सैनिकों की मदद करने वाले काथलिक पुरोहितों से मुलाकात करते संत पापा सैनिकों की मदद करने वाले काथलिक पुरोहितों से मुलाकात करते संत पापा 

व्यक्ति को दुश्मन के रूप में नहीं, बल्कि गरिमा के साथ देखना

संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 31 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी नियम पर, सैनिकों की मदद करने वाले काथलिक पुरोहितों (मीलिटरी चैपलिन) के प्रशिक्षण हेतु पाँचवें अंतरराष्ट्रीय कोर्स में भाग ले रहे पुरोहितों से मुलाकात की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 31 अक्टूबर 2019 (रेई)˸ कोर्स का आयोजन धर्माध्यक्षों के धर्मसंघ द्वारा किया गया था। कोर्स की विषयवस्तु थी, "सशस्त्र संघर्षों के संदर्भ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का नुकसान : सैन्य चैपलिन का मिशन।"

संत पापा ने चार साल पहले आयोजित प्रथम कोर्स के प्रतिभागियों को सम्बोधित शब्दों की याद दिलाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को केवल एक दुश्मन के रूप में देखने और उस व्यक्ति के रूप में नहीं जो आंतरिक गरिमा से संपन्न है जो ईश्वर के प्रतिरूप में बनाया गया है, के प्रलोभन को अस्वीकार करने की जरूरत है। संत पापा ने कहा, "मैं आग्रह करता हूँ कि कभी भी यह याद करने से न थकें कि भयंकर युद्ध एवं संघर्ष के बीच भी व्यक्ति अत्यन्त पवित्र है।"

अधिकारों का हनन

संत पापा ने कहा कि यह आज अधिक महत्वपूर्ण हो गया है जब सशस्त्र संघर्षों के कारण लोगों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित होना पड़ता है। कैदियों के रूप में असमर्थता के कारण वे अपने विरोधियों के हाथों पड़ जाते हैं। बहुत बार उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया जाता है। इस हनन में उन्हें दुर्व्यवहार, हिंसा और विभिन्न प्रकार के अत्याचार और क्रूरता का सामना करना पड़ता हैं जो अमानवीय और अपमानजनक होते हैं।   

संत पापा ने कहा, "कितने नागरिक जबरन अपहरण किये जाते और मार डाले जाते हैं, उनमें कई धर्मसमाजी भी होते हैं जिनके बारे हमें कोई समाचार नहीं मिलता अथवा जिन्होंने बिना किसी पक्षपात या राष्ट्रवादी पूर्वाग्रह के ईश्वर और दूसरों की सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया है। मैं उनके तथा उनके परिवार वालों के लिए अपनी प्रार्थनाओं का आश्वासन देता हूँ ताकि वे साहस के साथ हमेशा आगे बढ़ सकें एवं कभी निराश न हों।"

अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून  

अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून में बंदियों की गरिमा के संरक्षण के उद्देश्य से कई प्रावधान हैं, विशेषकर, अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्षों को नियंत्रित करने वाले कानून। उन्होंने कहा कि सशस्त्र संघर्षों के दुखद प्रसंग में मानव प्रतिष्ठा की सुरक्षा के इन नियमों के महत्व एवं नैतिक आधार का अर्थ है उन्हें उपयुक्त एवं सख्ती से लागू किया जाना एवं उनका सम्मान किया जाना। इसके लिए कैदियों से मिलने की जरूरत है। मानव व्यक्ति की प्रतिष्ठा का सम्मान किया जाना, वास्तव में उनके अपराध के आकार पर निर्भर नहीं करता बल्कि नैतिक कर्तव्य पर निर्भर करता है जिसके लिए हरेक व्यक्ति एवं अधिकारी बुलाया जाता है।    

संत पापा ने सैनिकों के लिए नियुक्त पुरोहितों को सम्बोधित कर कहा कि उन्हें सशस्त्र सैनिकों के अंतःकरण का विकास करने का मिशन सौंपा गया है। "मैं आपको अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून के मानदंडों को सक्षम करने के लिए कोई प्रयास नहीं छोड़ने हेतु प्रोत्साहित करता हूं जिसकी प्रेरितिक देखभाल की जिम्मेदारी आपको सौंपी गयी है। आप सुसमाचार के इन वचनों द्वारा प्रेरित हों, "जब मैं कैदी था और तुम मुझे देखने आये।” (मती. 25:36)

मानवता की रक्षा

इसका अर्थ है एक खास तरह की ईश प्रजा की सहायता करना, जिन्हें आपको सौंपा गया है ताकि आप मानवता की रक्षा के उन तत्वों की पहचान कर सकें जो प्राकृतिक नियम पर आधारित है जो प्रत्येक व्यक्ति के साथ मुलाकात का सेतु एवं मंच बन सके।

संत पापा ने उन लोगों की भी याद की जो अंतरराष्ट्रीय संघर्ष की घड़ी में सैनिकों के करीब रहते हैं। उन्होंने कहा, "आप उनके अंतःकरण को उस विश्वव्यापी प्रेम के लिए खोलने हेतु बुलाये जाते हैं जो उन्हें एक-दूसरे के करीब लाता है चाहे वे किसी भी जाति, देश, संस्कृति अथवा धर्म के क्यों न हों।  

इसके लिए संत पापा ने परिवारों एवं ख्रीस्तीय समुदायों में मित्रता, समझदारी, सहनशीलता, भलाई और सभी लोगों के प्रति सम्मान जैसे सदगुणों के अभ्यास को प्रोत्साहन दिया। इसका अर्थ है युवाओं को तैयार करना जो संस्कृति और उसकी धरोहर के प्रति संवेदनशील होते हैं और वैश्विक नागरिकता के लिए प्रतिबद्ध होते ताकि एक बृहद मानव परिवार के विकास को बढ़ावा दिया जा सके।

जिनेवा कन्वेंशन

संत पापा ने याद दिलाया कि 12 अगस्त 1949 को युद्ध के समय में नागरिकों के संरक्षण के लिए जिनेवा कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए गए थे।

संत पापा ने कहा कि इसकी 70वीं वर्षगाँठ पर मैं परमधर्मपीठ द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून को महत्व दिये जाने को पुनः पुष्ट करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसके नियमों को हर परिस्थिति में सम्मान दिये जाएँ।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रों के परिवार में विचार-विमर्श एवं समझौता हेतु परमधर्मपीठ अपना सहयोग देता रहेगा।

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31 October 2019, 16:14