साक्ष्य देना सीख सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने स्वर्ग की रानी प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

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25 May 2020, 15:09