संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

सुसमाचारी जीवन जीने से हताश न हों, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह में धन्य वचनों पर आधारित अपनी धर्मशिक्षा का समापन करते हुए सुसमाचारसंगत जीवन जीने का आहृवान किया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर वाटिकन प्रेरितिक निवास के पुस्तकालय से सभों का अभिवादन करते हुए कहा प्रिय भाइयो एवं बहनों सुप्रभात।
हम आज के आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा के साथ ही धन्य वचनों पर जारी अपनी धर्मशिक्षा माला का समापन करेंगे। अंतिम धन्य वचन उनके लिए स्वर्गराज्य की चर्चा करता है जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं।

धन्य वचनःदिव्य खुशी के स्रोत

इस धन्य वचन में हम दिव्य खुशी की अभिव्यक्ति को अत्याचार सहने वालों के लिए पाते हैं जो प्रथम धन्य वचन में दीन-हीन लोगों हेतु व्यक्त किया गया है। इस भांति हम यह देखते हैं कि हमने जहाँ से शुरू किया था, एक राह में चलते हुए अंततः हम उसी जगह पहुँच गये हैं।

हमारी दीन-हीनता, आंसू, नम्रता, पवित्रता हेतु प्यास, करूणा, हृदय की शुद्धता और मेल-मिलाप के कार्य हमें ख्रीस्त के लिए अत्याचार सहने हेतु अग्रसर करते हैं, लेकिन यह अत्याचार अंततः हमारे लिए स्वर्ग में खुशी और महान उपहार का एक कारण बनता है। धन्य वचनों की राह हमारे लिए पास्का की यात्रा है जो हमें सांसारिक जीवन से ईश्वरीय जीवन में प्रवेश करने हेतु मदद करता है जहां हम अपने शारीरिक स्वार्थ से पवित्र आत्मा द्वारा ऊपर उठाये जाते हैं।

संत पापा ने कहा कि दुनिया अपनी मूर्तिपूजा, अपने समझौतों और अपने विकल्पों में दिव्य जीवन के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती है। “पाप की संरचनाएं” जो बहुधा मानवीय मानसिकता द्वारा उत्पन्न होती है, गरीबी या नम्रता या शुद्धता को जिसे सुसमाचार हमारे लिए जीवन के आधार स्वरूप व्यक्त करता है, अस्वीकार करती हैं। दुनिया की दृष्टिकोण में ये सारी चीजें आदर्शवादी या धर्मांध हैं।

दुनिया की मानसिकता

यदि दुनिया जो धन दौलत पर चलती, वहीं कोई इस बात को अभिव्यक्त करता है कि जीवन की पूर्णतः परित्याग और अपने को एक उपहार स्वरुप देने में है, तो वह लालच भरी व्यवस्था हेतु एक चिढ़ का कारण बनती है। यहां “चिढ़” शब्द का संदर्भ ख्रीस्तीय साक्ष्य से है जहाँ हम असंख्य लोगों के लिए भलाई के कार्य करते हैं, यह दुनिया की मानसिकता के धारकों हेतु एक तरह से परेशानी का सबब बनती है। यह उनके लिए एक तरह से फटकार जैसी होती है। जब ईश्वरीय संतान की पवित्रता अपनी सुन्दरता की झलक प्रस्तुत करती है तो यह पद स्थापितों के लिए एक तरह से परेशानी उत्पन्न करती हैः वे अपने आप में सवाल करने को बाध्य होते और या तो वे अच्छे कार्यो हेतु अपने को खोलते या उस ज्योति का तिरस्कार करते और अपना हृदय कठोर बना लेते हैं। उनकी स्थिति ऐसी हो जाती कि वे उस अच्छाई का विरोध करने लगते क्योंकि यह उनमें क्रोध का कारण बनती है (प्रवक्ता 2.14-15)। यह हमारा ध्यान उन शहीदों की ओर कराता है जिन्हें क्रोध के कारण प्रताड़ना और शत्रुता का शिकार होना पड़ा। यह विगत शताब्दी में यूरोपीय तानाशाहों में देखी जा सकती है जहां ख्रीस्तियों के विरूद्ध, ख्रीस्तीय साक्ष्यों और उनकी वीरता के खिलाफ रोष व्यक्त किये गये।  

संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि उत्पीड़न का यह नाटक हमारे लिए अधीनता, अडम्बर और समझौतों की स्थिति से दुनिया की सफलता के साथ हमारी मुक्ति को भी व्यक्त करती है। वह कौन-सी चीज है, जो ख्रीस्त के लिए दुनिया का तिरस्कार करने वालों हेतु आनंद का कारण बनती हैॽ उन्होंने अपने लिए उस चीज को पा लिया है जो पूरी दुनिया से अधिक कीमती है। वास्तव में, “मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि वह सारी दुनिया को प्राप्त कर ले किन्तु अपनी आत्मा को खो दे”ॽ(मार.8.36)।

प्रताड़ितों के प्रति संवेदना

इस बात की याद करना हमारे लिए बहुत दुःखदायी होता है कि वर्तमान परिस्थिति में बहुत सारे ख्रीस्तीय हैं जो दुनिया के विभिन्न स्थानों में प्रताड़ित किये जा रहे हैं, हम आशा से साथ उनके लिए प्रार्थना करते हैं कि जिनती जल्द हो सके उन पर किये जा रहे अत्याचार का इति हो। संत पापा ने कहा कि आज हमारे बीच शहीदों की संख्या पहली सदी के शहीदों से कहीं अधिक है। हम अपने उन भाई-बहनों के प्रति अपना सामीप्य व्यक्त करते हैं। हम एक शरीर हैं, अत्याचार सह रहे हमारे भाई-बहनें येसु ख्रीस्त के रक्त-रंजित शरीर हैं जो कि कलीसिया है।

मानवता का स्वाद न खोयें

लेकिन हमें यह भी सावधानी बरतने की जरुरत है कि हम इस धन्य वचन को एक प्रताड़ना, व्यक्तिगत-सहानुभूति की कुंजी स्वरुप न देखें। वास्तव में, मनुष्यों के लिए अवमानना सदैव सतावट का पर्याय नहीं है। इस धन्य वचन के तुरंत बाद येसु हम ख्रीस्तियों को कहते हैं, “तुम पृथ्वी के नमक हो”, वे हमें अपने “स्वाद खोने” के खतरे से सचेत करते हैं, नहीं तो नमक “किसी भी उपयोगिता का नहीं” रह जायेगा। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जायेगा (मत्ती.5.13)। अतः हमारे लिए एक घृणा का कारण, हमारी गलती भी होती है जब हम येसु ख्रीस्त और सुसमाचार के स्वाद को खो देते हैं।

संत पापा ने कहा कि हम धन्य वचनों के नम्रतापूर्ण राह में निष्ठावान बने रहें क्योंकि यह हमें दुनिया का नहीं बल्कि ख्रीस्त का बने रहने हेतु प्रेरित करता है। हम संत पौलुस के जीवन के बारे में चिंतन कर सकते हैं, जब वह सोचता है कि वह सही है तो उस परिस्थिति में वह सतानेवाला है, लेकिन जब उसे यह एहसास होता कि वह प्रताड़ित करने वाला है तो वह प्रेमपूर्ण व्यक्ति बन जाती है, जिसने खुशी से अपने जीवन के दुःख तकलीफों को सहन किया (कलो.1.24)।

दुनिया से समझौता खतरनाक

बहिष्करण और सतावट, यदि ईश्वर हमें अपनी कृपा प्रदान करते तो यह हमें येसु ख्रीस्त से संग उनके दुःखभोग और क्रूस में सम्मिलित करता है जिसके द्वारा हमें नया जीवन मिला है। यह हमें येसु की तरह बनाता है जो हमारी मुक्ति हेतु मनुष्यों द्वारा “तिरस्कृत और अस्वीकृत” किये गये (इसा.53.3, प्रेरि.8. 30-35)। उनकी आत्मा का स्वागत करना हमारे दिलों को अतुल्य प्रेम से भर देता है जहाँ हम दुनिया के छलकपट से समझौता किए बिना और इसके तिस्कार को स्वीकार करते हुए अपने को दुनिया हेतु अर्पित करते हैं। संत पापा ने कहा कि दुनिया से समझौता करना खतरनाक है और ख्रीस्तीय सदैव इस परीक्षा में पड़ जाते हैं। इस समझौता का परित्याग करना और येसु ख्रीस्त की राह चलना हमें स्वर्ग राज्य की सबसे बड़ी सच्ची खुशी प्रदान करती है। वहीं, सतावटों में सदैव येसु ख्रीस्त हमारे साथ रहते और हमें सांत्वना प्रदान करते हैं जबकि पवित्र आत्मा हमें आगे बढ़ने हेतु शक्ति प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि हम सुसमाचारसंगत जीवन व्यतीत करने में हताश न हों जो हमारे लिए सतावटें लेकर आता है क्योंकि इस मार्ग में पवित्र आत्मा हमारी सहायता करते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया। 

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29 April 2020, 14:31