संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

पोप फ्रांसिस के साथ साल 2019 की समीक्षा

साल 2019 के समापन और नये साल की शुरूआत में हम संत पापा फ्राँसिस के उन कार्यक्रमों, मुलाकातों, संभाषणों और यात्राओं पर एक नजर डाल रहे हैं जिन्होंने इस साल को यादगार बनाया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 31 दिसम्बर 2019 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस लगातार याद दिलाते रहे हैं कि हमारा सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य है सुसमाचार का प्रचार करना। 2019 में उन्होंने 41 आमदर्शन समारोहों (हे पिता हमारे एवं प्रेरितों के धर्मसार पर चिंतन), 56 देवदूत और स्वर्ग की रानी प्रार्थनाओं, 60 उपदेशों एवं संत मर्था में 44 प्रवचनों में इसी बात को उजागर किया है। उन्होंने अनगिनत संदेश, पत्र, दस्तावेज, साक्षात्कार एवं 260 भाषण, रोम एवं विदेशों में प्रेरितिक यात्राओं के दौरान दिया है।    

भ्रम नहीं निश्चितता

संत पापा फ्राँसिस ने साल भर हमें सांत्वनापूर्ण निश्चितता का स्मरण दिलाया कि ईश्वर हमें प्यार करते हैं और येसु ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया है। यह अपने मिशन में संत पापा फ्राँसिस का मूल संदेश है जैसा कि "एवंनजेली गौदियुम" में प्रकट होता है। वे हमें निमंत्रण देते हैं कि हम माताओं एवं दादियों के "सरल एवं दृढ़" विश्वास की याद रखें, जो आगे बढ़ने के लिए बल एवं भक्ति प्रदान करते हैं। उन्होंने इसे "घर का बना विश्वास की संज्ञा दी है जो ध्यान दिये बिना गुजर जाता है किन्तु धीरे से ईश्वर के राज्य की स्थापना करता है। यह विश्वास कभी भ्रम में नहीं डालता क्योंकि यह सुसमाचार के मूल्यों पर आधारित है।    

मूर्ति पूजा नहीं विश्वास

नास्तिकता की ओर बढ़ते समाज में, संत पापा फ्राँसिस ने लगातार प्रोत्साहन दिया है कि हम एक सच्चे ईश्वर की ओर फिरें। उन्होंने कहा है कि मूर्ति पूजा का पाप किसी गैरविश्वासी के मंदिर में प्रवेश करने और मूर्ति की पूजा करने से ही नहीं हो जाता बल्कि यह हृदय का मनोभाव है। मूर्तिपूजा ने भले ही अपना नाम बदला लिया हो पर आज यह पहले से कहीं अधिक किया जा रहा है। धन, सफलता, नौकरी, आत्मज्ञान, आत्म सुख आदि सभी मूर्तिपूजा, हमसे आनन्द की प्रतिज्ञा करते हैं किन्तु देने में असमर्थ रहते। इसके विपरीत, वे हमें गुलाम बना देते हैं। संत पापा हमें स्मरण दिलाते हैं कि मूर्तिपूजा किस तरह जीवन देने का वादा करता है किन्तु उसे ले लेता है जबकि सच्चा ईश्वर जीवन की मांग नहीं करता बल्कि जीवन देता है।   

आत्म-सुधार न कि अपनी सफाई

येसु के समान संत पापा फ्राँसिस भी फटकारने से नहीं डरते हैं, खासकर, उन लोगों को जो अपने आपको दूसरों से अच्छा समझने की भूल करते हैं। वे इसे "अहम के धर्म" की संज्ञा देते हैं जिसमें कुछ लोग अपने आपको काथलिक होने का दावा करते हैं किन्तु ख्रीस्तीय और मानव होना भूल जाते हैं। वे भूल गये हैं कि ईश्वर की पूजा, पड़ोसियों से प्रेम रखकर ही होती है। संत पापा चेतावनी देते हैं कि किस तरह अभिमान और आत्म-औचित्य द्वारा हम सभी में, "फरीसी का मनोभाव" प्रबल होने के लिए तैयार रहता है। संत पापा जोर देते है कि विश्वास का अर्थ है अपने आपमें सुधारे जाने की दीनता होना।

कठोरता नहीं विनम्रता

येसु के समान ही संत पापा फ्राँसिस के शब्दों का प्रभाव दो तरह से पड़ता है ; कुछ लोग उसे सुनते और अपना मन-परिवर्तन करते हैं जबकि कुछ लोग पहले से अधिक कठोर हो जाते हैं। सितम्बर माह में अफ्रीका से वापस लौटते हुए संत पापा ने कहा था कि वे मतभेद से नहीं डरते हैं। "आज कलीसिया में हमारे बीच कठोरता के कई स्कूल हैं। वे मतभेद नहीं बल्कि किन्तु मिथ्या मतभेद हैं जिनका बुरी तरह अंत हो जायेगा क्योंकि इस कठोरता के पीछे सुसमाचार की पवित्रता नहीं है।"

संत पापा हमें बुराई का बदला अच्छाई और नम्रता से देने के लिए कहते हैं। उन्होंने कहा है कि जो कलीसिया से नहीं डरता वह काथलिक नहीं है। किसी डोगमा में परिवर्तन नहीं किया गया है और किसी प्रकार की भक्ति को समाप्त नहीं की गयी है। वे प्रोत्साहन देते है कि हम स्वागत एवं दया की भावना के साथ आगे बढ़ें, लोगों के साथ रहें ताकि विश्वास के सिद्धांत का विकास सच्ची परम्परा के साथ हमेशा जुड़ा रहे।    

ख्रीस्त को केंद्र में रखना

विगत अक्टूबर माह में हुए अमाजोन पर सिनॉड के दौरान संत पापा ने "मन परिवर्तन" शब्द को बरम्बार दुहराया था, जिसको धर्मसभा के अंतिम दस्तावेज में जगह मिल गयी है। वास्तव में, धर्मसभा ने चौतरफा मन-परिवर्तन का आह्वान किया था; सिनॉडालिटी की आवश्यकता इसलिए है ताकि कलीसिया एक साथ चल सके, विभाजित अथवा अकेला नहीं। सांस्कृतिक इसलिए क्योंकि हमें विभिन्न संस्कृतियों से बातचीत करने जानना है, पर्यावरणीय इसलिए क्योंकि पर्यावरण का स्वार्थी दोहन, लोगों को विनाश की ओर ले जाता है, प्रेरितिक, क्योंकि सुसमाचार का प्रचार अति आवश्यक है।    

वास्तव में, इन चारों मन परिवर्तनों के आधार पर ही सुसमाचार का मन-परिवर्तन संभव है, जो येसु हैं। सच्चा मन-परिवर्तन का अर्थ है अपने आप को एक किनारे करना और ख्रीस्त को केंद्र में रखना तथा पवित्र आत्मा को अपने जीवन का मालिक बनने देना।

दुराचार का सामना

कलीसिया में नाबालिगों की सुरक्षा पर फरवरी में आयोजित सम्मेलन को अनेक तरह से ऐतिहासिक माना गया। इसने सभी महादेशों के धर्मगुरूओं को एक साथ लाया तथा साहस एवं पारदर्शिता के साथ, कलीसिया में बाल दुराचार के संकट का सामना करने के उपायों की खोज की गयी। सम्मेलन के अंत में संत पापा ने कहा कि दुराचार  विश्वव्यापी समस्या है, जो भयावाह रूप से सभी ओर फैला हुआ है और सभी को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया कि किस तरह अधिकांश दुराचार परिवार के सदस्यों, शिक्षकों द्वारा घर, विद्यालय, खेल और कलीसिया की संस्थाओं में हो रहे हैं। इस विश्वव्यापी घटना की क्रूरता, तब और अधिक गंभीर एवं अपमान जनक हो जाती है जब यह कलीसिया में घटती है क्योंकि यह उसके नैतिक अधिकार और नैतिक विश्वसनीयता के साथ पूरी तरह से असंगत है”।    

 राजनीतिक गोपनीयता को समाप्त करना

मोतू प्रोप्रियो "प्रोफ्रियो वोस एसतिस लुक्स मुंदी" द्वारा संत पापा ने दुराचार को रिपोर्ट करने के लिए एक नई प्रणाली स्थापित की जिसके द्वारा, उत्पीड़न और हिंसा एवं धर्माध्यक्ष और धार्मिक अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। दस्तावेज में याजकों एवं धर्मसमाजियों द्वारा दुराचार का रिपोर्ट देना है जबकि हर धर्मप्रांत को सहज ही उन सभी रिपोर्टों को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत कर देना है।

साल 2019 में संत पापा ने परमधर्मपीठीय गोपनीयता को समाप्त किया, खासकर, बाल पोर्नोग्राफी के मामलों में, 14 साल तक के बच्चों के किसी अश्लील तस्वीर को अपने पास रखने अथवा बांटने पर इसे "देलिकता ग्राविओरा" (सबसे गंभीर मामला) माना जाएगा। नये नियम के अनुसार यह उम्र बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया है।   

रोमी परमाध्यक्षीय कार्यालय में सुधार

रोमी परमाध्यक्षीय कार्यालय में सुधार के कार्य जारी हैं, यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि सभी चर्च संरचनाएं मिशनरी हैं। नवीन प्रेरितिक संविधान के मसौदे के साथ "प्रेडीकेट एवंजेलियुम" (सुसमाचार की घोषणा) दस्तावेज पर अध्ययन किया जा रहा है। साल 2019 के अंत में संत पापा ने कार्डिनल मंडल के डीन कार्डिनल अंजेलो सोदानो का त्यागपत्र स्वीकार किया जो 2005 से ही इसमें कार्यारत थे।

वाटिकन अर्थ व्यवस्था में सुधार

आर्थिक क्षेत्र में सुधार का कार्य, पारदर्शिता और लागत नियंत्रण दोनों के संदर्भ में 2019 में बढ़ा है। पोप फ्रांसिस ने वाटिकन इंस्टीट्यूट फॉर रिलीजियस वर्क्स (ईयोर, आईओआर) के कानून को नवीनीकृत किया तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थायी रूप से लेखा परीक्षा के लिए बाहरी लेखा परीक्षक का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने जेस्विट फादर जोन अंतोनियो ग्वेरेलो अलवेस को आर्थिक मामलों के सचिवालय का अध्यक्ष नियुक्त किया और वित्तीय लेनदेन के मामले में परमधर्मपीठ की सेवा में विभिन्न लोगों में से एक वाटिकन न्यायपालिका जांच को अधिकृत किया। पीटर पेंन्स या पोप द्वारा आर्थिक सहयोग राशि के संबंध में संत पापा ने कहा है कि "अच्छे प्रशासन में" राशि प्राप्त करने के बाद, उसे दराज में नहीं रखा जाता। हर प्रकार की जाँच नैतिक हो ताकि धन का प्रयोग सुसमाचार प्रचार एवं गरीबों के लिए हो सके।

ईश वचन का रविवार

प्रेरितिक पत्र "अपेरूइत इल्लिस" प्रकाशित करने के साथ 30 सितम्बर को संत पापा फ्राँसिस ने ईश वचन का रविवार स्थापित किया। इसके द्वारा उन्होंने सभी विश्वासियों को पवित्र बाईबिल का पाठ करने एवं उसपर मनन –चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि संत जेरोम कहते हैं, "बाईबिल को नहीं जानना, ख्रीस्त को नहीं जानना है।" ईश वचन का रविवार सामान्य काल के तीसरे रविवार (26 जनवरी 2020) को मनाया जाएगा।  

चरनी

संत पापा फ्राँसिस ने 1 दिसम्बर को ग्रेचो शहर का दौरा किया तथा वहाँ उन्होंने प्रेरितिक पत्र "अदमिराबिले सेन्यूम" पर हस्ताक्षर किया। प्रेरितिक पत्र में उन्होंने क्रिसमस चरनी बनाने की सुन्दर परम्परा की पुनः खोज करने का निमंत्रण दिया। उन्होंने लिखा, "येसु के जन्म को प्रस्तुत करना अपने आप में ईश्वर के पुत्र के शरीरधारण के रहस्य की एक साधारण एवं आनन्दमय घोषणा है। चरनी एक जीवित सुसमाचार है जो पवित्र धर्मग्रंथ के पन्नों से उत्पन्न हुआ है। यह जहाँ कहीं और जिस किसी भी तरह से बनाया जाए, ईश्वर के प्रेम को प्रकट करता है। ईश्वर जो एक बालक बन गये, यह बतलाने के लिए कि वे हर व्यक्ति, महिला और बच्चे के करीब उसकी स्थिति में हैं।   

प्रताड़ित ख्रीस्तीय

संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा की निंदा करते हैं और याद दिलाते हैं कि आज आरम्भिक काल से भी कहीं अधिक ख्रीस्तीय शहीद हुए हैं। जनवरी में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने एशिया बीबी को ईश निंदा के अन्यायपूर्ण आरोप से पूरी तरह बरी कर दिया, जिसके लिए उन्हें मृत्यु दण्ड की सजा सुनायी गयी थी। पाँच बच्चों की ख्रीस्तीय माँ असिया बीबी 2009 से ही जोल में थी। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें एवं संत पापा फ्राँसिस दोनों ने बड़े सूझ-बूझ के साथ मामले पर ध्यान दिया है। जब संत पापा फ्राँसिस ने उनकी एक बेटी से मुलाकात की थी तब उन्होंने बतलाया था कि वे उनकी माँ के बारे चिंता करते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं।

21 अप्रैल को श्रीलंका के ख्रीस्तीय गिरजाघर में पास्का पर्व मनाते समय, इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने हमला कर दिया था जिसमें कुल 250 लोगों की मौत हो गयी थी। उसी दिन संत पापा ने अपील की थी। साल भर में उन्होंने कई बार धर्मों के खिलाफ हुए हिंसक हमलों का विरोध किया।

परिवार एवं जीवन की रक्षा

25 मार्च को संत पापा फ्राँसिस ने लोरेटो का दौरा किया था। जहाँ उन्होंने आधुनिक विश्व को जोर दिया किया था कि "परिवार में एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह की स्थापना एक आवश्यक महत्व और मिशन है।"

संत पापा फ्राँसिस जीवन की रक्षा गर्भधारण से लेकर प्राकृतिक रूप से अंत तक करने का समर्थन करते हैं। 2019 में उन्होंने 42 साल के विंसेन्ट लाम्बेर्ट की रक्षा हेतु आवाज उठायी थी जिन्हें न्यूनतम चेतना में मरने के लिए छोड़ दिया गया था। उन्होंने कहा था, "हम एक ऐसी सभ्यता का निर्माण न करें जो ऐसे लोगों को समाप्त करती है जिनके जीवन के बारे मानना है कि वे अब जीने लायक नहीं हैं। हरेक जीवन हमेशा मूल्यवान होता है, चाहे वह अजन्मा शिशु हो अथवा भूख, हिंसा और अन्याय से पीड़ित, चाहे वह बीमार, बुजूर्ग या आप्रवासी हो, जो मौत का जोखिम उठाकर बेहतर जीवन की तलाश करता हो। न्याय किसी का चुनाव नहीं करता। यह किसी एक प्रकार की जाति के लोगों के लिए नहीं है। न्याय विश्वव्यापी है।      

युवाओं को प्रोत्साहन देना

संत पापा फ्राँसिस ने 2019 में प्रेरितिक प्रबोधन "ख्रिस्तुस विवित" प्रकाशित किया जो वाटिकन में 2018 के अक्टूबर माह में आयोजित युवा पर धर्माध्यक्षीय धर्मसभा का प्रतिफल है। दस्तावेज की शुरूआत इस तरह से होती है, "ख्रीस्त जीवित हैं, वे हमारी आशा हैं और अनोखे तरीके से हमारे विश्व में यौवन लाते हैं। वे जिस चीज का स्पर्श करते हैं वह जवान और जीवन से पूर्ण हो जाता। वे ख्रीस्तीय युवाओं से कहते हैं, "ख्रीस्त जीवित हैं और चाहते है कि आप भी क्रियाशील रहें।"

प्रेरितिक यात्रा

संत पापा फ्राँसिस ने 2019 में इटली के बाहर 7 प्रेरितिक यात्राएँ कीं। उन्होंने 11 देशों और 4 महादेशों का दौरा किया। साल की शुरूआत पनामा में विश्व युवा दिवस से हुई और संयुक्त अरब अमीरात तक जारी रही जहाँ उन्होंने मानव बंधुत्व पर ऐतिहासिक दस्तावेज में अल अजहर के ग्रैंड इमाम के साथ हस्ताक्षर किया था।

मोरोक्को में उन्होंने अंतरधार्मिक वार्ता पर जोर दिया। बुल्गारिया, उत्तरी मकेदुनिया और रोमानिया में उन्होंने ख्रीस्तीय एकता को प्रोत्साहन दिया। मोजाम्बिक, मडागास्कर और मोरिशस में उन्होंने गरीबों एवं सृष्टि की रक्षा के लिए आवाज उठायी। थाईलैंड में उन्होंने महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को बढ़ावा दिया। वहीं जापान में उनका संदेश शांति पर केंद्रित रहा और उन्होंने वहाँ परमाणु हथियार रखना अनैतिक बतलाया।

संत पापा ने इटली में कब्रस्थान सहित कई स्थलों का दौरा किया जहाँ उन्होंने भुकम्प पीड़ितों को भी सांत्वना दी।

संत और धन्य

साल 2019 में संत पापा ने अन्य संत एवं धन्य घोषित किये जिनमें विभिन्न महादेशों एवं विचारधाराओं के कई शहीद भी है। उनमें से कई को स्पेन में नागरिक युद्ध के दौरान विश्वास के लिए घृणा के कारण मार डाला गया था। उन्होंने अपने हत्यारों को क्षमा करते हुए मौत का आलिंगन किया। संत पापा ने बारी में रोमानिया के ग्रीक काथलिक कलीसिया के 7 धर्माध्यक्षों की धन्य घोषणा की जो कम्युनिस्ट शासन में शहीद हो गये थे। उन्होंने कार्डिनल जॉन हेनरी न्यूमन की भी संत घोषणा की जिन्होंने सन् 1845 में अंगलिकन कलीसिया से काथलिक कलीसिया को स्वीकार किया था।

50 साल के पुरोहित

2019 संत पापा फ्राँसिस के लिए यादगार रहा क्योंकि इसी साल उन्होंने अपने पुरोहिताभिषेक का 50वाँ सालगिरह मनाया। उनकी बुलाहट की कहानी 21 सितम्बर 1953 में शुरू हुई थी, जब संत मती का पर्व था। उन्होंने पापस्वीकार संस्कार में ईश्वर की दया को गहराई से महसूस किया था। उन्होंने पुरोहितों को येसु के करुणावान हृदय के व्यक्ति कहा है। उन्होंने कहा है कि आज करुणा का समय है।

2019 के दिव्य करूणा रविवार को संत पापा ने एक बात को सुस्पष्ट किया कि हम सभी को करुणा की आवश्यकता है। उन्होंने सभी को येसु के करीब आने एवं पीड़ित भाई बहनों में उनके घावों का स्पर्श करने की सलाह दी है। येसु के घाव खजाने हैं जिनसे उनकी करुणा प्रवाहित होती है।     

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02 January 2020, 17:51