संत पापा फ्राँसिस धर्मशिक्षा देते हुए संत पापा फ्राँसिस धर्मशिक्षा देते हुए 

प्रार्थना मानव हृदय की पुकार, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में प्रार्थना पर धर्मशिक्षा माला की शुरूआत की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास की पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो और बहनों, सुप्रभात।

आज हम विषयवस्तु प्रार्थना पर अपनी एक नई धर्मशिक्षा माला श्रृंखला की शुरूआत करते हैं। प्रार्थना को हम विशेष रुप से विश्वास की सांसें निरूपित कर सकते हैं। यह ईश्वर पर विश्वास करने वालों के हृदय की गहराई से एक पुकार की भांति निकलती है।

बरथोलोमी की गाथा

संत पापा ने कहा कि हम धर्मग्रंथ में चर्चित बरथोलोमी के बारे में चिंतन करें (मरकुस 10. 46-52)। वह अपने में अंधा था जो शहर से बाहर चौराहों में भिक्षा मांगने हेतु बैठा रहता था। वह अपने में गुमनाम व्यक्तित्व नहीं था वरन उसकी एक पहचान थी, वह “तिमियो का पुत्र” था। उसे एक दिन यह बात सुनाई पड़ी कि येसु उस मार्ग से होकर गुजरने वाले हैं। वास्तव में, येरिखो वह मार्ग था जहाँ से व्यापारी और तीर्थयात्रीगण हमेशा आया-जाया करते थे। अतः यह बरथोलोमी की बारी थी कि वह येसु से हर संभव मिलने की कोशिश करे। सुसमाचार में हम अन्य बहुत से लोगों का जिक्र सनते हैं जो येसु से मिलने की तीव्र अभिलाषा रखते हैं, उनमें से एक जकेयुस जो गुलर के पेड़ पर चढ़ गया।

हमारा हथियार क्या है

इस भांति हम उसे सुसमाचार में गला फाड़ उठती आवाज से प्रतिष्ठित पाते हैं। वह देखने में असमर्थ है, उसे यह नहीं पता कि येसु उसके निकट या उससे दूर है लेकिन वह सुनता और भीड़ के द्वारा इस बात का अंदाजा लगाता है। वह अपने में अकेला है कोई उसकी सहायता नहीं करता है। अतः वह अपने में चिल्लाना शुरू करता और अपनी पुकार जारी रखता है। उसके पास केवल उसकी आवाज एक हथियार थी, “दाऊद के पुत्र, मुझ पर दया कीजिए”।

संत पापा ने कहा कि उसी पुकार से लोग परेशान हो गये, कैसा असभ्य व्यक्ति है, कितनों ने उसे गलियाँ देते हुए चुप रहने को कहा, लेकिन बरथोलोमी कहाँ मानने वाला था, किसी की चिंता किये बिना वह और भी जोर से चिल्लाया, “दाऊद के पुत्र मुझ पर दया कीजिए।” (47) यहाँ हम ईश्वर के हृदय द्वार को खटखटाने और उनसे कृपा की चाह में ढ़िठाई की एक सुन्दरता को देखते हैं...वह चिल्लाता और खटखटाता है। उसकी पुकार, “दाऊद के पुत्र” जिसका अर्थ “मसीह” मुक्तिदाता है अपने में महत्वपूर्ण है। वह येसु पर अपने विश्वास को व्यक्त करता है। विश्वास की यह अभिव्यक्ति उस व्यक्ति के मुख से आती है जो सभों के द्वारा तिरस्कृत है।

हमारे जीवन की चाह

येसु उसकी पुकार को सुनते हैं। उसकी प्रार्थना येसु के हृदय को, ईश्वर के हृदय को स्पर्श करती है, वे उसके लिए मुक्ति के दरवाजे को खोलते हैं। येसु उसे अपने पास ले आने को कहते हैं। वह अपने पैरों पर उछल कर खड़ा होते हुए नाचता है, जो लोग उसे चुप रहने को कह रहे थे वे ही उसे प्रभु के पास लेकर आते हैं। येसु उनसे बातें करते और उसकी इच्छा को जानना चाहते हैं- यह अपने में महत्वपूर्ण है- उसकी चिल्लाहट अब एक प्रार्थनामय मांग बन जाती है, “प्रभु, मैं पुनः देखना चाहता हूँ”। (51)

विन्रमता, प्रार्थना की आधारशिला

येसु उसे कहते हैं, “जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है”।(52) उस गरीब, बेचारे, परित्यक्त व्यक्ति का पूर्ण विश्वास ईश्वरीय करूणा और शक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है। संत पापा ने कहा कि विश्वास हमें अपने दो हाथों को उठाते हुए, अपनी मुक्ति हेतु पुकारना है। काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में हम “विन्रमता को प्रार्थना की आधारशिला स्वरुप पाते हैं” (सीसीसी,2559)। प्रार्थना की उत्पति विनम्रता से होती है जहाँ हम अपने को अनिश्चिता में पाते हैं, यह हममें ईश्वरीय मिलन की प्यास को दिखलाती है। (cf. ibid., 2560-2561)।

विश्वास मुक्ति का स्रोत

विश्वास जिसे हम बरथोलोमी में देखते हैं अपने में एक पुकार है, वहीं अविश्वास इस पुकार को घोंट देती है। लोग उसे चुप रहने को कहते हैं यह उनमें विश्वास की कमी को दिखलाता है। यह एक तरह की प्रजाति या मनोभावना  है जो हमारी पुकार को “शांत” कर देती है। विश्वास एक दर्दभरी परिस्थिति का विरोध करती है वहीं अविश्वास हमें अपनी दुःखद परिस्थिति तक ही सीमित कर देती है जिसके हम आदी हो जाते हैं। अपने विश्वास के कारण हम बचाये जाते जबकि हमारा अविश्वास हमें बुराई में बनाये रखता है।

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि हम धर्मशिक्षा की इस श्रृंखला को बरथोलोमी की तरह अपनी पुकार से शुरू करते हैं, क्योंकि हम अपने में उसके प्रतिरुप को देखते हैं। वह अपने में एक दृढ़ व्यक्ति था। उसके करीब लोग थे जिन्हें उसे समझाया कि चिल्ला अपने में व्यर्थ है, उसकी पुकार को कोई सुनने वाला नहीं था, यह केवल दूसरों को परेशान करने वाला है, उसके लिए अच्छा यही होगा की वह कृपया चिल्लाना बंद करें। लेकिन वह इन बातों पर ध्यान नहीं देता है। अंततः उसे वह प्राप्त होता है जिसकी वह तीव्र चाह रखता है।

हमारी आंतरिक आवाज

किसी भी विपरीत तर्क के विरूद्ध मानव के हृदय में एक आवाज उठाती है। हम सबों के अंदर यह आवाज व्याप्त है। बिना किसी के द्वारा निर्देशित यह स्वतः हमसे बाहर निकलती है। यह एक आवाज है जो हमारी जीवन यात्रा पर सवाल करती है, संत पापा ने कहा कि यह तब होता है जब हम खासकर अंधेरे में पड़ जाते हैं, “येसु, मुझ पर दया कीजिए। येसु, मुझ पर दया कीजिए”। यह कितनी सुन्दर प्रार्थना है।

मानव ईश्वर का भिक्षु

लेकिन शायद, ये शब्द सारी सृष्टि में लिखे नहीं गये हैंॽ सारी पुकार और याचना करूणा के रहस्य अनुरूप पूरे होते हैं। ऐसी प्रार्थना को न केवल ख्रीस्तीय करते हैं बल्कि पुकार की यह प्रार्थना सारी मानव जाति, नर और नारी के द्वारा की जाती है। इसकी क्षितिज अपने में बड़ी हो सकती है, संत पौलुस इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, “सृष्टि अपनी प्रसव वेदना में कराहती है” (रोमि.8.22) कलाकार अपने कृतियों में सृष्टि की इस शांतिमय पुकार को परिभाषित करते हैं। यह सभी सृष्ट प्राणियों में व्याप्त है और विशेष कर मानव के हृदय से प्रकट होता है क्योंकि “मानव ईश्वर का भिक्षु है” (सीसीसी,2559)। संत पापा ने कहा, “मानव ईश्वर का भिक्षु है” यह मानव की एक अति सुंदर परिभाषा है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्रांसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपने प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

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06 May 2020, 14:35