रोम की महापौर विर्जिनिया के साथ संत पापा फ्राँसिस रोम की महापौर विर्जिनिया के साथ संत पापा फ्राँसिस 

भाईचारा व शांति का शहर बने रोम, संत पापा फ्राँसिस

संत पापा फ्राँसिस ने रोम शहर को इटली की राजधानी घोषित किये जाने की 150वीं वर्षगाँठ मनाते हुए इसे "ईश्वरीय अनुकम्पा का शहर" कहा तथा शहर के निवासियों को निमंत्रण दिया कि वे इस अनन्त शहर को एकात्मता एवं शांति का स्थल बनायें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 4 फरवरी 2020 (रेई)˸ जुसेप्पे गारिबाल्दी के नेतृत्व में इताली सैनिकों के हाथों नवगठित इटली साम्राज्य ने 3 फरवरी 1871 को रोम को अपनी राजधानी घोषित किया था। इससे रोम और पोप अधिकृत राज्यों पर परमधर्मपीठ का नियंत्रण समाप्त हो गया।

संत पापा ने रोम शहर को इटली की राजधानी घोषित किये जाने को एक ईश्वरीय अनुकम्पा की घटना कहा, जिसके कारण विवाद एवं समस्याएँ उत्पन्न हो गयी थीं किन्तु इसने रोम, इटली एवं पूरी कलीसिया में परिवर्तन लाया और एक इतिहास की शुरूआत हुई।  

इतिहास का मार्गदर्शन करने वाला ईश्वरीय अनुकम्पा

संत पापा ने यह संदेश "रोम शहर के राजधानी" घोषित किये जाने की 150वीं वर्षगाँठ समारोह के उद्घाटन पर दिया, जिसको वाटिकन राज्य सचिव कार्डिनल पीयेत्रो परोलिन ने प्रस्तुत किया। समारोह का उद्घाटन सोमवार को ओपेरा थियेटर में किया गया जहाँ इटली के राष्ट्रपति सेरजो मत्तारेल्ला एवं अन्य सम्मानित अधिकारी उपस्थित थे। 

अपने संदेश में संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा पौल षष्ठम के लेख का हवाला देते हुए कहा कि यह एक तबाही जैसा लग रहा था और परमधर्मपीठ द्वारा इस क्षेत्र पर प्रभुत्व के लिए ऐसा था भी ... किन्तु यह ईश्वरीय अनुकम्पा थी – जैसा कि आज हम देख रहे हैं- इसने चीजों को अलग, लगभग नाटकीय रूप में, एक उज्जवल दुनिया बनाने की घटनाओं को समाप्त किया था।”

आनन्द एवं परीक्षणों को साझा

संत पापा ने कहा कि एक डेढ़ शताब्दी में रोम में काफी परिवर्तन एवं विकास हुए हैं तथा कलीसिया ने रोम वासियों के आनन्द और परीक्षणों को साझा किया है।

उन्होंने तीन ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया जो बतलाती है कि कलीसिया और रोम ने एक-दूसरे को प्रभावित किया है।

पहला, 1943 और 1944 में शहर पर नाजी का नौ महीनों तक कब्जा, जब रोम के हजारों यहूदियों को मरने के लिए नजरबंद शिविर भेजा गया। संत पापा ने कहा कि उस समय कलीसिया ने खतरा के बौवजूद कई लोगों को शरण प्रदान किया था। इसके द्वारा यहूदी एवं काथलिक समुदाय के बीच पुराने अवरूद्ध एवं दुखद दूरियाँ दूर हुई थीं। उस दुखद समय में, काथलिक कलीसिया एवं यहूदी समुदाय के बीच हमने सबसे बढ़कर भाईचारा के साथ रहना सीखा।  

सभी का घर

संत पापा फ्राँसिस ने द्वितीय वाटिकन महासभा की याद की जो 1962 और 1965 से बीच सम्पन्न हुई, जब रोम ने एक वैश्विक, काथलिक और ख्रीस्तीय एकता का स्थान होने का प्रदर्शन किया। इसने सैंकड़ों धर्माचार्यों, ख्रीस्तीय एकता प्रेक्षकों एवं विशेषज्ञों का स्वागत किया।

तीसरी, घटना जिसको संत पापा ने याद किया वह था, "रोम को पीड़ित करने वाली बुराई" पर धर्मप्रांत द्वारा सन् 1974 में आयोजित सम्मेलन।

उस सम्मेलन में भाग लेने वालों ने कलीसिया को गरीबों और ग्रामीण लोगों को सुनने में मदद करने की मांग की थी। संत पापा ने कहा कि यह एक सीख है कि शहर सभी का घर है।

भाईचारा द्वारा शांति

संत पापा ने रोम शहर के निवासियों एवं राजनीतिक नेताओं को प्रोत्साहन दिया कि वे शहर को उन लोगों की नजरों से देखें जो शहर में बेहतर जीवन की तलाश हेतु पहुँचते हैं। रोम मानवता का महान स्रोत है। यह एक अनोखी सुन्दरता का स्थल है और शहर को विश्व के लिए खुला होने एवं सभी के समावेश स्थल के रूप में नवीकृत होने की जरूरत है।  

अंततः संत पापा ने उम्मीद जातायी कि अनन्त शहर, विश्व में एकता और शांति को बढ़ावा देगा जिसके लिए वह एक भ्रातृ का शहर कहलाने के योग्य बना रहे।  

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04 February 2020, 17:38