जापान के धर्माध्यक्षों को संदेश देते हुए संत पापा फ्राँसिस जापान के धर्माध्यक्षों को संदेश देते हुए संत पापा फ्राँसिस 

जापान के धर्माध्यक्षों को संत पापा का संदेश

संत पापा ने जापान की राजधानी टोकियो स्थित प्रेरितिक राजदूतावास में जापान के सभी धर्माध्यक्षों से मुलाकात की और जापान के छोटी कथलिक समुदाय को जीवन की रक्षा और करुणा के सुसमाचार की घोषणा करके प्रभु का साक्षी बनने के लिए प्रोत्साहित किया। संत पापा ने उन्हें युवाओं एवं उनकी जरूरतों पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

टोकियो, शनिवार 23 नवम्बर 2019 (रेई) :  संत पापा फ्राँसिस ने जापान की प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन टोकियो स्थित प्रेरितिक राजदूतावास में जापान के धर्माध्यक्षों की ओर से जापान के सभी ख्रीस्तियों द्वारा किये गये स्वागत के लिए अपनी खुशी प्रकट की। संत पापा ने टोकियो के महाधर्माध्यक्ष ताकामी को परिचय भाषण के लिए धन्यवाद दिया।

विश्वास के महान गवाह

संत पापा ने कहा कि आज इस धरती पर आकर उसका वर्षों का सपना साकार हो गया। बचपन से उसके मन में जापान में मिशनरी बन कर आने की तीव्र इच्छा थी और जापान के लोगों के प्रति विशेष लगाव और अनुराग था। आज वे जापान की धरती पर विश्वास के महान गवाहों के नक्शेकदम पर एक मिशनरी तीर्थयात्री के रूप में उपस्थित हैं। जापान में संत फ्रांसिस जेवियर के आगमन के चार सौ सत्तर साल बीत चुके हैं, जिसने इस भूमि में ख्रीस्तीय धर्म के प्रसार और विश्वास का बीज बोया। संत पापा ने उन सभी मिशनरियों को भी याद किया जिन्होंने जापान में ख्रीस्तीय विश्वास के प्रचार और प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। शहीद संत पॉल मिक्की और उनके मित्र, धन्य जूस्तो चाकायामा उकोम आदि अनेक शहीदों ने कठिन परिस्थियों में भी छोटी काथलिक कलीसिया के विश्वास को जीवित रखा। संत पापा ने नागासाकी क्षेत्र के छिपे हुए काथलिक समुदायों को भी याद किया जिन्होंने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बपतिस्मा, प्रार्थना और धर्मशिक्षा को बरकरार रखा। नाजरेथ के पवित्र परिवार के रुप में स्थानीय कलीसिया अपने बजूद को रख पायी। उन्होंने प्रभु मसीह के उन शब्दों पर विश्वास करते हुए उनके साथ संबंध बनाये रखा,“जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठा होते हैं वहाँ मैं उनके बीच उपस्थित रहता हूँ।” (मत्ती 18,20)

संत पापा ने मिशनरियों को जापानी संस्कृति में अपने आप को संलग्न करने और काथलिक कलीसिया द्वारा जापान के समाजिक विकास के लिए दिये गये योगदान की सराहना की।अपने देश और विश्वव्यापी कलीसिया के इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय को अब नागासाकी और अमाकुसा के गांवों और कलीसियाओं को विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थलों के रूप में मान्यता दी गई है।

जीवन की रक्षा, सुसमाचार की घोषणा

संत पापा ने कहा कि उनकी जापान की प्रेरितिक यात्रा का आदर्श वाक्य “सभी जीवन की रक्षा करना” है। यह धर्माध्यक्ष के रूप में हमारे अपने प्रेरिताई का प्रतीक हो सकता है। एक धर्माध्यक्ष को ईश्वर अपने लोगों के बीच से बुलाता और फिर उसे एक चरवाहे के रूप में अपनी भेड़ों के बीच वापस भेजता है जिससे कि वह सभी की रक्षा कर सके। यही हमारी प्रेरिताई का उद्देश्य और लक्ष्य होना चाहिए।

         संत पापा ने कहा कि इस भूमि में मिशन को सांस्कृतिक अनुकूलन और संवाद के लिए एक शक्तिशाली खोज द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसने यूरोप में विकसित होने वाले स्वतंत्र, नए मॉडल के प्रशिक्षण की अनुमति दी। शुरु से ही, मिशनरियों ने जापानी भाषा में साहित्य, रंगमंच, संगीत और विभिन्न प्रकार के उपकरणों को नियोजित किया। यह उस प्यार का संकेत है जो उन पहले मिशनरियों ने इस भूमि और लोगों के लिए महसूस किया था। सभी जीवन की रक्षा का अर्थ है, आपको सौंपे गए पूरे लोगों के जीवन को प्यार करने में सक्षम होना। सबसे पहले इसे स्वीकारना कि यह ईश्वर का उपहार है। सभी जीवन की रक्षा करना और सुसमाचार की घोषणा करना में कोई विरोधाभास नहीं है, बल्कि दोनों साथ-साथ चलते हैं। दोनों उन चीजों के बारे में सावधान और सतर्क रहते हैं, जो इन भूमियों में बाधा डाल सकते हैं। येसु के सुसमाचार के प्रकाश में लोगों के अभिन्न विकास को देखा जा सकता है।

साक्ष्य और संवाद करने वाली कलीसिया

संत पापा इस बात से अवगत हैं कि जापान में काथलिक कलीसिया संख्या में छोटी है परंतु सुसमाचार प्रचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कम नहीं होने दिया। अपने दैनिक जीवन में अन्य धार्मिक परंपराओं के साथ संवाद में खुलकर और स्पष्ट शब्दों में विनम्रता के साथ अपनी बातों को रख सकते हैं। संत पापा ने विदेशी श्रमिकों के आतिथ्य और देखभाल के लिए स्थानीय ख्रीस्तियों को प्रशंसा की, जो जापान के आधे से अधिक काथलिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे न केवल जापानी समाज के भीतर सुसमाचार की साक्षी देते हैं बल्कि विश्वव्यापी लीसिया का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दर्शाता है कि मसीह के साथ हमारा संबंध किसी भी अन्य बंधन या पहचान से अधिक मजबूत है।

चिकित्सा, आशा और क्षमा का संदेश

संत पापा ने कहा कि कलीसिया शांति और न्याय जैसे वतर्मान के ज्वलंत मुद्दे पर स्वतंत्रता के साथ बोल सकती है। संत पापा ने नागासाकी और हिरोशिमा का दौरे के बारे में कहा, जहां वे इन दो शहरों के विनाशकारी बमबारी के पीड़ितों के लिए प्रार्थना करेंगे और परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए अपनी अपील को फिर से लोगों के सामने प्रस्तुत करेंगे। संत पापा उन लोगों से मिलना चाहते हैं जो अभी भी मानव इतिहास में इस दुखद प्रकरण के घावों को सहन करते हैं, वे ट्रिपल आपदा के शिकार भी हैं। उनका कष्टमय जीवन मानव और काथलिक कर्तव्य का बोध कराता है उनके शारीरिक और मानसिक कष्टों के उपचार के साथ आशा और क्षमा का संदेश पहुँचाना है।

संत पापा ने कहा कि बुराई की कोई प्राथमिकता नहीं है, यह लोगों की पृष्ठभूमि या पहचान के बारे में परवाह नहीं करती है। यह बस अपने विनाशकारी बल के साथ फट जाती है, जैसा कि हाल ही में विनाशकारी तुफान के आने से हुआ था, जिसमें बहुत सारे हताहत हुए और सम्पति और अनेक घरों को नुकसान पहुंचा। संत पापा ने इस तुफान में मरे सभी लोगों को प्रभु को सौंपा तथा उनके परिवार के सदस्यों संबंधियों और घायल लोगों के लिए भी प्रार्थना की।  संत पापा ने कहा कि हमें जीवन को बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए यह एक मिशन है जीवन ईश्वर की ओर से दिया गया अनमोल उपहार है।

शिक्षा संस्थान काथलिक पहचान

संत पापा ने कहा कि जापान की कलीसिया वर्तमान शिक्षा संस्थानों के लिए सराही गई है यह बौद्धिक और सांस्कृतिक धाराओं के साथ एकीकरण के लिए एक महान संसाधन का प्रतिनिधित्व करती है। इसके योगदान की गुणवत्ता स्वाभाविक रूप से इसकी विशिष्ट काथलिक पहचान और मिशन को बढ़ावा देती है।

युवाओं की देखभाल

संत पापा ने जापान की वर्तमान परिस्थिति और गंभीर समस्याओं पर भी अपना ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि जापान के लोग विभिन्न कारणों से, अकेलेपन, निराशा और अलगाव जैसे समस्याओं से जूझ रहे हैं। शहरों में आत्महत्या की दरों में वृद्धि, दूसरों पर धौंस दिखाना और विभिन्न प्रकार की जरुरतें, अलगाव और आध्यात्मिक भटकाव के नए रूप सामने आ रहे हैं।  चूंकि ये विशेष रूप से युवा को प्रभावित करते हैं, इसलिए संत पापा ने धर्माध्यक्षों से युवाओं और उनकी जरूरतों पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया।

संत पापा ने इस बात तो स्वीकार किया कि “फसल तो बहुत है और मजदूर कम हैं”, इसलिए संत पापा ने कलीसिया के मिशन को विकसित करने के लिए लोक धर्मियों और ख्रीस्तीय परिवारों को शामिल करने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए प्रोत्साहन दिया, जिससे कि लोक धर्मी अपने दैनिक जीवन में अपने पड़ोसियों के साथ और अपने व्यवसाय या कार्य स्थानों में सुसमाचार की दया और करुणा का प्रचार कर सकें।

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23 November 2019, 15:21