प्रवासियों और शरणर्थियों के लिए संत पापा का मिस्सा प्रवासियों और शरणर्थियों के लिए संत पापा का मिस्सा 

परित्यक्तों की चिंता करें, संत पापा

संत पापा फ्रांसिस ने रविवार 29 सितम्बर को विश्व प्रवासी और शरणार्थी हेतु संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में ख्रीस्तयाग अर्पित किया। विभिन्न देशों के प्रवासियों की रंग-बिरंगी उपस्थिति ने महोत्वस को संगीन बना दिया। संत पापा ने अपने मिस्सा के प्रवचन में आग्रह किया कि हम युद्ध प्रवाभित परित्याक्त लोगों के निकट आये जो उनके प्रति हमारा पड़ोसी प्रेम है।

दिलीप संजय एक्क-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 30 सितम्बर 2019 (रेई) प्रथम विश्व प्रवासी और शरणार्थी दिवस सन् 1914 में आयोजित किया गया था। तब से लेकर आज तक यह दिन अति संवेदनशील लोगों को याद करने का खास दिन बन गया है जहाँ संत पापा प्रावसियों हेतु प्रार्थना करते और उनके द्वारा मिलने वाले अवसरों से विश्व को सतर्क कराते हैं।

संवेदनशील लोगों की चिंतन

संत पापा ने 26वें रविवार के पाठों के आधार पर स्त्रोत ग्रंथ जिसका केन्द्र-विन्दु संवेदनशील लोग हैं, लोगों का ध्यान आकृर्षित कराते हुए कहा कि स्त्रोत लेखक विशेष रुप से परित्यक्त और शोषण के शिकार लोगों की चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर खास रुप से “परदेशियों, विधवाओं और अनाथों” की चिंता करते हैं क्योंकि वे अपने “अधिकारों से वंचित, निर्वासित और दुःखों” के शिकार हैं।

असौभग्यशालियों की चिंता

निर्गमन ग्रंथ और विधि विवरण ग्रंथ का उद्धरण देते हुए जो विधवाओं, अनाथों और परदेशियों के प्रति हमें दुर्व्यवहार करने से सचेत करता है, संत पापा ने कहा “ईश्वर असौभाग्यशालियों की प्रेममयी देख-रेख करते हैं।”  

प्रवासियों का सवाल नहीं

इस वर्ष विश्व प्रवासियों और शरणार्थियों दिवस की विषयवस्तु “केवल प्रवासीगण नहीं है। अतः यह केवल प्रवासियों के बारे में नहीं कहता वरन उन सभों के बारे भी “जो प्रवासियों और शरणार्थियों के अलावे हाशिये पर जीवनयापन करते और फेंके जाने की संस्कृति के शिकार हैं।” उन्होंने कहा, “ईश्वर हमें उनकी मानवता के साथ-साथ स्वयं के सम्मान को स्थापित करने को कहते हैं, वे हमें किसी का परित्याग करने को नहीं कहते हैं।”   

परित्याग के कारण

ईश्वर हमें उनका परित्याग करने के कारणों पर चिंतन करने का निमंत्रण देते हैं। कुछ सौभाग्यशाली अपने जीवन की प्रतिष्ठा को, दूसरे की कीमत पर बनाये रखने की चाह ऱखते हैं। आज दुनिया में समृद्ध जन अपनी समृद्धि में हैं वहीं परित्यक्त लोगों के साथ और अधिक क्रूरता के साथ व्यवहार किया जाता है। यह सच्चाई है जो हमें चोट पहुँचाती है।

यह दुनिया रोज दिन धनी होती जा रही है जबकि परित्यक्त लोगों को और भी दुःख का सामना करना पड़ता है। विकासशील देश अपने में उत्तम प्राकृतिक और मानव संसाधनों का दोहन करते हुए कुछेक के हित में विकास कर रहे हैं। विश्व के कुछ हिस्सों में युद्ध की स्थिति है, हथियारों का निर्माण कहीं और होता और उनकी बिक्री कहीं और होती है। वहीं युद्ध के कारण प्रभावित लोगों को देश अपनी शरण देने की चाह नहीं रखते हैं। इससे प्रभावित वे होते हैं जो छोटे, गरीब और संवेदनशील हैं। उन्हें मेज पर बैठने नहीं दिया जाता बल्कि वे भोज के “टुकड़ों” पर जीने हेतु छोड़े दिये जाते हैं।

धिक्कार उन्हें जो मौज करते हैं

पहले पाठ में नबी आमोस उनके लिए कठोर शब्दों का उपयोग करते जो केवल अपनी चिंता करते और येरुसलेम में खाते-पीते और मौज-मस्ती करते हैं, वे इस्रराएल की दुर्दशा की चिंता नहीं करते हैं।

28 सदियों के बाद भी ये चेतावनी आज भी वैसे ही प्रभावकारी है। आज भी, वास्तव में, "भलाई की संस्कृति”... हमें खुद के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती है, हमें दूसरों के संकटों के प्रति असंवेदनशील बनाती है, ... दूसरों के प्रति उदासीन बना देती और वास्तव में यह हमें उदासीनता के वैश्वीकरण की ओर ले जाती है।

ख्रीस्तीय के रुप में हमारी प्रतिक्रिया

संत पापा ने कहा कि हम भी सुसमाचार के उस धनी व्यक्ति की तरह व्यवहार करते हैं जैसा कि वह लाजरूस के साथ पेश आता है। हम कठिनाई में पड़ें अपने भाई-बहनों की चिंता करने के बदले स्वयं अपने बारे में ही सोचते हैं।

ख्रीस्तियों के रुप में हम उन भाई-बहनों के जीवन के बारे में जो हमारे “समुदाय” के नहीं हैं, नई और पुरानी गरीबी के कारण अंधकारमय जीवन जीते, हम उनके प्रति हो रहे घृणा और भेदभाव को लेकर उदासीन नहीं रह सकते हैं। हम उन निर्दोषों के प्रति असंवेदनशील, अचेतन हृदय नहीं रह सकते, जिन्हें कष्ट उठाना पड़ता है। हम ईश्वर से आंसू की कृपा मांगें क्योंकि आंसू पापों के कारण हमारे हृदय को परिवर्तित करती है।

प्रेम न्याय स्थापित करता

संत पापा ने कहा कि ईश्वर और पड़ोसी को प्रेम करना वह आज्ञा है जिसे हम एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते हैं। उन्होंने इसका मर्म समझते हुए कहा, “अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करने का अर्थ अपने को न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु पूर्णरुपेण समर्पित करना है, जहाँ सबों के लिए धरती में चीजें उपलब्ध हो, जहाँ सभी अपने को मानव परिवार का एक अंग समझें, जहाँ सभों को अपने मौलिक अधिकार और सम्मान मिलें।”  

प्रेम करने का अर्थ “दुःख में पड़े अपने भाइयों-बहनों के लिए करूणा के भाव रखना, अपने को पीड़ितों और सड़कों में परित्यक्त लोगों के करीब लाना”, उन्हें सभी रुपों में मदद करने की कोशिश करना।

मरियम तिरस्कृतों की सहारा बनें

संत पापा ने कहा, “ईश्वर ने हमें एक मानव परिवार का निर्मण करने हेतु प्रार्थना करने को कहा है, जहां सभी भाई-बहनों के रुप में ईश्वर की संतान हैं।”

हमें एक माता की आवश्यकता है जिनके हाथों हम आज हम सभी प्रवासियों और शरणार्थियों, दुनिया के हाशिये में रहने वालों को सुपूर्द करते हैं और उन्हें भी जो उनके साथ चलते हैं। 

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30 September 2019, 16:48